तारा रानी की कथा से पहले सुनी जाती है भक्त नंदलाल की कथा . ( Bhakt Nandlal Ki Katha)

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 भक्त नन्दलाल की कथा


तारा रानी की कथा सुनने से पहले परिवार सहित नारियल की भेंट चढ़ाने का विधान है। | जिस पर मौली लिपटी होनी चाहिए, तभी बोला हुआ संकल्प विधिवत पूरा माना जाता है। हम माता की ज्योत मौली से बनाते हैं, नारियल पर लाल कपड़ा लपेटते हैं और ज्योति जहां | रखी जाती है उस आसन पर लाल कपड़ा बिछाते हैं। इस बात के पीछे एक रहस्य छिपा है। जिसकी कथा इस प्रकार है।



तारा रानी की कथा से पहले सुनी जाती है भक्त नंदलाल की कथा .

( Bhakt Nandlal Ki Katha Hindi mei)


ईचू नामक एक कुम्हार अपने पुत्र नंदलाल और सुपुत्री नंदी के साथ नरेला गांव में रहता था, जिसका विशेष कार्य मिट्टी के खिलौने बनाना था और सारा परिवार देवी भक्त था।। एक बार नंदा, नंदी मिट्टी खोद रहे थे, उन्हें ऊंचे टीले से एक पत्थर की मूर्ति मिलती है जिसके पास लौंग, इलायची, सूखे रूप में रखे हुए थे। उन दोनों ने मूर्ति को प्रणाम किया और | अपने घर के आंगन में विराजमान कर दिया। जब ये बात जमींदार को पता लगी उसके मन में लालच आ गया। वो जाकर ईचू से बोला, इस मूर्ति पर मेरा अधिकार है क्योंकि जिस धरती पर माता की ये मूर्ति मिली है, उस पर मेरा अधिकार है। ये वाद-विवाद गांव की पंचायत तक पहुंच गया। पंचायत ने ये फैसला दिया कि जहां से मूर्ति मिली है, उसे वहीं रख दिया जाए और कुछ दिन बाद इसका निर्णय हो जाएगा। ईचू बाबा बहुत रोया और बोला मां मेरी कौन-सी परीक्षा ले रही हो, मैं तो तेरा बचपन से उपासक हूं। क्या मुझ गरीब की झोंपड़ी तुझे



अच्छी नहीं लगती? उसने सरपंच के कहने पर मूर्ति को सिर पे उठाया और धीरे-धीरे चलता गया। इसी बीच ईचू बाबा को रास्ते में नंदी और नंदलाल मिले और बाबा से रोने का कारण पूछा। बाबा ने कहा बेटे, मां हमारा घर छोड़कर जा रही हैं। नंदा-नंदी बोले कौन कहता है? यह मूर्ति तो हमारे घर के आंगन में सजी हुई रखी है। जो मूर्ति आपके सिर पर है, उसे चाहे क आप टीले पर छोड़ आओ। यह बात दूर-दूर तक फैल गई। ईच कुम्हार के घर में भक्त इकट्ठे हो गए और मां की वंदना करने लगे। कुछ लोग नंदा-नंदी की बुराई करने लगे कि ये छोटी जाति के हैं, अपने घर को मंदिर बनाना चाहते हैं। नंदा-नंदी भाव-विभोर होकर मां से कहते हैं कि ये सांसारिक प्राणी तेरी लीला को नहीं जानते। मां तुम्हें तो अब मेरी लाज बचानी ही होगी। मां मैं अन्न, जल ग्रहण नहीं करूंगा और ये गुड़ की भेली तेरे प्रसाद में रखी है चाहे तो भोग लगा ले नहीं तो मैं अपना शीश इस चौखट से नहीं उठाऊंगा। मां का हृदय द्रवित हुआ और मध्य रात्रि में मां शेर को सजाकर अपने भवन से निकलीं। तभी लंगर वीर ने मां से पूछा- -मां कहां जा रही हो, मैंने आज तक आपको इस तरह जाते हुए नहीं देखा। ऐसा कौन सा भक्त है जिसने इस अंधेरी रात्रि में आपको पुकारा है? मैं भी उस भक्त के दर्शन करूंगा। ॐ


 मां ने पवन का रूप धारण किया और नरेला पहुंच गईं। तभी मां ने लंगर वीर से कहा यहां पर सारे ही भक्त नहीं बैठे हैं यहां तो नंदा की परीक्षा ली जा रही है, जो मुझे ढूंढ़ रहा है। उसका ध्यान मेरी ओर लगा हुआ है। माता ने पांच साल की कन्या का रूप धारण किया और


 

अपने बालों को खोलकर झूम-झूमकर नाचने लगीं, जो मां की शक्ति को नहीं जानते थे वो डरकर भाग गए और नंदा-नंदी वहीं पर कुछ भक्तों के साथ बैठे रह गए। मां ने कहा नंदा * मैं अपना वचन निभाने के लिए आई हूं, मेरी ओर ध्यान से देख। बेटे ने मां को पहचान लिया। ॐ ॐ मां ने नंदा से कहा मेरे लाल मुझे भेंट नहीं देगा? नंदा बोला, बड़े भाग्य से आपके दर्शन हुए हैं मैं आपको क्या अर्पण कर सकता हूं। यदि जल चढ़ाता हूं तो मछली का झूठा है, शहद् चढ़ाता हूं तो मक्खी का झूठा है, फूल चढ़ाता हूं तो भंवरे का झूठा है, दूध चढ़ाता हूं तो बछड़े का झूठा है। मां आज की रात तो मेरी जिव्हा ही पवित्र है जो आपके जयकारे बोल रही है | और नंदा ने अपना शीश काटकर मां को अर्पण कर दिया। मां की आंखों में आंसू आ गए। मां बोलीं नंदा ये तूने क्या किया? जो भक्त थे वो डरने लगे कि इतनी कठिन परीक्षा नंदा ने मां को दी है, तभी मां ने नंदा के कटे हुए शीश का नारियल बनाया और नंदा का शीश | जोड़कर कहा पवित्र भेंट मुझे अर्पण कर। देख ध्यान से ये तेरे सिर के बाल हैं जिन्होंने जटा का रूप धारण किया है, अंदर से गोला स्वरूप दिखाया जिस पर आंखें और मुख था और ये कहा, नारियल का रंग, मनुष्य के शरीर से मिलता है ये बाहर का स्वरूप पुरुष है। 1 जो सख्त है और अंदर का स्वरूप जिसमें ममता रूपी जल है वो मां का हृदय है। नंदा भविष्य में नारियल की भेंट भगवती जागरण में अवश्य चढ़ाई जाएगी। तेरी नसें मौली का रूप धारण कर चुकी हैं जिससे मेरी ज्योत बनेगी और नारियल पर उसे लपेटा जाएगा। तेरा धरती पर गिरा हुआ खून व्यर्थ नहीं जाएगा, जो ज्योति के नीचे आसन पर बिछाया जाएगा। ये आशीर्वाद



देकर माता अपने भवन पर चली गई। जब ये कथा मुगल बादशाहों को पता लगी तो उन्होंने भी इस घटना को स्वीकार किया। एक मुगल बादशाह फारुक शाह जो कि दिल्ली में था # उसको भी अपनी गलती स्वीकार करनी पड़ी और मनसा देवी नाम के मंदिर को सम्मान देना पड़ा। पहले हमारे ऋषि, मुनि, योगी जब अपने आश्रमों में शक्ति की आराधना किया करते थे तो नारियल की गिरी का पवित्र प्रसाद ग्रहण करते थे। इसके अंदर से जो भी पवित्र जल ॐ निकलता था उसको पीकर जीवित रहते थे, नारियल की गिरी को फलों के साथ खाते थे जिससे उनकी भूख और प्यास शांत होती थी। बीच में नारियल का महत्त्व कम हो गया था क्योंकि मुगल शासकों ने इसके महत्त्व को नहीं समझा था। जब आदि जगदगुरु शंकराचार्य ने भगवती मां का प्रचार किया और अपने चार शिष्यों को उत्तर-दक्षिण-पूर्व-पश्चिम में सनातन धर्म के मंदिरों की रक्षा हेतु नियुक्त किया तब नारियल का प्रसाद देवी मंदिरों में प्रसाद के रूप में दिया जाने लगा और इसकी पवित्रता के बारे में बताया और ये सुझाव दिया कि जहां भी हवन-यज्ञ की पूर्णाहुति होगी वहां अग्नि को नारियल ही अर्पण करना होगा तभी वह कार्य निर्विघ्न रूप से सम्पन्न माना जाएगा। फिर तारा रानी की कथा को श्रवण करना होता है। ॥ दोहा ॥


नारियल की इस भेंट का सब करते सम्मान। 

नंदलाल हो गया अमर, मां से मिला वरदान ।।

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