रिसर्च -शोध :- सिन्धु घाटी की सभ्यता की खोज और विशेषताएं. research Indus valley in hindi

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 सिन्धु घाटी सभ्यता और उसकी खोज:-


sindhu ghati sabhytaa ya Indus valley civilization ke bare mein hindi mein jaankari


सन १९२० तक यह माना जाता था कि भारत की प्राचीनतम सभ्यता वैदिक सभ्यता थी और पाश्चात्य विद्वान उसे अधिक से अधिक ईसा से १५०० वर्ष पुरानी मानते थे। इससे पहले के काल के बारे में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं थी। लेकिन सन् १९२२ मे सिन्ध के लारकाना जिले में मोहन-जो-दड़ो की और मिटगुमरी जिले में हड़प्पा की खुदाई हुई। इन खुदाइयों में सिन्धु घाटी की प्राचीन सभ्यता के अवशेष — नगर, सड़कें, नालियां, मुहरें आदि – पाये गये हैं। इस सभ्यता की खोज का श्रेय श्री राखालदास बनर्जी और श्री दयाराम साहनी को और भारत के तत्कालीन पुरातत्त्व विभाग के अध्यक्ष जात मार्शल को दिया जाता है ।


रिसर्च -शोध :- सिन्धु  घाटी की सभ्यता की खोज और विशेषताएं.  research Indus valley in hindi


sindhu ghati sabhyta in hindi

Indus valley in hindi


सिन्धु घाटी की सभ्यता का काल -  (period of sindhu ghati civilization) 


सिन्धु घाटी की सभ्यता का काल ईसा पूर्व २८०० से ईसा पूर्व २२०० के आसपास माना जाता है। मोहन जोदड़ो की खुदाई में बस्तियों के अवशेषों के सात स्तर पाये गये हैं। इनमें से तीन अपेक्षाकृत बाद के तीन मध्य काल के और एक स्तर उनसे भी पुराने काल का है। हो सकता है कि इसके नीचे भी बस्ती के पुराने अवशेषों का कोई स्तर और भी हो। पर पानी निकल आने के कारण और नीचे खुदाई कर पाना अभी तक संभव नहीं हुआ है। इस सभ्यता के काल का अनुमान उक्त स्तरों के आधार पर ही लगाया गया है।


सिन्धु घाटी सभ्यता का महत्त्व -  (importance of Indus valley civilization in hindi)

इतिहासकार  डॉ० रमेशचन्द्र मजूमदार के शब्दों में, "इस सभ्यता के अन्वेषण ने भारतीय इतिहास सम्बन्धी हमारी धारणाओं में क्रान्तिकारी परिवर्तन कर दिया है। एक ही छलांग में भारतीय सभ्यता की प्राचीनता अधिक नहीं, तो ३००० ई० पू० तक पहुंच गई है । अब भारत की सभ्यता को प्राचीनता की दृष्टि से मिस्र, बाबुल, सुमेर और असीर की सभ्यताओं के समकक्ष माना जाने लगा है। सिन्धु घाटी सभ्यता का विस्तार क्षेत्र—इस सभ्यता के मोहन-जो-दड़ो और हड़प्पा आदि कई प्राचीन नगर सिन्धु घाटी में स्थित ये, इसलिए इसका नाम 'सिन्धु घाटी सभ्यता' पड़ा। परन्तु बाद में खुदाइयों में सिन्धु घाटी के बाहर भी ऐसे प्राचीन नगर मिले हैं, जिनमें यह सभ्यता विद्यमान थी। राजस्थान का काली बंगन और पंजाब का रोपड़ इनमें विशेष रूप के उल्लेखनीय हैं। मेरठ के पास आलमगीरपुर, इलाहाबाद के "पास कौशाम्बी, काठियावाड़ में लोयल, रंगपुर आदि में भी इस सभ्यता के अवशेष मिले हैं। कुछ विद्वानों का तो विचार है कि जिसे सिन्धु घाटी सभ्यता कहा जाता है, वह कर्नाटक, नीलगिरि तथा श्रीलंका तक फैली हुई थी।


सिन्धु घाटी सभ्यता की विशेषताएँ


नागरिक सभ्यता - सिन्धु घाटी की सभ्यता आयों की सभ्यता की भाँति ग्रामीण सभ्यता नहीं थी। यह नागरिक सभ्यता थी। लोग योजनापूर्वक बने नगरों में रहते थे । नगरों में सड़कें थीं; पक्के इकमंजिले और दुमंजिले मकान थे; जल निकास के लिए नालियां थीं, सार्वजनिक स्नानागार थे। अनाज संग्रह करने के लिये बड़े-बड़े गोदाम थे । सिन्धु घाटी सभ्यता के नागरिक समृद्ध लोग थे ।


नगर की बनावट — नगर योजनापूर्वक बसे होते थे। चौड़ी सड़कें और गलियाँ बिल्कुल सीधी बनी थी और समकोण पर एक दूसरी को काटती थीं। इससे सारा नगर वर्गाकार या आयताकार खण्डों में विभक्त हो जाता था। सबसे बड़ी सड़क की चौड़ाई १०। मीटर है। मकान सड़कों या गलियों पर एक सीध में बने हैं और उनमें से कोई भी सड़क या गली की भूमि पर बढ़ा हुआ नहीं है। हर गली में कुआं और दीपस्तम्भ हैं। नगर की रक्षा के लिए चारों ओर परकोटा है। जल निकास के लिये नालियों का बढ़िया प्रबन्ध था । सड़कें कच्ची थीं, पर उनके दोनों ओर पक्की नालियां बनी थीं, जो पानी को बहा ले जाती थीं ।


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मकानों की बनावट- इन नगरों में छोटे और बड़े, दोनों प्रकार के मकान मिले हैं। बड़े-बड़े मकान सम्भवतः सार्वजनिक भवन या उच्च पदाधिकारियों के निवास- स्थान थे । अन्य निवास स्थान भी दो प्रकार के हैं-धनी लोगों के बड़े-बड़े मकान और गरीबों के दो कमरों वाले छोटे मकान। कुछ मकान दोमंजिले होते थे और उनमें ऊपर चढ़ने के लिए सीढ़ियां बनी होती थीं। मकानों की दीवारें और नालियाँ पकाई गई ईंटों से बनी थीं। चिनाई चुने या मिट्टी के गारे से की जाती थी। डॉ० रमेशचन्द्र मजूमदार ने लिखा है कि "आधुनिक मानदण्डों से भी उनकी बनावट अत्यन्त सराहनीय है ।" कुछ मकान ७५ मीटर लम्बे और ३८ मीटर चौड़े भी मिले हैं।



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जलाशय और स्नानागार-मोहन-  मोहनजो-दड़ो में एक विशाल स्नानागार पाया गया है, जो ५२ मीटर लम्बा और ३४ मीटर चौड़ा है। इसमें एक स्नान कुंड (जलाशय) बना है, जो १२ मीटर लम्बा, ७॥ मीटर चौड़ा और २॥ मीटर गहरा है। इस जलाशय में उतरने के लिए सीढ़ियां बनी हैं। इसमें पानी भरने और निकालने के लिए नालियाँ भी बनी हुई हैं। इस कुंड के चारों ओर बरामदे तथा गलियारे बने हैं। अनुमान होता है कि यह सार्वजनिक स्नानागार था। डॉ० रमाशंकर त्रिपाठी ने लिखा है कि "इस स्नानागार के पास एक हम्माम भी हैं, जिससे प्रमाणित है कि वे स्नानार्थं गर्म जल को व्यवस्था भी जानते थे।""


धातुओं का प्रयोग – सिन्धु घाटी सभ्यता की ताम्र-पापाणिक (Chalcolithic) सभ्यता कहा जाता है, क्योंकि इस समय पत्थर के हथियारों, औजारों और भांडों के साथ-साथ तांबे और कांसे के हथियारों, औजारों और भांडों का भी प्रयोग होने लगा था। परन्तु लोहे का ज्ञान सिन्धु घाटी के लोगों को नहीं था ।सिन्धु घाटी के लोगों का जीवन-वे लोग खेती करते थे। गेहूँ और (जो के दाते खुदाई में पाये गये हैं। भोजन प्रचुर मात्रा में उपलब्ध था, तभी बड़े नगर बन सके थे । वहाँ मिली गुठलियों तथा पशुओं की हड्डियों से अनुमान किया गया है कि वे लोग खजूर, मछली, भेड़, सूअर, मगरमच्छ और बैल का मांस, दूध, फल, सब्जियाँ आदि खाते थे। गेहूं, जौ, धान, मटर और तिल उनके भोजन का अंग थे ।


पालतू पशु - सिन्धु घाटी के निवासी कई प्रकार के पशु पालते थे। वहाँ पाये गये अस्थि-पंजरों से यह प्रमाणित है कि वे गाय-वेल, भेड़, बकरी, भैंस, हाथी और सुअर पालते थे। डॉ० मंके का कथन है कि यह संदिग्ध है कि ऊँट वे लोग पालते थे या नहीं। इस सभ्यता के पिछले भाग में घोड़े और कुत्ते भी पाले जाने लगे थे। इन पशुओं के अतिरिक्त मुहरों और ताम्रपत्रों पर सिंह, गंडे, रीछ, महिप, बन्दर, खरगोश आदि वन्य पशुओं के चित्र खुदे पाये गये हैं, जिनसे स्पष्ट है कि ये लोग इन पशुओं से परिचित थे ।


वस्त्र और आभूषण-  वस्त्रों और आभूषणों का अनुमान मुहरों पर बनी मूर्तियों और आभूषणों से किया गया है। सिन्धु घाटी के लोग सूती वस्त्र पहनते थे । सूत कातने की तकलियाँ वहाँ मिली हैं। पुरुष लोग एक शाल ओढ़ते थे, जो बायें कन्धे के ऊपर और दाई बांह के नीचे से इस प्रकार ओढ़ा जाता था कि दायां हाथ हिलने-डुलने को स्वतन्त्र रहे। अधिकांश मूर्तियाँ कौपीन या छोटा लहंगा (स्कर्ट) पहने हुए । हड़प्पा में मिली एक मूर्ति में एक व्यक्ति खूब कसी धोती या बिरजिस पहने दिखाया गया है । स्त्रियां प्रायः कमर से ऊपर कुछ नहीं पहनती थीं, जिससे वक्षःस्थल उघड़ा रहता था । कमर में छोटा सा लहंगा पहनने का रिवाज था, जिसे मेखला से बांधा जाता था। कुछ मूर्तियाँ पूरी बांहों का चोगा पहने हुए हैं। कुछ मूर्तियाँ नग्न भी मिली हैं। अधिकतर वस्त्र बिना सिले होते थे, पर कुछ सिले हुए भी होते थे ।


आभूषण स्त्रियां तो पहनती ही थीं, पुरुष भी पहनते थे । धनी लोग सोने, चाँदी, हाथीदांत और बहुमूल्य पत्थरों के बने आभूषण पहनते थे, तो गरीब लोग तांबे, हड्डी और पकाई हुई मिट्टी के आभूषणों से ही अपना चाव पूरा करते थे। स्त्रियों के प्रिय आभूषण थे- बालियों, हार, चूड़ियाँ, कंगन, करधनी, नथ, और पुरुषों के आभूषण थे- अंगूठी, अनन्त (बाजूबन्द) और माला। हार लाजवर्द, गोमेद, फीरोजा बादि मणियों के बने होते थे।


शृंगार-प्रसाधन - हाथीदांत, धातु और मिट्टी के बने सिंगारदान वहाँ मिले हैं। इससे स्पष्ट है कि वे लोग श्रृंगार-प्रसाधन के शौकीन थे। चमकाये गये कांसे से दर्पण का काम लिया जाता था। पुरुष लम्बे बाल रखते थे और उन्हें सोने-चांदी के तारों से या फीतों से बांधते थे। स्त्रियां वेणी गूथती थीं और जूड़ा बनाती थीं। उस्तरे काफ़ी संख्या में मिले हैं। इससे स्पष्ट है कि उनका प्रयोग होता था।


मनोरंजन के साधन- पासे का खेल अर्थात् जुआ उनका प्रिय मनोरंजन था। आखेट और तीतर-बटेरों की लड़ाई भी लोकप्रिय मनोरंजन थे। नृत्य और संगीत का काफ़ी प्रचार था। नर्तकी की मूर्ति और ढोल तथा तबले के चित्रों से यह बात प्रमाणित है। बच्चों के मनोरंजन के लिये तरह-तरह के खिलोनेलगाड़ियां, झुनझुने, पशु- पक्षी बनाये जाते थे।


परिवहन - यातायात के साधन परिवहन का मुख्य साधन था शकट (बैलगाड़ी) । इनके की आकृति का भी एक वाहन उस समय था । गधे बोझ ढोने के काम आते थे ।


सिन्धु घाटी सभ्यता के लोगों का धर्म- मोहन जोदड़ों या हड़प्पा में कोई मन्दिर या उपासना स्थान नहीं पाया गया, जिससे उस काल के धर्म का अनुमान किया जा सके । परन्तु वहाँ पकाई गई मिट्टी की बनी बहुत सी मुहरें मिली हैं। उन पर अंकित मूर्तियों से सिन्धु घाटी सभ्यता के धर्म के विषय में पर्याप्त जानकारी प्राप्त होती है । डॉ० हरिदत्त वेदालंकार ने लिखा है कि "इनसे यह ज्ञात होता है कि यहां मातृदेवी की, पशुपति शिव तथा उसके लिंग की पूजा और पीपल, नीम आदि पेड़ों एवं नाग आदि जीव-जन्तुओं की उपासना प्रचलित थी।"" मातृदेवी की पूजा उस काल में पश्चिमी एशिया के अन्य कई देशों में भी प्रचलित थीं।


एक मुहर पर एक पुरुष अंकित है, जिसके तीन मुख हैं। वह नग्न, एक चौकी पर पालती मारे बैठा है। उसके दायें-बायें हाथी, बैल, गैंडा आदि पशु हैं। उसके हाथों में कंगन और गले में माला है। जॉन मार्शल ने इसे शिव का पशुपति रूप माना है। यहाँ कुछ ऐसे पत्थर मिले हैं, जिनसे विद्वानों ने अनुमान किया है कि सिन्धु घाटी के लोग लिंग और योनि के रूप में प्रजनन शक्ति की पूजा करते थे । श्री बी० एन० लूनिया ने लिखा है कि "शक्ति तथा शिव की उपासना के अतिरिक्त हमें चेतनवाद या सर्वजीववाद के प्रचलन का भी आभास दीखता है।... पाषाणों, वृक्षों और पशुओं का पूजन इस धारणा से होता था कि वे मंगलकारी या अमंगलकारी आत्माओं के निवासस्थान हैं।


कुछ तावीज भी वहाँ मिले हैं, जिनसे अनुमान होता है कि वे लोग जादू-टोने में विश्वास करते थे। कुछ मुहरों पर बनी आकृतियों से बलि प्रथा का भी अनुमान होता है। एक मुहर पर छुरा लिये हुए एक पुरुष और विनती करती हुई एक स्त्री का चित्र है। यह स्त्री सम्भवतः बलि के लिए लाई गई है। डॉ० रमेशचन्द्र मजूमदार का कथन है कि "इतना तो निश्चित है कि भारतीय संस्कृति और सभ्यता के परवर्ती विकास के समय उसके सभी अंगों पर इसका का प्रभाव पड़ा । हिन्दू धर्म के अनेक मौलिक सिद्धान्त इस संस्कृति से लिये गये है।


मृतकों की अन्त्येष्टि-सिन्धु घाटी के लोग अपने मृतकों की अत्येष्टि तीन प्रकार से करते थे : 

(१) वे शव को जला कर उसकी राख हांडी में भरकर गाड़ देते थे । 

(२) शव को भूमि में गाड़ देते थे। (३) शव को पशु-पक्षियों के खाने के लिए छोड़ देते थे और बाद में बचे हुए भाग को भूमि में गाड़ देते थे। मोह जो-दड़ो में कोई कब्रिस्तान नहीं मिला, परन्तु हड़प्पा में एक कब्रिस्तान पाया गया है।


उद्योग और शिल्प - सिन्धु घाटी के लोग सूत कातते थे। वे कपड़े रंगना भी जानते थे। वे बर्तन प्राप्त हुए हैं, जिनमें कपड़ों की रंगाई की जाती थी। मिट्टी के बर्तन बनाने और उन्हें पकाने के शिल्प का भी उन्हें ज्ञान था। ये वर्तन कुम्हार के चाक पर बनाये जाते थे । एक मुहर पर बड़ी नाव या जहाज का चित्र बना है। वे लोग भारत के ही विभिन्न भागों के साथ नहीं, अपितु सुमेर, क्रीट और मिस्र के साथ भी व्यापार करते थे ।


सिन्धु घाटी के लोगों की कला - मुहरें - मोहन जोदड़ो और हड़प्पा में पकाई हुई मिट्टी की मुहरों पर और तांबे की पट्टियों पर अंकित मनुष्यों और पशुओं की आकृतियों बहुत बड़ी संख्या में मिली हैं। इनमें से कुछ आकृतियाँ तो कला-कौशल की दृष्टि से उच्च कोटि की मानी जाती है। उदाहरण के लिए, वहाँ शक्ति पुंज सांड का जो अंकन हुआ है, वह अद्भुत और अनुपम है।


मूर्तियाँ इसी प्रकार, हड़प्पा में मिली दो छोटी-छोटी मूर्तियों से उनके मूर्ति निर्माण के कौशल का भी ज्ञान होता है। पत्थर और कांसे की इन मूर्तियों को का प्रशंसनीय है। डॉ० रमाशंकर त्रिपाठी के शब्दों में, इन मूर्तियों में कलाकारों ने "कला में प्राण फूंक दिये हैं। इनकी सजीवता और प्रत्यंगीय चारुता बेजोड़ है।"" उदाहरण के लिये, हड़प्पा में मिली नतंकी मूर्ति में भाव और गति जिस सुन्दर रूप में अंकित की गई है, वह अनुपम है।


मृद्मांड - इनके अतिरिक्त उस काल के मृद्भांडों पर सुन्दर रंगीन चित्रकारी की जाती थी, जिसके नमूने खुदाई में प्राप्त हुए हैं। इस सबसे पता चलता है कि सिन्धु घाटी के लोग कला के अतिशय प्रेमी एवं सिद्धहस्त कलाकार थे।


लिपि - विद्वानों का विचार है कि सिन्धु घाटी के लोगों की अपनी लिपि थी। यह एक प्रकार की चित्रलिपि थी। वहां मिली २००० से भी अधिक मुहरों पर एक तरह-तरह के चित्र अंकित है। कुछ चित्र तथा आकृतियां तांबे की पतरियों पर भी ख़ुदी हुई है। अभी तक इस लिपि को पढ़ा नहीं जा सका है। कहीं यह लिपि खरोष्ठी की भांति दाई ओर से बाई ओर को लिखी जान पड़ती है, तो कहीं ब्राह्मी लिपि की भांति बाई ओर से दाई ओर को कहीं कहीं यह गोमूविकास में एक पंक्ति बायें से दायें और उससे अगली दायें से बायें और अगली फिर बायें से दायें लिखी जान पड़ती है। इस लिपि के पढ़ लिये जाने पर सिन्धु घाटी की सभ्यता पर नया प्रकाश पढ़ सकेगा।


सिन्धु घाटी के निवासी कौन लोग थे-  खुदाई में स्त्रियों, पुरुषों और बच्चों के अस्थि पिंजर तथा कपाल पाये गये हैं । उनके आधार पर विद्वानों ने अनुमान किया है कि वहां के निवासी आय-निषाद (Proto Australoid), भूमध्यसागरीय अर्थात् वे (Mediterranean), अल्पाइन (Alpine), और मंगोल (Mongol) जाति के लोग थे। कुछ विद्वानों का मत है कि वे केवल द्रविड़ थे। परन्तु द्रविड़ों की और सिंधु घाटी सभ्यता के लोगों की अन्येष्टि पद्धति में बहुत अन्तर है। दक्षिण भारत में, जो आज- कल द्रविड़ों की भूमि है, सिन्धु घाटी सभ्यता के अवशेष नहीं मिले। अतः यही मानना उचित होगा कि यह अनेक प्रजातियों के लोगों की मिलीजुली सभ्यता थी ।


सिन्धु घाटी की सभ्यता का विनाश-  इस सभ्यता का विनाश कैसे हुआ, यह निश्वयपूर्वक नहीं कहा जा सकता । निम्नलिखित अनुमान किये गये हैं: (१) सिन्धु नदी में भारी बाढ़ आने से ये नगर डूब गये हों। (२) सिन्धु नदी के दूर हट जाने से ये प्रदेश अनुपजाऊ मरुस्थल बन गये हों। (३) बाहर से आये आक्रमणकारियों ने नागरिकों को मार डाला हो और नगरों को नष्ट कर दिया हो। यह बहुत सम्भव है कि धनी एवं विलासी लोगों की यह सभ्यता युद्धप्रेमी आयों के हाथों नष्ट हो गई हो ।



विद्यार्थियों के लिए स्मरण योग्य संक्षिप्त में


1.इस सभ्यता की खोज-श्री राखालदास बनर्जी, दयाराम साहनी और जॉन मार्शल ने की। इस सभ्यता का काम ईसापूर्व २८०० से ईसापूर्व २२०० तक । बस्तियों के अवशेषों के सात स्तर मिले हैं।

2.इस सभ्यता का महत्व भारतीय सभ्यता की प्राचीनता ईसापूर्व ३००० तक पहुँच गई है। सिन्ध घाटी सभ्यता का विस्तार क्षेत्र सिन्ध में मोहनजोदड़ो और हड़प्पा आदि; राज- स्थान में कालीबंगन पंजाब में रोपड़ उत्तर-प्रदेश में आलमगीरपुर और कोशाम्बी काठियावाड़ मैं सोल, रंगपुर बाद कर्नाटक, नीलगिरि और श्रीलंका तक ।

3.सिन्धु घाटी सभ्यता को विशेषताएँ नागरिक सभ्यता योजनापूर्वक बसे नगर सड़कें पक्के मकान नालियां स्नानागारः गोदाम । परकोटा; कुआं दीपस्तम्भ । 

4.मकानों की बनावट बढ़े और छोटे इकमंजिले और दुमंजिले । ७५ मीटर लम्बे और ३८ मीटर मकान भी थे। बताराय और स्नानागार - १२ मीटर लम्बा ७ मीटर चौड़ा और २ मीटर गहरा जलाशय । सार्वजनिक स्वानावार ।

5.संधू घाटी के लोग का प्रयोग-तांबे और कांते का प्रयोग था, लोहे का नहीं ।

6.उन लोगों का जीवन खेती: गेहू और जो को भोजन खजूर, मछली, भेड़, सूअर मादि काफल, सी पशु-गाय, बैल, भेड़, बकरी, भैंस, हाथी, सूजर। पिछले भाग में घोड़े और कुत्ते श्री सिंह, गैबे, रीछ, बन्दर आदि जंगली जीवों के चित्र मुद्दों पर मिले हैं। 

7.वस्त्र और आभूषण - सूती वस्त्र काटने की कलियां ज्ञान कन्धे पर डाला जाता था। कोपीन स्त्रियां कमर से ऊपर नग्न सिले और अनमिले, दोनों प्रकार से वस्त्र | पण स्त्रिया और पुरुष सभी पहनते थे । सोने, चांदी, हाथीदांत तांबे, हड्डी और पकाई मिट्टी के गढ़ने । बालिया हार करनी न जंगूठी, बाजूबन्द आदि ।

8.शृंगार प्रसाधन-सिगारदात चमकाया हुआ कासा दर्पण का काम देता था। लम्बे बाल। बेणी और जुड़ा। उस्तरे भी मिले हैं। मनोरंजन के साधन जुआ; आबेट वीतर-बटेरों की लड़ाई, नृत्य और संगीत खिलौने ।

9.यातायात के साधन बैलगाड़ी इसके गधे । सिन्धु घाटी के लोगों का धर्म-मन्दिर कोई नहीं मिला। मातृदेवी, पशुपति, शिव लिंग, वृक्ष, नाम आदि की पूजा प्रचलित यो कि पशुपति रूप लिंग और योनि से रूप में प्रजनन शक्ति की पूजा | बलिप्रथा भी थी। जादू टोने में विश्वासः ।

10.मृतकों को अन्येष्टि (1) जलाकर भस्म गाड़ना (२) मन को गाड़ना (३) शव पशु- पक्षियों को खिला कर अवशेषों को गाड़ना। हडप्पा में कब्रिस्तान मिला है।

11.उद्योग और शिल्पकालना, बुनना, रंगना। मिट्टी के बर्तन बनाना । नाव बनाना । दूर दूर तक व्यापार 

12.कला- मुहरें; मूर्तियां भांड

13लिपि - चित्रलिपि । अभी तक पढ़ी नहीं जा सकी।

14सिन्धु घाटी के निवासी कौन लोग थे ? – आर्य -निषाद, द्रविड़, मंगोल, अल्पाइन जातियों के लोग थे । अनेक प्रजातियों के लोगों की मिलीजुली सभ्यता ।

15सिन्धु घाटी सभ्यता का नाश-तीन अनुमान : (१) सिन्धु नदी की बाढ़ द्वारा। (२) नदी के दूर हट जाने से । (३) बाहर से बाये लोगों के, संभवतः बायों के आक्रमणों से यह नष्ट हुई।


सिन्धु घाटी सभ्यता एवं ऋग्वैदिक सभ्यता का तुलनात्मक अध्ययन.

सिन्धु घाटी सभ्यता और वैदिक सभ्यता में अन्तर क्या है?


सिन्धु घाटी सभ्यता अधिक प्राचीन - सिन्धु घाटी सभ्यता तथा वैदिक सभ्यता मैं परस्पर क्या सम्बन्ध था, इस विषय में विद्वानों में मतभेद है। कुछ विद्वान वैदिक सभ्यता को अधिक प्राचीन मानते हैं, परन्तु अधिकांश विद्वानों का मत हैं कि सिन्धु घाटी की सभ्यता वैदिक सभ्यता से पहले की है। प्रो० बी० एन० लूनिया के शब्दों में, "क बात निश्चित है और अब उस पर विवाद की गुंजाइश नहीं रही; वह यह कि भारत में सभ्यता बायों के साथ नहीं आई।" वह उनके आगमन से पहले भी भारत में विद्यमान थी।


दोनों सभ्यताएं भिन्न है इसी प्रकार कुछ विद्वानों का विचार है कि सिन् घाटी सभ्यता और वैदिक सभ्यता मूलतः भिन्न नहीं है, एक होता के दो पक्ष नागरिक पक्ष और ग्रामीण पक्ष परन्तु इस विषय में भी अधिक विद्वानों का मत यही जान पड़ता है कि ये दोनों सभ्यताएं एक दूसरी से पूर्णता और भिन्न थी। बहुत सम्भवतः आर्यों ने आकर घाटी की सभ्यता को नष्ट किया था।

प्रो० जॉन इन दोनों को अलग सभ्यता मानने के पक्ष में है। इन दोनों सभ्यताओं में पाई जाने वाली समानताएं और विभिन्नताएं निम्न- लिखित है:

सिन्धु घाटी सभ्यता और बंदिक सभ्यता में समानताएं (१) दोनों सभ्यताएं अत्यन्त प्राचीन है। वेद का काम ईसापूर्व २००० माना जाता है और सिन्ध घाटी की सभ्यता का कार्य ईसापूर्व ३२३०-२३०० तक मोहनजोदडी में को करिय पंजर मिले हैं, उनसे अनुमान होता है कि वहां के लोगों में आर्य लोग भी थे। (३) सिन्धु घाटी सभ्यता के अवशेषों में खोजे गये अन्न आदि वे ही हैं, जिनका वर्णन ऋग्वेद में मिलता है। (४) सिन्धु घाटी सभ्यता में पशुपतिका रूप पाया जाता है, जो बाद में ऋग्वेद का रुद्र देवता बना ।

परन्तु इन थोड़ी सी समानताओं के मुकाबले में इन दोनों सभ्यताबों में पाई जाने वाली भिन्नताएं कहीं अधिक और महत्त्वपूर्ण है। वे निम्नलिखित हैं:


सिन्धु घाटी की सभ्यता और वैदिक सभ्यता में भिन्नताएं


(१) सिन्धु घाटी सभ्यता नागरिक थी, वैदिक सभ्यता ग्रामीण मोहन जो दड़ो, हड़प्पा और कालीबंगन आदि अनेक स्थानों पर हुई खुदाइयों से यह स्पष्ट है कि सिन्धु घाटी सभ्यता नागरिक सभ्यता थी। वे लोग बड़े-बड़े और योजनापूर्वक बसाये गये नगरों में रहते थे। उनके मकान पक्की ईंटों के बने होते थे। वे महल और दुर्गे बनाते थे। उनके घर साज-सामान से भरे होते थे। वे व्यापार से धन कमाते थे। बड़े बड़े अन्नागार और सार्वजनिक स्वानागार उनकी उन्नत नागरिकता के प्रमाण है। इसके विपरीत, वैदिक आर्य लोग आजकल के गूजरों की भांति पशुचारक लोग थे। वे जंगलों में, या छोटे छोटे गांवों में रहते थे। कृषि उनकी जीविका थी। उनके बनाये किसी नगर का अभी तक कोई अवशेष नहीं पाया गया। इन दोनों सभ्यताकों में यह भूलभूत अन्तर है।


(२) लोहे का प्रयोग- एक और निर्णयक अन्तर लोहे के प्रयोग का है।


सिन्धु घाटी की सभ्यता ताम्र पाषाणिक कही जाती है, जिसका अर्थ है कि उसका में शस्त्रों और उपकरणों के लिए पत्थर का और तांबे तथा कांसे का उपयोग होता था। परन्तु लोहे का प्रयोग उस समय तक नहीं हुआ था । परन्तु वैदिक आर्यो का प्रयोग करते थे है। यह माना जाता है कि लोहे का प्रयोग निश्चित रूप से तांबे और कांसे के बाद शुरू हुआ है। क्योंकि सिन्धु घाटी सभ्यता के अवशेषों में लोहा कहीं नहीं पाया गया और वेदों में लोहे का उल्लेख है, इसलिए सिन्धु घाटी की सभ्यता को  सभ्यता से प्राचीम माना जाता है।


(३) घोड़े का प्रयोग यही हाल घोड़े का भी है। वे लोग न केवल सवारी के लिए, अपितु युद्धों में भी  घोड़े का प्रयोग करते थे। परन्तु सिन्धु घाटी सभ्यता में घोड़े का अभाव है। उनकी मूर्तियों या चित्रों में घोड़े का अंकन नहीं है।


(४) मछली और मांस-प्रो० बी० एन० लनिया ने लिखा है कि वेदि आर्य मांस खाते थे, किन्तु मछली से घृणा करते थे ।" इसके विपरीत, सिन्धु घाटी सभ्यता के लोग मछली, कछुए और मगरमच्छ के मांस को चाव से खाते थे। दोनों सभ्यताओं का यह अन्तर भी महत्त्वपूर्ण है।

(५) धार्मिक विश्वासों में अन्तर - सिन्धु घाटी की सभ्यता के लोगों के और वैदिक आयों के धार्मिक विश्वास मूलतः भिन्न प्रकार के थे। (क) सिन्धु घाटी के लोग मूर्ति-पूजक थे। वे शिव के प्राचीन रूप पशुपति की, मातृदेवी की मूर्तियों की पूजा करते थे । इसके विपरीत वैदिक आर्य अमूर्त देवताओं की इन्द्र, वरुण, अग्नि, सूर्य आदि की- उपासना करते थे । (ख) सिन्धु घाटी की सभ्यता वाले लोग पशुओं की, वृक्षों की और सांपों को पूजा करते थे । आर्यों में इस प्रकार की पूजा प्रचलित नहीं थी । (ग) सैन्धव (सिन्धु घाटी के लोग लिंग तथा योनि के रूप में प्रजनन शक्ति की पूजा करते किन्तु वैदिक आर्य लिंग पूजा को बुरा मानते थे और लिंगपूजकों को तिरस्कारपूर्व 'शिश्नदेवाः' कहते थे। (घ) आर्य लोग गाय को अधिक श्रद्धा की दृष्टि से देखते थे, परन्तु सिन्धु घाटी के लोगों में सांड को पूजा का विषय माना जाता था। गाय को वे कोई महत्त्व नहीं देते थे। (ङ) आर्यों के देवताओं में नर देवताओं की प्रधानता थी; नारी देवता गौण मे। परन्तु सैन्धव सभ्यता के लोगों की सर्वप्रमुख देवी मातृदेवी थी। (च) आर्य लोग अग्निपूजक थे। अग्नि उनका बड़ा देवता था और अग्नि को प्रज्वलित रखता वे धर्म मानते थे। परन्तु सैन्धव सभ्यता में अग्नि को इस प्रकार का कोई धार्मिक महत्त्व प्राप्त नहीं था।


(६) सोने और चांदी का प्रयोग-सैन्धव सभ्यता में चांदी का प्रयोग  होता था और स्वर्ण का कम। परन्तु वैदिक आर्यों की सभ्यता में रजत की अपेक्षा सोने का प्रयोग अधिक था। दोनों ही सभ्यताओं में तांबे और कांसे का प्रयोग बर्तन बनाने के लिए किया जाता था।


(७) धर्म कर्म में संन्धव लोगों की रुचि कम थी, आयों को अधिक-सैन्धव सभ्यता भौतिकता-प्रधान इहलौकिक सभ्यता थी। वे लोग ऐश्वर्य और विलास का जीवन बिताते थे। मन्दिर बनाने के बजाय वे अन्न के कोठार या सार्वजनिक स्नानागार बनवाना अधिक पसन्द करते थे। धर्म का स्थान उनके जीवन में गोण था। इसके विपरीत, आयों का जीवन धार्मिक कृत्यों, यज्ञों तथा कर्मकांड से भरा था। उनका ध्यान परलोक की ओर अधिक था।


(८) संन्धव लोग शान्तिप्रिय थे और आर्य युद्धप्रिय - सम्पन्न तथा समृद्ध व्यापारी होने के नाते सैन्धव लोग स्वभावतः शान्तिप्रिय लोग थे, जो सुख से जीना पसन्द करते थे। "जियो और जीने दो" उनका सिद्धान्त था। इसके विपरीत, आर्य लोग कम समृद्ध, और इसीलिए युद्धप्रिय लोग थे। मोहन-जो-दड़ो और हड़प्पा की खुदाइयों में शस्त्रास्त्र बहुत कम मात्रा में पाये गये हैं। अपनी शान्तिप्रियता के कारण ही सैन्धव लोग संभवतः आर्यों के हाथों पराजित हुए।


लेखन कला का ज्ञान यद्यपि सिन्धु घाटी के लोगों की लिपि अभी तक पढ़ी नहीं जा सकी, फिर भी उनकी लिखी चित्रलिपि पाई गई है। यह माना जाता है कि वे लिखना जानते थे। इसके विपरीत, वैदिक आयों को लेखन कला का ज्ञान नहीं था । वे अपनी संहिताओं को 'श्रुति' कहते थे । अर्थात् इन संहिताओं को सुनकर कंठस्थ करके ही सुरक्षित रखा जाता था।


संक्षेप में, सिन्धु घाटी की सभ्यता और वैदिक आयों की सभ्यता में ये समानताएं और विभिन्नताएं हैं। इनको दृष्टि में रखते हुए हमें प्रो० चिल्डे का यह कथन बिल्कुल समीचीन जान पड़ता है कि “सिन्धु घाटी की सभ्यता एक विशेष वातावरण के प्रति मानव जीवन के उस अत्यधिक पूर्ण समायोजन का प्रतिनिधित्व करती है, जो केवल धेयंपूर्ण प्रयास का परिणाम हो सकता है।" इससे प्रकट है कि वैदिक आयों की भांति सिन्धु घाटी के लोग मारधाड़ करने वाले युद्ध प्रेमी लोग नहीं थे, अपितु उन्होंने अपनी सारी शक्ति शान्ति और धैर्य के साथ अपने समाज को सुखी और समृद्ध करने में लगाई थी। उसके फलस्वरूप उन्होंने शताब्दियों तक निरुपद्रव सुख और शान्ति का उपभोग किया था।


स्मरण-संकेत


सिन्धु घाटी सभ्यता और वैदिक सभ्यता में अन्तर


सिन्धु घाटी सभ्यता -अधिक प्राचीन है। भिन्न सभ्यताएं-- ये दोनों सभ्यताएं अलग है; एक ही सभ्यता के नागरिक सथा ग्रामीण पक्ष नहीं ।

दोनों में समानताएं - (१) दोनों सभ्यताएं अत्यन्त प्राचीन हैं । (२) मोहन-जो-दड़ो में आयों के भी अस्थिपंजर मिले हैं। (३) दोनों के पशु, अन्न आदि एक से हैं। सिन्धु घाटी का पशु- पति ही ऋग्वेद का रुद्र बना ।

बोलों में मिलाएं- (१) पहली नागरिक सभ्यता थी, दूसरी ग्रामीण । (२) पहली में लोहे का प्रयोग नहीं था, दूसरी में था। (३) पहली में घोड़े का प्रयोग नहीं था, दूसरी में था। (४)


सिन्धु घाटी के लोग मछली खाते थे; आर्य लोग मांस खाते थे और मछली से घृणा करते थे । (५) सिन्धु घाटी के लोग मूर्तिपूजक थे; आर्य इन्द्र, वरुण आदि देवताओं की उपासना करते थे। (६) सिन्धु घाटी के लोग लिंग-पूजक थे; आर्य लिंग-पूजा को बुरा मानते थे । (७) सिन्ध घाटी के लोग सांड को महत्त्व देते थे, आर्य गाय को । (८) सिन्धु घाटी सभ्यता में नारी देवियों की प्रधानता थी; आर्यों में नर देवताओं की। (६) सिन्धु घाटी के लोग अग्निपूजक नहीं थे; आर्य अग्निपूजक थे। (१०) सिन्धु घाटी के लोग चांदी का प्रयोग अधिक करते थे; आर्य सोने का। (११) सिन्धु घाटी के लोगों की रुवि धर्म कर्म में कम थी; आयों की अधिक थी। (१२) सिन्धु घाटी के लोग शान्तिप्रिय थे; आर्य युद्धप्रेमी थे । (१३) सिन्धु घाटी के लोगों को लेखन कला का ज्ञान या आयों को नहीं था ।



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