हर नया लेखक शुरु से ही एक गरीब वर्ग का रहता है क्यूंकि हर जगह उसका कहीं ना कहीं शोषण और दोहन होता रहता है. कभी पैसे के नाम पर तो कभी क्रेडिट के नाम पर तो कभी प्रकाशक के द्वारा रोयालिटी को लेकर.. वैसे भी लेखकों को हमेशा ही निर्माता- निर्देशक कम ही आंकते हैं. आप देख सकते हैं पोस्टर में उनके नाम तक नहीं होते. निर्माता को लगता है कि जिस चीज़ को उन्होंने बनाई है वो अब उनकी संपत्ति है तो क्यूँ नाम देना किसी गरीब और कमज़ोर का. वैसे भी लेखक से फिल्म थोड़े ही ना चलती है. ये उनकी अपनी सोच है. लेकिन इस सोच को आज के युग में बदले जाने की ज़रुरत है. एक समय अपने नाम और क्रेडिट पाने की लड़ाई सलीम -जावेद जी ने लड़ी थी और उन्हें उनका हक़ और अधिकार भी मिला. राइटर मिर्ज़ा ब्रदर्स भी अपने हक़ और अधिकार के लिए लडे और उन्हें उनका पूरा सम्मान मिला. आप समझ सकते हैं उस वक़्त इतने बड़े- बड़े दिग्गज लेखकों के साथ ऐसा व्यवहार होता था तो हमारे और आपके साथ क्या ही होगा. लेकिन कहते हैं ना युग परिवर्तित होता है तो अब समय आ गया है परिवर्तन लाने का. आज हर निर्माता निर्देशक एक लेखक की कमाई खा रहे हैं अपने प्रोडक्ट को दस जगह बेचकर लेकिन राइटर को एक बार का भी ना तो ढंग से पैसा मिलता है ना नाम. इसलिए लेखकों के कार्यों का सम्मान भी होना चाहिए और उन्हें उनके हक़ और अधिकार मिलते हुए उचित पारिश्रमिक भी दिया जाना चाहिए. लेखक और निर्माता का सम्बन्ध भले ही बाप -बेटे की तरह ना हो लेकिन इसे एक भाई- भतीजे की तरह तो चलाया ही जा सकता है क्यूंकि दोनों को ही एक दुसरे की ज़रुरत पड़ती है. लेकिन फिर भी लेखकों को हर चीज़ के लिए विवश कर दिया जाता है. उनसे बिना पैसे और अग्रीमेंट की कहानी ले ली जाती है और एक शर्त भी लाद दी जाती है कि वो इस कहानी को दुसरे को नहीं देगा क्यूंकि निर्माता इस कहानी को लेकर कहीं बात कर रहा होता है. ये सब लेखक फ्री करता है इस आस में कि कल को उसे काम मिल जाएगा. लेकिन निर्माता का काम बन जाने के बाद उसके अपने खुद के नियम और शर्तें शुरू हो जाते हैं. वैसे लेखक को हर हाल में अपनी कहानी देनी रहती है क्यूंकि यही उसकी कमाई का जरिया भी है. लेकिन जब एक निर्माता- निर्देशक लेखक की कहानी को लेकर लम्बे समय तक अपने पास रख लेते हैं तो शर्तों से बंधे लेखक के लिए मुसीबत बढ़ जाती है. मेरी राय में हर चीज़ की एक समय सीमा होनी चाहिए. वैसे भी आजकल इतने चैनल्स और ओ.टी.टी आ गए हैं कि सबको कहानी की ज़रुरत पड़ती रहती है और मीटिंग्स भी जल्दी मिल जाती है. पुराने संस्थानों निर्माता- निर्देशकों ने कहानी सुनकर हां ना बोलने की अवधि तीन महीने की रखी है. लेकिन ये एक लंबा वक़्त है जिसका खामियाजा लेखक को ही भुगतना पड़ता है. इसलिए मेरी राय में एक लेखक की कहानी को निर्माता- निर्देशक को अपने पास अधिक समय तक नहीं रखना चाहिए और 2 महीने के भीतर काम ना बने तो लेखक को बता देना चाहिए. मुझे लगता है 2 महीने काफी हैं हाँ और ना में जवाब आने के लिए. इसलिए मैं (श्रीकांत विश्वकर्मा) मेरी खुद की कहानी के लिए आज दिनाँक 1.1.2024 से दो महीने की अवधि निश्चित करता हूँ. यदि मैं अपनी कहानी किसी निर्माता- निर्देशक या प्लेटफार्म आदि को देता हूँ तो कहानी के रजिस्टर पेज के नीचे ही इस पेज से सम्बंधित नियम और शर्त की लिंक भी दे दी गयी है कि मैं उन निर्माता- निर्देशक- प्लेटफॉर्म को अपनी कहानी सिर्फ दो महीने के लिए ही सामने वाले को प्रस्तुत करने के लिए दे रहा हूँ वो भी एक छोटी सी शगुन राशि लेकर इस शर्त पर कि इस बीच मैं वो कहानी कहीं दुसरे निर्माता - निर्देशक और प्लेटफार्म को नहीं दूंगा. लेकिन यदि वो निर्माता - निर्देशक मुझे कोई शगुन राशि ( signing amount) नहीं देना चाहते हैं और फिर भी वो मुझसे मेरी कहानी 2 महीने के लिए लेते हैं तो मैं इस बीच स्वतंत्र रहूँगा कि मैं अपनी उसी कहानी को दूसरी जगह सूना सकूं और उसका सौदा या अग्रीमेंट आदि खुद कर सकूं. लेकिन अगर मैंने किसी निर्माता- निर्देशक से पहले ही 2 महीने के लिए कुछ शगुन राशि ले ली और मुझे अचानक से कोई दूसरा निर्माता या अच्छी कंपनी मिल जाती है तो मैं सबसे पहले उसी निर्माता को उनके पास लेकर जाऊँगा जिन्हें मैंने अपनी कहानी दी थी. लेकिन अगर किसी कारण मेरे द्वारा चुने गए निर्माता या कंपनी पहले वाले निर्माता- निर्देशक के साथ काम करने के लिए तैयार नहीं होती है तो मैं पहले वाले निर्माता जिससे मैंने शगुन राशि लेकर 2 महीने के लिए अपनी कहानी दी थी उन्हें दुगनी शगुन राशि देकर उनसे कहानी लेकर मेरे चुने हुए निर्माता- निर्देशक के साथ काम करने के लिए स्वतंत्र रहूँगा. इसके अतिरिक्त आजकल ऐसा भी हो रहा कि कोई भी निर्माता -निर्देशक बिना लेखक को कोई पैसा दिए 90 दिन के क्रेडिट पर काम करवाना शुरू करवा देते हैं. इसके लिए बस लेखक को एक मेल कर देते हैं. मान लीजिये लेखक ने पूरा लिख दिया और निर्माता- निर्देशक ने प्रोजेक्ट नहीं बनाया तो क्या होगा. वो निर्माता -निर्देशक फिर लेखक को पैसे देने से मुकर जाएगा. इसलिए इस विषय पर भी मेरी यही शर्त है कि यदि मैं किसी निर्माता -निर्देशक के मेल आने पर उनके लिए लिखता हूँ और बाद में वो निर्माता- निर्देशक उस प्रोजेक्ट को नहीं बनाते हैं तो भी उन्हें मेरे लिखे हुए कहानी और मेहनत के लिए उन्हें पूरा पैसा देना होगा. ये सारी चीज़े एक पेज पर तो नहीं बताई जा सकती है इसलिए मैंने अपनी उस रजिस्टर कहानी के सबसे नीचे दीये गए लिंक एवं वेबसाइट का जिक्र किया है जिसके द्वारा वो यहाँ तक आकर इसे पढ़ सकते हैं. अब बात करते हैं कहानी को लेकर अधिकार की. आजकल हो ये रहा है कि निर्माता एक बार लेखक से कहानी खरीद लेते हैं और उस प्रोडक्ट का सौदा वो बार बार अलग अलग प्लेटफार्म पर करते हैं. यानी कि लेखक को सिर्फ एक बार पैसा देकर उस चीज़ को पचास बार बेचना. इस पर भी मैं एक नियम मानता हूँ कि इसमें लेखक का भी थोडा सा हक़ बनता है कि उसे भी कुछ दिया जाया क्यूंकि बेचा तो लेखक की रचना को ही जा रहा है. लेकिन यदि इस बारे में निर्माता को कहा जाए तो वो लेखक के शर्त को मानने से इनकार कर देते हैं और उसे भविष्य में कभी काम ना देने की बात से डराकर रखते हैं. लेखक से पहले ही लिखित में ले लिया जाता है कि अब आपको इसमें कुछ नहीं मिलेगा. लेकिन जब वही लेखक अपनी बुक पब्लिश करता है तो पब्लिशर को हर बार उसमे से कुछ अंश उस लेखक को भी देना पड़ता है यही नियम यहाँ भी होना चाहिए. इसलिए निर्माताओं को भी लेखक की चीज़े सौ बार बेचने पर लेखकों को भी कुछ अंश देना चाहिए और मैं अपने लिए यही नियम और शर्त नियत करता हूँ चाहे मैंने कोई अग्रीमेंट साईन किया हो अथवा नहीं. यदि मेरी लिखी किताब या कहानी पर कोई भी निर्माता निर्देश कोई फिल्म. टी.वी कार्टून, अनिमेशन या किसी भी चीज़ का निर्माण करता है और उसे बाद में अनेकों जगह बेचकर पैसे कमाता है तो मैं भी उन पैसों में अपना भी एक अंश पाने का हकदार हूँ. यदि कहानी किताब के रूप में है तो ये हक़ और भी दृढ बन जाता है.
धन्यवाद .
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