श्रीराम वन गमन यात्रा Shree Ram Van Gaman Yatra

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श्री राम वन गमन यात्रा


श्रीराम वन गमन  यात्रा  Shree Ram Van Gaman Yatra


फेसबुक द्वारा प्राप्त. जारीकर्ता डॉक्टर रामवतार जी

all credit goes to Doctor Ram Avtar ji


श्री राम सांस्कृतिक शोध संस्थान द्वारा संवत २०७२ तदनुसार ईस्वी सन २०१५ के ३१ मार्च को नई दिल्ली के कनॉट प्लेस, बाबा खड़क सिंह मार्ग स्थित ऐतिहासिक हनुमान मंदिर प्रांगण से राम वनगमन यात्रा विधिवत शुरु होने के लिए अयोध्या के लिए रवाना हो गई।

यह यात्रा श्री राम से जुड़े २४५ तीर्थो के दर्शन , संरक्षण और विकास के उद्देश्य से आयोजित की गई है। कल रामलला की नगरी अयोध्या से औपचारिक रूप से यात्रा क्रमिक रूप से उन रास्तों पर आगे बढेगी जिन पर कभी राम त्रेता युग में वनवास अवधि में गए थे।

राम इतिहास पुरुष हैं या मिथक इसे लेकर अन्तहीन बहस की जा सकती है लेकिन ये २४५ स्थान हमारे रामजी से जुड़े ऐतिहासिक तीर्थ हैं इसे लेकर कोई संदेह नहीं होना चाहिए।

डॉ. राम अवतार पिछले ४० वर्षों से लगातार इन स्थानों की सत्यता ऐतिहासिकता और तथ्य परक जांच के लिए यात्रा पर जाते रहे हैं । आजीविका के लिए भारतीय आयकर विभाग में कार्यरत राम अवतार लगभग पांच वर्ष पहले सहायक निदेशक पद से अवकाश लेने के बाद पूर्णकालिक रूप से गैरलाभकारी संस्था श्री राम सांस्कृतिक शोध संस्थान न्यास के महामंत्री के रूप में योगदान दे रहे हैं।

इस न्यास का गठन श्री राम के वनगमन से जुड़े तीर्थों के संरक्षण और विकास के लिए किया गया। राम अवतार इनमें से प्रत्येक स्थान पर अनेको बार गए । वाल्मीकि रामायण में उपलब्ध भौगोलिक विवरण , तुलसीदास के विवरण और अन्य रामायण में उपलब्ध भौगोलिक एवं वनस्पतियों के विवरण के आधार पर वर्तमान में उपलब्ध तथ्य तथा लोक विवरणों का सहारा लेकर इन स्थानों की पुष्टि की।

ये ऐसे तीर्थ स्थान हैं जिनमें से कई जर्जर हो चुके हैं और तेज गति से लुप्त हो रहे हैं क्योंकि नई पीढ़ी में जागरूकता का अभाव है।

व्यापक जागृति और इनके संरक्षण के लिए लोगों के सहयोग के लिए यह यात्रा निकल चुकी हैं।

सभी राम भक्तों से विनम्र आग्रह श्रीराम से जुड़े इन तीर्थों के संरक्षण में न्यास को अपना सहयोग दें।

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ये तस्वीरें आज की हैं। इनमें प्रमुख लोगों में विश्व हिन्दू परिषद के संगठन महामंत्री श्री दिनेश चन्द्र, पूर्व केन्द्रीय मंत्री डॉ संजय पासवान, जाने माने उद्योगपति टी टी बनियान समूह के चेयरमैन ऋषभ चंद जैन, पुण्यभूमि भारत परियोजना के निदेशक प्रो. डॉ ए पी भटनागर, काशी के विशिष्ट विद्वान ठाकुर श्याम नारायण सिंह और अन्य गणमान्य लोग शामिल हैं।

इस अवसर पर आयोजित समारोह में सभी वक्ताओं ने राम जी के तीर्थों के विकास के लिए लोगों से आगे बढ़कर कर आने की अपील की।

यात्रा का नियमित विवरण इसी रूप में प्रतिदिन जारी होगा।


०१ अप्रैल २०१५।
नई दि ल्ली से ती र्थ यात्री ३१ मा र्च की रात में अयोध्याजी प हुँचे। कारसेवकपुरम में रात्रि विश्राम हु आ। पातःकाल वि श्व हि न् दू परिषद के अध्यक्ष माननीय अशोक सिंहल से आशी रवा द लिया।

डॉ राम अवतार ने उन्हें यात्रा का विवरण दिया। सभी २४५ तीर्थों के विकास और संरक्षण के लिए संक ल्प पत्र की प्रति दी।

सिंहल जी ने यात्रादल को आशीरवाद देते हुए कहा कि हि न् दू समाज के लिए आप कठिन तप कर रहे हैं। श्री राम आपको सफलता दें। उनहोंने कहा कि हि न् दू समकालीन समय में जिस तरह आपसी विद्वेष बढ़ रहे हैं ऐसे में हि न् दू समाज को संगठित होने की आवश्यकता है।


अयोध्या में यात्रा का पहला दिन।

 

स्थानीय लोगों ने यात्रा दल का स्वा गत किया। संत महंतों ने ती र्थ यात्रियों को आशी र् वाद दिया। इन्हें प्रणाम कर आप भी भाव रूप में आशी र् वाद लें।

यात्रियों ने अ यो ध्याजी के विविध मंदिरों में दर्शन र पूजन किए।


०२ अप्रैल २०१५. 
यात्रा का दू सरा दिन

 

जीवन में भौतिक सुविधाएं आवश्यक हैं। इनके अभाव में जीवन ठीक से नहीं चल पाता। यदि आपके प्रयासों के बाद भी भौतिक सुख सुविधा के साधन नहीं जुट पा रहे हैं तो अयोध्याजी के मणि प र्वत पर आकर संक ल्प लें। भाव रूप में इसी पल रामजी को प्रणाम कर ध्यान करें और निवेदन करें।

यदि धन संप त्ति, वैभव चाहिए ही चाहिए तो मणि प र्वत पर संक ल्प लेकर देखिए।

ये हैं यात्रा दल के सहयोगी। एक ओर ६५ वर्षीय राम अवतार जी तो दूसरी ओर लगभग सत्तर वर्षीय काशीवासी ठाकुर श्यामनारायण जी का जोश देखने लायक है। ऊँचे पर्वत की सीढ़ियों पर चढ़ने में युवाओं को पीछे छोड़ देते हैं हमारे ये प्रेरणा स्रोत जो राम तीर्थ संरक्षण के लिए ६५ दिवसीय यात्रा पर निकले हैं।

न्यास कार्यालय के प्रमुख मनोज कुमार, छायाचित्र कार सुमित पंवार, सारथी जितेन्दर मिश्रा एक ऐसे सहयोगी जो हर काम जो दूस रों के लिए बेहद कठिन हों उन्हें यथा शी घ्र पू र्ण करने वाले। मणि प र्व त की चोटी पर सं क्लप ले रहे हैं कि राम के काज में संल ग्न ये जीवन धन धा न्य से भरपूर रहे और राम जी की काया सा र्थक हो।

रामजी के तीर्थों में सघन वृक्षारोपण का संकल्प लेकर गुड़गांव के ट्रांसपोर्टर संदीपजी भी लगातार साथ चल रहे हैं।

 

 

०२ अप्रैल२०१५- यात्रा का दू सरा दिन

ये है मखौड़ा ती र्थ। मनोरमा नदी के तट पर दशरथजी ने पुत्रे ष्टि यज्ञ का आयोजन किया था। यहां आज भी पुत्रकामना से लोग आते हैं। उनकी मनौतियां पूरी होती हैं। यदि आपके परिवार में भी यदि कोई निःसंतान हैं तो यहां संक ल्प लेकर एक बार फिर से प्रयास करें। प्रभु पर आस्था रखें। रामजी आपकी मनोकामना पूरी करेंगे।


घर बैठे मनोरमा नदी के पावन जल में आचमन करें। स्नान करें। कभी यहां श्रृंगी ऋषि के मंत्रो च्चार हुए थे। अपने शास्त्रों में आ स्था रखें तो यहां गूंजे मंत्र आज भी आपके परिवार में किलकारी गूंजने में सहायक साबित होंगे।

पावन रूप में भाव स्नान कर अब पूजन भी कर लें। श्रद्धा भाव से अपना निवेदन रामजी के चरणों में प हुं चाएं।

 

जय सियाराम।

३१ मार्च ३०१५ से यात्रा लगातार अपने पथ पर आगे बढ़ रही है। त्रेता युग में रामजी जिन रास्तों से होकर आगे बढ़े थे तीर्थ यात्रियों का हमारा ये दल भी उन्हीं रास्तों से होकर आगे बढ़ रहा हैं।

आप पूछ सकते हैं कि जब राम जी के बारे में अब तक यही नहीं तय हुआ है कि वे हमारे इतिहास पुरुष हैं या मिथकीय पात्र तब तक उन स्मृति स्थलों , नदियों सरोवरों और रास्तों का क्या महत्व हैं ?

ऐसे सवाल उनके मन में आते हैं जिन्हें भारतीय होने के बाद भी अपने अस्तित्व पर संदेह है कि वे भारतवासी हैं भी या नहीं या फिर उनके मन में आते हैं जो अभारतीय हैं ।

सत्य और मिथ को लेकर दुनिया के हर भाग में उहापोह है, सवालें है, आशंकाएं और अविश्वास है क्योंकि जिसे हम सत्य समझते हैं वह भी अपने आप में एक बड़ा प्रश्न चिह्न है ।

अपने सत्य को जब आप परत दर परत अनुभव करते हुए अन्तिम बिन्दु तक पहुंचने की खोज कीजिएगा तभी सत्य की सत्यता को समझ पाइएगा।

दर असल होता ये है कि अपने पांच इन्द्रियों के माध्यम से जितना सतही ज्ञान हम अर्जित कर पाते हैं ताकि हमार जीवन यापन मनवांछित रूप से होने लगे उससे अधिक सत्य तलाशने की कोशिश ही नहीं करते और अपनी हठधर्मिता पर अड़े रहते हैं।

इसीलिए राम जी को इतिहास पुरुष समझने में ऐसे आशंकित मन वाले लोगों को कठिनाई होती है। लेकिन अपने मन में आस्था रखिए और ढूंढने की कोशिश कीजिए तो राम अपनी सम्पूर्णता में न केवल दिखेंगे बल्कि उनकी कृपा हर पल आप अपने पर बरसती आपको दिखेगी।

इस यात्रा में हमारा दल जिन स्थानों से गुजर रहा है उनकी स्थापना हमने नहीं की है ये सौ दो सौ सालों से नहीं हजारों सालों से अपने अस्तित्व में बने हुए हैं।

डॉ राम अवतार ने इन स्थानों पर शोध के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित किया हुआ है। पिछले ४० वर्षों से वे लगातर एक- एक स्थान पर बार बार गए हैं । स्थानीय लोगों से , बड़े बुजुर्गों से इनकी प्राचीनता के बारे में पूछा है। उपलब्ध नए पुराने निर्माणों के बारे में विभिन्न स्रोतों से जानकारियां जुटायी हैं।

मूल वाल्मीकि रामयाण में उपलब्ध भौगोलिक तथ्य, नगर, नदी, सरोवर, जंगल, वनस्पतियां वहां के लोग और लोगों में व्याप्त जन विश्वास के आधार पर इन स्थानों की प्रामाणिकता को सुनिश्चित किया है।

ये सारे स्थल रामजी के जीवन से विविध रूप में जुड़े हैं।

भारत वर्ष में जन्मे साहित्याकरों ने अपने विविध साहित्य में इनका विवरण दिया है। वाल्मीकि को हम मिथकीय पात्र नहीं मान सकते क्योंकि वे राम कथा के आदि रचनाकार हैं। वाल्मीकि का हम समय भी नहीं तय कर सकते क्योंकि वे अपने आप को राम कथा का एक पात्र घोषित करते हैं।

लेकिन वाल्मीकि से लेकर आज तक के विभिन्न साहित्यकारों ने राम के जीवन पर कुछ ना कुछ लिखा जरूर है। जिस किसी ने लिखा , जिस किसी भाषा में लिखा वह इन स्थानों के बारे में भौगोलिक विवरण भी देता है।

जिन तीर्थों की पुष्टि डॉ राम अवतार ने की है वह एक नहीं कई भाषाओं में उपलब्ध रामयाण के अध्ययन के आधार पर तथा मूल वाल्मीकि राम याण से इनकी भौगोलिक साम्यता के आधार पर ।

इस तरह कुल लगभग ३०० तीर्थों का निर्धारण अब तक हो सका है जिसमें लंका की खोज अभी तक शामिल नहीं है।

हम इस यात्रा में श्री राम के वन गमन से जुड़े २४५ तीर्थो पर चल रहे हैं।

ये तीर्थ कहीं नगरों कहीं घने जंगलों और बीहड़ों में हैं। नई दिल्ली से चलकर अयोध्या पहुंचने के विवरण हम आपको दे चुके हैं लेकिन अयोध्या से निकल कर जिन रास्तो पर अभी हमारा दल चल रहा है वहां से तस्वीरें लगातार आप तक नहीं पहुंच पा रही हैं क्योंकि इन तस्वीरों को भेजने के लिए जिन अति आधुनक साधनों की आवश्यकता है उससे सुसज्जित हमारा दल नहीं है।

बेहद सीमित साधन में समर्पित राम भक्तों का दल अपनी यात्रा पर निकल चला है उद्देश्य बस एक है हम इन्हें जानें , इनके विकास के लिए आगे आएं ।

यदि आप भारत वासी हैं , रामजी आपके आराध्य हैं और हनमान जी की कृपा से आपके मन में परेरणा जागे तो आप भी अपना सहयोग दे सकते हैं। आप जहां कहीं रहते हों संभव है इनमें से कोई तीर्थ आपके आसपास हो ।

यदि रामजी ने आपको सामर्थ्य दिया है तो यथासंभव इस अभियान में अपना सहयोग दीजिए।

साथ संल्गन चित्र अयोध्या जी के हैं । यहां के इस मंदिर में दिल्ली से आये यात्रा दल का स्वागत हो रहा है । ये नए महंथ जी हैं। आज से लगभग तीस पैंतीस वर्षों पूर्व डॉ राम अवतार ने यहां के ब्रहमलीन महंथजी से इस स्थान के बारे में जानकारी ली थी । आप भी दर्शन करें। साथ में स्थानीय लोग और नए महंथजी हैं।

जय सियाराम

 

११ अप्रैल २०१५.

(भाग एक, आज के ही अगले पोस्ट में भी यह विवरण जारी रहेगा)

जय सिया राम

डॉ राम अवतार के नेतृत्व में श्री राम वनगमन यात्रा फिलहाल त्रेता युग के दंडक वन के क्षेत्रों में आगे बढ़ रही है। युग प्राचीन तो अब नहीं है लेकिन ये क्षेत्र आज भी अनेक स्थानों पर सघन वन से घिरे हुए हैं। यात्रा दल के सदस्य अयोध्या से आगे ठीक राम जी के पथ पर ही आगे बढ़ रहे हैं लेकिन दैनिक विवरण हम आपको नहीं दे पा रहे थे क्योंकि इंटरनेट सिगनल के अभाव में अयोध्या से आगे के चित्र हम तक समय से नहीं पहुंच पा रहे हैं और हम चाहते थे कि ताजा चित्रों के साथ ही आपको यथास्थिति जानकारी और विवरण दें।

ताजा चित्र अभी भी नहीं मिल रहे हैं क्योंकि भले ही नगरों में, जिला मुख्यालयों में और प्रमुख ठिकानों पर इंटरनेट टावर लगे हों लेकिन जिन क्षेत्रों से हमारा दल आगे बढ़ रहा है वहां सुविधाओं का घोर अभाव है। और यात्रा के दौरान लिए जा रहे चित्र यहां हम तक दिल्ली में मेल के जरिए नहीं पहुंच पा रहे हैं। ऐसे में फाइल चित्रों का सहारा लेकर हम आप तक विवरण पहुंचाने का प्रयास आज से नियमित करेंगे।

श्रीराम मां जानकी और भैया लखन लाल अयोध्या से चल कर तमसा नदी के तट होते हुए आगे बढ़ते हैं। तमसा तट के ताजा चित्र आप भी दर्शन करें ।


 

 

११ अप्रैल २०१५.
(भाग २ , आज के ही अगले पोस्ट में भी यह विवरण जारी रहेगा)

तमसा नदी के तट पर डॉ राम अवतार। ये ताजा चित्र हैं जो आज हम तक पहुंच पाए हैं । हालांकि हमारा यात्रा दल ३ अप्रैल को ही यहां से होकर आगे बढ़ा था। लेकिन आज चित्र पहुंचने के बाद विचार ये तय हुआ है कि नए चित्र हम दिखा सकें या नहीं दैनिक विवरण प्रतिदिन रखेंगे। इसी के तहत ये चित्र आप तक रखे जा रहे हैं। इनमें से आखिरी चित्र जिसमें तमसा नदी का नाम दर्शाता पत्थर दिख रहा है आज से लगभग एक दशक पहले लिया चित्र है जब डॉ रामअवतार इन स्थानों के डॉक्युमेन्टेशेन के लिए एक स्टिल कैमरे के साथ एकाकी यात्रा पर निकले थे ।

प्रणाम कीजिए तमसा नदी के इस पावन तट को जो कभी ऋषि मुनियों और श्रीराम के चरणों से पवित्र हो चुका है।

 

 

११ अप्रैल २०१५.
(भाग ४ , आज के ही अगले पोस्ट में भी यह विवरण जारी रहेगा)

डॉ रामअवतार के नेतृत्व में श्रीराम वनगमन यात्रा दल के सदस्य फिलहाल घने दण्ड कारण्य वन में घूम रहे हैं । दंडकारण्य के अंतर्गत वर्तमान उत्तर प्रदेश , मध्य प्रदेश , छ त्तीस गढ़ , महाराष्ट्र , कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, ओड़ीशा, के वि भि न्न भागों में आज भी रामायण कालीन अवशेष बिखरे पड़े हैं। लोक स्मृति में इनकी याद आज भी ताजी है।
मगर कई स्थानों पर ये अवशेष तेज गति से लु प्त होने की कगार पर हैं।

स्थानीय लोग इन धरोहरों की पूजा राम जी के स्मृति स्थलों के रूप में करते हैं। लेकिन हाल में स्थानीय प्रशासन ने कई क्षेत्रों में खनन कार्य के लाइसेंस जारी किए हैं।

इन खानों में काम शुरु हो गया है और स्थानीय विरोध के बावजूद खनन कार्य जारी है। इनमें विशेष रूप से शामिल हैं सतना जिले में सिद्धा गांव में अवस्थित सिद्धा पहाड़। माना जाता है कि जब रामजी चित्रकूट से चल कर आगे बढ़े तो राक्षस विराध का वध करने के बाद इस क्षेत्र में आए। साथ चल रहे ऋषियों ने ये पहाड़ी उन्हें दिखायी और कहा कि ये आर्य विचारधारा के ऋषि मुनियों केअस्थि अवशेषों से बने हैं । ऋषियों की मार्मिक गाथा सुनकर पहले तो राम जी की आंखों में आंसू उमर आए और फिर इसके बाद क्रोध में आकर व्रत लिया कि असुरों का संहार करेंगे।

विराध संहार आत्मरक्षा में हुआ था लेकिन सिद्धा पहाड़ से आगे अनेक ऐसे स्थल मिलते हैं जहां लोकमानस में रामजी और राक्षसों के साथ संघर्ष का विवरण मिलता है। वाल्मीकि रामायण और अन्य ग्रंथ इसकी पुष्टि करते हैं।

सिद्धा पहाड़ के पत्थर रंग बिरंगे हैं । लोक स्मृति के अनुसार यहां राम जी ने पहली बार निशिचर हीन करो मही की प्रतिज्ञा ली थी।

वाल्मीकि रामायण और अन्य रामायणों में इसका उल्लेख विस्तार से मिलता है।

दरअसल उस जमाने में राक्षसी सभ्यता और आर्यों के बीच संघर्ष चल रहा था और कुल मिला कर आसुरी सोच के लोगों का ही बोलबाला था। वनवास के क्रम में राम अयोध्या से चल चित्रकूट होते हुए यहां तक पहुंचे थे। ऋषि मुनियों के अनेक आश्रमों के दर्शन इस क्षेत्र में आज भी होते हैं । ये सभी रामायणकालीन धरोहर हैं

इन्हीं में से कुछ महत्व पूर्ण धरोहर हैं अश्व मुनि आश्रम, शरभंग मुनि आश्रम, सु ती क्ष् ण मुनि आश्रम, सिद्धा पहाड़ । 
या त्रा दल के सदस्य इन स्थानों पर गए और यहां की हालत देख कर बेहद दु खी हु ए। सबसे पहले सिद्धा पहाड़ के चित्र संलग्न हैं जहां खनन काम चल रहा है और तेज गति से इस पहाड़ के पत्थर तोड़ कर हटाए जा रहे हैं। कभी अवैध खनन तो कभी सरकारी पट्टे पर खनन कार्य हो रहा है.

कारण स्थानीय प्र शासन ने इन स्थानों परखोदने की अनुमति दे दी है। और उद्योगपतियों के कामगार स्थानीय लोगों के विरोध के बावजूद खनन कार्यों में संल्गन हैं। ताजा चित्र तो हमारे पास अभी नहीं आए हैं । आज हम यहां फाइल चित्रों को रख रहे हैं जो डॉ रामअवतार के विगत शोधयात्रा और शोध की अनेक पुष्टिकरण यात्राओं के दौरान लिए गए। हमारे सदस्यों ने इन पावन स्थानों की मिट्टी एकत्र की ताकि इनसे स्मृति चिन्ह बना सकें । सभी स्थलों की पावन मिट्टी को हर रामजी के हर तीर्थ में स्थापित करने का हमारा लक्ष्य है ताकि ये स्मृति स्थल हम अपनी भवी पीढ़ी को भी सौंप सकें।

हम सबों को इनके संरक्षण के लिए मिल कर प्रयास करना चाहिए।


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