भगवान गणेश (Lord Ganesa) महाराष्ट्र में इतने अधिक लोकप्रिय क्यों हैं?

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भगवान गणेश महाराष्ट्र में इतने अधिक लोकप्रिय  क्यों  हैं ? जानिये  कारण  . Lord Ganesh in Mumbai Maharashtra

भगवान गणेश  (Lord Ganesa)  महाराष्ट्र में इतने अधिक लोकप्रिय क्यों  हैं?



गणेश चतुर्थी की हार्दिक शुभ कामना देते हुए बप्पा मोर्या जिन्हें गजानन, विनायक, लम्बोदर, पार्वती नंदन आदि नामों  से भी जाना जाता है , हर साल की तरह इस साल भी लोगों का विघ्न दूर करने आ चुके हैं. वैसे तो ये पर्व भारत के कई राज्यों में धूम -धाम से मनाया जाता है.लेकिन मुंबई के महाराष्ट्र (Maharashtra) में इस पर्व की एक अलग ही विशेषता और पहचान है . महाराष्ट्र में विरले ही ऐसा कोई घर होगा जहाँ बप्पा की पूजा -अराधना न होती हो . गणेश जी ( Lord Ganesha) महाराष्ट्रियों के प्रमुख देव माने जाते हैं.  मुंबई  में फिल्मों की शूटिंग की शुरुवात भी गणेश जी की पूजा और उनके जयघोष से से ही होती है .


लेकिन मन में यह सवाल आता ही होगा कि आखिर बप्पा मोर्या, महाराष्ट्र में ही इतने अधिक लोकप्रिय  क्यों  हुए? क्या वजह है कि जैसी धूम और उमंग  महाराष्ट्र  में देखने को मिलती है वैसी धूम और कहीं दिखाई या सुनाई नहीं पड़ती. तो जान लीजिये कि इसके पीछे का एकमात्र कारण भी हमारी आज़ादी की लड़ाई से  ही जुडी है.  बात उन दिनों की है जब हम भारतीयों पर अंग्रेजों के जुल्म और अत्याचार चरम पर थे. उसी दौरान सन 1856 में महाराष्ट्र के रत्नगिरि में एक ऐसे नायक ने जन्म लिया जिन्हें हम सभी स्वराज के नायक बाल गंगाधर राव तिलक के नाम से जानते हैं .


उस दौर में कुछ क्रांतिकारियों के दिलों में आज़ादी की चिंगारी जल चुकी थी. मगर अँगरेज़ उन चिंगारियों को बुझाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे थे. जहाँ भी कोई गोष्ठी आयोजन होता या जुलूस निकलता, अँगरेज़ वहां आकर धर -पकड़ शुरू कर देते और उन क्रांतिकारियों को जेल में डाल दिया जाता.  क्यूंकि अँगरेज़ जानते थे कि भारतीयों के एकजुट होने का मतलब था , भविष्य में अंग्रेजी हुकूमत का पतन.  इसलिए अंग्रेजों ने हर तरह के जुलूस और गोष्ठी बंद करवा दिए थे. तब बाल गंगाधर राव तिलक ने युक्ति लगाते हुए महाराष्ट्र में दो धार्मिक उत्सव का लोक प्रचार करना आरम्भ कर दिया, जिनमे एक था शिवाजी उत्सव और दूसरा था गणेश उत्सव. 


इन दोनों धार्मिक उत्सवों के पीछे का  एकमात्र कारण ,भीड़ में सवतंत्रता सेनानियों का एक जुट होना था.  इससे पहले की गोरे अँगरेज़ इसे समझ पाते, लोगों की धार्मिक आस्था ने भीड़ का रूप लेना आरम्भ कर दिया था.अत: आज शिवाजी और गणेश उत्सव का जो भी स्वरुप हमारे सामने है उसका  श्रेय केवल और केवल  महाराष्ट्र के महानायक लोकमान्य बाल गंगाधर राव तिलक को ही जाता है.      

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