क्या है सेंगोल (Sengol) क्यूँ हो रहा Sengol पर विवाद ?
ऐसी लम्बी छड़ी जो चांदी से मढा हुआ है और जिस पर सोने का पत्तर चढ़ा है. उसी छड़ी का मुठ जो गोलाकार में बना है और जिस पर शिव के वाहन नंदी की मूर्ती बनी है, उसी छड़ी को सेंगोल कहा जाता है. इस सेंगोल को 1960 के बाद प्रयागराज के आनंद भवन संग्रहालय में रखवा दिया गया था जिसे आज तत्कालीन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने ढूंढ निकाला. वे इस सेंगोल को २८ मई 2023 को नए संसद भवन ( New Parliament house ) में स्थापित करने वाले हैं.
क्या है सेंगोल की कहानी ? Story & History of Sengol
जब 15 अगस्त 1947 को भारत की सत्ता अंग्रेजों के द्वारा भारत के पहले बने प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू जी को सौपी जा रही थी तो उस समय के तत्कालीन गवर्नर लार्ड माउंड बेटन ने कहा कि “ हमारे यहाँ तो सत्ता हस्तांतरण की विधि की जाती है आपके क्या क्या रिवाज है बताएं उसी के मुताबिक इस कार्य को किया जाएगा?” .
तब पंडित जवाहर लाल नेहरु ने उस समय के तत्कालीन नए गवर्नर सी. गोपालाचारी से इस बारे में वार्ता की. इसके बाद गोपालाचारी जी ने कई दिनों तक रिसर्च किये. अध्ययन किया और उन्होंने उदहारण दिया भारत में १६०० सालों तक राज करने वाले चोल राजाओं का. एक चोल राजा जब दुसरे को सता हस्तांतरित करते थे तो वे सत्ता लेने वाले के हाथ में एक छड़ी देते थे जो जिसे राजा दंड अथवा धर्म दंड कहा जाता था. ये दंड सत्य, न्याय और धर्म का प्रतीक होता था. जिस तरह से महाराणा प्रताप एकलिंग को स्वामी और स्वयं को केवल प्रतिनिधि मानते थे. जिस प्रकार त्रावणकोर के राजा भगवान पद्मनाभ को स्वामी और खुद को सेवक मानते थे उसी प्रकार उस राजदंड का भी अर्थ यही था जिसे तमिल भाषा में सेंगोल कहा जाता है.
इस सेंगोल का मुठ जो गोलाकार है वो संसार का प्रतीक है और गोलाकार मुठ के ऊपर जो नंदी बैठे हैं वो शक्ति , न्याय और धर्म का प्रतीक है. तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व से लेकर 13वीं शताब्दी तक भारत में चोल वंश का शासन माना जाता है जो लगभग 1600 वर्षो का है. इतने वर्षों तक किसी ने भी भारत पर राज नहीं किया. मुग़ल तो मात्र 15वीं में आये और 17वीं में खत्म हो गए. मगर चोल साम्राज्य का इतिहास बहुत पुराना है, भले ही हमे इसके बारे में अधिक जानकारी ना हो.
राजा गोपालाचारी जी ने जब इस विषय में नेहरु जी को बताया तो फिर इसी परंपरा के तहत अंग्रेजों से सत्ता लिया गया. माना जाता है कि सेंगोल को गंगा जल से शुद्ध कर मंत्रो के द्वारा अभिमंत्रित कर, नेहरु जी को पीला वस्त्र पहनाकर उन्हें सेंगोल राज दंड प्रदान किया किया गया. मगर बाद में इसे नेहरु जी की वाल्किंग सटीक ( walking strick) बताकर उसे आनंद भवन में रखवा दिया गया. मगर जब मोदी जी को इस बारे में जानकारी हुई तो उन्होंने उस सेंगोल की खोज शुरू कर दी और जब वो सेंगोल मिल गयी तो सूत्रों से पता चला कि अब वो सेंगोल ( Sengol) नए संसद भवन में स्पीकर की कुर्सी के बगल में रखवाई जायेगी.
मगर कुछ नेता संसद भवन के निमंत्रण का बहिष्कार कर चुके हैं. वो सेंगोल को भी धर्म से जोड़कर देख रहे हैं और इसका तिरस्कार करने का कोई भी अवसर नहीं गवा रहे हैं.
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