नैतिक शिक्षा माँ की शक्ति - भगवान गरुड़ की कथा हिंदी में moral story bhgwan garud ki katha.
माँ की सेवा के फल के कारण कैसे बने गरुड़ भगवान नारायण के वाहन और कहलाये गरुड़ देव जानिए .
प्रजापति दक्ष की साठ कन्याओं में दिति, अदिति, दनु , कद्रू और विंता भी थीं. अदिति से जहाँ देवताओं का जन्म हुआ वहां दिति
ने असुरों को जन्म दिया . उसी तरह दनु से दानव और कद्रू से नागों का जन्म हुआ और
फिर विंता से दो पुत्र उत्पन्न हुए जिनमे एक अरुण था और दूसरा गरुड़ . कहानी उसी
गरुड़ की है कि वो कैसे श्री हरी नारायण के वाहन बन गए.
बात उस समय की है जब गरुड़ बालपन में बहुत ही चंचल थे. पिता ऋषि कश्यप ने गरुड़ के लिए अपने आश्रम में ही हर सुविधा उपलब्ध करवा दी थी मगर गरुड़ हमेशा आश्रम से बाहर, सुनहरे और आकर्षक देव वन में जाकर खेलता रहता था. देव वन, देवताओं का था जहाँ सभी देवताओं के बच्चे खेलते थे , मगर गरुड़ में उड़ने के अलावे और कोई दिव्य शक्ति नहीं होने के कारण देवताओं के बच्चे गरुड़ का मजाक उड़ाते रहते थे और उसे अपने वन में खेलने नहीं देते.
बालक गरुड़ अपने पिता से कहकर देवताओं के बच्चों जैसी शक्तियां चाहता था .मगर ऋषि कश्यप इसे देव -संहिता के विरुद्ध बताते हैं . पिता ऋषि कश्यप, गरुड़ को समझाते हैं कि समय से पहले कुछ भी नही मिलता. इसलिए वो उचित समय की प्रतीक्षा करे. मगर गरुड़ का मन नहीं मानता और वो हर बार देव वन चला जाता. एक बार तो देवताओं के बच्चे गरुड़ के साथ प्रतियोगिता भी रखते हैं कि अगर उसने उन्हें हरा दिया तो वे गरुड़ को न सिर्फ देव वन में आने देंगे बल्कि उसे अपने -अपने पिताजी से कहकर दिव्य शक्तियां भी दिलवा देंगे. मगर गरुड़ बहुत ही बुरी तरह से वो प्रतियोगिता हार जाता है और अब देवताओं के पुत्र रोज़ गरुड़ का मजाक उड़ाने लगते हैं जिससे गरुड़ दुखी हो जाता है .
तभी एक दिन देवर्षि नारद गरुड़ को समझाते हैं कि “गरुड़ देखो पुत्र , तुम्हे शक्तियां चाहिए न तो माँ से बड़ी शक्ति और कोई नहीं होती , तुम अपनी माँ की जाकर सेवा करो, हो सकता है तुम्हे वो चीज़ मिल जाए जो तुम चाहते हो” इसके पश्चात बालक गरुड़ अब देव वन जाना छोड़ अपनी माँ की सेवा में लग जाता है. एक दिन अचानक गरुड़ की माँ विनता को एक गंभीर रोग हो जाता है. वैध जी के कहे अनुसार बालक गरुड़ हर जंगल, पहाड़, पर्वत से माँ के लिए बूटी लेकर आता है मगर गरुड़ की माँ ठीक नहीं होती.
इसी बीच गरुड़ किसी के मुँह से सुन लेता है कि अब तो केवल अमृत ही गरुड़ की माँ के प्राण बचा सकता है. किन्तु अमृत चंद्रलोक में था जहाँ तक जाना बहुत ही कठिन कार्य था. और यदि कोई पहुँच भी गया तो चंद्रमा किसी को भी अमृत कलश से एक बूँद भी अमृत नहीं देगा. मगर बालक गरुड़ ये ठान लेता है कि वो चंद्रलोक पहुंचकर ही रहेगा. गरुड़ लम्बी उड़ान भरता है मगर वो जितनी ऊंचाई पर पहुँचता है उसके लिए तकलीफें बढती जाती है. आसमानी बिजली और सर्द हवाएं गरुड़ के हिम्मत को तोड़ने के लिए काफी थी. मगर इसके बावजूद बालक गरुड़, चंद्रलोक पहुँच जाता है और किसी तरह चंद्रलोक से अमृत कलश लेकर निकल जाता है.
किन्तु इधर तत्काल चंद्रलोक में अमृत चोरी की खबर लग जाती है और चंद्रमा, गरुड़ को रोकने के लिए अपने योद्धा भेजता है. मगर गरुड़ माँ के लिए सबसे लड़ता है और सबको मार भागता है . इसी बीच चंद्रमा के कहने पर दुसरे देवता भी चन्द्र की सहायता के लिए गरुड़ को रोकने जाते हैं मगर वे भी गरुड़ को रोक नहीं पाते. गरुड़ सबको हराकर अपनी माँ के लिए अमृत ले आता है. माता विंता अमृत का सेवन करते ही ठीक हो जाती है. मगर उधर तब-तक चंद्रमा , श्री हरी नारायण को देव- संहिता का हवाला देकर गरुड़ का धड उनके सुदर्शन चक्र से उड़ा देने के लिए विवश कर देता है और फिर नारायण स्वयं गरुड़ को दंड देने आते हैं.
गरुड़ का वध देखने के लिए सभी देवता जमा हो जाते हैं . मगर भगवान नारायण, गरुड़ का सर काटना छोड़ उसके माता की सेवा करने के भाव से इतने प्रसन्न हो जाते हैं कि वे गरुड़ को हमेशा के लिए अपना वाहन बना लेता है. यह होती है एक माँ की शक्ति जो न सिर्फ अपने पुत्र के प्राण बचाती है बल्कि समय आने पर उचित फल भी देती है .
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