हिंदी बाज़ार
आज के वर्तमान समय में भारत में हिंदी की क्या अहमियत है, ये किसी से भी छिपी नहीं है. भले ही कुछ राज्य हिंदी को राष्ट्र भाषा का दर्ज़ा न दे. मगर भारत में लगभग -लगभग सभी को हिंदी आती है .अगर किसी को लिखना नहीं आता तो भी वो हिंदी समझ लेता है और गैर हिंदी भाषी होकर भी अपना काम निकाल लेता है . इसका एक बड़ा श्रेय बहुत पहले भारत में लांच हुए दूरदर्शन को भी जाता है. आज हिंदी सिर्फ एक भाषा न होकर एक बड़ा बाज़ार बन चुका है . पहले बड़ी- बड़ी कंपनियां हिंदी को ज्यादा तवज्जों नहीं देती थी. मगर जिस तरह से मनोरंजन जगत में फिल्मों और धारावाहिकों ने अपना पैर पसारा , हिंदी भाषा, लोगों के घर -घर तक पहुँचने लगी .चाहे वो किसी भी क्षेत्र या राज्य से क्यों न हो , वहां के लोग हिंदी के फ़िल्में और कार्यक्रम तो देखते ही हैं, साथ ही उनके बच्चों भी हिंदी के सभी कार्टून्स और कार्यकर्म से जुड़े रहते हैं. फिर चाहे वो हिंदी में dub किया गया डोरेमोन हो या फिर छोटा भीम, बच्चे उन्हें नहीं छोड़ते.
हिंदी के बाद दुसरे नंबर पर और भी अनेकों भाषाओँ में उन कंटेंट को dub करवाकर दर्शकों के सामने प्रस्तुत किया जाता है..मगर हिंदी पहले आती है. इसी को देखते हुए बाज़ार में मौजूद अनेकों कम्पनियाँ अब इसी हिंदी कंटेंट के बढ़ते फैलाव को देखकर अपने - अपने पैर पसारने लगी है. तभी तो हर कंपनी का एक वर्ग जो पहले सिर्फ इंग्लिश में सारा काम देखता था उन्हें अब हिदी के विभाग बनाकर लोग रखने पड़ रहे हैं. ताकि वो ग्राहकों में अपनी पकड़ को बनाए रखे. आप उदहारण के लिए देखिये भारत के सबसे बड़े अमीर व्यक्ति की कंपनी रिलायंस की टैग लाइन क्या थी – "कर लो दुनियाँ मुट्ठी में" विषय भले ही दुनियाँ को मुट्ठी में करने की हो मगर बात हिंदी में कही गयी है . क्यूंकि उन्हें सबसे पहले भारत में ही व्यपार करना है तब जाकर बाहर के लोग पकड़ने हैं. उसी तरह हर बड़ी कंपनी आजकल अपने प्रोडक्ट को बेचने के लिए हिंदी का सहारा ले रही रही है. पहले लगता था कि हिंदी में कुछ नहीं रखा. इसलिए लोगों ने इसे ज्यादा तवज्जों नहीं दिया . अब तो बाहर के देश भी हिंदी पर जोर दे रहे हैं ताकि वो भारत जैसे बहुल जनसँख्या वाले देश में अपनी चीज़ें बेच सके.
हिंदी ब्लोगिंग.
बहुत समय तक ब्लोगिंग के क्षेत्र में भी यही धारणा थी .लोग हिंदी में लिखने से कतराते थे . क्यूंकि ये उन्हें छोटा भी लगता था और एक तरह से उनके स्टेटस को भाता भी नहीं था .यह एक धारणा बनी हुई थी और बहुत समय तक चली . बहुत सारे ब्लॉग लिखने वालों ने पहले जो अपने ब्लॉग शुरू किये वो ज़्यादातर अंग्रेजी में ही पब्लिश किये. इसमें कोई दो राय नहीं कि इससे उनकी पहुँच पूरी दुनिया में पहुंची और उन्होंने पैसे भी कमायें और आज भी कमा रहे हैं . लेकिन ये भी सच है कि आधी से अधिक दुनियाँ अगर अंग्रेजी जानती है तो फिर लेखन के क्षेत्र में उसी के मुताबिक प्रतियोगिता भी होगी . इंग्लिश में लिखना अच्छी बात है ..आमदनी के हिसाब से और बाहर अपनी पहुँच बनाने के हिसाब से , दोनों ही . मगर हम बात करें ब्लोगिंग की तो अगर हर आदमी इंग्लिश में लिखेगा तो एक समय के बाद सड़क जाम वाली जैसी स्थिति हो जायेगी . फिर आपको वहां से निकलने में महीनो लगेंगे. इसलिए मेरा सुझाव है यदि आपको ब्लोगिंग के क्षेत्र में कम भीड़ में रहना है तो अपनी क्षेत्रीय भाषा में बने रहें . हाँ ये सच है कि इसमें कमाई थोड़ी धीमी गति से होगी मगर नियमति होगी . और हमेशा होती रहेगी. क्योंकि जिस तरह से बाज़ार में सर्वे चल रहा उस हिसाब से हिंदी कंटेंट राइटर कम हैं क्यूंकि सभी अंग्रेजी की दौड़ में शामिल है . इसलिए कछुवा बने रहने में कोई दिक्कत नहीं है क्यूंकि फिर जीत की सम्भावना हमेशा आपकी बनी रहेगी .
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