कहानी श्राप और वरदानों की

Mytho Micro Tv ( MMT)
0

      हिंदी पौराणिक कथा:-

       


              गाथा अद्भूत श्राप और वरदानों की 

 

कहते हैं विधाता ने जो पूर्व से ही नियत कर रखा होता है उसे कोई बदल नहीं सकता...सत्य युग से लेकर द्वापर युग तक के अधिकतर कथाओं से हमें यही ज्ञात होता है कि भगवान द्वारा रचित प्रत्येक घटना के पीछे , हमेशा उनकी कोई ना कोई ईश्वरीय लीला अवश्य ही छिपी रही है...श्राप और वरदान भी उन्ही ईश्वरीय लीला के एक अंश हैं जिसका उल्लेख आज भी हमे वेद पुराणों में मिलता है...


जिस प्रकार वरदान आज तक कभी किसी को सरलता से प्राप्त नहीं हुआ उसी प्रकार श्राप भी कभी किसी को अचानक ही अकारण नहीं मिले..वरदानों की तरह हर श्राप की अपनी एक अलग ही महिमा रही है...कारण कुछ भी रहा हो किन्तु जाने- अनजाने दिव्य ऋषियों एवं देवों द्वारा घोषित श्राप भले ही कभी मनुष्य, नाग , किन्नर, यक्ष , गन्धर्व या फिर देवताओं के लिए पीड़ादायक रहे हों मगर उस श्राप का सुखद प्रतिफल भी भविष्य में हमेशा से ही एक वरदान की तरह फलित होते देखा गया है...


हमारे समस्त वेद पुराण, वरदानों के साथ- साथ उन समस्त श्रापों के भी साक्षी रहे हैं जो हमे ये बतलाते हैं कि कैसे किसी को दिया गया श्राप एक समय के पश्चात अच्छे कार्यों के लिए हमेशा एक वरदान की तरह फलित हुआ है..”गाथा श्राप और वरदानों कीकुछ ऐसे ही श्रापों की कथा है जिनका श्री गणेश भी हम प्रथम पूज्य देवता श्री गणेश की कथा से करने जा रहे हैं...



एक बार की बात है धन के देवता कुबेर ने एक नविन राज्य अलकापुरी का  निर्माण किया, अलकापुरी निर्माण के बाद ही कुबेर को स्वयं पर बहुत घमंड हो गया कि वो हर प्रकार से सर्वसमर्थ हैदुनियाँ में ऐसा कोई नहीं जो अब उनके यहाँ से अतृप्त होकर या खाली हाथ लौट जाए , कुबेर ने भवन -श्रमिकों एवं पंडितों को दिया तो बहुत कुछ मगर अहेंकार से भरकर भिखारियों की तरह...


कुबेर में आये बदलाव की ये बात जब महर्षि नारद ने महादेव और देवी पार्वती को बतायी तो वे केवल मुस्कुराने लगे...उधर कुबेर देव ने सोचा सबसे पहले भोजन के लिए निमंत्रण महादेव परिवार को ही दे दूं वरना महादेव रुष्ट हो सकते हैं...सारी व्यवस्था करने के बाद कुबेर भोजन निमत्रण का प्रस्ताव आग्रह लेकर महादेव और माता पार्वती के समक्ष पहुँच गए..किन्तु महादेव और माता पार्वती ने जब किसी कारण वश जाने में असमर्थतता जताई तो फिर उन्होंने कुबेर से गणेश को ही साथ ले जाने के लिए कहा..


कुबेर जी को महादेव की बात माननी पड़ी.. किन्तु रास्ते में गणेश को देखते ही कुबेर जी  बार बार अपना  मुह बना रहे थे और सोच रहे थे कि महादेव परिवार के लिए इतना कुछ बनवाया था अब ये गणेश जी क्या सिर्फ वहां सूंघने जा रहे हैं..? इतने छोटे से तो हैं ही कितना खायेंगे और कितना पियेंगे..? गणेश जी कुबेर के मन की बात भांप चुके थे ..लेकिन बस चुपचाप उनके साथ अलकापुरी पहुँच गए...अलकापुरी पहुँचने के बाद जब गणेश जी ने भोजन शुरू किया तो कुबेर का मुह खुला का खुला रह गया..गणेश जी पहले तो फल खाए फिर लड्डू उसके बाद भोजनालय का सारा भोजन...


वो बार- बार भोजन मांगते गए और कुबेर किसी तरह भोजन लाते गए मगर फिर गणेश की भूख ना मिटने पर उनका गुस्सा बढ़ता ही गया...कुबेर ने जैसे तैसे दुसरे राज्य से भोजन मंगवाया तो गणेश जी वो भी खा गए और कुबेर को चेतावनी देकर जल्दी से उनकी भूख को शांत करने को कहा..जब कुबेर के पास कुछ नहीं बचा तो गणेश ने पूरी कुबेर की धन -सम्पदा सहित उनकी अलकापुरी को ही निगल लिया.. अलकापुरी खाकर भी जब गणेश का पेट नहीं भरा तो वे कुबेर को खाने के लिए दौड़ पड़े ,फिर तो कुबेर के प्राण पर ही बन आये..मगर फिर उन्होंने किसी तरह गणेश के सामने क्षमा मांगकर जब उनके क्रोध को शांत किया तो गणेश जी ने कुबेर को क्षमाकर उनकी अलकापूरी उन्हें लौटा दी...


.गणेश अब कैलाश की ओर लौट रहे थेउन्होंने बहुत खा लिया था इसके कारण उनका उदर कुछ अधिक ही बाहर आ गया थागणेश को अपना उदर पकड़कर चलते देख आकाश में चमकते चन्द्रदेव से रहा नहीं गया और वे जोर -जोर से हंसने लगे...गणेश उन्हें बार बार चुप रहने को कह रहे थे मगर चंद्रमा अब गणेश के ऊपर बार- बार हंसकर उनके उदर का अपमान भी करने लगे थे.अपने उदर के अपमान के कारण गणेश जी फिर से क्रुद्ध हो गए और परिणामस्वरुप उन्होंने चंद्रमा को उनकी शक्ति और उनका तेज़ क्षीण हो जाने का श्राप दे दिया...


चंद्रमा की शक्ति और कान्ति क्षीण हो जाने पर पर वे काले पड़ गए...पत्नी रोहणी परेशान हो उठी..मगर इसके साथ ही जब चंद्रमा का संबंध समुद्र से अलग गया तो समुद्र की लहरें तेज़ हो गयी..धरती पर बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो गयी और इसका असर चंद्रमा पर भी पड़ने लगा...चंद्रमा ने हर उपाय कर लिए मगर उसका तेज़ नहीं लौटा और फिर अंत में वे भागे- भागे गणेश के पास आये और उनसे क्षमा याचना की .. 


गणेश ने चंद्रमा को क्षमा तो कर दिया मगर कहा कि दिया हुआ श्राप वापस तो नहीं लिया जा सकता मगर उसकी सीमा अवश्य कम की जा सकती है.. इसलिए गणेश जी ने कहा – “चन्द्र देव ! श्राप के प्रभाव के कारण महीने में आप एक बार लुप्त अवश्य हो जायेंगे मगर फिर १५ दिन के भीतर आप पुन: अपने स्वरुप को पा लेंगे जो अब से संसार में पूर्णमासी के नाम से जाना जाएगा....आप पर पहले जो दुसरे ग्रहों का प्रभाव पड़ने का सदा भय बना रहता था वो भी अब समाप्त हो जाएगा..महीने में एक दिन लुप्त होने और फिर १५ दिन में आपका पूर्ण आकर आ जाने के कारण ही संसार में आपका महत्व बढ़ जाएगा....अब चंद्रमा को भी देव पद प्राप्त होगा और आप चंद्रदेव कहलायेंगे ...

इस प्रकार गणेश द्वारा चन्द्र को दिया गया श्राप एक ब्रह्मांडीय नियम बन गया . चंद्रमा यदि हमेशा अपने एक ही स्वरुप में रहते तो इससे कई भौगोलिक दुर्घटनाएं इसलिए यश श्राप संसार के हित मरे रहा . 

 

 

एक टिप्पणी भेजें

0टिप्पणियाँ

Hi ! you are most welcome for any coment

एक टिप्पणी भेजें (0)