संख्या 1 से 10 का महत्व जानिये हिन्दू संस्कृति में क्या है ? Sankhya 1 to 10 ka importance kya hai Hindu Sankriti mein?

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संख्या 1 से 10 का महत्व जानिये हिन्दू संस्कृति में क्या है ?  Sankhya 1 to 10 ka importance  kya hai Hindu Sankriti mein?


संख्या 1 से 10 का महत्व जानिये हिन्दू संस्कृति में क्या है ?  Sankhya 1 to 10 ka importance  kya hai Hindu Sankriti mein?



दोस्तों आपको शायद पता ही होगा जीरो और दशमलव हमारे भारत की ही देन है . यदि इन के बारे में पता नहीं लगया  जाता तो आज चाँद और सूरज की दूरी का अंदाज़ा लगाना  मुश्किल था . सिर्फ जीरो ही नहीं अपने भारत में ऐसी बहुत सी जानकारी है जिसके बारे में शायद ही आज की पीढ़ी को पता हो . तो आइये आज कुछ नयी  चीजों के बारे में  जानते हैं और यह ज्ञान एवं जानकारी दूसरों के साथ भी शेयर करते हैं.


क्या आपको पता है कि सकेंड से भी छोटा क्या है ? तो जानिये क्रति  सेकेण्ड का ३४००० भाग है.  १ त्रुति = सेकेण्ड का ३००० वां भाग होता है . उसी तरह २ त्रुति = १ लव होता है और १ लव = १ क्षण  होता है. अब आगे देखिये 30 क्षण = १ विपल कहलाता है , 60 विपल = १ पल होता है . 60 पल = १ घडी होती है  जिसे हम और आप 24 मिनट कहते हैं . २.५  घडी =  १ होरा होता है जिसे घंटा भी कहा जाता है .


अप हम दिन और हफ्ता के बारे में जानेंगे .


7 दिवस = एक हफ्ता या सप्ताह होता है . 4 सप्ताह का एक माह , 2 = माह की १ ऋतू और 6  ऋतू का एक वर्ष बनता है . उसी तरह १०० वर्ष की एक शताब्दी बन जाती है .  फिर ४३२ शताब्दी का एक युग बन जाता है . द्वापर युग 2 युगों तक चला . त्रेता युग 3 युगों तक चला और सत्ययुग चार युगों तक चला . आगे जानिये कि सत्ययुग, त्रेतायुग , द्वापर युग और कलियुग मिलकर एक महायुग कहलाता है . उसी प्रकार ७६ महायुग मिलकर एक मन्वंतर बनता है  और १००० महायुग का फिर बन जाता है एक कल्प . कल्प के बाद प्रलय और फिर प्रलय के बाद सृष्टी का आरम्भ .



अब देखिये  कि आध्यात्मिक दृष्टी से हम इनकी  संख्याओं के  बारे में कितना जानते हैं?


1 संख्या - ईश्वर एक ही हैं - परम ब्रह्म 


दो की संख्या का महत्व 


संसार में वैसे दो ही लिंग है यदि तीसरे की बात न करें तो – नर और नारी . उसी प्रकार पक्ष भी दो हैं- शक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष . पूजा भी हम दो  ही विधि से करते हैं – वैदिक विधि और तांत्रिक विधि


तीन की संख्या का महत्व 


हमारे  देव भी तीन हैं – ब्रह्मा जी , विष्णु जी और महेश यानि की महादेव . उसी भांति तीन देवियाँ हैं –  सरस्वती , लक्ष्मी और गौरी . प्राणियों में तीन गुण  मौजूद है -सत्वगुण ,  रजोगुण , तमोगुण .


किसी भी पदार्थ की तीन अवस्था होती है – ठोस , द्रव  और वायु . जीवन में तीन पड़ाव मिलेंगे आपको -बचपन जवानी और बुढापा . ईश्वर ने तीन तरह के प्राणियों की रचना की है – देव , दानव और मानव की . मनुष्य तीन अवस्था में होता है – जागृत , मृत और बेहोश . समय भी तीन काल में है . भूत , भविष्य और वर्तमान . शक्ति भी तीन हैं – इच्छा शक्ति , ज्ञान शक्ति और क्रियाशक्ति


चार की संख्या का महत्व :


पवित्र धाम चार की संख्या में आते हैं – बदरीनाथ , जगन्नाथ पूरी ,रामेश्वरम , द्वारका


पुराणों के अनुसार चार प्रकार के मुनि बताये गए हैं – सनत, सनातन , सनंद, संत कुमार


वर्णों को देखें तो वे भी चार हैं – ब्रह्मण , क्षत्रिय , वैश्य और शुद्र. नीतियाँ भी चार बतायी गयी हैं – साम, दाम , दंड और भेद . उसी अनुसार वेद भी चार हुए – सामवेद , ऋग्वेद , यजुर्वेद और अथर्ववेद . स्वर्गलोक में भी चार अप्सराएँ हैं – उर्वशी , रम्भा , मेनका और तिलोत्तमा . माता, पिता , शिक्षक और आध्यात्मिक गुरु , ये चार गुरु माने जाते हैं .प्राणियों की बात करें तो वे भी चार हैं – जल वाले , थल वाले , नभ वाले और उभयचर . जीव भी चार प्रकार के हैं –  अंडज, पिंडज, स्वेदज और उद्भिज. पुरुषार्थ भी चार हैं – धर्म, अर्थ ,काम और मोक्ष .



पञ्च.संख्या का महत्व 


तत्त्व पांच है जिन्हें पञ्च तत्त्व कहते हैं – धरती , आकाश , अग्नि , जल और वायु


पञ्च देवता के रूप में – गणेश , दुर्गा , विष्णु , शंकर और सूर्य हैं . पांच ज्ञान इन्द्रियाँ हुए – आखं , नाक , कान , जीभ और त्वचा .उगलियाँ भी पांच – अंगूठा , तर्जनी , मध्यमा , अनामिका और कनिष्ठा. हमारे यहाँ पूजा भी पांच प्रकार से की जाती  है – गंध ,पुष्प , धुप , दीप और नैवेध . पांच चीजों को अमृत की संज्ञा दी गयी है – दूध , दही , घी और शक्कर यानि चीनी को .पांच प्रकार के वट वृक्ष है – सिद्धवट  जो कि उज्जैन  में हैं . साक्षीवट गया में है , अक्षयवट प्रयागराज , बोधिवट बोधगया में है . आम , पीपल , बरगद गुलर और अशोक ये भी पांच प्रकार के पत्ते हैं . कन्या भी पञ्च हैं – अहिल्या , तारा , मंदोदरी , कुंती और द्रोपदी .



छ: की संख्या 


ऋतू भी  छ: हैं – शीत , ग्रीष्म , वर्षा , शरद , बसंत , शिशिर . दोष भी इतने ही प्रकार के हैं – काम , क्रोध ,मद, लोभ , मोह और आलस्य .


सात की संख्या का महत्व –


सात छंद हैं – गायत्री , उश्निक , अनुष्टुप , वृहती , पंक्ति ,त्रिष्टुप ,जगती . सुर सात  हुए -षड्ज ,ऋषभ ,गांधार ,माध्यम ,पंचम ,धैवत , निषाद. चक्र सात हैं – सहस्त्रार ,आज्ञा , विशुद्ध ,अनाहात ,मणिपुर , स्वधिष्ठान, मूलाधार . दिवस भी सात हैं – रवि, सोम, मंगल, बुध ,गुरु ,शुक्र ,शनि   . सात महाद्वीप हुए –  जम्बूद्वीप , प्लक्षदीप , शाल्मी द्वीप , पुष्करद्वीप.


सात ऋषि सर्व विख्यात हुए – वशिष्ठ , विश्वामित्र ,  कन्व् , भारद्वाज ,अत्री ,वामदेव ,शौनक .धातु सात -रस , रक्त , मांस ,मेद, अस्थि ,मज्जा , वीर्य . सात रंग सर्वत्र है – बैगनी , जामुनी ,नीला ,हरा ,पीला ,नारंगी , लाल . सात पूरी देखें – मथुरा , हरिद्वार ,काशी ,अयोध्या ,उज्जैन , द्वारका ,कांची ,. दांत सात हैं यानि अन्जाज – उड़द , गेहूं , चना , चावल ,  जौ,  मूंग , बाजरा


आठ की संख्या का महत्व 


आठ माताएं – ब्र्हामी , वैष्णवी , माहेश्वरी , कौमारी ,  ऐन्द्री ,वाराही , नारसिंही ,चामुंडा ,

आठ प्रकार की लक्ष्मी हैं – आदि लक्ष्मी ,धन लक्ष्मी ,धान्य लक्ष्मी ,गज लक्ष्मी ,संतान लक्ष्मी ,वीर लक्ष्मी ,विजय लक्ष्मी ,   विद्या लक्ष्मी , वसु हुए आठ – अप ,  ध्रुव, सोम ,धर ,अनिल ,अनल , प्रत्युष , प्रभास

आठ प्रकार की सिद्धियाँ हैं – अणिमा , महिमा ,गरिमा ,लघिमा ,प्राप्ति ,प्राकाम्य , ईशित्व ,वशित्व

धातु भी आठ प्रकार के हैं -सोना , चांदी ,ताम्बा ,सीसा ,जस्ता ,लोहा ,पारा


नौ की संख्या का महत्व 


नौ की संख्या  में माता का नाम पहले आता है – शैलपुत्री , ब्रह्मचारिणी , चंद्रघंटा , कुष्मांडा ,स्कन्दमाता . कात्यायनी ,कालरात्रि, महा गौरी ,सिद्धि दात्री


नव गृह हैं – सूर्य , चंद्रमा ,मंगल ,बुध ,गुरु , शुक्र ,शनि , राहू, केतु


दस की संख्या का महत्व 


दस महाविद्या – काली , तारा , षोडशी ,भुनेश्वरी ,भैरवी ,छिन्नमस्तिका ,धूमावती ,बगलामुखी ,मातंगी ,कमला


दिशाएं दस – पूर्व , पक्षिम , उत्तर , दक्षिण ,आग्नेय , नैरित्या , वायव्य, ईशान ,ऊपर , नीचे.


दिक्पाल दस – इंद्र, अग्नि , यमराज ,नैरित , वरुण , वायुदेव ,कुबेर ,ईशान, ब्रह्मा , अनंत.


दस अवतार सर्व विख्यात हुए – मत्स्य , कच्छप , वाराह, नरसिंह ,वामन ,परशुराम , राम , कृष्ण ,बुद्ध, कल्कि


सती दस-  सावित्री , अनुसूया ,मंदोदरी ,तुलसी , द्रोपदी ,गांधारी ,सीता ,दमयंती ,  सुलक्ष्णा, अरुंधती  

 

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