परशुराम की जन्म कुंडली और सम्पूर्ण कथा Parshuram ki janm kundali aur kahani

@Indian mythology
0

 श्री परशुराम अवतार रहस्य  ( Parshuram Avtar story in hindi)


pashuram ji ki janm kundali

parshuram ki janm katha in hindi

parshuram birth story in hindi


 भगवान् की सृष्टि | स्वयं में ही एक आश्चर्य है। फिर इसमें आश्चर्यों की गणना अथवा सीमा कैसे कहीं जा सकती है। मानव की सीमित बुद्धि उस असीमित सृष्टि का सम्यक् ज्ञान कैसे प्राप्त कर सकती है? मानव बुद्धि वहाँ सर्वथा कुण्ठित हो जाती है। केवल शास्त्र और आर्ष वचनों के सहारे ही इसे समझा जाता है। सम्पूर्ण सृष्टि ब्रह्माजी की रचना है यह सभी जानते हैं। आरम्भ में सतोगुण की प्रधानता थी, फिर रजोगुण एवं तमोगुण की प्रधानता होने लगी। इन्हीं के अनुसार सृष्टि का स्वरूप- दृष्टि गोचर होता रहता है। यही परिवर्तन क्रम कहलाता है राक्षस प्रारम्भ काल में रक्षा किया करते थे इसी गुण के कारण राक्षस कहलाते थे। कालान्तर में वे इतने अत्याचारी, दुराचारी और पापात्मा बन गये कि उनसे पीड़ित होकर संसार त्राहि-त्राहि कर उठा। इन



परशुराम की जन्म कुंडली और सम्पूर्ण कथा  Parshuram ki janm kundali aur kahani




 तीनों गुणों में एक सीमा में सामंजस्य बनाये रखने के लिए। भगवान अवतारों की योजना करते हैं। पापी, आततायियों का संहार करने के लिए और सज्जन- धर्मात्मा जनों की रक्षा करने के लिए भगवान अवतार लेते हैं। इसके अतिरिक्त अन्य कारण भी हैं, जिन के लिए भगवान अवतार लेते हैं कहीं किसी शाप के कारण तो कहीं पृथ्वी के उद्धार के लिए भी भगवान अवतार धारण करते हैं अवतार का आविर्भाव भगवान् विष्णु के अंश से ही होता है परन्तु कार्य-कारण और पात्र के अनुसार यह अवतरण मानव योनि में अथवा अन्य मानवेतर योनियों में हुआ करता है। मानव योनि के अवतारों में भगवान राम कृष्ण और परशुराम आदि हैं तथा मानवेतर योनियों के उदाहरण जैसे कहा है-


 वो जलचर, दो वनचर, दो विप्र दो शूर । दो करे जंगल में तपस्या, हृदय भजन भक्ति भरपूर ॥


 अर्थात् मत्स्य और कूर्म जल में रहते हैं नरसिंह और शूकर वन में रहने वाले वनेचर के रूप में हुये तथा राम और कृष्ण शूरवीर योद्धा के रूप में तथा वामन और परशुराम विप्र विद्या भण्डार के रूप में हुये। यह सभी अवतार भक्तों के ऊपर कृपा करने के लिए अजन्मा अव्यय और ईश्वर होने पर श्री माया का आश्रय लेकर परमात्मा अवतार लेते हैं। अवतरण का अर्थ यह नहीं है कि भगवान् को कहीं से उतरना या आना पड़ता है। वह परमात्मा सर्वव्यापक है, किसी विशेष अधिष्ठान अथवा व्यक्ति के द्वारा शक्ति प्रकट होने का नाम ही अवतार है। प्रत्येक कल्प में अखिल कोटी ब्रह्माण्ड नायक परात्पर



भगवान परशुरामचरितामृत

parshuram avtar katha in hindi


 परब्रह्म परमात्मा सर्वेश्वर सर्वनियन्ता भगवान् के अवतार अनेकों बार होते हैं। कल्प के बारे में हम कुछ इस तरह समझ सकते हैं- सत्रह लाख अठ्ठाईस हजार वर्ष का सतयुग, बारह लाख छियानवे हजार वर्षों का नेता, आठ लाख चौंसठ हजार वर्ष का द्वापर और चार लाख बत्तीस हजार वर्ष का कलियुग होता है चारों युगों के एक बार होने को एक चौकड़ी कहते हैं और हजार चौकड़ी होने पर एक कल्प होता है। वर्तमान कल्प श्वेतावाराह कल्प है इसमें चौबीस अवतार प्रमुख माने जाते हैं, उनमें से दस महा अवतार कहे गये हैं। अब तक इस कल्प के नौ अवतारों की लीला तो हो चुकी है दसवें अवतार कल्कि भगवान का आविर्भाव अभी होना है। अभी तो भगवान का आविर्भाव अभी होना है अभी तो भगवान श्री कृष्णावतार को हुए 5 हजार वर्ष हुए हैं अतः कल्कि अवतार होने में लाखों वर्ष का समय है इससे सहज अनुमान लगाया जा सकता है कि कुछ धूर्त लोग कभी-कभी मिथ्या प्रचार कर डालते हैं एवं शास्त्र निरुद्ध हैं ये अवतार हो चुके हैं उनमें परशुराम जी का भी अवतार हो चुका है।


भगवान् के अवतार कई प्रकार के होते हैं जैसे मुख्यावतार, कलावतार, अंशावतार और गौणावतार मुख्य अवतार हैं- श्रीराम और श्रीकृष्ण । कलावतारों में मत्स्यावतार वामनावतार आदि हैं अंशावतारों में श्री लक्ष्मण तथा श्री बलराम जी आदि हैं गौणावतार के भी दो भेद हैं एक आवेशावतार और दूसरा प्रवेशातार, आवेशातार में पात्र विशेष भगवान का आवेश आता है और उसके द्वारा वांछित कार्य सम्पादित होते हैं इसके


भगवान परशुरामचरितामृत


 उदाहरण है। सनक, सनन्दन, सनातन, सनत्कुमार और नारद आदि । प्रवेशावतार के विषय में ऐसा है कि किसी व्यक्ति में एक निश्चित अवधि तक अथवा किसी निश्चित कार्य विशेष की पूर्ति होने तक भगवान श्री हरि अपने अंश को सम्प्रेषित करते हैं। इसमें स्पष्ट है कि जितने काल तक भगवान को अपना अभिष्ट विशेष एवं आवश्यक कार्य सम्पन्न करना होता है, उतने समय तक वह विशिष्ट व्यक्ति भगवान का अवतार माना जाता है परन्तु जब सर्व समर्थ भगवान श्री हरि अपने स्वरूप एवं गुणों को उस व्यक्ति के शरीर से पृथक कर लेते है। तो वह व्यक्ति पुनः अपनी स्वाभाविक अवस्था में आ जाता है। फिर कोई चमत्कार नहीं रहता इस प्रकार प्रवेशावतार में भगवान परशुराम जी एंव भगवान वेद व्यास जी आदि आते हैं। कथा प्रसिद्ध है कि भगवान बादनारायण कृष्ण द्वैपायन जी में तीन वर्ष तक वेद-विभाग तथा पुराणादि का सम्पादन करने हेतु ईश्वर के अंश का प्रवेश हुआ था उसी प्रकार प्रमादी, मन्दान्ध एवं दुष्ट, दुर्दान्त नरेशों का संहार करने के लिए दीर्घकाल तक जामदगन्य परशुराम जी में विशिष्ट ईश्वरांश का प्रवेश रहा। श्रीमद्भागवत, विष्णु पुराण और मत्स्य पुराण आदि में इन्हें भगवान विष्णु का सोलहवां अवतार कहा जाता है। स्कन्द पुराण के सहयादि खण्ड में भगवान परशुराम को पूर्णावतार बताया गया है इनकी माता को भी एक वीरा (काली माँ) का अवतार बताया गया है। महाभारत अन्तर्गत विष्णु सहस्त्रनाम का जो अंश पुस्तिका के रूप में प्रकाशित है। वह बहुत प्रसिद्ध है, प्रायः घर-घर में नित्य पाठ करने में इसका प्रयोग होता है। 



दूसरा पद्म पुराण के छटे खण्ड में, अध्याय इकहतर में मिलता है। इन दोनों ही विष्णु सहस्रनामों में भगवान विष्णु के एक हजार नाम दिये गये हैं। परन्तु नाम में अन्तर है। पद्म पुराण में जो विष्णु सहस्रनाम है, उनमें भगवान विष्णु के नामों में भगवान परशुराम के 20 से भी अधिक नाम सम्मिलित हैं— जमदग्नि कुलादित्य, रेणुकादभुत शक्ति कृत, मातृहत्यादि निर्लेप, स्कन्दजित विप्रराज्यप्रद, सर्वक्षत्रान्तकृत वीरदर्पहा, कार्त्तवीर्यजित्त सप्तद्वीपावतीदाता, शिवार्चकयशप्रद, भीम, परशुराम, शिवाचार्य विश्वभुक, शिवखिलज्ञान कोष, भीष्माचार्य अग्निदैवत, गुरु द्रोणाचार्य, विश्व जैत्रधन्वा, कृतान्तजित, अद्वितीय तपोमूर्ति, ब्रह्मचर्येक दक्षिण पहले कहा जा चुका है कि भगवान परशुराम, भगवान विष्णु के सोलहवें अवतार हैं। विष्णु सहस्रनाम के अन्तर्गत श्री परशुराम जी के जो नाम ऊपर उद्धृत किये गये हैं उनसे तो उक्त कथन का पूर्णरूपेण प्रमाणीकरण हो जाता है। यमदग्निकुलादिव्यो रेणुकाद्भुत शक्ति कृत


 मातृहव्यादिनिर्लेपः स्कंदजिद्विप्रराज्यदः ॥104॥


 सर्वक्षत्रान्तकृद्विरदर्पहाकार्तवीर्याजित


 सप्तद्वीपावतीदाता शिवाचर्कयशप्रदः ।।105॥


 भीम: परशुरामश्च शिवाचार्यैक विश्व भुक


 शिवरत्न ज्ञान कोशो भीष्माचार्योग्निदैवतः॥106॥


 द्रोणाचार्य गुरु विश्वजैत्र धन्वाकृतातजित्


 आद्वितीयतपो मूर्ति ब्रह्मचर्ये कदक्षिण।1201


 (श्री पद्मपुराण, 6/71)




परशुराम की जन्म कुंडली और सम्पूर्ण कथा  Parshuram ki janm kundali aur kahani



परशुराम जन्म कथा हिंदी में  ( parshuram birth story in hindi)

 परशुराम की जन्म कुंडली ( parshuram ki Janm kundali)


 भगवान परशुराम जी की जन्म स्थली जम्मू कोटि सिन्धु वन सिरमौर राज्य में है। इनके जन्म से पहले ही वहाँ देवी देवताओं का निवास होने लगा था। राम सरोवर श्री गिरी गंगा नदी के तट के समीप महर्षि जमदग्नि जी का बेडा (आंगन) था। जिसे आजकल बेड़ीन के नाम से जाना जाता है। उसे देवी-देवता पहले से ही वहाँ पर खूब संवारने लगे क्योंकि भगवान परशुराम रुद्र व नारायण के अंश अवतार होने से विशेष प्रभावी अवतार माने गये हैं। जिसके उत्सव मनाने के लिए इन्द्रादि सर्व देवता वहाँ पर उपस्थित हुए जो कि आज भी देवशीला व देवखाली के नाम से जाना जाता है। उस स्थान पर आज भी प्रतिमा तथा उनके द्वारपाल गुगापीर की माडी उपस्थित है साथ में भगवान की आदमकार मूर्ति भी प्रतिष्ठित है वहाँ से ही मेला रेणुका का आरम्भ होता है। जहाँ भगवान श्री परशुराम ने दिग्विजय के बाद यज्ञ किया था उस यज्ञ कुण्ड को आज भी श्री परशुराम ताल के नाम से जाना जाता है।


 

यहाँ पर आज श्री रेणुका मठ बना हुआ है। तथा नारायण के इष्ट शिव तथा दुर्गा के मंदिर भी हैं और भगवान श्री परशुराम का प्राचीन भव्य मन्दिर भी है। अब सरकार ने एक रेणुका बोर्ड का गठन किया है, जिसके द्वारा जिला प्रशासन ने एक और भव्य मन्दिर बनवाया, जिसमें दशों अवतारों की संगमरमर की सुन्दर प्रतिमायें स्थापित की गई। वही सिन्ध वन क्षेत्र, सप्त ऋषियों का सिरमौर श्री प्रभावी अवतार की राह देखने के लिए खुशियाँ मनाने के लिए व उनके जन्म उत्सव मनाने से पहले ही तैयारी करने में जुट गये हैं।


महर्षि जमदग्नि का आश्रम विद्या का केन्द्र तो था ही। साथ ही एक आदर्श गृहस्थ का घर भी था। देवी रेणुका के सरल व्यवहार से अन्य तपस्वी महात्मा भी वहाँ आश्रय प्राप्त करते थे। ऋषि पत्नियाँ सब रेणुका जी का विशेष आदर करती थी इस प्रकार यह आश्रम उत्तर भारत का एक प्रमुख स्थान जम्मू कोटि के अन्तर्गत श्री रेणुका जी के नाम से विख्यात है कितना आनन्दमय जीवन था, सबको आवश्यक वस्तु पदार्थ प्राप्त थी, संग्रह की प्रवृत्ति थी नहीं। यज्ञ जप के पश्चात वैशाख- माहात्म्य की कथा भी होती थी, नित्य कर्म के बाद सभी अपने-अपने कार्य में लग जाते थे। आश्रम के वृक्ष नये-नये पत्तों, पुष्पों से सुशोभित थे। सरस्वती का जल अत्यन्त पवित्र, निर्मल होकर प्रवाहित होता था। वन की शोभा कई गुना बढ़ गयी थी, कोयल आम्र- -वृक्षों में बैठे मधुर स्वर सुना रहे थे। सुवासित वायु मन्द मन्द बह रही थी और पुष्पों को सुगन्ध दूर-दूर तक पहुँच रही थी। पथिक इन सबका आनन्द लेते हुए हर्ष के साथ अपने गन्तव्य की ओर थे, यह क्रम प्राय: नित्य ही चलता रहता था। 



वैशाख शुक्त तृतीया का दिन आया, अक्षय पुण्प की प्राप्ति की कामना से प्रायः सर्वत्र पुण्य कार्य किये जा रहे थे। इसी पावन बेला में आश्रम में हर्ष का समाचार व्याप्त था कि देवी रेणुका ने एक सुन्दर पुत्र को जन्म दिया है। बालक सामान्य से कुछ विशेष था कुलाधिपति महर्षि जमदग्नि के आश्रम जम्मू-कोटि में अक्षय तृतीया का उत्सव पुत्र-जन्मोत्सव में परिवर्तित हो गया चारों ओर आनन्द उमड़ पड़ा। आश्रम में शंख ध्वनि हुई। घण्टे बजे, वातावरण ध्वनिमय हो गया, महिलाओं ने अपने गीत-मंगल आरम्भ किये। बधाईयों के तांते लग गये, सेवक-भृत्य वनवासी आदि लोगों को महर्षि ने प्रसाद, वस्त्र एवं अन्न आदि वस्तुएँ प्रदान की, सब को प्रसन्न किया, भेंट, पूजा तथा ब्राह्मणों को माला, वस्त्र एवं गऊ दी गयी, यथा योग्य स्वागत सत्कार किया। एक ऋषि के पास इतना विशाल भण्डारा कहां से आ गया। यह प्रश्न किया जा सकता है इस विषय में यह जान लेना चाहिए कि ऋषि के आश्रम में कामधेनु विराजती थी, उनके प्रभाव से सभी कामनाएँ पूर्ण हो जाती थीं। फिर ऋषि स्वयं भी महान तपस्वी सिद्ध महात्मा थे, सब कुछ करने में समर्थ थे। बढ़ रहे


 भगवान परशुराम जी की जन्म-कुण्डली बड़े प्रयास के बाद उपलब्ध हो पायी है। मिल जाने पर भी समस्या यह थी कि इसकी प्रामाणिकता क्या है? पूर्ण प्रमाण जानने पर भी यहाँ उदधृत की जा रही है-



परशुराम की जन्म कुंडली और सम्पूर्ण कथा

parshuram ki janm kundali aur katha


 
परशुराम की जन्म कुंडली और सम्पूर्ण कथा  Parshuram ki janm kundali aur kahani



वृश्चिक का लग्न है। कुण्डली की प्रामाणिकता के लिए बहुत अन्वेषण किया। अन्त में भगवान परशुरामजी की ही कृपा से निर्णय सिन्धु में इस का निर्णय मिल गया। परशुराम जयन्ती निर्णय-' इत्यमेव तृतीया परशुराम जयन्ती। सा प्रदोषवासिनी ग्राह्या । तदुक्तं भार्गवार्चननदीपिकायां स्कन्द भविष्ययो:-


 वैशाखस्य सितेपक्षे तृतीयायां पुनर्वसौ। निशायां प्रथमे यामे रामस्य समये हरिः ॥ स्वोच्चगैः षडग्रहैर्युक्ते मिथुने राहु संस्थिते। रेणुकायास्तु यो गर्भादवतीर्णो हरिः स्वयम्॥ अर्थात् यही तृतीया परशुराम जयन्ती है? वह प्रदोष व्यापिनी माननी चाहिए। यही भार्गवार्चनचन्द्रिका में स्कन्द और भविष्य के वाक्य से लिखा है कि वैशाख के शुक्ल पक्ष की



तृतीया पुनर्वसु नक्षत्र में रात्रि के प्रथम प्रहर के समय 'राम' नाम हरि ने रेणुका के गर्भ से अवतार लिया और उस समय उच्च के छः ग्रह और मिथुन का राहु था।


 1. तुला राशि का शनि


 2. कर्क राशि के बृहस्पति ।


 3. कन्या राशि के बुध


 4. वृष राशि के चन्द्रमा । मीन राशि के शुक्र ।


 सरस्वती नदी और जमदग्नि आश्रम


 5. मेष राशि के सूर्य 


6. सरस्वती सूर्यमुखी गिरी गंगा जो कि जोगियों के घर से निकली है। पालर पञ्चनदी का संगम भी सिरमौर हिमालय में सिद्ध हैं, जो राम सरोवर के नाम से प्रसिद्ध है। वो विमलोदका नामक सरस्वती है। सरस्वती नदी साधारण नदी नहीं है। इस उल्लास में तो वह और भी पवित्र एवं ऐश्वर्यमयी बन गयी। देवी भागवत में इन्हें सृष्टि-विधायिका देवी कहा गया है जो गंगा जी द्वारा शाप देने के कारण नदी बन गयी। ऋग्वेद में इन्हें सभी नदियों की माता कहा गया है। सरस्वती की एक विशेषता यह है कि यह प्रायः अदृश्य है, अन्य नदियों की भाति बहती दिखायी देती है। महर्षि जमदग्नि का आश्रम पञ्चनद प्रदेश में था, वहाँ सरस्वती बहती थी। प्रयाग में त्रिवेणी संगम में सरस्वती किले के पास बतायी जाती है, गया में थोड़ा-सा खोदने पर ही जल निकल आता है, हरियाणा में पेहवा में फलगू नाम से प्रसिद्ध है। महर्षि जमदग्नि के आश्रम के लिए तो सरस्वती एक वरदान थी। जल के अतिरिक्त आश्रम के लिए अन्न भी सरस्वती के तट पर पर्याप्त मात्रा में प्राप्त होता था।


सरस्वती नाम से प्रसिद्ध सात नदियाँ हैं, इनके नाम हैं सुप्रभा, काञ्चनाक्षी, विशाला, मनोरमा, ओधवती, सुरेणु और विमलोदका । इनके विषय में कथा है, पुष्कर तीर्थ में ब्रह्मा जी का महान यज्ञ हो रहा था। ब्रह्मा जी ने दीक्षा ले रखी थी। उन्होंने कहा यज्ञ अभी पूर्णता नहीं आयी, अभी तक सरिताओं में श्रेष्ठ सरस्वती जी का प्रादुर्भाव नहीं हुआ। उन्होंने सरस्वती का स्मरण किया। उनके आह्वाहन करते ही सुप्रभा नाम वाली सरस्वती पुष्कर में प्रकट हो गयी। इसी प्रकार नैमिषारण्य में भी वेदाध्ययन में लगे रहने वाले मुनियों ने सरस्वती का आह्वाहन किया था। उनके स्मरण करने पर वहाँ काञ्चनाक्षी नाम सरस्वती प्रकट हो गयी। एक बार राजा यज्ञ कर रहे थे, उनके यहाँ भी सरस्वती का आह्वाहन किया गया, तब वहाँ विशाला नाम से सरस्वती प्रकट हुई। उसकी गति बहुत तेज है, यह हिमालय से निकली है। इसी प्रकार उत्तर कोसल प्रदेश में उद्दालक मुनि यज्ञ कर रहे थे, उनके यहाँ भी सरस्वती प्रकट हुई, मुनियों ने उनका पूजन किया और उन का नाम हुआ मनोरमा। ऋषभद्वीप में भी सरस्वती प्रकट हुई, उनका नाम सुरेणु । राजा कुरु जब यज्ञ कर रहे थे तब भी सरस्वती प्रकट हुई। दक्ष प्रजापति ने जब कनखल में यज्ञ किया तब उन्होंने भी वहाँ सरस्वती का स्मरण किया, वहाँ भी सुरेणु ही प्रकट हुई। कुरुक्षेत्र में ही एक बार वशिष्ठ जी ने यज्ञ किया था, वहाँ पर उन्होंने भी सरस्वती का आह्वाहन किया, उनके स्मरण से ओधवती का प्रादुर्भाव हुआ। एक बार हिमालय पर्वत पर ब्रह्मा जी ने यज्ञ किया। वहां जब उन्होंने सरस्वती का स्मरण किया विमलोदका प्रकट हुई। इस प्रकार सात रूपों में सरस्वती प्रकट हुई हैं इन सातों सरस्वतियों का जल एकत्र हुआ है। उसे सप्त सारस्वत कहते हैं। सप्तसारस्वत परम पवित्र तीर्थ है। ययाति तीर्थ में सरस्वती ने राजा ययाति के यज्ञ में घी और दूध की धारा बहायी थी। यही यज्ञ करके, राजा ययाति ने ऊपर के लोकों में गमन किया। सरस्वती और अरुणा के संगम में डुबकी लगाने से इन्द्र की ब्रह्महत्या का पाप मिट गया था। इस नवजात शिशु के अतिरिक्त महर्षि जमदग्नि एवं रेणुका के चार पुत्र और थे। उनके नाम इस प्रकार हैं- वसु वसुनाम, वसुमेण और विश्ववसु। इस पाँचवें पुत्र का नाम रखा गया राम। चारों बड़े भाई राम को देखकर बड़े प्रसन्न होते थे। बार-बार भीतर जा कर देखते थे।


राम तीन प्रसिद्ध हुए- परशुराम, दाशरथी राम और बलराम । परशुराम विष्णु भगवान के सोलहवें अवतार हैं। अवतार षोड़शमे पशयन् ब्रह्मद्रहो कृत नृपान। एक विंशति बारम् कुपितो क्षत्रियहन्त करो महीम।।


(श्रीमद्भागवत) । अर्थात सोलहवें परशुराम अवतार में जब उन्होंने देखा कि राजा लोग ब्राह्मणों के द्रोही हो गयी हैं तब क्रोधित होकर उन्होंने पृथ्वी को इक्कीस बार क्षत्रियों से शून्य कर दिया। पद्मपुराण में लेख है कि परशुराम जी विष्णु भगवान् के अशांश भाग से उत्पन्न हुए थे, उनके शक्त्यावंशावतार थे-



 विष्णोरशांशभागेनं सर्व लक्षण लक्षितम् । एतते कथितं देवि। जामदगन्य महात्मनः। शक्त्यावेशावतारस्य चरितं शार्गिणः प्रभो ॥ वैशाख मास की विशेषताऐं 1


 वैशाख मास की महिमा के विषय में तो वैशाख-महात्म्य की कथा सुनने से ही पता चलता है। यहां हम उसकी अन्य प्रकार की विशेषताऐं बताने का प्रयास कर रहे है। मात्र शुक्ल पक्ष में ही कई भगवत्कोटि के महापुरुषों आचार्यों एवं राष्ट्रपुरुषों के जन्म हुए। अक्षय तृतीया को हमारे चरित्रनायक भगवान परशुरामजी का आविर्भाव हुआ। पञ्चमी को भगवान् शंकराचार्य जी का अवतार हुआ। इन्होंने अशास्त्रीय बौद्ध मत का खण्डन कर वेद शास्त्र प्रतिपादित सनातन धर्म की पुनः प्रतिष्ठा की। समस्त धर्म-विरोधी विद्वानों को शास्त्रार्थ में पराजित किया और दिग्विजय यात्रा करके सनातन धर्म की रक्षा, अद्वैत सिद्धान्त के प्रचार तथा पठन-पाठन की चिरस्थायी व्यवस्था की दृष्टि से भारत की चारों सीमाओं के निकट अपने चार मठों की स्थापना की। अपने प्रमुख चार संन्यासी शिष्यों को इन मठों का आचार्य बनाया। इनके अधिकार क्षेत्र का विभाग करके इनके लिए आचार संहिता का भी निर्माण किया जिससे कि ये आचार्य कालान्तर में प्रमादी अथवा ऐश्वर्य भोगी न बन जायें। अपने मठों में ही नियत निवास कर करके अपने-अपने निर्धारित क्षेत्र में भ्रमणशील रहें और धर्मप्रचार करते रहें। उन्हीं के आदेशानुसार ये मठाधीश शंकराचार्य कहलाते हैं और धर्मप्रचार करते हैं। वैशाख शुक्ला षष्ठी को रामानुजाचार्य जयन्ती मनायी जाती है। ये वैष्णवों के प्रमुख आचार्य हैं। ये भी जगद्गुरु कहलाते हैं। सभी आचार्यों ने सनातन धर्म का प्रचार किया केवल ब्रह्म, जीव एवं माया के विषय में इनकी मान्यता में भेद है। वैशाख शुक्ल नवमी को जानकी नवमी कहते हैं। भगवान की पराशक्ति जो संसार की उद्भव, स्थिति और संहारकारिणी शक्ति है, सबका कल्याण करने वाली समस्त क्लेशों का निवारण करने वाली है, जिनके संयोग से भगवान अपनी मंगलमयी लीलाएं सम्पन्न करते है।। 



भक्तों का कल्याण करते हैं उन श्रीराम की अभिन्न शक्ति, जगदम्बा भगवती जानकी जी का अवतार इस दिन हुआ था। श्री सीता जी ने अध्यात्मरामायण में कहा है- सृष्टि, स्थिति आदि तथा शिव धनुभंग, रावणवध आदि सब कार्य मैं ही करती हूँ। श्रीराम तो सर्वथा निर्विकार कूटस्थ, चिदानन्दघन मात्र है। श्री सीता और राम कहने भर को भिन्न है तत्त्वतः सर्वथा अभिन्न है। त्रयोदशी को भगवान् नृसिंह का अवतार हुआ। इन्होंने भक्त प्रहलाद की रक्षा की। उनके पिता परम शक्तिशाली महाराज हिरण्यकश्यप थे। ये स्वयं को ही भगवान कहलाने लगे तथा वरदान के प्रभाव से अपने आपको अजर-अमर समझने लगे थे। भक्त प्रहलाद को मार डालने के अनेक उपाय किये परन्तु नृसिंह भगवान ने हिरण्यकश्यप का वध कर डाला। चतुर्दशी को भगवान ने कूर्मावतार धारण किया। अमृत की प्राप्ति के लिए जब देवता और राक्षस मिल कर क्षीर सागर का मन्थन कर रहे थे तो मथानी बनाने के लिए मन्दराचल का निश्चय किया गया। समस्या आयी कि इस पर्वत को साधेगा कौन? इसके समाधान के लिए भगवान ने कूर्मावतार ग्रहण किया और मन्दरांचल को अपनी पीठ पर धारण किया। वैशाखी पूर्णिमा को भगवान ने बुद्ध के रूप में अवतार लिया। जब देवताओं के शत्रु दैत्य लोग भी वेद-मार्ग का सहारा लेकर, मय दानव के बनाये हुए अदृश्य नगरों में रहकर लोगों का नाश करने लगे तब भगवान ने लोगों की बुद्धि में लोभ और मोह उत्पन्न करने के लिए बुद्ध के रूप में अवतार लेकर बहुत से उपधर्मों का उपदेश दिया जैसे, सत्य, अहिंसा आदि। वैशाख शुक्ल द्वितीय को छत्रपति शिवाजी महाराज का जन्म हुआ। इन्होंने यवन आक्रान्ता विजेताओं से परास्त हिन्दुओं का संगठन कर हिन्दूधर्म की रक्षा की। 


ध्वस्त मंदिरों, मठों तथा तीर्थों घाटों का पुनरोद्धार किया और फिर से मुस्लिम दुष्ट शासकों को जीत कर हिन्दू राज्य की स्थापना की, जिसके प्रभाव से हिन्दू फिर से सम्मान पूर्वक जीवन जी सके। वैशाख शुक्ल चतुर्थी को भक्त महाकवि श्री सूरदास जी का जन्म हुआ। सभी जानते हैं कि हिन्दी साहित्य में इनका स्थान श्री तुलसीदास जी के ही समान उच्च है। इन्होंने भगवान श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं का अनूठा रसपूर्ण वर्णन किया है। वैशाख में ही कल्प का आरम्भ हुआ था, त्रेता युग का आरम्भ भी वैशाख में प्रसिद्ध है। ऊपर लिखे महापुरुषों एंव अवतारों का आविर्भाव तो मात्र शुक्ल पक्ष में ही हुआ है, कृष्ण पक्ष में भी श्रीवल्लभाचार्य आदि के जन्म हुए हैं। श्री गंगा सप्तमी भी वैशाख शुक्ल में आती है इसीदिन गंगाजी का अवतरण हुआ।



 वैशाख मास में जन्म मनुष्यों के गुण -


जातक दीपक के अनुसार इस मास में उत्पन्न व्यक्ति बड़े ही परोपकारी, साहसी, मिलनसार, उद्योगी, सदा कार्य संलग्न, वीरतायुक्त कार्यों में समय बिताने वाले, भविष्य को उज्ज्वल बनाने की प्रबल इच्छा, इच्छापूर्ति के लिए सदा प्रयत्नशील, कठिनाईयों का सामना करने में धैर्यवान , स्थिरचित्त होते हैं। चापलूसी करने वाले व्यक्तियों से इन्हें घृणा होती है। इनमें धनसंचय की प्रवृत्ति कम रहती है। शुक्ल पक्ष वाले अधिक वीर और साहसी होते हैं। इस मास वाले प्रायः नैतिक होते है। स्ववाक्य परिपालक होते हैं। धर्म-भीरू होते हैं। स्वामी या गुरुजन का सम्मान करते हुए उनके आज्ञा-पालन में रहते हैं। स्वच्छ हृदय वाले होते हैं। माँ की अपेक्षा पिता के अधि क प्रेमी होते हैं। इस मास में कम ही मूर्ख व्यक्ति उत्पन्न होते हैं। जो मूर्ख भी रह जाये, वे अपने व्यवसाय में प्रवीण होते हैं। इस मास में जन्म लोगों का जीवन कठोरता की आग में सदा तपा रहता है।


एक टिप्पणी भेजें

0टिप्पणियाँ

Hi ! you are most welcome for any coment

एक टिप्पणी भेजें (0)