सर्व व्यपाक तथा सर्वेश्वर शंकर के विविध कल्पों में असंख्य अवतार हुए हैं जिनका वर्णन नीचे दिया जा रहा है.
उन्नीसवां कल्प श्वेत लोहित नाम वाला जाना जाता है जिसमे प्रथम सद्धोजात अवतार कहा गया है. उस कल्प में जब ब्रह्मा जी परम ब्रह्म के ध्यान में अवस्थित थे, उसी समय उनके शिखा से युक्त श्वेत और लोहित वर्णवाला एक कुमार उत्पन्न हुआ. ब्रह्मा जी ने उस पुरुष को देखते ही उन्हें ब्रह्मस्वरूप ईश्वर जानकार उनका ह्रदय में ध्यान करके हाथ जोड़कर प्रणाम किया.
शिव महापुराण 2 - शिव अवतारों की कथा सूची ( Shiva ke avtaron ki stories)
शतरुद्रसंहिता
1.सूत जी से शौनक आदि मुनियों का शिवावतार विषयक प्रश्न
2.भगवान शिव की अष्ट मूर्तियों का वर्णन
3.भगवान शिव का अर्ध नारीश्वर -अवतार एवं सती का प्रादुर्भाव
4. वाराह कल्प के प्रथम से नवम द्वापर तक हुए व्यासों एवं शिव अवतारों का वर्णन
5.वाराह कल्प के दसवें से अठाईस वें द्वापर तक होने व्यासों एवं शिव अवतारों का वर्णन
6. नन्दीश्वर अवतार का वर्णन और नंदी की कथा
7.नन्दीश्वर का गनेश्वराधिपति पद पर अभिषेक एवं विवाह
8. भैरव अवतार का वर्णन और कथा
9.भैरव अवतार की लीला का वर्णन और कथा
10.नृसिंह चरित्र वर्णन
11.भगवान नृसिंह और वीर भद्र का संवाद
12.भगवान शिव का शरभ अवतार -धारण और कथा
13.भगवान शिव के गृहपति -अवतार की कथा
14.विश्वानर के पुत्र के रूप में गृहपति नाम से शिव का प्रादुर्भाव
15.भगवान शिव के गृहपति नामक अग्निश्वर लिंग का महत्व
16.यक्षेश्वर अवतार का वर्णन और कथा
17.भगवान शिव के महाकाल आदि प्रमुख दस अवतारों का वर्णन
18.शिव जी के एकादश रुद्र अवतारों का वर्णन
19.शिव जी के दुर्वासा अवतार की कथा
20.शिव जी का हनुमान रूप में अवतार तथा उनके चरित्र का वर्णन
21.शिव जी के महेश्वतार -वर्णन क्रम में अम्बिका के शाप से भैरव का वेताल रुप में पृथ्वी पर अवतरित होना
22.शिव के वृषेश्वरा अवतार का वर्णन के प्रसंग में समुद्रं मंथन की कथा.
22.विष्णु द्वारा भगवान शिव के वृषेश्वरा अवतार का स्तवन
24. भगवान शिव के पिप्लाद अवतार का वर्णन
25.राजा अनरण्य की पुत्री पद्मा के साथ पिप्लाद का विवाह एवं उनके वैवाहिक जीवन का वर्णन.
26.शिव के वैश्वनाथ नामक अवतार का वर्णन
27.भगवान शिव के द्विजेश्वर अवतार का वर्णन
28.नल और दमयंती के पूर्व जन्म की कथा तथा शिव अवतार यतीश्वर हा हंस रुप धारण करना
29.भगवान शिव के कृष्ण दर्शन नामक अवतार की कथा -
30.भगवान शिव के अवधूत अवतार का वर्णन
31.शिव जी के भिक्षुवर्य अवतार का वर्णन
32. उपमन्यु पर अनुग्रह करने के लिए शिव के सुरेश्वर अवतार का वर्णन
33.पार्वती के मनो भाव की परीक्षा लेने वाले ब्रह्मचारी स्वरुप शिव अवतार का वर्णन
34.भगवान शिव के सुनर्तक नट अवतार का वर्णन
35.परमात्मा शिव के द्विज अवतार का वर्णन
36. अश्वत्थामा के रुप में शिव के अवतार का वर्णन
37.व्याज जी का पांडवों को सान्तवना देकर अर्जुन को इंद्रकील पर्वत पर तपस्या करने भेजना
38.इंद्र का अर्जुन को वरदान देकर शिवपूजन का उपदेश देना
39.मूक नामक दैत्य के वध की कथा
40.भील स्वरुप गणेश्वर एवं तपस्वी अर्जुन का संवाद
41.भगवान शिव के किरात अवतार का वर्णन
42.भगवान शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंग स्वरुप का वर्णन और 12 ज्योतिर्लिंग की कथा
कोटिरुद्र संहिता
1.द्वादश ज्योतिर्लिंगों ( 12 ज्योतिर्लिंगों) और उपलिंगों के महत्व की कथा
2.काशी में स्थित तथा पूर्व दिशा में प्रकट हुए विशेष और सामान्य लिंग का वर्णन
3.अत्रीश्वर लिंग के प्रकट के प्रसंग में अनसूया तथा अत्रि की तपस्या का वर्णन
4.अनुसूया के पातिव्रत के प्रभाव से गंगा का प्राकट्य तथाअत्रिश्वर के महत्व का वर्णन
5.रेवानदी के तट पर स्थित विविध शिवलिंग महत्व वर्णन के क्रम में द्विज दंपत्ति का वृत्तांत
6.नर्मदा एवं नंदिकेश्वर के महत्व कथन के प्रसंग में ब्राह्मणी की स्वर्ग प्राप्ति का वर्णन
7.नंदिकेश्वर लिंग का महत्व वर्णन
8.पश्चिम दिशा के शिवलिंगों के वर्णन -क्रम में महाबलेश्वर लिंग का महत्व और कथा
9. संयोग वश हुए शिवपूजन से चाण्डाली की सद्गति का वर्णन
10.महाबलेश्वर शिवलिंग के महत्व का वर्णन प्रसंग में राजा मित्र सह की कथा
11.उत्तर दिशा में विद्धमान शिवलिंगों के वर्णन क्रम में चन्द्रभाल एवं पशुपतिनाथ लिंग के महत्व की कथा
12.हाटकेश्वर लिंग के प्रादुर्भाव एवं महत्व की कथा
13.अन्धकेश्वर लिंग की महिमा एवं बटुक की उत्पत्ति की कथा
14.सोनाथ ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति की कथा
15.मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति कथा
16.महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के प्राकट्य का वर्णन
17.महा काल ज्योतिर्लिंग के महत्व वर्णन के क्रम मेंराजा चन्द्र सेन तथा श्रीकर गोप की कथा
18.ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग की प्रादुर्भाव एवं महत्व का वर्णन
19.केदारनाथ ज्योतिर्लिंग के प्राकट्य एवं महत्व की कथा
20.भीम शंकर ज्योतिर्लिंग के महत्व -वर्णन के प्रसंग में भीमासुर के उपद्रव का वर्णन
21.भीम शंकर के ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति तथा उसके महत्व का वर्णन
22.परब्रह्म परमात्मा शिव के -शक्ति रुप में प्राकट्य पञ्चक्रोशात्मिक का काशी का अवतरण,शिव द्वारा अविमुक्त लिंग की स्थापना, काशी की महिमा तथा काशी में रुद्र के आगमन का वर्णन.
23.काशी विश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग के महत्व के प्रसंग में काशी में प्रसंग में काशी में मुक्ति क्रम का वर्णन
24 त्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग के महत्व के प्रसंग में गौतम ऋषि की परोपकारी प्रवृत्ति का वर्णन.
25 .मुनियों का महर्षि गौतम के प्रति कपटपूर्ण व्यवहार
26.त्रयम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग तथा गौतमी गंगा के प्रादुर्भाव की कथा
27. गौतमी गंगा एवं त्रयम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग के महत्व का वर्णन
28.वैधनाथेश्वर ज्योतिर्लिंग के प्रादुर्भाव एवं महत्व का वर्णन
29. दारुका वन में राक्षसों के उपद्रव एवं सुप्रिय वैश्य की शिव भक्ति का वर्णन
30.नागेश्वर ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति एवं उसके महत्व का वर्णन
31.रामेश्वर नामक ज्योतिर्लिंग के प्रादुर्भाव एवं महत्व का वर्णन
32.घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग के महत्व में सुदेहा ब्राह्मणी एवं सुधर्मा ब्रह्माण का चरित वर्णन
33. घुश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग एवं शिवालय के नाम कारन का वर्णन
34. हरीश्वर लिंग का महत्व और भगवान विष्णु के सुदर्शन चक्र प्राप्त करने की कथा
35.विष्णुप्रोक्त शिवसहस्त्रनामस्त्रोत
36.शिवसहस्त्रनामस्त्रोत की फल-श्रुति
37.शिव पूजा करने वाले विविध देवताओं देवताओं, ऋषियों एवं राजाओं का वर्णन
38.भगवान शिव के विविध व्रतों में शिवरात्री व्रत का महत्व
39.शिवरात्री व्रत की उधापन-विधि का वर्णन
40.शिवरात्रीव्रत के महत्व के प्रसंग में व्याध एवं मृग परिवार की कथा तथा व्याघेश्वर लिंग का का महत्व
41.ब्रह्म एवं मोक्ष का निरुपम
42.भगवान शिव के सगुण और निर्गुण स्वरुप का वर्णन
43.ज्ञान का निरुपम तथा शिवपुराण की कोटिरुद्रसंहिता के श्रवण आदि का महत्व
उमा संहिता
1.पुत्र प्राप्ति के लिए कैलास पर गए श्रीकृष्ण का उपमन्यु से संवाद
2.श्रीकृष्ण के प्रति उपमन्यु का शिव भक्ति का उपदेश
3.श्री कृष्ण की तपस्या तथा शिव -पार्वती से वरदान की प्राप्ति, अन्य शिव भक्तों का वर्णन
4.शिव की माया का प्रभाव
5.महापता का वर्णन
6.पाप भेदनिरुपण
7.यमलोक का मार्ग एवं यमदूतों के स्वरुप का वर्णन
8.नरक-भेद -निरूपण
9.नरक विशेष में दु:ख वर्णन
10.नरक विशेष में दु:ख वर्णन
11.दान के प्रभाव से यमपुर के दुःख का अभाव तथा अन्न दान का विशेष महत्व
12.जलदान, सत्य भाषण और तप की महिमा
13.पुराण का महत्व
14.दान का महत्व तथा दान कितने प्रकार के होते हैं? दान के भेद का वर्णन.
15. ब्रह्मांड दान की महिमा के प्रसंग में पाताललोक का वर्णन
16.विभिन्न पाप कर्मों से प्राप्त होने वाले नरकों का वर्णन और शिव -नाम स्मरण की महिमा
17.ब्रह्मांड के वर्णन -प्रसंग में जम्बूद्वीप का वर्णन
18. भारत वर्ष तथा प्लक्ष आदि छ: द्वीपों का वर्णन
19.सूर्य आदि ग्रहों की स्थिति का निरूपण करके जन आदि लोकों का वर्णन
20.तपस्या से शिवलिंग की प्राप्ति, सात्विक आदि तपस्या के भेद, मानव जन्म की प्रशस्ति का कथन
21.कर्म के अनुसार जन्म का वर्णकर क्षत्रिय के लिए संग्राम के फल का निरूपण
22.देह की उत्पत्ति का वर्णन
23. शरीर की अपवित्रता तथा उसके बाल आदि अवस्थाओं में प्राप्त होने वाले दुखों का वर्णन
24.नारद के प्रति पञ्चचूड़ा अप्सरा के द्वारा स्त्री के स्वाभाव का वर्णन
25.मृत्यु निकट आने के लक्षण
26.योगियों द्वारा काल की गति को टालने का वर्णन
27.अमरत्व प्राप्त करने की चार यौगिक साधनाएँ
28. छाया पुरुष के दर्शन का वर्णन
29.ब्रह्मा की आदि सृष्टी का वर्णन
30.ब्रह्मा द्वारा स्वायम्भुव मनु आदि की सृष्टी का वर्णन
31.दैत्य,गन्धर्व,सर्प एवं राक्षसों की सृष्टी का वर्णन तथा दक्ष द्वारा नारद के शाप -वृत्तांत का कथन
32.कश्यप ऋषि की पत्नियों के संतों संतानों के नाम का वर्णन
33.मरुतों की उत्पत्ति, भूतसर्ग का कथन तथा उनके राजाओं का निर्धारण
34.चतुर्दश मन्वन्तरों का वर्णन
35.विवस्वान सूर्य एवं संज्ञा के द्वारा अश्विनी कुमारों की उत्पत्ति का वर्णन एवं कथा
36.वैवस्तमनु के नौ पुत्रों के वंश का वर्णन
37.इक्ष्वाकु आदि मनुवंशीय राजाओं का वर्णन एवं कथा
38.सत्यव्रत -त्रिशंकू-सगर आदि के जन्म की कथा और चरित्र वर्णन
39.सगर की दोनों पत्नियों के वंश विस्तारण वर्णन और वैवस्त वंश में जन्मे राजाओं का वर्णन.
40.पितृ श्राद्ध का प्रभाव और वर्णन
41.पितरों की महिमा के वर्णन में सप्त व्याधियों के आख्यान का प्रारभ.
42.'सप्त व्याध' श्लोक सुनकर राजा ब्रह्मदत्त और उनके मंत्रियों को पूर्व जन्म का स्मरण होना और योग का आश्रय लेकर उनका मुक्त होना
43.आचार्यपूजन एवं पुराण श्रवण के अनंतर कर्तव्य -कथन
44.व्यास जी की उत्पत्ति की कथा,उनके द्वारा तीर्थाटन प्रसंग में काशी में व्याससेश्वर लिंग की स्थापना तथा मध्यमेश्वर के अनुग्रह से पुराण निर्माण.
45.भगवती जगदम्बा के चरित्र वर्णन क्रम में सुरथराज एवं समाधि वैश्य का वृतांत तथा मधु -कैटभ के वध का वर्णन
46.महिषासुर के अत्याचार से पीड़ित ब्रह्मादि देवों की प्रार्थना से प्रादुर्भूत महालक्ष्मी द्वारा महिषासुर का वध
47.शुभ -निशुभ से पीड़ित देवताओं द्वारा देवी की स्तुति तथा देवी द्वारा धूम्रलोचन, चंड-मुंड आदि असुरों का वध
48. सरस्वती के द्वारा सेनासहित शुम्भ-निशुम्भ का वध
49.भगवती उमा के प्रादुर्भाव का वर्णन
50.दस महाविद्याओं की उत्पत्ति तथा देवी दुर्गा,शताक्षी,शाकम्भरी और भ्रामरी आदि नामों के पड़ने का कारण और कथा
51.भगवती के मंदिर निर्माण,प्रतिमा स्थापना,तथा पूजन का महत्व और उमासंहिता के श्रवण एवं पाठ की महिमा
कैलास संहिता
1. व्यास जी से शौनक आदि ऋषियों का संवाद
2.भगवान शिव से पार्वती जी की प्रणव विषयक जिज्ञासा
3.प्रणव मीमांसा तथा संन्यास विधि वर्णन
4.संन्यास दीक्षा से पूर्व की आहिनक विधि
5.संन्यास दीक्षा हेतु मंडल निर्माण की विधि
6.पूजा के अंगभूत न्यास आदि कर्म
7.शिवजी के विविध ध्यानों तथा पूजा -विधि का वर्णन
8.आवरण पूजा विधि वर्णन
9.प्रणवों उपासना की विधि
10.सूत जी का काशी में आगमन
11.भगवान कार्तिकेय से वामदेव मुनि की प्रणव जिज्ञासा.
12. प्रणवरूप शिवतत्त्व का वर्णन तथा सन्यासांगतभूत नांदी श्राद्ध विधि
13.संन्यास की विधि
14.शिव स्वरुप प्रणव का वर्णन
15.तिरोभावआदि चक्रों तथा उनके अधिदेवताओं का वर्णन
16.शैव दर्शन के अनुसार शिवतत्त्व, जगत प्रपंच और जीवतत्त्व के विषय में विशद विवेचन तथा शिव से जीव और जगत की अभिनता का प्रतिपादन
17. अद्वैत शैववाद एवं सृष्टी प्रक्रिया का प्रतिपादन
18.संन्यास पद्धति में शिष्य बनाने की विधि
19.महावाक्यों के तात्पर्य तथा योगपट्ट विधि का वर्णन
20.यतियों के द्वारा क्षौर- स्नानादि की विधि तथा अन्य आचारों का वर्णन
21.यति के अन्त्येष्ठिक कर्म की दशाह पर्यंत विधि का वर्णन
22. यति के लिए एकदशाह -कृत्य का वर्णन
23.यति के द्वादशाह -कृत्य का वर्णन, स्कन्द और वामदेव का कैलास पर्वत पर जाना तथा सूत जी के द्वारा इस संहिता का उपसंहार
वायवीयसंहिता- पूर्व खंड
1.ऋषियों द्वारा समानित सूत जी के द्वारा कथा का आरम्भ , विद्या स्थानों एवं पुराणों का परिचय तथा वायुसंहिता आरम्भ कथा कहानी वायु संहिता की
2.ऋषियों का ब्रह्मा जी के पास जाकर उनकी स्तुति करके उनसे परमपुरुष के विषय में प्रश्न करना और ब्रह्मा जी का आनंदमग्न होना 'रूद्र' कहकर उत्तर देना.
3.ब्रह्मा जी द्वारा परम तत्त्व के रुप में भगवान शिव की महत्ता का प्रतिपादन तथा उनकी आज्ञा से मुनियों का नैमिषारण्य में आना
4. नैमिषारण्य में दीर्घ सत्र के अंत में मुनियों के पास वायु देवता का आगमन और वर्णन
5.ऋषियों के पूछने पर वायुदेवता द्वारा पशु , पाश एवं पशुपति का तात्विक विवेचन
6.महेश्वर की महत्ता का प्रतिपादन
7.काल की महिमा का वर्णन
8.काल का परिणाम एवं त्रिदेवों के आयुमान का वर्णन
9.सृष्टी के पालन एवं प्रलय काल का वर्णन
10.ब्रह्मांड की स्थिति ,स्वरुप आदि का वर्णन
11.अवांतर सर्ग और प्रतिसर्ग का वर्णन
12.ब्रह्माजी की मानसी सृष्टी, ब्रह्मा जी की मूर्च्छा, उनके मुख से रुद्रदेव का प्राकट्य, सम्प्राण हुए ब्रह्मा जी द्वारा आठ नामों से महेश्वर की स्तुतु तथा रूद्र की आज्ञा से ब्रह्मा द्वारा सृष्टी की रचना
13.कल्प भेद से त्रिदेवों ( ब्रह्मा -विष्णु -रुद्र) के एक दुसरे से प्रादुर्भाव का वर्णन
14.प्रत्येक कल्प में ब्रह्मा की रुद्र उत्पत्ति का वर्णन
15.अर्धनारीश्वर में प्रकट शिवजी द्वारा स्तुति
16.महादेव के शरीर से देवी का प्राकट्य और देवी के भ्रूमध्य भाग से शक्ति का प्रादुर्भाव
17.ब्रह्मा के आधे शरीर से शतरूपा की उत्पत्ति तथा दक्ष आदि प्रजा पतियों का वर्णन
18. दक्ष के शिव से द्वेष का वर्णन
19.दक्ष यज्ञ का उपक्रम ,दधिची का दक्ष को श्राप देना , वीरभद्र और भद्रकाली का प्रादुर्भाव तथा उनका यज्ञ ध्वंस के लिए प्रार्थना करना.
20. गणों के साथ वीरभद्र का दक्ष की यज्ञ भूमि में आगमन तथा उनके द्वारा दक्ष के यज्ञ का विध्वंस
21.वीरभद्र का दक्ष के यज्ञ में आये देवताओं को दंड देना तथा दक्ष का सिर काटना
22.वीरभद्र के पराक्रम का वर्णन
23.पराजित देवों के द्वारा की गयी स्तुति से प्रसन्न शिव का यज्ञ की सम्पूर्ति करना तथा देवताओं को सान्तवना देकर अंतर्ध्यान होना .
24. शिव का तपस्या के के लिए मंदराचल पर्वत पर गबन ,मंदराचल का वर्णन, शुम्भ-निशुम्भ दैत्य की उत्पत्ति, ब्रह्मा की प्रार्थना से उनके वध के लिए शिव और शिवा के विचित्र लीला प्रपंच का वर्णन
25.पार्वती की तपस्या , व्याघ्र पर उनकी कृपा, ब्रह्मा जी का देवी के साथ वार्तालाप, देवी के द्वारा काली त्वचा का त्याग और उससे उत्पन्न कौशिकी के द्वारा शुम्भ -निशुम्भ का वध
26.ब्रह्मा जी दारा दुष्कर्मी बताने पर गौरी देवी का शरणागत व्याघ्र को त्यागने से इनकार करना और माता-पिता से मिलकर मंदराचल को जाना
27.मंदराचल पर गौरी देवी का स्वागत, महादेव के द्वारा उनके और अपने उत्कृष्ट स्वरुप एवं अविच्छेद सम्बन्ध का प्रकाशन तथा देवी के साथ आये हुए बाघ को उनका गणाध्यक्ष बनाकरअंतःपुर द्वार पर सोमनदी नाम से प्रतिष्ठित करना
28.अग्नि और सोम के स्वरुप का विवेचन तथा जगत की अग्निशोमात्मकता का प्रतिपादन
29.जगत वाणी और अर्थरुप है - इसका प्रतिपादन
30.ऋषियों का शिवतत्त्व विषयक प्रश्न
31.शिव जी की सर्वेश्वरता, सर्वनियमकता तथा मोक्षप्रदता का निरुपम
32.परम धर्म का प्रतिपादन, शैवागमन के अनुसार पाशुपत ज्ञान तथा साधनों का वर्णन
33.पाशुपत -व्रत की विधि और महिमा तथा भष्म धारणा की महता
34.उपमन्यु का गोदुग्ध के लिए हठ तथा माता की आज्ञा से शिवोपासना में संलग्न होना
35.भगवान शंकर का इंद्र धारण करके उपमन्यु के भक्तिभाव की परीक्षा लेना,उन्हें क्षीरसागर आदि देकर बहुत से वर देना और अपना पुत्र मानकर पार्वती के हाथ में सौपना, कृतार्थ हुए उपमन्यु का अपनी माता के लिए स्थान पर लौटना
वायवीय संहिता- उत्तरखंड
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