India में इतना अधिक हिन्दू- मुस्लिम का बवाल क्यूँ होता है ? क्या है नाराज़गी और क्या है निदान ?
इतिहास के नज़रिए से :-
माना जाता है कि 30 दिसंबर 1906 में मुस्लिम लीग की स्थापना के बाद जब भारत को अलग करके पाकिस्तान बनने के लिए वोटिंग शुरू हुई तो भारत के उन ९० परसेंट मुस्लिम लोगों ने पाकिस्तान बनने के लिए अपना -अपना वोट तो दिया मगर बाद में वे खुद ही पाकिस्तान नहीं गए. इसका मतलब यही हुआ कि फिर वे पाकिस्तान का निर्माण सिर्फ उन अपने भाई - भतीजों के लिए करवाना चाहते थे जो उनके धर्म से थे. और यही हुआ भी पाकिस्तान को एक मुस्लिम देश घोषित किया गया जबकि भारत शुरू से धर्म निरपेक्ष देश बना रहा .
यह एक तरह से भारत के साथ धोखा था . क्यूंकि उस वक़्त की जनसंख्या और वोटिंग के अनुसार पाकिस्तान बना था और कुछ लोग पाकिस्तान बनाकर भी पाकिस्तान रहने के लिए नहीं गए . इसलिए इसे एक तरह से भारत के साथ धोखा भी कहा जा सकता है . मगर इसे लोकतंत्र में स्वेच्छा का आचरण कहा जाता है .
पाकिस्तान में क्या हुआ ?
जिन्ना साहेब ने पाकिस्तान का प्रधानमंत्री बनते ही वहां की बंगाली और सिन्धी भाषा को फ़ौरन ख़त्म कर उर्दू लागू कर दिया जिसे वहां के दुसरे लोग समझ ही नहीं पाते थे . फिर एक ऐसा दौर आया जब पाकिस्तान में 24 परसेंट हिन्दुओं की सख्या सिर्फ 2 या 4 परसेंट की रह गयी . वो लोग कहाँ गए और उनके साथ क्या हुआ, यह पूरा विश्व जानता है . पाकिस्तान में हिन्दुओं के घटने के या फिर जानबूझकर घटा दिए जाने के कारण भी हिन्दुओं में एक नाराज़गी की भावना बनी रही .
इससे पहले के इतिहास के बारे में जानकारी की कोई कमी नहीं कि कैसे महमूद गजनवी ने सोमनाथ के मंदिर को १७ बार लूटा और उसे तोड़ा था . उसके अलावे खिलज़ी ने नालंदा विश्वविशालय को जला डाला था . उससे पहले भी हिंदुस्तान में विशेष समुदायों द्वारा बाहरी आक्रमण होते रहें .
पूरी के जगन्नाथ मंदिर का इसी से जुडा है पुराना इतिहास
शायद लोगों को पता होगा कि आज भी पूरी के जग्गनाथ मंदिर में गैर हिन्दुओं का प्रवेश वर्जित है . लेकिन इसमें बौध और जैन धर्म नहीं आते . क्यूंकि उन्हें सनातनी माना जाता है . इसमें वर्जित सिर्फ और सिर्फ वही हैं जिन्होंने जगन्नाथ मंदिर पर शुरू से अनेकों बार चढ़ाई और आक्रमण किये और वे थे तुर्क और अफगानी, जो विशेष कौम का दर्ज़ा रखते थे . उसके बाद औरंगजेब के भारत में मंदिर तोड़ों अभियान एवं जबरजस्ती हिन्दुओं को मुस्लिम बनाओ की निति भी एक बड़ा कारण हो सकता है इस नाराज़गी का .
चौथा कारण कि पाकिस्तान जो एक मुस्लिम देश है , वहां के आतंकवादी आये दिन भारत में उपद्रव मचाते रहते हैं .उन आतंकवादियों ने, जो उसी विशेष कौम के रहें, उन्होंने भारत के साथ- साथ भारत की आर्थिक राजधानी मुंबई को भी बड़ा भारी नुकसान पहुँचाया . ये भी नफरत और नाराज़गी का एक कारण हो सकता है . मगर इसका खामियाजा भी भारत के मुसलमानों को ही भोगना पड़ता है जब भी उन्हें पाकिस्तान के कारण बदनाम होना पड़ता है .
पुराने समय की बात छोड़ दें तो नयी सदी में भी धर्म और आस्था पर आघात होते होते रहे हैं, तभी तो शायद विशेष धर्म का दर्ज़ा रखने वाले उस डॉन ने भारत के उन जय मातादी भक्त को, जो ज़्यादातर भगवान के गाने रिलीज़ किया करते थे और जिनका वैष्णो देवी में आज भी बहुत बड़ा दान पुण्य का कार्य चलता है, उन्हें मंदिर में पूजा करते वक़्त गोलियों से छलनी कर दिया गया था . इसे भी नारागाज़ी का आप एक बड़ा कारण मान सकते हैं .क्यूंकि किसी विशेष समुदाय के गुंडे ने एक प्रसिद्द हिन्दू भक्त को मारा था .
विशेष समुदाय की नाराज़गी :
विशेष समुदाय ने राम जन्मभूमि पर पहले से ही बाबरी मस्जिद का दावा किया था और उनके अनुसार वे वहां पहले से ही सज़दा करते आ रहे थे .मगर जब कोर्ट के आदेश पर वहां मंदिर बनाने का फैसला आया तो विशेष समुदाय में नाराज़गी देखी गयी . इसके अलावे प्रधानमंत्री मोदी जी ने जब तीन तलाक जैसे रुढ़िवादी और औरतों को पीड़ा पहुँचाने वाले उस कुप्रथा पर कडा प्रहार किया तो इससे भी विशेष समुदाय नाराज़ हुए . इसके अतिरिक्त मोदी जी द्वारा बाहर से आ रहे हिन्दू शरणार्थियों को भारत में बसाने का नया नियम -कानून भी विशेष समुदाय को पसंद नहीं आया . इसके बाद तो ज़्यादातर लोग मोदी को सिर्फ एक हिन्दू चेहरा बताकर उनका गलत प्रचार प्रसार करने लगे जिससे खाई बढती गयी .
धर्म की रक्षा
भारत शुरु से ही एक शान्ति प्रिय देश रहा है . इसलिए भारत जैसे धर्म निरपेक्ष देश में आपने पहले कभी कोई हिन्दू दल बल या सेना नहीं देखी होगी . मगर इनके बनने के पीछे भी कारण कुछ ऐसा ही है.
जब भारतके बुद्धिजीवियों, निर्मातों और लेखकों ने एक नया तरीका निकालकर टीवी फिल्म या पत्र पत्रिकाओं के द्वारा हिन्दू धर्म को नीचे गिराकर विशेष धर्म को ज्यादा तव्वजों देने लगे तो फिर ऐसे कई दलों का निर्माण हो गया जिनका काम था उन लोगों को ऐसा करने से रोकना. आप खुद सोचिये जिस फ़िल्म ("कुछ कुछ होता है") में शाहरुख़ खान और उनकी बेटी हिन्दू धर्म से है वो बच्ची अपने पिता को उनकी पूर्व की प्रेमिका जो खुद भी एक हिन्दू है, उनसे मिलवाने के लिए वो छोटी सी बच्ची चुन्नी लगाकर सजदा करती दिखाई देती है . फिर उसकी मन्नत भी पूरी हो जाती है . रविद्रनाथ टैगोर द्वारा लिखित कहानी काबुलीवाले में ओरिजिनल स्टोरी में मिन्नी जो एक बंगाली हिन्दू है, उसका कहीं भी उस ओरिजिनल स्टोरी में काबुलीवाले के लिये दुवा या मन्नत मांगते कोई जिक्र नहीं है फिर भी उसे हमारे आजकल के निर्देशक ने दुवाओं में शामिलकर सीन बना दिया . मतलब अपने प्रोडक्ट को बेचने के लिए असली चीज़ों से जोड़तोड़ .
जब लोग समझने लगे
यह एक सॉफ्ट कर्वर्जन मेथड है जिसे लोगों ने बाद में समझना शुरू किया . वहीँ दूसरी ओर आप देखें सर्फ एक्सेल वाले जब टीवी पर प्रचार दिखाते हैं तो उसमे एक हिन्दू बच्ची उस विशेष समुदाय के बच्चे को रंगों से बचाती है . क्यूंकि उस बच्चे पर रंग लग जाने से उसका धर्म और संस्कृति खतरे में पड़ सकता है . और वो बच्चा लास्ट में बोलता भी है नमाज़ पढ़कर आता हूँ . लोगों ने समझना शुरू किया कि विशेष समुदाय पर कंटेंट उनके धर्म के मुताबिक़ अच्छे और पाक साफ़ बन रहें और हिन्दुओं को कहा जाता शिव मंदिर पर दूध मत चढाओ , उसे गरीबों में बाँट दो . रंग मत खेलो . दीपावली पर पटाखे मत जलाओं इससे प्रदुषण बढ़ता है . लोगों ने जब इसे धीरे धीरे समझना शुरू कर दिया तो फिर उनकी नाराज़गी भी बढ़ने लगी .
वास्तविक नामों के हकदार .
कुछ दिनों पहले सोनी पर भी इतिहास के एक सवाल पर चार विकल्प दिए गए थे जिसमे वीर शिवाजी जी के लिए सिर्फ शिवाजी लिखा था और अकबर के लिए मुग़ल सम्राट अकबर लिखा गया था . लोग मानते हैं मुगलों का तो भारत था ही नहीं वे यहाँ आकर बस गए और अपने -अपने नाम से ज़हांगीर रोड तो हुमायु बाग़ तो अकबर चौराहा न जाने कितने नाम रख दिए . भारत के लोगों के अनुसार जहाँ गंगा यमुना और सरस्वती का संगम हो उस जगह का नाम इला- हा- बाद उर्दू जैसा कैसे हो सकता है ? इसके बाद जब भारत के पुराने नाम फिर से रखे जाने शुरू हुए तो फिर से उन्ही बुद्धिजीविओं के दिलों में मोच उठने लगी और फिर हिन्दू मुस्लिम शुरू हो गया . ये भी नाराजगी की एक बड़ी वजह है .
निष्कर्ष
भले ही इस नफ़रत की खेती को बहुत सारे नेता कर रहे हो मगर ये भी समझना होगा की भारत यानि आर्यावर्त शुरू से ही सनातन धर्म से जुडा रहा है . यहाँ राम बुद्ध और कृष्ण पैदा हुए . भारत देश में राम मंदिर का मुद्दा बहुत ही लंबा और संघर्षपूर्ण रहा .मगर इसका वर्षों पहला हल निकाला जा सकता था . विशेष समुदाओ को उग्र हुआ बिना इस सच्चाई को स्वीकार करना चाहिए अगर मक्का में उनके भगवान पैदा हुए तो भारत के अयोध्या में भगवान राम को स्थान क्यूँ नहीं मिल सकता था .? मगर यही बात अब सदियों तक नफरत बनाए रखेगी , क्यूंकि आजकल के दुष्ट नेता कभी भाईचारे की बात नहीं करेंगे बल्कि वो तो भविष्य में भी अपनी नेतागिरी चमकाए रखने के लिए एक वर्ग को दुःख मातम और बदले का एहसास दिलाते रहेंगे तो वहीँ दूसरा वर्ग हमेशा जीत और जश्न के माहौल को बनाए रखकर हमेशा मूंछों पर ताव देते रहेंगे . ईमानदारी और सच्चाई दिल में होती है . इसलिए कभी -कभी दिल से भी पूछ लेना चाहिए कि आखिर सच क्या है ? शायद बाहरी मुल्क इस बात को समझते होंगे तभी तो मोदी जी के रोम पहुँचते ही उनके स्वागत वहां फ़ौरन ही शिवस्त्रोत शुरु हो गया .
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