देवघर :- देवघर भारत के झारखंड राज्य में स्थित एक शहर है। यह राज्य के संथाल परगना क्षेत्र में स्थित है और अपनी समृद्ध सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत के लिए जाना जाता है। देवघर एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थल है, जिसके शहर में कई प्राचीन मंदिर और मंदिर स्थित हैं। देवघर दो शब्दों के जुड़कर बना है. पहला देव यानि देवता और दुसरा घर यानि कि आवास. अर्थात जहाँ देवता का घर हो उसे देवघर कहते हैं. यहाँ सावन के मास में लोगों को आना जाना आरम्भ हो जाता है. यह शहर अपने बैद्यनाथ मंदिर के लिए प्रसिद्ध है, जो भगवान शिव को समर्पित 12 ज्योतिर्लिंग मंदिरों में से एक है। इसे बाबा धाम भी कहा जाता है. बाबा यानि खुद भोलेनाथ और धाम मतलब वो स्थान जहाँ बाबा का बसेरा हो. यह मंदिर हर साल लाखों तीर्थयात्रियों को आकर्षित करता है, और इसे भारत के सबसे पवित्र मंदिरों में से एक माना जाता है। श्रद्धालू बिहार में स्थित सुलतान से गंगा ka जल अपने कांवर में भरते हैं और 105 किलोमीटर की दुरी तय कर यहाँ जल चढाने आते हैं.
देवघर (बाबाधाम) की जनसख्या रोज़गार और इतिहास जानिये ( Devghar Baba Dham population & history in hindi ) Devghar ki jansakhyaa kitni hai aur yeh kyun famous hai hindi mein jaankari.
बाबा धाम स्थान के पीछे की लोक कथा
इसके पीछे एक लोक कथा भी है कि बैजू नाम का एक चरवाहा अपने चाचा चाची के साथ रहता था. बैजू के पास एक गाय थी जिसे वो रोज़ चराने ले जाया करता था. जिस दिन बैजू गाय को लेकर नहीं जाता उस दिन उसकी चाची उसे बहुत मारती. चाची के भय से बैजू रोज़ गाय को वन में चराने ले जाता. गाय जब चरकर आती तो चाची गाय से दूध निकाल लेती. लेकिन कुछ दिनों से गाय ने दूध देना बंद कर दिया था. चाची को पूरा संदेह था कि बैजू अवश्य ही सारा दूध रास्ते में ही निकालकर बेच देता है इसलिए वो बैजू को इस चोरी के बदले मारती है. लेकिन बैजू तो दूध चुरा ही नहीं रहा था. लेकिन ये घटना कई दिनों से लागातार घट रही थी. एक दिन वैजू ने इसके बारे में जब पता लगाया तो देखा की उसकी गाय एक रास्ते में पड़े मार्ग पर रुकर अपने थान से सारा दूध उसी पत्थर पर निकाल देती है. ऐसा वो गाय रोज़ाना ही करती थी. एक दिन बैजू से देखा नहीं गया और उसने गुस्से में आकर उस पत्थर पर लाठिया बरसा दी. अब बैजू जब भी उस रास्ते से होकर गुजरता उस पत्थर पर डंडा रोज़ मारकर जाता है. ये अब बैजू की 12 मास की अदा बन जाती है. कहते हैं जिस दिन वो पत्थर पर डंडा मारना भूल जाता वो वापस रात को भी जाकर अपनी ड्यूटी पूरी करता. लेकिन वैजू को पता नहीं होता कि वो पत्थर एक शिवलिंग था. एक दिन अकस्मात भोले बाबा प्रकट हो जाते हैं और वैजू की उस भक्ति के लिए उसे वरदान देते हैं. कालान्तर में वैजू के नाम से ही वैधनाथ मंदिर का निर्माण होता है.
बैद्यनाथ मंदिर के अलावा, देवघर में धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व के कई अन्य स्थान भी हैं, जिनमें तपोवन मंदिर, रामकृष्ण मिशन और सत्संग आश्रम शामिल हैं। शहर का एक समृद्ध इतिहास भी है, और यह प्राचीन काल से बसा हुआ है।
आर्थिक विकास के मामले में, देवघर मुख्य रूप से एक कृषि प्रधान जिला है, जिसमें चावल, गेहूं और मक्का जैसी फसलें स्थानीय लोगों की आजीविका का मुख्य स्रोत हैं। क्षेत्र में कुछ छोटे पैमाने के उद्योग और खान भी हैं, जो आबादी के एक वर्ग को रोजगार प्रदान करते हैं।
देवघर में एक अच्छी तरह से विकसित सड़क और रेल नेटवर्क है, और यह राज्य और देश के प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है। शहर में कई शैक्षणिक संस्थान और अस्पताल भी हैं, जो स्थानीय आबादी को आवश्यक सुविधाएं प्रदान करते हैं। बात करें जनसंख्या कि तो यहाँ कि कुल आबादी लगभग 203117 होगी वो बभी 2011 की मत गणना के अनुसार. यहाँ जनसंख्या के भाग का कुल ५२ प्रतिशत पुरुष हैं और ४८ प्रतिशत भाग महिलाओं का है.
कुल मिलाकर, देवघर झारखंड का एक महत्वपूर्ण शहर है, जो अपनी समृद्ध सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत और अपनी कृषि अर्थव्यवस्था के लिए जाना जाता है।
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