महाभागवत (देवीपुराण) सम्पूर्ण कथा सूची

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भगवती महाशक्ति ही परब्रह्म परमात्मा हैं, जो विविध रूपोंमें विभिन्न लीलाएँ करती हैं। इन्हींकी शक्तिसे ब्रह्मा विश्वकी उत्पत्ति करते हैं, इन्होंकी शक्तिसे विष्णु सृष्टिका पालन करते हैं और शिव जगत्का संहार करते हैं अर्थात् यही सृजन, पालन और संहार करनेवाली आद्या पराशक्ति हैं। ये ही पराशक्ति नवदुर्गा, दशमहाविद्या हैं। ये ही अन्नपूर्णा, जगद्धात्री, कात्यायनी, ललिताम्बा हैं। गायत्री, भुवनेश्वरी, काली, तारा, बगला, षोडशी, त्रिपुरा, धूमावती, मातङ्गी, कमला, पद्मावती, दुर्गा आदि इन्हींके रूप हैं। ये ही शक्तिमान् और ये ही शक्ति हैं। ये ही नर और नारी हैं और ये ही माता, धाता तथा पितामह भी हैं।


भगवती कहती हैं-'सर्वं खल्विदमेवाहं नान्यदस्ति सनातनम्' अर्थात् समस्त विश्व मैं ही हूँ, मुझसे अतिरिक्त दूसरा कोई भी सनातन या अविनाशी तत्त्व नहीं है।


अपने यहाँ सर्वव्यापी चेतनसत्ता अर्थात् अपने उपास्यकी उपासना मातृरूपसे, पितृरूपसे अथवा स्वामीरूपसे किसी भी रूपसे की जा सकती है, किंतु वह होनी चाहिये भावपूर्ण और अनन्य । लोकमें सम्पूर्ण जीवोंके लिये मातृभावकी महिमा विशेष है, व्यक्ति अपनी सर्वाधिक श्रद्धा स्वभावतः माँके चरणोंमें अर्पित करता है; क्योंकि माँकी गोदमें ही सर्वप्रथम उसे लोकदर्शनका सौभाग्य प्राप्त होता है। इस प्रकार माता ही सबकी आदिगुरु है और उसीकी दया और अनुग्रहपर बालकोंका ऐहिक और पारलौकिक कल्याण निर्भर करता है। इसीलिये 'मातृदेवो भव, पितृदेवो भव, आचार्यदेवो भव' – इन मन्त्रोंमें सर्वप्रथम स्थान माताको ही दिया गया है। जो भगवती महाशक्तिस्वरूपिणी देवी समष्टिरूपिणी माता और सारे जगत्की माता हैं, वे ही अपने समस्त बालकों (अर्थात् समस्त संसार) के लिये कल्याण पथ-प्रदर्शिका ज्ञान-गुरु हैं।


शास्त्रोंमें भगवती देवीकी उपासनाके लिये विभिन्न प्रकार वर्णित हैं। मान्यता है कि भगवतीकी साधनासे सद्यः फलकी प्राप्ति होती है। पराम्बा भगवती राजराजेश्वरी अपने भक्तोंको भोग और मोक्ष दोनों एक साथ प्रदान करती हैं, जबकि सामान्यतः दोनोंका साहचर्य नहीं देखा जाता। जहाँ भोग है वहाँ मोक्ष नहीं, जहाँ मोक्ष है वहाँ भोग नहीं रहता; फिर भी शक्तिसाधकोंके लिये दोनों एक साथ सुलभ हैं। अर्थात् संसारके विभिन्न भोगोंको भोगता हुआ वह परमपद मोक्षका अधिकारी हो जाता है-


यत्रास्ति मोक्षो नहि तत्र भोगो यत्रास्ति भोगो नहि तत्र मोक्षः । श्रीसुन्दरीसेवनतत्पराणां भोगश्च मोक्षश्च करस्थ एव ॥


भारतीय धर्म एवं संस्कृतिमें भोगोंका सर्वथा निषेध नहीं है, वरन् उनकी मानव जीवनके एक क्षेत्रमें आवश्यकता बतायी गयी है, पर वे होने चाहिये धर्मके द्वारा नियन्त्रित तथा मोक्ष एवं भगवत्प्राप्तिके साधनरूप। केवल भोग तो आसुरी सम्पदाकी वस्तु है और वह मनुष्यका अधःपतन करनेवाला है। आधिभौतिक उन्नति हो, पर वह हो अध्यात्मकी भूमिकापर-आध्यात्मिक लक्ष्यकी पूर्तिके लिये। ऐसा न होनेपर केवल कामोपभोग-परायणता मनुष्यको असुर-राक्षस बनाकर उसके अपने तथा जगत् के अन्यान्य प्राणियोंके लिये घोर सन्ताप, अशान्ति, चिन्ता, पाप तथा दुर्गतिकी प्राप्ति करानेवाली होती है। आजके भौतिकवादी भोग- परायण मानव-जगत्में यही हो रहा है और इसी कारण नित्य नये उपद्रव, आतंक, अशान्ति, अनाचार, पाप तथा दुःख बढ़ रहे हैं। कीट-पतंगकी तरह सहस्रों मानवोंका जीवन एक क्षणमें अनायास एक साथ समाप्त हो जाता है। अपने देशमें इस अनर्थका उत्पादन करनेवाली भोग-परायणताका विस्तार बड़े जोरोंसे हो रहा

• पुराणं साम्प्रतं ब्रूहि स्वर्गमोक्षफलप्रदम् •


आध्यात्मिक उत्कर्षमें बहुत कुछ सहायक सिद्ध हो सकेगा। है। अतः इस समय इसकी बड़ी आवश्यकता है कि मानव पतनके प्रवाहसे निकलकर पाप-पथस लटका महाभागवत (देवीपुराण) का अध्ययन तथा तदनुसार आचरण किया जाय तो यह मानवके भौतिक एवं फिर वास्तविक उत्थान, प्रगति तथा पुण्यके पथपर आरूढ़ - अग्रसर हो। इस दिशाम यदि उचित रूपसे इस


, सरस्वती प्रस्तुत देवीपुराणमें मुख्यरूपसे देवीके माहात्म्य एवं उनके विभिन्न चरित्रोंकी प्रधानता है, इसी कारण तथा तुलसी आदि रूपोंमें विवर्तित होनेके रोचक आख्यान विस्तारसे आये हैं। साथ ही तुलसी, आमलक, बिल्वपत्र तथा रुद्राक्षकी महिमाका भी विस्तारसे निरूपण हुआ है। अन्तमें शिव शक्त्यात्मक पावि अन्य लिंगोंकी पूजन विधि, उपासना, आराधना एवं महिमा उपवर्णित है। इसे देवीपुराण कहा गया है। इसमें मूल प्रकृति भगवती आद्याशक्तिके गंगा, पार्वती, सावित्री, लक्ष्मी


महाभागवत (देवीपुराण) वेदव्यासकी रचनाओंमें उपपुराण होते हुए भी पूर्णरूपसे महिमामण्डित है, इसमें ८१ अध्याय और प्रायः ४५०० श्लोक हैं। वस्तुतः इस उपपुराणका नाम 'महाभागवत' ही है, परंतु भगवती महादेवीके चारुचरितोंका ही इसमें मुख्यतः प्रतिपादन होनेके कारण इसे देवीपुराण भी कहा गया है। वैसे 'देवीपुराण' नामक अन्य प्राचीन उपपुराण भी मिलता है, जिसमें १२८ अध्याय हैं। उसके बचन भी धर्मशास्त्रीय ग्रन्थोंमें मिलते हैं। 'बृहद्विवेक' प्रभृति ग्रन्थोंमें 'महाभागवत' तथा 'देवीपुराण' दोनोंको हो पृथक् पृथक् उपपुराण मानकर गणना की गयी है। दोनों ही पुराणोंका अपना विशिष्ट महत्त्व है, जिज्ञासु पाठकोंको नाम सादृश्यसे भ्रमित नहीं होना चाहिये।


यह पुराण अधिक प्रचलित न होनेके कारण इसकी मूल प्रतियाँ भी सर्वत्र उपलब्ध नहीं हैं तथा इसका अनुवाद भी उपलब्ध न होनेके कारण मूल श्लोकोंका हिन्दी अनुवाद मौलिकरूपसे किया गया। इसका संशोधन, परिवर्द्धन भी विद्वतगणोंके द्वारा सम्पन्न हुआ है। इस पुराणका अनुवाद करनेमें मूल श्लोकोंक भावोंको स्पष्ट करनेका विशेष ध्यान रखा गया है। भावोंके स्पष्टीकरणकी दृष्टिसे कुछ आवश्यक टिप्पणियाँ भी दी गयी हैं।


कल्याण वर्ष ७९ (सन् २००५ ई०) में महाभागवत [ देवीपुराण ] -का सानुवाद प्रकाशन विशेषाङ्कके रूपमें किया गया है। इस महत्त्वपूर्ण पुराणकी विशेष माँग होनेके कारण तथा सतत उपलब्धि बनाये रखनेके लिये उद्देश्यसे इसका पुस्तकरूपमें पुनः प्रकाशन किया जा रहा है। आस्तिकजन इस महाभागवत (देवीपुराण) को पढ़कर लाभ उठावें और लोक-परलोकमें सुख-शान्ति तथा मानव-जीवनके परम लक्ष्यको प्राप्त करें - यही प्रार्थना है। मानव जीवनका लक्ष्य है आत्मोद्धार करना । इस लक्ष्यकी सिद्धि इस पुराण में वर्णित आचारके श्रद्धापूर्वक सेवनसे प्राप्त हो सकती है। इस देवीपुराणके समस्त उपदेशों और कथानकका सार यही है कि हमें आसक्तिका त्यागकर कर्तव्य-कर्मोंको करते हुए वैराग्यकी ओर प्रवृत्त होना चाहिये तथा सांसारिक बन्धनोंसे मुक्त होनेके लिये एकमात्र विश्वसृष्ट्री पराम्बा भगवतीकी शरण ग्रहण करते हुए उनकी उपासनामें संलग्न होना चाहिये। इस लक्ष्यकी प्राप्ति पराम्बा भगवतीकी भक्तिद्वारा किस प्रकार हो सकती है, इसकी विशद व्याख्या भी इस पुराणमें वर्णित हुई है। यदि इसके अध्ययनसे जनता-जनार्दनको आत्मकल्याणकी प्रेरणा किसी भी रूपमें प्राप्त हुई, तो यह भगवान्‌की बड़ी कृपा होगी, श्रम सार्थक होगा। - राधेश्याम खेमका

महाभागवत [ देव


 विषय

Mahabhagwat katha. Devi Bhagwat katha hindi mein.

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महाभागवत देवीपुराण की कथा सूची हिंदी में. 


 कराना (क) महाभागवत [ देवीपुराण]-सिंहावलोकन 


१- श्रीसू-शौनक-संवाद महाभारत [देवीपुराण] का प्रारम्भ महाभागवतको रचना के लिये श्रीवेदव्यासद्वारा भगवती दुर्गाको उपासना, भगवतीका प्रकट होकर अपने चरणतलमें स्थित सहस्रदलकमल में परमाक्षरोंमें उत्कीर्ण [देवीपुराण ]- का व्यासजीको दर्शन और पुनः व्यासद्वारा महाभागवतकी रचना


 २- महामुनि जैमिनिद्वारा श्रीवेदव्यासजी शिव-नारद-संवाद के रूपमें वर्णित माहात्म्य वाले महाभागवतको सुनको प्रार्थना करना


 ३- देवीमाहात्म्य वर्णन, देवद्वारा त्रिदेवों सूयादिके कार्योंमें नियुक्त करना आदिशक्तिका राजा आदि पाँच रूपमें विभक्त होना, ब्रह्माजीके शरीरसे म्यु तथा शतरूपाका प्रादुर्भाव, दक्षको कन्याओं सृष्टिका विस्तार, आदिशक्तिद्वारा भगवान् शंकरको भार्या रूपमें प्राप्त होनेकावर प्रदान करना


 ४- दक्षप्रजापतिको तपस्या से प्रसन्न भवत शिवाका 'सती' नामसे उनकी पुत्र रूपमें जन्म लेना भगवती सती एवं भगवान् शिवको परस्पर प्रोति


 १- दक्षप्रजापतिको शिवके प्रति द्वेषबुद्धि मह दधीचिद्वारा दक्षको समझाना तथा शिवके माहात्म्यको बताया


 ६- सतोके साथ भगवान् शिवका हिमालय

रेः ॥


 ग] की विषय-सूची


 पृष्ठ संख


 विषय


 श्री


 [ उ


 पर्वतपर आना, सभी देवोंका हिमालयपर विवाहोत्सवमें पहुँचना, नन्दीद्वारा हिमालयपर आकर शिवकी स्तुति करना और शंकरद्वारा उनको प्रमथाधिपतिपद प्रदान करना


 ७- भगवती सती तथा भगवान् शिवका आनन्द विहार, दक्षद्वारा यज्ञ करने और उसमें शंकरको न बुलानेका निश्चय करना, महर्षि। दधीचिद्वारा दक्षकी निन्दा, नारदजीद्वारा सतीको पिताके यज्ञमें जानेके लिये प्रेरित करना


 ८- भगवान् शंकरद्वारा सतीका दक्षके घर जानेको अनुचित बताना, देवी सतीके विराट्रूपको देखकर शंकरका भयभीत होना, सतीद्वारा काली, तारा आदि अपने दस स्वरूपों (दस महाविद्याओं) को प्रकट करना, देवीका यज्ञ भूमिके लिये प्रस्थान


 ९- सतीका पिताके घर पहुँचना, माता प्रसूतिद्वारा सतीका सत्कार करना तथा यज्ञ-विध्वंसके भयंकर स्वप्नको सुनाना, दक्षद्वारा शिवकी निन्दा, क्रुद्ध सतीद्वारा छायासतीका प्रादुर्भाव और उसे यज्ञ नष्ट करनेकी आज्ञा देकर अन्तर्धान हो जाना, छायासतीका यज्ञकुण्डमें प्रवेश


 १०- सतीके यज्ञकुण्ड - प्रवेशका समाचार सुनकर भगवान् शंकरका शोकसे विह्वल होना, उनके तृतीय नेत्रकी अग्निसे वीरभद्रका प्राकट्य, वीरभद्रद्वारा दक्षका यज्ञ-विध्वंस कर उनका सिर काटना, ब्रह्माजीका भगवान्।

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 शंकरसे यज्ञ पूर्ण करनेकी प्रार्थना करना, भगवान् शंकरको कृपासे दक्षका जीवित होना


 ११- त्रिदेवोंद्वारा जगदम्बिकाकी स्तुति करना, देवीका भगवान् शंकरको पार्वतीरूपमें पुनः प्राप्त होनेका आश्वासन देना, छायासतीकी देह लेकर शिवका प्रलयंकारी नृत्य करना, भगवान् विष्णुका सुदर्शन चक्रसे सतीके अङ्गको काटना और उनसे इक्यावन शक्तिपीठोंका प्रादुर्भाव


 १२- शंकरजीका योनिपीठ कामरूप (कामाख्या) में जाकर तपस्या करना, जगदम्बाद्वारा प्रकट होकर शीघ्र ही गङ्गा तथा हिमालयपुत्री पार्वतीके रूपमें आविर्भूत होनेका उन्हें वर प्रदान करना, भगवान् शंकरद्वारा इक्यावन शक्तिपीठोंमें प्रधान कामरूपपीठके माहात्म्यका प्रतिपादन -


 १३-मेनकाके गर्भके अधशसे गङ्गाके प्राकट्यका आख्यान, देवर्षि नारदद्वारा हिमालयको गङ्गाका माहात्म्य सुनाना, ब्रह्मादि देवताओंद्वारा हिमालयसे भगवती गङ्गाको ब्रह्मलोक ले जानेकी याचना करना


 १४- ब्रह्माजीका गङ्गाजीको कमण्डलुमें लेकर स्वर्गमें आना, मातासे मिले बिना गङ्गाके स्वर्गलोक चले जानेपर क्रुद्ध मेनाद्वारा उन्हें जलरूप होकर पुनः पृथ्वीलोक आनेका शाप देना, स्वर्गलोकमें देवी गङ्गासे भगवान् शंकरका विवाह


 १५ - हिमालय और मेनाकी तपस्यासे प्रसन्न हो आद्यशक्तिका 'पार्वती' नामसे हिमालयके यहाँ प्रकट होना और उन्हें दिव्य विज्ञानयोगका उपदेश प्रदान करना (भगवतीगीताका प्रारम्भ)

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 विषय


 आत्माका तथा १६- भगवतीगीताके वर्णनमें ब्रह्मविद्याका उपदेश, अनात्मपदार्थों में स्वरूप, आत्मबुद्धिका परित्याग, शरीरकी नश्वरताका प्रतिपादन तथा अनासक्तयोगका वर्णन १७-भगवतीगीताके वर्णनमें ब्रह्मयोगका उपदेश, पाञ्चभौतिक देह, गर्भस्थ जीवका स्वरूप तथा गर्भमें की गयी जीवकी प्रतिज्ञा, मायासे आबद्ध जीवका गर्भसे बाहर आनेपर अपने वास्तविक स्वरूपको भूल जाना, विषयभोगोंकी दुःखमूलता देवीभक्तिकी महिमा


 १८- भगवतीगीताके वर्णनमें मोक्षयोगका उपदेश, देवीके स्थूल स्वरूपोंमें दस महाविद्याओंका वर्णन, इन स्वरूपोंकी आराधनासे मोक्षकी प्राप्ति, अनन्य शरणागतिकी महिमा


 १९- हिमालयको तत्त्वज्ञानका उपदेश प्रदान कर देवीका सामान्य बालिकाकी भाँति क्रीड़ा करना, गिरिराजद्वारा जन्म महोत्सव, षष्ठी महोत्सव तथा नामकरण आदि उत्सवोंको सम्पादित भगवतीगीता (पार्वतीगीता) - के पाठकी महिमा करना,


 २०- भगवतीका विविध बालोचित लीलाओं द्वारा हिमालय तथा मेनाको आनन्दित करना, देवर्षि नारदद्वारा देवीके माहात्म्यका वर्णन ---


 २१- शंकरजीका सतीको पुनः पत्नीरूपमें प्राप्त करनेके लिये हिमालयपर तपस्यामें स्थित होना, दोनों सखियोंके साथ देवी पार्वतीको लेकर हिमालयका वहाँ जाना


 २२- ब्रह्माजीका तारकासुरसे पीड़ित देवताओंको भगवान् शंकरके पुत्रद्वारा उसके वधकी बात बतलाना, इन्द्रद्वारा भगवान् शंकरकी तपस्याको भंग करनेके लिये कामदेवको हिमालयपर भेजना, भगवान् शंकरकी

विषय


 पृष्ठ


 ध्यान २३- भगवतीका कालीरूपमें भगवान् शंकरको दर्शन देना, भगवान् शंकरद्वारा कालीके चरणकमलोंको हृदयमें धारणकर उनका करना तथा सहस्रनाम (ललितासहस्रनामस्तोत्र) - द्वारा देवीकी स्तुति


 नेत्राग्निसे उसका भस्म होना


 २४- भगवान् शंकरद्वारा पार्वतीके समक्ष विवाहका प्रस्ताव रखना, मरीचि आदि ऋषियोंका हिमालयके पास जाकर अपनी पुत्री भगवान् शंकरको समर्पित करनेका परामर्श देना तथा हिमालयद्वारा इसकी स्वीकृति


 २५- मरीचि आदि महर्षियोंद्वारा भगवान् शंकरका विवाह-स्वीकृतिका शुभ समाचार सुनाना, विवाहके लिये वैशाख शुक्लपक्षकी पञ्चमी तिथि निश्चित होना, देवर्षि नारदद्वारा ब्रह्मादि देवताओंको विवाहका निमन्त्रण देना


 २६- हिमालयके घरमें विवाहका उपक्रम प्रारम्भ, भगवान् शंकरके यहाँ सभी देवताओंके आगमनपर हर्षोल्लास


 २७ - ब्रह्मा, विष्णु तथा रतिद्वारा प्रार्थना करनेपर भगवान् शंकरका कामदेवको पुनः जीवित करना, ब्रह्माजीके निवेदनपर भगवान् शंकरका विवाहके लिये सौम्यरूप धारण करना और बड़े उल्लासके साथ शिव बारातका प्रस्थान


 २८ - हिमालयद्वारा बारातका यथोचित सत्कार करना, शिव-पार्वतीके माङ्गलिक विवाहोत्सवका वर्णन, शिव-पार्वतीके विवाहोत्सवके पाठकी महिमा


 २९- शिव-पार्वतीका एकान्त-विहार, पृथ्वीदेवीका गोरूप धारण कर देवताओंके

विषय


 साथ ब्रह्माजीके पास जाना, ब्रह्माजीका उन्हें आश्वस्त करना और कुमार कार्तिकेयके प्रादुर्भाव होनेकी बात बताना


 ३०-देवताओंद्वारा देवी पार्वतीकी स्तुति, भगवान् शंकरके तेजसे षण्मुख कार्तिकेयका प्रादुर्भाव, देवताओंका हर्षोल्लास


 ३१- कुमार कार्तिकेयका तारकासुरके विनाशके लिये ससैन्य उद्यत होना, ब्रह्माजीद्वारा उन्हें वाहनके रूपमें 'मयूर' तथा अमोघ शक्ति प्रदान करना, कार्तिकेयको देवसेनाका सेनापतित्व प्राप्त होना


 ३२- देवासुर संग्राममें देवसेनापति कार्तिकेय


 तथा तारकासुरका भीषण युद्ध १३ कार्तिकेयजीद्वारा तारकासुरका वध,


 देवसेनामें हर्षोल्लास


 १४- देवताओंद्वारा कार्तिकेयकी वन्दना, ब्रह्माजी के साथ कार्तिकेयका अपने माता-पिताके पास कैलास आना, भगवान् विष्णुद्वारा पुत्ररूपमें माँ पार्वतीका वात्सल्य प्राप्त करनेकी अभिलाषा प्रकट करना, महादेवीद्वारा 'अभिलाषा पूर्ण होगी' इस प्रकारका वर प्रदान करना


 ५- गणेशजन्मकी कथा, पार्वतीद्वारा अपने उबटनसे विष्णुस्वरूप एक पुत्रकी उत्पत्ति कर उसे नगररक्षकके रूपमें नियुक्त करना, भगवान् शंकरद्वारा अनजानमें त्रिशूलद्वारा उस बालकका सिर काटना, पार्वतीका पुत्रवियोगसे दुःखी होना, भगवान् शंकरद्वारा एक गजराजका सिर काटकर पुत्रके धड़से जोड़ा जाना और पुत्रका जीवित होना, उसी बालक गणेशका गणपति-पदपर नियुक्त होना ३- रामोपाख्यानका प्रारम्भ, देवी कात्यायनीकी आराधनासे रावणका त्रैलोक्यविजयी

पृष्ठ-र


 विषय


 होना, ब्रह्माजीकी प्रार्थनापर विष्णुका रामके रूपमें अवतरित होनेका आश्वासन देना तथा जगदम्बाद्वारा रावणके वधका उपाय बताना


 ३७- शिवजीद्वारा हनुमानुरूपमें प्रकट होनेकी बात बताना, विष्णुका महाराज दशरथके घरमें राम, लक्ष्मण, भरत तथा शत्रुघ्रके रूपमें प्रकट होना, लक्ष्मीका सीताके रूपमें तथा अन्य देवगणोंका ऋक्ष, वानर आदि रूपोंमें प्रकट होना


 ३८- भगवान् श्रीरामकी ऐश्वर्य-लीलाएँ, विश्वामित्रके यज्ञकी रक्षा, जनकपुरी जाकर शिवधनुषको तोड़ना तथा विवाह, श्रीरामका वनवास, भरतद्वारा नन्दिग्राममें मुनिवृत्तिसे निवास करना, लक्ष्मणका शूर्पणखाके नाक-कान काटना, रावणद्वारा सीताका हरण


 ३९ - सीताजीके शोकमें श्रीरामका विलाप, सुग्रीवसे मैत्री, हनुमान्जीद्वारा समुद्र-लंघन तथा अशोक वाटिका में श्रीसीताजीका दर्शन, हनुमान्जीकी प्रार्थनापर लङ्कामें प्रतिष्ठित जगदम्बाद्वारा …

विषय


 उपासना करनेका परामर्श देना


 २- ब्रह्माजीका श्रीरामको कृष्णपक्षमें ही देवीकी पूजा करनेका आदेश देना तथा स्वयंके चतुर्मुख होनेका पूर्वप्रसंग सुनाना, ब्रह्मा, विष्णु और शिवद्वारा देवीकी स्तुति


 ३ - ब्रह्माजीद्वारा श्रीरामसे देवीकी सर्वव्यापकता तथा विभिन्न दिव्य लोकोंका वर्णन करना, देवीके लोक तथा उनके स्वरूपका वर्णन, श्रीरामद्वारा जगज्जननी जगदम्बाका पूजन


 ४- श्रीरामद्वारा भगवतीकी स्तुति, प्रसन्न होकर जगदम्बाद्वारा विजयकी आकाशवाणी करना, कुम्भकर्णका युद्धभूमिमें प्रवेश तथा श्रीरामके साथ उसका घोर युद्ध -श्रीरामकी विजयहेतु ब्रह्माजी तथा देवगणोंका


 देवीकी आराधना करना, देवीद्वारा राक्षसंकि वधका वरदान देना


 -भगवती जगदम्बिकाद्वारा शारदीय पूजाविधानका निरूपण तथा उसके माहात्म्य


 एवं फलका कथन


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 - श्रीरामद्वारा भगवती जगदम्बिकाका पूजन, कुम्भकर्ण, अतिकाय तथा मेघनादका वध, श्रीरामका विल्ववृक्षमें देवेश्वरीका पूजन करना, भगवतीका श्रीरामको अमोघ अस्त्र प्रदान करना, रावणवध तथा श्रीरामकी जय-जयकार


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 -- -श्रीराम और देवगणोंद्वारा देवीका स्तवन, ब्रह्माजीद्वारा भगवतीका पूजन, देवीके शारदीय पूजा-अनुष्ठानकी अनिवार्यता- -भगवान् शिवका भगवतीसे पुरुषरूपमें अवतार लेनेकी प्रार्थना करना तथा स्वयं राधा और आठ पटरानियोंके रूपमें अवतरित होनेका आश्वासन देना, भगवतीका स्वयं कृष्णरूपसे तथा भगवान् विष्णुका


 २६६

विषय


 पृष्ठ-


 ३२


 अवतार महाभारतयुद्धमें दुष्ट राजाओंका वध करनेकी बात बताना


 ३


 अर्जुनरूपसे


 लेने और


 ५०-कश्यप और अदितिका वसुदेव-देवकीके रूपमें जन्म, कंसद्वारा देवकीके छः पुत्रोंका वध, देवीका कृष्णरूपमें देवकीके गर्भसे जन्म लेना और सिंहवाहिनीरूपमें आकाशमें स्थित हो कंसकी मृत्युको भविष्यवाणी कर अन्तर्धान होना


 ५१ - पूतनाका गोकुलमें आना और कृष्णद्वारा दूधसहित उसके प्राणोंका पान करना, तृणावर्तका कृष्णको उड़ाकर ले जाना और कालीरूपमें कृष्णद्वारा उसका वध करना, भगवान् शिवका राधा नामसे स्त्रीरूपमें प्रकट होना


 ५२-प्रजापति दक्ष और प्रसूतिको उग्र तपस्या तथा वरप्राप्ति, दक्ष और प्रसूतिका गोकुलमें नन्द और यशोदाके रूपमें जन्म लेना --


 ५३- भगवान् श्रीकृष्णकी बाललीला- धेनुकासुरवध, कालियामर्दन, रासलीला तथा वृषभासुरवध


 ५४ नारदजीका कंसको श्रीकृष्णके देवकीपुत्र होनेकी बात बताना, अक्रूरका गोकुलसे श्रीकृष्ण और बलरामको ले आना, कुवलयापीड, चाणूर और मुष्टिकका वध, श्रीकृष्णद्वारा कालिकारूपसे कंसका संहार करना तथा उग्रसेनका राज्याभिषेक कर माता-पिताको बन्धनमुक्त करना


 ५५- स्वयंवरमें न बुलाये जानेपर श्रीकृष्णद्वारा रुक्मिणीका हरण, राजसूययज्ञके लिये पाण्डवोंकी विजययात्रा तथा जरासन्धवध, राजसूययज्ञमें कृष्णकी प्रथम पूजाका शिशुपालद्वारा विरोध तथा उसका वध, द्यूतक्रीड़ामें हारकर पाण्डवोंका वनवास-

विषय


 पृष्ठ-स


 (५६- पाण्डवोंद्वारा भगवतीकी स्तुति, भगवतीद्वारा प्रसन्न होकर विजयका आशीर्वाद देना, पाण्डवोंका अज्ञातवासके लिये राजा विराटके नगरमें जाना, भीमद्वारा कीचक और उपकीचकोंका वध, अभिमन्यु- विवाह


 ५७ महाभारतयुद्धका वर्णन


 ५८- श्रीकृष्ण, बलराम, पाण्डवों तथा अन्य


 वृष्णिवंशियोंका स्वर्गगमन


 ५९-महाकालीके दिव्य लोकका वर्णन ६०- वृत्रासुरके वधके लिये देवराज इन्द्रका दधीचिसे अस्थियाँ माँगना, दधीचिका प्राण त्याग, इन्द्रद्वारा दधीचिकी अस्थियोंसे वज्र बनाकर वृत्रासुरका संहार


 ६१- इन्द्रका ब्रह्महत्याके पापसे ग्रस्त होना, महर्षि गौतमकी सम्मतिसे इन्द्रका ब्रह्मलोक जाना तथा इन्द्र और ब्रह्माका वैकुण्ठलोक जाना


 ६२- भगवान् विष्णुका इन्द्रसे महाकालीके लोकके विषयमें अनभिज्ञता व्यक्त करना; ब्रह्मा, विष्णु और इन्द्रका शिवलोक जाना तथा भगवान् शिवके साथ भगवती महाकालीके लोकमें जाना


 ६३- ब्रह्मा, विष्णु और शिवका महाकालीके दर्शन करना, ब्रह्मा और विष्णुद्वारा भगवती महाकालीकी स्तुति, भगवतीका इन्द्रको दर्शन देना तथा इन्द्रका ब्रह्महत्याजनित पापसे मुक्त होना


 ६४-भगवान् शंकरके गायनसे विष्णुका द्रवीभूत होना, ब्रह्माजीद्वारा उस द्रवरूप गङ्गाको अपने कमण्डलुमें धारण करना, भगवती


 गङ्गाका द्रवमयी हो पृथ्वीपर आना --- ६५- भगवान् विष्णुका वामनरूपमें अवतार लेकर राजा बलिसे तीन पग भूमिका दान लेना,

विषय


 तीन पगों में सम्पूर्ण ब्रह्माण्डको नापकर बलिको पाताल भेज देना


 ६६ - ब्रह्माजीद्वारा भगवती गङ्गाकी प्रार्थना करना तथा गङ्गाद्वारा पुनः तीनों लोकों में आनेका आश्वासन देना, भगीरथद्वारा भगवान् विष्णु, भगवती गङ्गा और भगवान् शिवकी आराधना


 ६७- भगीरथद्वारा अनेक नामोंसे भगवान शिवका स्तवन तथा मनोभिलषित वरकी प्राप्ति, शिवसहस्त्रनामस्तोत्र पाठका माहात्म्य:


 ६८- भगवती गङ्गाका भगवान् विष्णुके चरणकमलोंसे निकलकर सुमेरु पर्वतपर आना, पृथ्वीद्वारा गङ्गाकी स्तुति, इन्द्रकी प्रार्थनापर गङ्गाकी एक धाराका स्वर्गमें प्रतिष्ठित होना तथा दूसरी धाराका सुमेरुके दक्षिण शिखरका भेदन करना


 ६९ भगवान् शंकरके जटाजूटसे निकलकर गङ्गाका भूतलपर आगमन, मेना और हिमालयद्वारा उनका पूजन


 ७०- भगवती भागीरथीका हरिद्वार, प्रयाग होते हुए काशी-आगमन, जऋषिके आश्रममें जाना और फिर समुद्रतटपर


 पहुँचना ७१- भगवती गङ्गाका पाताललोकमें प्रवेश कर सगरपुत्रोंका उद्धार करना


 १- श्रीसूतजीका शौनकादि ऋषियोंको महाभागवत [देवीपुराण ]- की कथा सुनाना


 २- महामुनि जैमिनिके निवेदन करनेपर श्रीव्यासजीद्वारा भगवती-माहात्म्यका वर्णन करना


 ३- देवर्षि नारदद्वारा भगवान् शिव एवं

विषय


 श्राद्ध, जप, दान तथा तर्पणका माहात्म्य और काशीकी महिमा


 (७२- गङ्गाजीके स्मरण, दर्शन और स्नानका माहात्म्य, गङ्गाजीकी महिमाके संदर्भ में सर्वान्तक व्याधका आख्यान ७३- गङ्गास्नानकी महिमा, गङ्गाके समीप :


 ७४- गङ्गामाहात्म्य-कथनके प्रसंगमें धनाधिप वैश्यकी कथा ७५ गङ्गाजीका अष्टोत्तरशतनामस्तोत्र


 तथा


 उसका माहात्म्य


 ७६-कामरूपतीर्थ (कामाख्या शक्तिपीठ)- के माहात्म्यका वर्णन


 ७७-कामरूपतीर्थमें प्रतिष्ठित दस महाविद्याओंका वर्णन तथा कामाख्याकवच


 ७८-कामाख्यादेवी तथा सदाशिव भगवान् शंकरकी उपासनाका विशेष महत्त्व, बिल्वपत्र तथा बिल्ववृक्षकी महिमा एवं कामाख्यापीठका माहात्म्य


 ७९- तुलसी, बिल्व और आँवलावृक्षका


 माहात्म्य


 ८० रुद्राक्षका माहात्म्य तथा उसके धारणका


 फल ८१- कलियुगके मानवोंका स्वभाव तथा भगवान् शंकरकी उपासना और शिवनामसंकीर्तनकी


 महिमा


 - चित्र )


 श्रीविष्णुकी स्तुति करना


 ४- दक्षप्रजापतिद्वारा भगवतीकी आराधना


 ५- मेनाका देवी सतीको पुत्रीरूपमें प्राप्त करनेहेतु उनसे प्रार्थना करना


 ६- दक्षद्वारा भगवान् विष्णुसे यज्ञकी रक्षाके लिये प्रार्थना

विषय


 पृष्ठ-न


 ७- भगवान् शिवद्वारा देवी सतीको पिताके यज्ञमें न जानेका परामर्श देना


 ८- भगवान् शिवका वीरभद्रको प्रकट करना - ९- दक्षद्वारा भगवान् शिवकी प्रार्थना


 १०- हिमवानद्वारा तपस्यारत शिवजीके पास


 जाकर उनकी प्रार्थना करना


 ११- देवराज इन्द्र और देवगुरु बृहस्पतिद्वारा तारकासुर वधके लिये विचार करना --


 १२- देवराज इन्द्रका कामदेवको भगवान् शिवको समाधि-भङ्ग


 करनेके लिये कहना १३- कामदेवका समाधिस्थ शिवजीपर पुष्पबाण छोड़ना


 १४- सप्तर्षियोंका भगवान् शंकरके पास


 पहुँचना १५- भगवती पार्वती एवं भगवान् शिवका विवाह


 १६- गोरूपा पृथ्वीका देवताओंके साथ श्रीब्रह्माजी से अपना दुःख निवेदन करना १७- शिवपुत्र कार्तिकेयद्वारा तारकासुरपर शक्ति- प्रहार


 १८- श्रीगणेशजीका प्रादुर्भाव


 १९- शूलपाणि भगवान् शंकरद्वारा चलाये गये शूलसे गणेशका मस्तक कटना


 २०- श्रीब्रह्माजीद्वारा भगवान् विष्णुसे दुष्ट रावणको मारनेके लिये मनुष्य शरीर धारण करनेकी प्रार्थना करना


 २१- श्रीरामका सीता एवं लक्ष्मणके साथ वनवासके लिये अयोध्यासे निकलना


 २२- भरत एवं शत्रुघ्नका नगरवासियों सहित भगवान् श्रीरामके पास वनमें जाना २३- शूर्पणखाका रावणसे अपनी व्यथा कहन


 २४- श्रीहनुमान्जीको अशोकवाटिका में भगवती सीताका दर्शन


 २५ - श्रीहनुमान्जीके द्वारा अशोकवाटिका-

विषय


 पृष्ठ-


 विध्वंस


 २६-सुग्रीवकी आज्ञासे मयपुत्र नलद्वारा समुद्रमें।


 सेतुका निर्माण करना २७- त्रिदेवोंद्वारा भगवतीकी स्तुति


 २८- श्रीरामद्वारा भगवती कात्यायनीकी स्तुति


 २९- ब्रह्माजीद्वारा भगवती सुरेश्वरीका प्रबोधन ३०-जगदम्बिकाद्वारा देवताओंको शारदीय- पूजाकी महिमा बताना


 ३१- भगवान् श्रीरामद्वारा रावणका वध --- ३२- श्रीसीता-लक्ष्मण तथा वानरोंके साथ भगवान् श्रीरामका पुष्पक विमानपर आरूढ़ हो अयोध्याके लिये प्रस्थान


 ३३- देवर्षि नारदका


 भगवान् शिवसे श्रीकृष्णचरित सुनानेकी प्रार्थना करना


 ३४- आकाशवाणी सुनकर कंसका देवकीको


 मारनेके लिये उद्यत होना


 ३५- भगवतीद्वारा


 वसुदेव-देवकीको


 श्रीकृष्णरूपमें दर्शन देना


 ३६- वसुदेवजीका बालक कृष्णको लेकर गोकुलके लिये प्रस्थान करना


 ३७- श्रीवसुदेवजीका श्रीकृष्णको यशोदाके पास सुलाकर भगवतीको लेकर लौटना


 ३८- दुरात्मा कंसका रक्षकोंसे कन्याको शीघ्र


 लानेका आदेश देना


 ३९ - योगमायाका कंसके हाथसे छूटकर अन्तरिक्षमें स्थित होना


 ४०-पूतनाका उद्धार


 ४१ - वंशीकी ध्वनि सुनकर गोपिकाओंका घरका काम-काज छोड़कर श्रीकृष्णके पास आना


 ४२- भगवान् श्रीकृष्णका श्रीराधाजीके साथ अन्तरिक्षमें रासलीला करना


 ४३- अक्रूरका श्रीकृष्ण-बलरामको मथुरा ले जानेके लिये आना

विषय


 ४४- श्रीकृष्ण-बलरामको मथुरा जाते देखकर गोपाङ्गनाओंका रोना


 ४५- वसुदेव-देवकीको बन्धन मुक्त करना --


 ४६-रुक्मिणी हरण ४७- राजसूययज्ञमें पाण्डवोंद्वारा भगवान्


 श्रीकृष्णका प्रथम पूजन


 ४८- शिशुपाल वध


 ४९ पाण्डवोंद्वारा भगवती कामाख्याको प्रार्थना करनेपर भगवतीका उन्हें विजयी होनेका


 आशीर्वाद देना ५०-अज्ञातवासके समय युधिष्ठिरका राजा


 विराटके पास जाना


 ५१ कीचकके पूछने पर सुदेष्णाका सैरन्ध्रीके


 विषयमें बताना ५२-सुदेष्णाका सैरन्ध्रीको कीचकके महलमें


 जानेके लिये कहना ५३-कीचकको मारनेके लिये द्रौपदी एवं


 भीमसेनकी मन्त्रणा


 ५४ कीचकको मृत्युपर उपकीचकोंका विलाप


 ५५- द्रौपदी एवं राजा विराटकी बातचीत--


 ५६ विराटकी गौओंकी रक्षा के लिये अर्जुनका युद्ध करना तथा उसमें भीष्म, द्रोण आदिकी


 पराजय


 ५७- श्रीव्यासजीद्वारा धृतराष्ट्रको महाभारत-

१२]


 विषय


 युद्ध न होने देनेके लिये समझाना ५८- श्रीकृष्ण एवं अर्जुनका शङ्खनाद


 ५९ शरशय्यापर पितामह भीष्म


 ६०- देवराज इन्द्रका मुनि दधीचिसे उनकी अस्थियोंको माँगना


 ६१ - गुरु शुक्राचार्य के मना करनेपर भी बलिद्वारा वामनरूपधारी श्रीविष्णुको तीन पग भूमिका


 दान करना


 ६२-भगीरथका गङ्गाजीसे अपने पूर्वजोंके उद्धारकी प्रार्थना करना


 ६३-कैलासपति भगवान् शंकर


 ६४ - सहस्रनामद्वारा स्तुति करनेपर राजर्षि भगीरथको भगवान् शिवके दर्शन


 ६५-ब्रह्मकमण्डलु तथा भगवान् विष्णुके चरणकमलसे निकलकर भगवती गङ्गाका मेरुशिखरपर गिरना


 ६६-भागीरथी गङ्गाका प्रयोग-आगमन ६७-भगवती गङ्गाका काशी पहुँचना


 ६८- गङ्गाके सांनिध्यमें किये गये जप-दान-


 होम आदि कर्मोंकी कृतार्थता


 ६९ - भगवती तुलसीको प्रणाम


 ७०-तुलसी-मञ्जरीसे भगवान् विष्णुका पूजन


 ७१ भगवान् शिव-पार्वतीका पूजन तथा नाम-


 संकीर्तन

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