रास या रासलीला क्या है ? कृष्ण क्यूँ रासलीला करते थे ?

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                क्या है रासलीला का महत्व ?





बहुत से लोग कृष्ण को आज तक नहीं समझ पायें.उन्हें लगता है कृष्ण एक ऐसे पौराणिक या ऐतिहासिक पुरुष थे, जिन्हें स्त्रियों का साथ बहुत अच्छा लगता था और वे इस संसार में मौज-मस्ती एवं महा-भारत का युद्ध करवाने आये थे,जिन्होंने बाद में स्वयं कई स्त्रियों से विवाह भी कर लिया. 

कृष्ण की रासलीला भी बहुत मशहूर है.लेकिन कुछ लोग उस रासलीला की भी गलत उपमा देते हैं, जबकि कृष्ण, स्त्री प्रेम को ही इस संसार का सबसे बड़ा उत्सव और पर्व मानते हैं. उनके अनुसार वह एक स्त्री ही है जो एक निर्मात्री भी है और जन्मदात्री भी. लेकिन युगों से स्त्रियों की समाज में दुर्गति बनी रही .पुरुषों ने कभी स्वयं के आनंद के आगे स्त्रियों की परवाह नहीं की. मगर स्त्रियाँ आदिकाल से ही अपने स्वभाव के अनुसार अपनी घर- गृहस्थ की मथनी को मथकर हमेशा अपने परिवार के लिए उससे सुख और समृद्धि की माखन निकालती रही. स्वयं भीतर से सुखती रही मगर खुद से बंधे संसार को अपने श्रमजल से सींचना नहीं छोड़ा. मगर इस दौरान उन स्त्रियों ने उस रस को खो दिया था जिसे परमानन्द कहते हैं.तब कृष्ण ने उसी आनंद रस को बाहर लाने के लिए रासलीला रची. जी हाँ , उस रस का मंथन ही रासलीला है, जिसे कृष्ण अपनी बांसूरी से मथते हैं और वो रस गोपियों के भीतर से बाहर आकर उन्हें परमानन्द की अनुभूति करवाते है. कृष्ण का स्त्रियों के लिए प्रेम उन्हें कुछ क्षणों के लिए उस दुखमय संसार से बाहर निकालने के लिए हैं जहाँ वे स्वयं को किसी योग्य नहीं समझती. इसलिए कृष्ण उन्हें अपने प्रेमरस में डूबोकर अपनी माया से उन्हें भौतिक संसार का सबकुछ भुलाने के लिए बाध्य कर देते हैं ताकि उन गोपियों को उस परलोक का सुख मिल सके, वहां वो स्थान मिल सके जहाँ बड़े से बड़े योगी भी कठोर तपस्या करने के बाद भी पहुँच नहीं पाते.

अत: यह कहना गलत नहीं होगा कि आज भी कृष्ण को उतनी देर के लिए ही समझा जाता है जितनी देर प्रश्नकर्ता के मोबाइल की बैट्री चलती है. जबकि कृष्ण एक ऐसे दर्शन हैं जिन पर जितनी शोध की जाए उतनी चीज़ें निकलकर बाहर आयेंगी.   

 

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