भगवान गणेश की कहानी
सोनी टीवी गणेशा.
Sony tv Ganesha tv show Story
अंतरिक्ष में स्थित एक विशेष स्थान, जब शिव मान्त्रिक ध्वनि उत्पन्न करता हुआ सृष्टी के सभी तत्वों को अपनी ओर खींचना आरम्भ करता है तो श्री गणेश अचरज में आकर माता से पूछते हैं.....और फिर इसके पश्चात माता पार्वती से श्री गणेश को ज्ञात होता है कि ताडकासुर के तीनो पुत्र, तारकाक्ष, कमलाक्ष और विद्युनमाली ने कैसे स्वयं को और सभी असुरों को देवताओं से रक्षित करने के लिए ब्रह्मदेव की कठोर तपस्या की और उनसे एक विचित्र वरदान माँगा.......इधर त्रिपुर में बसे त्रिपुरासुर के बारे में ज्ञात होने एवं सृष्टी से सभी तत्वों के उसी अंतरिक्ष दिशा की ओर जाने से, श्रीगणेश को त्रिपुरासुर की महदेव भक्ति पर कुछ संदेह होता है...और फिर इसके पश्चात उर्जाहीन हो चुके सभी देवों की गुहार पर श्री गणेश, माता की आज्ञा पाकर त्रिपुरासुर की शिव भक्ति की टोह एवं अपना संशय दूर करने मूषकराज के संग त्रिपुर आ पहुंचते....
इधर त्रिपुर में महादेव के द्वादश नामावली का पाठ सुन एवं उनके पुत्र श्री गणेश का परिचय पाकर त्रिपुरासुर प्रसन्न होकर स्वयं उनके सामने प्रकट हो जाते हैं.....इधर त्रिपुर में श्री गणेश का भव्य स्वागत होता है.....उधर मूषकराज जब सेवकों की थाल से लड्डू चुराकर भागते हैं और उन् लड्डुओं का प्रयोग वे त्रिपुर में खोजबीन करने में करते हैं तो इसी मध्य उन्हें त्रिपुर का एक रहस्य ज्ञात होता है....परन्तु फिर इसी खोजबीन के क्रम में मूषकराज के प्राण संकट में पड़ जाते हैं...उधर मूषकराज पर संकट का आभास पाते ही श्री गणेश युक्ति से त्रिपुरासुर को स्तंभित कर तत्काल मूषकराज की सहायता के लिए निकल पड़ते हैं....इधर मूषकराज को रक्षित करने के क्रम में अकास्मात ही श्री गणेश एवं मूषकराज को त्रिपुर का वो सत्य ज्ञात होता है जिसकी उन्होंने कल्पना नहीं की थी.....
तत्पश्चात मूषकराज असुर गुरु शुक्राचार्य की हवन शक्ति से निर्मित होने वाली समस्त असुर सेना के निर्माण को ध्वस्त करने की तत्परता दिखाते हैं किन्तु उन्हें असफलता मिलती है...तभी इसी मध्य अकास्मात ही उनका सामना त्रिपुर के प्रहरियों से हो जाता है...परन्तु अपनी बुद्धि से श्री गणेश उन्हें मृत्यु के द्वार तक पहुंचाने में सफल होते हैं.....तत्पश्चात, श्री गणेश एवं मूषकराज शुक्रचार्य के हवन में विघ्न उत्पन्न करने के उद्धेश्य से उस भण्डार गृह में पहुँचते हैं जहाँ प्रचुर मात्र में हवन सामग्री होती है....उधर शुक्राचार्य को अकस्मात् ही उनके कार्य में विघ्न उत्पन्न होने का आभास हो जाता है किन्तु इससे पूर्व श्रीगणेश त्रिपुरासुर से विदा लेकर तत्काल कैलाश लौटते हैं और अपनी बुद्धि से त्रिपुरासुर के दोहरे चरित्र का उजागर अपने माता पिता के समक्ष करते हैं....इधर त्रिपुरासुर की वास्तविकता जान लेने के पश्चात माता उन दुष्टों के विनाश के लिए यही उचित समय बताती है क्यूंकि त्रिपुर के एक सीधी रेखा में आकर निकल जाने के बाद सहस्त्रों वर्षों तक उनका कोई अनिष्ट नहीं कर सकता जैसा कि त्रिपुरासुर ने ब्रह्मदेव से वरदान स्वरुप माँगा था.....
इधर समयावधि को देखते हुए गजानन तत्काल जब त्रिपुरासुर की वास्तविकता जाकर मामाजी श्री हरि नारयण को बताते हैं तो श्रीहरि नारायण , गजानन की सहायता के लिए अपने चरण की मैल से अरिहन को उत्पन्न करते हैं........उधर यज्ञ की अग्नि बूझने से पूर्व असुर गुरु शुकाराचार्य को उस विघ्न के बारे में ज्ञात हो जाता और वो त्रिपुरासुर को बताते हैं...इधर अरिहन को त्रिपुर में प्रवेश कराने से पूर्व गजानन उन्हें अपनी योजना बताकर एक बार पुन: उन्हें समय का स्मरण दिलाते हैं...
इधर श्री हरि नारायण के अंश अरिहन, श्री गणेश की योजनानुसार त्रिपुरासुर को अमृत का लोभ देकर उनकी महादेव के प्रति ढोगी भक्ति और मन की मलिनता को बाहर लाने का प्रयास करते हैं...... और फिर इसके पश्चात अरिहन की बातों से प्रभावित होकर शीघ्र ही त्रिपुरासुर अपने आसुरी स्वभाव में आकर महादेव की भक्ति छोड़, भोग विलास में डूब जाते हैं...इधर गजानन के प्रयासों से त्रिपुरासुर की वास्तविकता महादेव के समक्ष आ जाती है और देवगन त्रिपुरासुर के अंत की गुहार लगाते हैं......और फिर इसके पश्चात महादेव द्वारा त्रिपुरा सुर का अंत हो सके इसके लिए गजानन देव शिल्पी विश्वकर्मा जी की सहायता से त्रिपुरासुर को मिले वरदान के तोड़ के रूप में सर्वदेवोमय रथ एवं धनुष बाण का निर्माण कर पिता महादेव के समक्ष ले आते हैं....उधर असुर गुरु शुक्रचार्या को सब कुछ ज्ञात होने पर वे अपना यज्ञ पूर्ण करने की शीघ्रता दिखाते हैं और इधर महदेव ,त्रिपुरासुर के वध के लिए सर्वदेवोमय रथ पर आरूढ़ होते हैं...
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