12 अध्याय और 2684 श्लोक वाली मनुस्मृति क्या है?

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ManuSmriti kya hai? Manu Smriti mei kitne shlok aur adhyay hain janiye. 12 shlok aur 2684 wale Manu Smrti mei kya hai?



12 अध्याय और 2684 श्लोक वाली मनुस्मृति क्या है?



मनु से मनुस्मृति

 

 

मनु और शतरूपा, धरती की पहली दो मानव संताने हैं जिनकी उत्पत्ति ब्रह्मा के द्वारा धरती पर मैथुनी क्रिया के माध्यम से संतान उत्पन्न करने के लिए किया गया था. 


हिन्दू पुरातन संस्कृति में मनु को ही पहले आदि पिता के रूप में माना जाता है. अर्थात वो पिता जिनसे सभी का जन्म हुआ है. धरती पर रहते हुए मनु ने मानव समाज को सुचारू रूप से चलाने के लिए कुछ नियम कानून भी बनाये जिन्हें बाद में संकलित कर पुस्तक का रूप दिया गया जो मनुस्मृति के रूप में जाना गया. 


इस पुस्तक में कुल 12 अध्याय और लगभग 2,684 श्लोक हैं. इसकी रचना ईसा के जन्म से लगभग 300 साल पहले हुई थी. इस पुस्तक के अनुसार सृष्टी की रचना ब्रह्मा ने की है और संसार के प्रजापालक ब्रह्मा की पहली संतान मनु ही हैं.


 

मनुस्मृति क्या है? ( Manusmriti)


जिस तरह से भारत के वर्तमान संविधान में IPC और CPC की धाराएँ हैं उसी तर्ज़ पर सदियों से मनुस्मृति अपराध अधिकार और न्याय की व्याख्या करता आ रहा है. 


जब भारत पर अँगरेज़ शासन करने लगे तो उन्होंने देखा कि जिस तरह मुस्लिमों के पास शरिया कानून है उसी तरह हिन्दु मनुस्मृति पर आस्था रखते हैं. 


जिसके बाद अंग्रेजों ने हिन्दुओं के लिए इस न्याय व्यवस्था को लागु कर दिया जो मनु स्मृति पर आधारित था.



मनुस्मृति में क्या है?


मनु स्मृति के पहले अध्याय में प्रकृति के निर्माण के बारे, चार युगों, चार वर्णों, उनके कार्यों व पेशों, और ब्राह्मणों की महानता के बारे में बताया गया है. दुसरे अध्याय में ब्रह्मचर्य, और मालिक की सेवा के बारे में बताया गया है.


तीसरे अध्याय में विवाह, रीति-रिवाजों और श्राद्ध कर्म के बारे में विस्तार से बताया गया है. चौथे अध्याय में गृहस्थ धर्म के कर्तव्यों, खान-पान के नियमों और 21 तरह के नरकों का उल्लेख है.


पांचवे अध्याय में महिलाओं के कर्तव्य, शुद्धता-अशुद्धता का जिक्र है. छठे अध्याय में संतों के बारे में वर्णन है. सातवे अध्याय में राजा के धर्म और कर्तव्यों के बारे में बताया गया है. आठवे में अपराध, न्याय वचन और राजनितिक मामलों पर बात की गयी है.


नवे अध्याय में पिता एवं पूर्वजों की संपत्ति दसवे में वर्णों के मिश्रण. ग्यारहवे में पाप कर्म और बारहवे में तीन गुणों और वेदों की बात लिखी गयी है. 



वर्तमान में मनुस्मृति पर सोच 



जो मनुस्मृति को मानते हैं वे मनुवादी माने जाते हैं. मनुस्मृति को मानने वालों का अपना एक बड़ा समुदाय भी है. उनके मुताबिक इसमें कुछ चीज़ों को छोड़ दे तो यह आज भी उतना ही महत्व रखता है जितना पहले था. 


वहीँ जिन्होंने इसे पढ़ा है वो मानते हैं की इसमें महिलाओं और शूद्रों को शोषित वर्ग की श्रेणी में रखा है. महिलायें पहले पिता की सानिध्य में रहती है फिर विवाह के बाद पति की और फिर पति के बाद बच्चों की. 


औरतों का काम सिर्फ पुरुषों की सेवा है और उसी से उसे स्वर्ग की प्राप्ति ही सकती है, उसका उद्धार हो सकता है . वहीँ शूद्रों की बात करें तो जिन्होंने इस किताब का अध्ययन किया है उनके मुताबिक शूद्रों का जन्म केवल अपने मालिक की सेवा के लिए हुआ है उसे पढने लिखने का कोई अधिकार नहीं न ही वो अमीर बन सकता है.


ब्राह्मणों को इसमें सबसे ऊंचा स्थान दिया गया है. उनकी महानता पर बढ़ -चढ़कर लिखा गया है. जब विलियम जोनस नामक एक अँगरेज़ ने इसका हिंदी में अनुवाद किया तो फिर इसे पूरी दुनिया ने पढना शुरू कर दिया. 


महत्मा ज्योतिबाफुले वो पहले व्यक्ति थे जिन्होंने इसे चुनौती दी. डॉक्टर बाबा साहब आंबेडकर के अनुसार जाति व्यवस्था उस ऊंचे माले की तरह है जिनमे ऊपर तक जाने के लिए कोई सीढियां नहीं है. अत: इसी का विरोध करते हुए बाबा साहब आंबेडकर ने 25 जुलाई 1927 को महाराष्ट्र के कोलाबा में मनुस्मृति का दहन किया था.

    

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