हिंदी पौराणिक- देवी दुर्गा के प्रथम स्वरुप शैलपुत्री की कथा . devi Durga
पुरातन काल में दुर्गमासुर नामक एक बहुत बड़ा असुर हुआ करता था . जैसा कि उसके नाम से ही स्पष्ट था कि उसे मार पाना किसी भी देवी-देवता के लिए आसान नहीं था. तब एक दिव्य देवी के हाथों उस असुर का वध हुआ और फिर दुर्गमासुर का वध करने के कारण ही वह देवी दुर्गा कहलाई. उन्ही देवी दुर्गा ने महिषासुर का भी वध किया था . उसी दिन अधर्म पर धर्म की विजयी को ही विजया दशमी के रूप में मनाया जाता है. उन देवी महाया, आदिशक्ति दुर्गा के नौ रूप हैं, जिनकी पूजा भारत के पक्षिम बंगाल के अलावे और भी कई राज्यों में बड़े ही धूम धाम से होती . तो आइये जाने की नौ दुर्गा के उन नौ रूपों में शैलपुत्री की क्या कथा है, जिसकी पूजा सबसे पहले होती है.
शैलपुत्री:
ब्रह्मचारिणी:
माता चंद्रघंटा:
माता कुष्मांडा:
स्कन्द माता:
देवी कात्यायनी:
माता काल रात्री:
महा -गौरी:
माता सिद्धि दात्री:
1.शैलपुत्री -
माता के नौ रूपों में शैलपुत्री की पूजा सबसे पहले होती है जो वृषभ पर सवार दाए हाथ में त्रिशूल एवं बाएं हाथ में कमल पुष्प धारण करती हैं. गिरीनंदनी पर्वतराज हिमालय की पुत्री पार्वती या शैलपुत्री , शिला की तरह ही अपने उद्धेश्य में अडिग रहने की प्रतिक है, जिस करण उन्होंने शिव को प्राप्त किया .दुर्गा पूजा के प्रथम दिवस, कलश स्थापना के साथ ही इनकी पूजा आरंभ होती है.
कथा:-
यह कथा उस समय की है जब सती के आत्मदाह के बाद महादेव दुखी होकर चिरकाल के लिए एक कन्दरा में समाधी लीन हो गए थे. इसी बीच एक असुर तारकासुर ने चालाकी दिखाते हुए ब्रह्मा जी से यह वरदान मांग लिया कि उसे केवल शिव के अंश से उत्पन्न हुआ पुत्र ही मार सके. इसी वरदान के कारण तारकासुर ने स्वर्गलोक को विजित कर देवराज इंद्र को इन्द्रलोक से मार भगाया. देवताओं ने इसी दुःख से पार पाने के लिए माता आदि शक्ति की स्तुति की. जिसके बाद माता के अंश ने हिमालय के यहाँ पुत्री के रूप में जन्म लिया.
शैलराज की पुत्री होने के कारण वह पुत्री शैलपुत्री एवं शैल का ही दूसरा पर्यायवाची शब्द पर्वत होने के कारण पार्वती कहलाई. शैलपुत्री को महादेव को पति के रूप में प्राप्त करना था इसलिए वह बाल्यकाल से ही शिव की आराधना में लगी रहीं. एक दिन देवर्षि नारद जब शैलराज और मैनावती को आकर यह बताते हैं कि उनकी पुत्री के भावी पति महादेव ही होंगे तो मैनावती सदमे में आ जाती है .क्यूंकि सारा संसार शिव के वैरागपन और उनके अघोरी रूप से वाकिफ था जिनका कोई एक निश्चित ठिकाना नहीं था. मैनावती नहीं चाहती थी कि उनकी पुत्री का विवाह श्मशानवासी शिव के साथ हो इसलिए वह अपनी पुत्री की शिव पूजा छुडवा देती है.
मगर इसके पश्चात भी शैलपुत्री को पता था कि उन्हें क्या करना है . अत: उन्होंने शिव को पाने के लिए और घोर साधना करनी शुरू कर दी .इसी बीच महादेव को उनकी समाधी से जगाने के लिए देवराज इंद्र काम देव का सहारा लेता है . किन्तु महादेव को जगाने के क्रम में कामदेव स्वयं ही जलकर भष्म हो जाते हैं . इस घटना के बाद सभी देवता महादेव से प्रार्थना करते हैं कि वे उन्हें तारकासुर के आतंक से मुक्ति दिलवाने के लिए शैलपुत्री को पत्नी रूप में स्वीकार कर ले . किन्तु शैलपुत्री की विनती को स्वीकार करने से पहले महादेव उसकी परीक्षा लेते हैं और जिसमे पार्वती उतीर्ण हो जाती है .इस प्रकार महादेव एवं पार्वती का विवाह होता है . महादेव और पार्वती की शक्ति से जन्मे कार्तिकेय ही तारकासुर का वध करते हैं.
सीख एवं शिक्षा :- इस कथा से हमे सीख मिलती है कि परिस्थिति चाहे कितनी भी जटिल क्यों न हो उसका कोई न कोई समाधान तो अवश्य ही कहीं छिपा होता है, बस हमे उसे खोजने भर की देर है.
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