सट्टा -मटका क्या है और इसे कैसे खेला जाता है ? Satta-Matka khel ke baare mei janiye

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सट्टा -मटका क्या है और इसे कैसे खेला जाता है ?



संभवत: बहुत सारे लोग इस सट्टा और मटका ( satta- matka) नाम से ज़रूर ही परिचित होंगे .मटका का खेल काफी पुराने समय से ही प्रचलित हैं. इन दोनों खेलों का अविष्कार भारत में नहीं हुआ यह तो तय है .लेकिन संभव है कि इसका आविष्कार रोम में हुआ हो .यह  खेल मनोरंजन का एक साधन माना जाता था .लेकिन सट्टा और मटका दोनों दो अलग- अलग तरह के खेल हैं . 


पुराने समय में जब सैनिक  युद्ध में जाते थे तो रात को जागने के लिए वे मटका खेलते थे ..मटका खेल में लूडो की गोटी जैसा एक चौकर पाशा होता है, जिस पर नंबर लिखे होते हैं .उस अंक लिखे पाशे को एक गोल टोकरी टाइप जेसी चीज़ पर कोई एक खिलाडियों जोर- जोर से घुमाता है फिर उस टोकरी को वो उलटा कर देता है .अब सभी चार पांच जितने भी लोग होते हैं,अपने-अपने नंबर को चुनकर उस नंबर में अपनी कोई कीमती चीज़ या पैसे लगाते हैं .इसके बाद वो टोकरी हटाई जाती है .जब वो अंकों वाला पाशा खिलाडी के चुने हुए  अंक या नंबर से मैच करता है तो वो सारे पैसे उस खिलाडी के हो जाते हैं .इसी खेल को मटका ( matka)  कहा जाता है . आज भी यह खेल गाँव खेड़ों में प्रचलित  हैं .


अब आइये जानें सट्टा ( satta) किसे कहते हैं ? सट्टा का अविष्कार भी ऐसे ही हुआ जब लोगों ने इसका प्रयोग मनोरंजन के रूप में करना शुरू किया. यह सट्टा संभवत: रोमन योद्धाओं में लगते होंगे जब वे रंगभूमि पर अपना युद्ध कौशल दिखाते होंगे. दो लड़ते हुए योद्धाओं में कौन जीतेगा यह बड़ा रोचक और दिलचस्प हुआ करता था .इसी दिलचस्पी ने एक और खेल को जन्म दिया जिसका नाम सट्टा पड़ा .अब लोग योद्धाओं के बीच युद्ध तो देखने जाते मगर वे खुद अपने- अपने योद्धों को चुनकर उन पर पैसे भी लगाने लगे . 


फिर जिसका योद्धा जीतता उसी आदमी की जीत होती, यानि वो आदमी सट्टे पर लगाये हुए सारे पैसे जीत जाता .गाँव में आज भी मुर्गों की लड़ाई होती है. उनमे से एक लाल होता है और एक काला . कभी -कभी सफ़ेद भी . उन मुर्गों के पैरों पर छुरी बंधी होती है, जिनसे वो एक दुसरे पर धावा बोलते हैं . लोगों के भीड़ गोल घेरा बनाकर दोनों मुर्गों को छोड़ देती है . फिर लोग उन मुर्गों पर अपने -अपने पैसे लगाते हैं . संभवत सट्टे ( satta) की  शुरुवात भी पौराणिक समय में ऐसे ही कुछ खेलों से शुरू हुई होगी . 


सट्टा और मटका यह दोनों आज भी प्रचलित हैं लेकिन इसके रूप बदल चुके हैं . कहीं -कहीं यह  लौटरी के रूप में भी इस्तेमाल किया जाता है . यह एक ऐसी लौटरी होती है जिसका रिजल्ट या परिणाम एक दिन में या फिर एक घंटे में बताता है . कल्याण , लक्ष्मी , राजलक्ष्मी , जनसेवा , मालामाल , मालामाल विकली कुछ ऐसे ही लौटरी है . वैसे लौटरी को कानूनी मान्यता मिली होती है. मगर कहीं -कहीं इसे मान्यता नहीं है और वहां यह खेल  नहीं खेला जाता.


मगर कुछ नगरों जैसे मुंबई ,कलकत्ता में इसका खेल चलता है और लोग खरीदते भी हैं और मालामाल भी हो जाते हैं .मगर सट्टा और मटका आज भी यह दोनों खेल गैरकानूनी माने जाते हैं क्यूंकि ये जुवे की संज्ञा में आते हैं . ऐसे खेलों से व्यक्ति को बचना चाहिए क्यूंकि यह आपका समय और पैसा दोनों बर्बाद करता है .

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