महीनों तक पूरी नींद न लेना बहुत खतरनाक कैसे है ? जानिये mahino tak poori nind na lena khatarnak kaise hai ? janiye

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महीनो तक पूरी नींद न लेना खतरनाक कैसे है ? जानिये  hazaron saal pehle mazboori thi aaj kyun maut ko davat de raha insan?  


आज से हजारों साल पहले वन मानवों के पास न तो जीने खाने कीअच्छी सुविधा थी और न ही रहने की. क्यूंकि उस वक़्त की परिस्थिति बहुत ही जटिल और प्रतिकूल थी. ये उनकी मजबूरी थी, जब उन्हें भोजन मिलता , वे खा लेते, जब पोखर मिलता, नहा लेते .उनके हाथ में कुछ भी नहीं था और जो सबसे बड़ी चीज़ उनके पास नहीं थी वो थी चैन की नींद. क्यूंकि  गुफाओं में रहने और पेड़ों पर चढ़कर सोने के बाद भी उनकी नींद, सिर्फ जंगली जानवरों के डर से पूरी नहीं हो पाती थी.

ये तो हजारों साल पहले की मजबूरी थी मगर आज तो हमारे पास पर्याप्त सुख -सुविधा है .हम अपने घरों, बंगलो , होटलों और महलो में अच्छी तरह से चैन की नींद ले सकते हैं. फिर भी हम जानबूझकर रात्री सुख भोगने एवं कुछ दुश्चिंताओं में घिरकर लगातार रात जागरण करके अपनी मौत को निमंत्रण देते रहते हैं. कहते हैं नींद न लेने वाले व्यक्ति की हालत आधे शराबी की तरह हो जाती है. हजारों साल पहले  पूरी नींद न लेने के करण उस वक़्त वन मानवों के साथ भी वही सब होता होगा. और कई बार तो वे मर भी जाते होंगे. 

यह सच है कि नींद को  प्रकृति  का एक उपहार माना गया है.चाहे पशु -पक्षी हो या फिर इंसान, पूरी नींद न लेने से शरीर के भीतर बनने वाले रसायन, शरीर में एक धीमा ज़हर की तरह काम करता है. लेकिन इसके वावजूद हम इसे बहुत हल्के में लेते हैं. बल्कि अधिक न सोना तो अपनी शान भी समझते हैं. एक समय था जब लोग जल्दी सोने चले जाते थे और फिर सुबह जल्दी उठ भी जाते थे. इसलिए तब लोग लम्बी उम्र भी जीते थे .मगर आज की भाग- दौड़ की ज़िन्दगी और रोज़ मन में जन्म लेते नए सपनो ने लोगों की आखों से नींद छीन ली है .और वैसे लोगों की नींद तो लगभग गायब ही है जो दूसरों से प्रतिस्पर्धा रखते हैं . 

हाँ ये सच है कि चाहे कोई परीक्षा हो या जॉब, बिना नींद खोये उसे आज के समय में हासिल करना मुश्किल है. इसलिए कोई भी सोना नहीं चाहता सिर्फ इस डर से क्यूंकि कोई पहले ही कह गया है -  “जो सोवत है सो खोवत है” लेकिन विज्ञान इसके उलट है. वो कहता है  “ जो न सोवत है वही उठत है” एक स्टडी  बताती है कि सोने के बाद  इंसानी दिमाग रीसायकलबिन की तरह काम करता है , जहाँ उसका दिन भर का दिमागी कचरा साफ़ होता रहता है. अगर यह कचरा साफ़ न हो तो इन्सान का वही हाल होगा जो एक कंप्यूटर के क्षमता से अधिक फाइल भर जाने के बाद होता है. 

हालांकि ये प्रक्रिया बहुत धीमी गति से होती है जिसके बारे में हमें पता नहीं चलता.जो लोग सोचते हैं सोना समय की बर्बादी है तो उनकी सोच गलत है. भले ही उसे दुनियाँ के महान वैज्ञानिक ने भी क्यूँ न कहा हो. एक समय के बाद इसका असर होगा ये निश्चित है. इसलिए काम कितना भी ज़रूरी हो अगर आप अपनी नींद की बलि देकर उसे हासिल करना चाहते हैं तो एक समय के बाद आपको उसका खाफियाज़ा भी भुगतना भी पड सकता है.

    

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