बहुत कम लोगों को पता होगा कि हनुमान जी के और भी भाई थे वो भी एक नहीं बल्कि पांच. जी हाँ , ये सत्य है एयर पुराणों में इसका जिक्र भी है. जैसे हनुमान जी के जन्म की कथा शिव पुराण में अलग और आनंद रामायण में अलग है वैसे ही कुछ कुछ पुराणों में हनुमान जी के भाइयों का जिक्र भी है. मुझे लगता है पाठक अकसर ये खोज भी करते होंगे कि हनुमान के कितने भाई हैं ( Hanuman ke kitne bhai hain) इसलिए हम आज इस प्रश्न का जवाब लेकर आये हैं जिसका इसका प्रमाण हमे ब्रह्मांड पुराण में मिलता है.
मतिमान:- इनके नाम से ही स्पष्ट है, मति अर्थात बुद्धि जिनके दिमाग की कोई सानी नहीं. जो अपने मस्तिष्क की शक्ति से एक ही क्षण में चौदह लोक और तीनो भुवनो के चक्कर लगाकर आ सकता हो वो मतिमान थे हनुमान की के भाई .
श्रुतिमान:- जो सहस्त्रो मील दूर गिरने वाली सुई की आवाज़ को भी एक क्षण में सुन ले.
गतिमान:- जिसकी गति वायु के सामान हो .
केतुमान :- जो बहुत ही द्रुतगामी और ठोस शरीर का स्वामी हो.
धृतिमान:- जो बंद नेत्रों से भी पूरा संसार देख ले...
हनुमान जी के अलावे केसरी - अंजना के ये
पांचो पुत्र अपनी -अपनी विशेष
शक्तियों के कारण ही दिक्पाल हैं, जो
सृष्टी के हर कोने में एक रक्षक की भांति नियुक्त
हुए हैं.
कुछ और जानकारी :-
लाल ध्वज ( झंडा ) आखिर क्यूँ और कैसे जुडा है हनुमान जी से ?
आपने गौर किया होगा कि तुलसीदास जी ने हनुमान चालीसा में एक पंक्ति भी लिखी है – “हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै” अर्थात जिनके हाथ में वज्र और ध्वजा हो . किन्तु यह ध्वजा और वज्र आया कहाँ से ? जी हाँ , कुछ लोगों ने सही अनुमान लगाया होगा कि एक बार हनुमान जी जब स्वर्गलोक ( इन्द्रलोक) गए थे तो एक महाअसुर ने इंद्र को पराजित कर उनसे उनका सिंहासन छीन लिया था. तब हनुमान जी ने उस असुर को अपने बाहूबल से पराजित किया और इंद्र को उनका वज्र और विजयी पताका लाल ध्वज लौटाया था. हनुमान जी द्वारा उसी समय लाल ध्वज और वज्र को धारण करने का उल्लेख हनुमान जी हाथ हाथ वज्र अरु ध्वजा विराजे कहलाये.
हनुमान पुत्र मकरध्वज
वायुमार्ग से लंका जाते समय जब हनुमान जी का श्रमस्वेद ( पसीना) समुद्र में गिरा तो उसे एक मकरी ( मादा मगरमच्छ ) ने ग्रहण कर लिया था और उसी मकरी से जो पुत्र उत्पन्न हुआ वह हनुमान पुत्र मकरध्वज कहलाया. किन्तु बहुत समय तक मकरध्वज अपने पिता हनुमान जी के बारे में नहीं जानते थे. कालान्तर में मकरध्वज अपनी वीरता के कारण पाताल लोक का द्वार रक्षक नियुक्त हुआ . और फिर एक निश्चित समय के पश्चात, अहिरावण को ढूंढता हुआ हनुमान जी जब पाताल लोक पहुँचते हैं तो उनका सामना उनके ही पुत्र मकरध्वज से हो होता है. उस समय शीघ्र ही हनुमान जी को समझ आ जाता है कि द्वार रक्षक बालक अवश्य ही कोई विशेष शक्तियों का स्वामी है . तब मकरध्वज हनुमान जी को अपना परिचय देता है. पुत्र के रूप में अपने समान एक वीर योद्धा को देख हनुमान जी अति प्रसन्न होते हैं और अपने पुत्र मकरध्वज को आशीर्वाद देकर पुन: अपने कार्य में लग जाते हैं.
क्या है हनुमान के नाम का अर्थ और कैसे पड़ा केसरी नंदन का नाम हनुमान ?
हनु का अर्थ है ठुड्डी और मान का अर्थ है आदर देना . देवराज इंद्र के वज्र से जब बाल्यकाल में हनुमान के हनु अर्थात ठुड्डी पर आघात हुआ तो वे मृत्यु की शय्या पर पहुँच गए. जिसके बाद वायुदेव ने अपने उनचास मरुतगणों को स्वयं में समाहित कर सृष्टी से प्राणवायु को ही रोक लिया . तत्पश्चात ब्रह्मा जी को आकर अंजनी पुत्र को पुन: जीवित करना पड़ा और फिर देवराज इंद्र ने भी केसरी नंदन के उस आघात लगे हनु को आदर और मान देते हुए उनका नामकरण हनुमान कर दिया.
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