परशुराम सीजन वन की संक्षिप्त कथा
Parshuram season- 1 ki kahani hindi mein
Atrangii tv parshuram tv show season one hindi story.
श्रीनारायण के आवेशावतार भगवान परशुराम,
अधर्मियों के संहार के लिए ऋषि जमदग्नि और देवी रेणुका के यहाँ जन्म लेते हैं
जिनका नाम राम रखा जाता है...राम के कुछ बड़े होने पर अकस्मात एक दिन वो अपने पिता
की आज्ञा पूरी करने के लिए अपनी माता की ह्त्या कर देते हैं..किन्तु फिर अपने
आज्ञाकारी पुत्र की कर्तव्यनिष्ठा को देख ऋषि जमदग्नि , देवी रेणुका को जीवित भी
कर देते हैं...इसके पश्चात पुत्र की
जिज्ञासा को देखते हुए ऋषि जमदग्नि राम को उनकी माता से जुडी पूरी कथा सुनाते हैं...
परशुराम की क्षत्राणी माँ देवी रेणुका, जहाँ
बचपन में राम के हाथ में शस्त्र पकड़ाना चाहती थीं वहीँ पिता जमदग्नि, अपने पुत्र
को भी अपने चार अन्य पुत्रों की भांति ही एक वेदपाठी ब्राह्मण ही बनाना चाहते
हैं...किन्तु राम शस्त्र और शास्त्र दोनों का अध्ययन करते हैं और महादेव की घोर
तपस्या कर उन्हें अपना गुरु बना लेते हैं...राम की भक्ति और तप को देखते हुए
महादेव जब राम को एक दिव्य अस्त्र परशु प्रदान करते हैं तो उस दिन से राम परशुराम
बन जाते हैं...
इसी बीच देवराज इंद्र, ऋषि जमदग्नि और देवी
रेणुका के लोक कल्याण कार्य से प्रसन्न होकर उन्हें एक दिव्य कामधेनु गौ प्रदान
करते हैं जो किसी की भी मनोकामना पूर्ण करने योग्य थी...एक दिन अकस्मात माहिष्मती
के राजा सहस्त्रबाहू अर्जुन को उस गौ की दिव्यता की भनक लग जाती है और वो उस गौ को
किसी भी तरह से जमदग्नि से हथियाना चाहता है. किन्तु जब जमदग्नि का पूरा परिवार
कामधेनु माता को जाने देने से रोकने के लिए सहस्त्रबाहू अर्जुन के विरुद्ध हो जाता
है तो सहस्त्रबाहू अर्जुन, क्रोध में आकर जमदग्नि और देवी रेणुका समेत उनके शेष
पुत्रों की भी हत्या कर देता है. किन्तु फिर इसी के पश्चात आवेश में आकर परशुराम
भी सहस्त्रबाहू के वंश को समूल नाश करने की प्रतिज्ञा कर लेता है.. परशुराम के
हाथों अधर्मी सहस्त्रबाहू का वध होने के पश्चात उसकी पत्नी अपने पोतों को परशुराम
से लडवाती है..इस प्रकार एक के पश्चात एक वध के बाद परशुराम का आवेश चरम पर पहुँच
जाता है जिससे धरती रक्त से रंजित होकर अपनी उर्वरा शक्ति खोने लगती है..
भू-देवी जब अपनी व्यथा महादेव को सुनाती है तो
महादेव की आज्ञा से ऋषि कश्यप, परशुराम को अपना यजमान बनाकर एक यज्ञ करते हैं और
उस यज्ञ में वो उस धरती को दान में मांग लेते हैं जिस धरती पर परशुराम का अधिकार
हो चुका था. ऋषि कश्यप को सम्पूर्ण धरती दान में देकर परशुराम अपने बाण का संधान
समुद्र में करते हैं जिससे महेंद्रगिरी पर्वत बाहर आ जाता....किन्तु महेंद्र्गिरी
पर्वत पर जाने से पूर्व महादेव, परशुराम को एक दाईत्व सौपते हैं...और वो दाईत्व था,
एक निश्चित समय आने पर उस योद्धा को शिव का पिनाक धनुष सौपना जो महादेव का सबसे
बड़ा भक्त हो...महादेव से पिनाक धनुष लेकर परशुराम, महेंद्गिरी पर्वत की एक कन्दरा
में जाकर तपस्थ हो जाते हैं.
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