हनुमान जन्म ( Hanuman birth ) की कहानी कुछ पुराण क्या कहते हैं जानिये

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हनुमान जन्म ( Hanuman birth ) की कहानी कुछ पुराण क्या कहते हैं जानिये


यह पूर्ण सत्य है कि जो जन्म लेता है वो मरता है और जो मरता है वो फिर से जन्म लेता है. इस  सृष्टी का यही नियम है. क्यूंकि सृष्टी कालचक्र से बंधी है. सृष्टी का काल चक्र अनवरत चलता ही रहता है और इसी क्रम में कई कल्प और युग बीत जाते हैं. आपको और हमें ऐसा लगता होगा कि राम और कृष्ण केवल त्रेता और द्वापर में ही आये होंगे किन्तु ऐसा नहीं है. अब तक अनेकों बार राम जन्म ले चुके हैं और उनके द्वारा अनेकों बार रावण का संहार भी हो चुका है .एक कल्प की घटना फिर से दुसरे कल्प में घटित होती है और ऐसा ही अनवरत चलता रहता है.


उसी प्रकार हनुमान (Hanuman) भी उन्ही राम के साथ असुरों का संहार करने के लिए ही अवतरित हुए थे. आज हम उन्ही हनुमान के जन्म ( Hanuman's birth) से जुडी कहानियों को जानेंगे. काल खंड के कारण मान्यताएं और विचार सदैव ऊपर नीचे होते रहते हैं. अत: हनुमान के जन्म से जुडी कथाओं का वर्णन भिन्न- भिन्न पुराणों में अलग-अलग तरह से दर्शाया गया है .

 


स्कन्द पुराण ( Hanuman's birth story)


नि:संतान अंजना ने जब ऋषि मातंग से संतान प्राप्ति का उपाय पुछा  तो मातंग ऋषि ने उन्हें वृश्भाचल पर्वत पर जाकर आकाश गंगा तीर्थ में स्नान कर, भगवान वेंकेटश्वर की पूजा अर्चना कर पवन देव का तप करने के लिए कहा जिसके बाद ही अंजना को हनुमान जैसे पुत्र की प्राप्ति हुई और हनुमान पवन पुत्र कहलाये .

 

आनंद रामायण – ( Hanuman's birth story) 


अंजना ने रिश्य्मुख पर्वत पर जाकर भगवान शिव की अराधना की. तत्पश्चात शिव जी ने उन्हें एक मंत्र जाप करने के लिए दिया. अंजना अपनी दोनों हथेली फैलाए एक लम्बे समय तक उस मंत्र का जाप करती रही .उसी दौरान उधर अयोध्या में राजा दशरथ ने अपने कुलगुरु वशिष्ठ के मार्ग दर्शन में ऋषि श्रृंगी से पुत्र कामेष्टि का यज्ञ करवाया जिसके फलस्वरुप अग्नि देव ने प्रकट होकर प्रसाद के रूप में उन्हें खीर प्रदान किया. मगर कैकई का चारू प्रसाद एक चील लेकर उड़ गया .उसी समय शिव के कहने पर वायुदेव ने ऐसा वायु प्रवाह किया कि चील की चोंच से वो प्रसाद अंजना की  हथेली पर जाकर गिरा जिसे अंजना ने ग्रहण कर लिया और फिर उन्हें हनुमान जैसे पुत्र की प्राप्ति हुई .


बाल्मीकि रामायण :- ( हनुमान जन्म कथा)


एक बार अंजना श्रृंगारपूर्ण होकर अपने स्वामी केसरी के साथ कहीं भ्रमण कर रही थी .परन्तु नि:संतान होने के कारण उनके मन में बार बार पुत्र कामना के लिए विचार उत्पन्न हो रहे थे. उसी समय गुप्त रूप में हर स्थान पर बहने वाले पवन देव अकस्मात ही  अंजना को देखकर मोहित हो गए और उनके मन की इच्छा को जान लिया. जिसके पश्चात वे गुप्त रूप से अंजना के शरीर में समा गए. किन्तु पवन देव ने अंजना के सतीत्व को खंडित किये बिना ही अपनी संकल्प शक्ति से उसे पुत्र प्राप्ति का मार्ग प्रसस्त करवा दिया जिसे हनुमान जी ने जन्म लिया.

 

शिव पुराण:-  ( हनुमान जन्म कथा)


विष्णु के मोहिनी रूप को देखने की अभिलाषा ने शिव के भीतर जिस काम को जन्म दिया उसने वीर्य का रूप लिया. उस वीर्य को सप्त ऋषियों ने एक पात्र में एकत्रित कर गुप्त रूप से अंजना के कान मार्ग से उसके शरीर के भीतर पहुंचा दिया और फिर उसी तेज़ से हनुमान का जन्म हुआ .  

      

       

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