एफ. आय. आर ( FIR ) और एन सी. आर ( NCR) में क्या अंतर है ? वकील और पुलिस में कौन बड़ा होता है . जानियें पूरी जानकारी में
दोस्तों, अकसर हमारे साथ कुछ न कुछ घटनाएँ घटित होती रहती है जिसके लिए हमे
पुलिस के पास जाकर शिकायत दर्ज करवानी पड़ती है .उसके बाद ही पुलिस उस पर कार्यावाही
करती है. शिकायत दर्ज करवाने के दो माध्यम है- FIR और NCR.
FIR क्या है ?
F.I.R को हिंदी में रपट, प्राथमिकी और
अंग्रेजी में फर्स्ट इनफार्मेशन रिपोर्ट कहा जाता है. किसी संगीन अपराध जैसे कि खून , मारपीट , लूट , डकैती हो जाने के बाद जब हम किसी व्यक्ति के खिलाफ पुलिस में जाकर
शिकायत दर्ज करवाते हैं , वह FIR कहलाता है और पुलिस इसपर तुरंत
कार्यवाही करती है. पहले ऍफ़. आई .आर. हमेशा ऑफ लाइन ही हुआ करता था मगर अब बदलते दौर
में यह ऑनलाइन भी हो होते हैं .आप पुलिस थाने गए बिना भी घर बैठे ही FIR दर्ज करवा सकते हैं .
ZERO FIR क्या है ?
जब मामला आपके पुलिस थाने के बाहर का हो और आपको शिकायत दर्ज करवानी हो तो आप उस क्षेत्र के किसी भी पुलिस स्टेशन में जाकर अपनी शिकायत दर्ज करवा सकते हैं .
पुलिस जल्दी FIR क्यूँ नहीं दर्ज करती ?
उत्तर – आपकी शिकायत को दर्ज करना
पुलिस की ज़िम्मेदारी है . मगर अकसर सुना या देखा जाता है कि अधिकतर पुलिस वाले छोटे -मोटे
FIR दर्ज करने से कतराते हैं . इसके पीछे ये कारण हो सकता कि जब पुलिस वाले सबके
छोटे- मोटे FIR लिखते जायेंगे और उन पर जल्दी -जल्दी काम नहीं होगा तो फाइल्स की ढेर लगती
जायेगी . जब इन फाइल्स पर उनके बड़े अफसर की नज़र पड़ेगी तो उन्हें उसके
नीचे के अफसर को जवाब देना पड़ेगा .हर पुलिस वाला चाहता है कि उसकी अलमारी में बेवजह फाइल न बढे. इसलिए अगर केस छोटा है तो वो
हमेशा दोंनो पक्षों के बीच समझौता करवाने में लगे रहते हैं . मगर किसी पुलिस अधिकारी के द्वारा FIR दर्ज न होने पर आप इसकी शिकायत SP या DSP से कर सकते हैं .
NCR क्या है .?
इसे नॉन काग्ज़िनेबल रिपोर्ट कहा जाता है . यह तब लिखवाया जाता है जब घटना छोटी
हो जैसे कि किसी के मोबाइल पर्स या कागज़ात का चोरी हो जाना . यह इसलिए करवाना
ज़रूरी होता है ताकि बाद में आप साबित कर सको कि आपकी चीज़ चोरी अथवा खो जाने के
कारण आपका उस घटना से किसी प्रकार का कोई सम्बन्ध नहीं है जो घटना आपकी चोरी हुई चीज़ के आधार पर है...
पुलिस को वकील द्वारा लिखवाकर दिए गए आवेदन और साधारण व्यक्ति द्वारा हाथ से लिखे आवेदन में किसी पर जल्दी सुनवाई होती है ?
उत्तर – अकसर देखा गया है कि कुछ लोग
दूसरों के खिलाफ केस दर्ज करवाने से पहले वे वकील के पास जाकर मिलते हैं. फिर उनसे
अपनी समस्या लिखवाते हैं और फिर शिकायत के रूप में वकील द्वारा लिखा गया वो आवेदन पुलिस थाने में
जमा होता है . दूसरी ओर वहीँ एक दूसरा
आदमी सादे कागज़ पर भी अपनी शिकयत लिखकर देता है . तो बता दें कि दोनों में बहुत ज्यादा अंतर नहीं
है. दोनों की वैल्यू एक सामान है . बस थोडा वकील साहब के द्वारा आवेदन खुद टाइप करवाकर देने
पर पुलिस वाले उन ज़नाब को थोड़ी इज्ज़त देते हुए उनके काम को थोड़ी प्राथमिकता अधिक
देते हैं. बाकी दोनों आवेदन उतने ही मान्य हैं .
ज़मीन मामले में FIR कितना कारगर हैं?
उत्तर - लड़ाई झगड़ा मारपीट दंगा फसाद
यह सभी CRPC के तहत आते हैं जबकि ज़मीन का मालना CIVIL का होता है . इसलिए पुलिस ज़मीन जायदाद के मामले में केस दर्ज नहीं करती . लेकिन यदि इस मामले में मारपीट हो जाए तो फ़ौरन कार्यवाही
करती है . ज़मीन निवारण मामला सिविल कोर्ट के द्वारा होता है .
पुलिस किसी अपराधी को कितने समय तक लॉकउप में रख सकती?
पुलिस किसी भी व्यक्ति को जो अपराधी है उसे 24 घंटे से अधिक अपने लॉकउप में
नहीं रख सकती. दुसरे दिन उन्हें उस अपराधी को मजिस्ट्रेट के पास हाज़िर करना होता
है जहाँ से तय होता है कि उस व्यक्ति को कितने दिन अथवा वर्षो की जेल होगी .
महिलाओं के लिए क्या नियम है ?.
महिलोओं को रात में अरेस्ट नहीं किया जा सकता ना हथकड़ी लगाई जा
सकती है .जो गर्भवती हैं उन्हें भी लॉकउप में नहीं डाला जा
सकता.
पुलिस को देखकर लोग डरते क्यूँ हैं ?
उत्तर – कानून और अधिकारों के बारे
में सही जानकारी नहीं होने के कारण ही लोग पुलिस से डरते हैं . गाँव में अकसर ये
देखा जाता है. उन्हें लगता है कि पुलिस उन्हें किसी भी वक़्त किसी भी कारण से जेल भिजवा सकती है...जबकि ऐसा बिलकुल नहीं
है. बिना दोष के और पर्याप्त सबूत के बिना पुलिस आपको छू भी नहीं सकती .हाँ, संदेह के
आधार पर उनके पास कार्यवाही करने का पूरा अधिकार है...
वकील और पुलिस में कौन बड़ा है ?
दोनों ही कानून से जुड़े हुए होते हैं . दोनों ही जानकार होते हैं ..पुलिस का
काम जहाँ अपराधी को पकड़ना है वहीँ एक वकील का काम कोर्ट में दलील देकर उसे सजा
दिलवाना है. वकील सरकारी और प्रायवेट दोनों तरह होते हैं , जबकि पुलिस सरकारी ही
होता है. पुलिस सीधा एक्शन ले सकती है .उसे बहुत सारे अधिकार दिए गए हैं. इसलिए पुलिस
अधिकारी हमेशा लोगों की नज़रों में रहता है और बड़ा दिखता है...वैसे कई पुलिस वाले दबंग
टाइप के भी होते हैं जो अपनी वर्दी का रौब दिखाते हैं . इस कारण भी लोग उनसे डरते
हैं . जबकि वकील घर से सीधा कचहरी जाता है और वहीँ केस लड़ता है...दोनों ही अपनी अपनी जगह महत्व रखते
हैं. एक का जहाँ अपराधी को पकड़कर काम ख़त्म होता है तो दुसरे का उस अपराधी को सजा
दिलवाने के लिए शुरू हो जाता है.
Hi ! you are most welcome for any coment