एक अभिशप्त हीरे कोहिनूर की कहानी ( Story Of cursed Kohinoor)

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कहानी कोहिनूर की.

History and Story of Kohinoor 

एक अभिशप्त हीरा कोहिनूर 

How Kohinoor is a cursed diamond?


एक अभिशप्त हीरे कोहिनूर की कहानी जिसने कई राजाओं की जान ली


कैसे पड़ा उस हीरे का नाम कोहिनूर जिसने कई राजाओं की जान ले ली . क्या कोहिनूर सच में एक श्रापित हीरा है ? जानिये विस्तृत जानकारी. 



कैसे मिला कोहिनूर?

(story of Kohinoor)


जब तक यह हीरा कोहिनूर मुगलों के पास था, इसका कोई भी नाम नहीं था लेकिन जब इसे नादिर शाह ने मुगलों से लूटा तो इस बेशकीमती हीरे का नाम पड़ा कोहिनूर. कोहिनूर (Kohinoor) जिसे फारसी में रौशनी का पहाड़ कहा जाता है, इसकी कहानी बहुत ही दिलचस्प है .

 

कोहिनूर जब भारत के गोलकुंडा खान से प्राप्त हुआ था तो उस वक़्त वो एक मुर्गी के अंडे जितना बड़ा था. मगर बाद में जब कई राजाओं ने इसे अपने मुताबिक़ तराशना शुरू किया तो इसका आकर छोटा होता चला गया.

  

यह भारत में मिलने वाला पहला हीरा था जो इतना अधिक बड़ा और चमकीला था . वरना उस वक़्त भारत में केवल कछारी हीरे ही मिलते थे . 



कछारी हीरे 



कछारी हीरे उन्हें कहते हैं जो नदी के बालू और मिट्टियों से निकाले जाते हैं आज से सैकड़ों -हजारों साल पहले जब  ज्वालामुखियों के फटने के कारण पहाड़ों के गर्भ से गर्म लावे बाहर आये तो उनके साथ ही बाहर आये कई  किस्म के कीमती,  रत्न और पत्थर, जिनमे हीरे भी थे . 


लेकिन ज्वालामुखी के विष्फोट से बाहर आने के कारण वो हीरे और पत्थर टुकड़ों में होते थे . वही टुकड़े, नदी की वेग और धारा के साथ बहकर बहुत दूर निकल जाते और जहाँ नदी की धारा दम तोड़ती वो हीरे वहीँ बैठ जाते थे. 


नदी तल के मिट्ठी में बैठे हुए हीरों को ही हम कछारी हीरे कहते हैं . मगर कोहिनूर कोई  कछारी हीरा नहीं था. वो अब तक का एकलौता ऐसा हीरा था जो हीरे की खान से साबुत ही बाहर आया था .



हिन्दू राजाओं  के बाद कोहिनूर मुगलों के पास 


 

माना जाता है उस वक़्त कोहिनूर हीरा भारत के कुछ राजवंश घरानों की शोभा हुआ करता था. फिर आगे के राजवंशीय घरानों ने उस कोहिनूर हीरे को भगवान की मूर्ति में लगा दिया . 


मगर फिर तुर्कों ने आकर उस मूर्ति को तोड़कर उस कोहिनूर हीरे को निकाल लिया . जिसके बाद यह कई राजाओं के पास गया और फिर ये हाथ लगा इब्राहिम लोदी के . 


मगर फिर बाबर ने वर्ष 1526 में इब्राहिम लोदी को पानीपत के युद्ध में  हराकर उससे दिल्ली की गद्दी छीन ली और फिर वो हीरा भारत में  मुग़ल वंश की नीव पड़ने के साथ ही मुगल शाही खजाने का हिस्सा बन गया . 


बाबर ने खुद ये हीरा हुमायु को सौपा था . मगर हुमायु को कोहिनूर में ज्यादा दिलचस्पी नहीं थी इसलिए वो हीरा बहुत समय तक दुसरे रत्नों की तरह ही मुग़ल राजकोष में ऐसे ही पडा रहा .


अकबर के समय भी उस हीरे को अधिक तव्वजों नहीं मिला . माना जाता है कि उसे कभी शाही  खजाने से बाहर ही नहीं निकला गया. शायद मुगलों को उस वक़्त उस बेशकीमती हीरे की असली कीमत के बारे पता ही नहीं था और ना ही उन्होंने कभी इसके बारे में जानने की कोशिश ही की थी.

 



जब उस बेशकीमती हीरे का नाम पड़ा कोहिनूर 



मगर बाद में मुग़ल बादशाह शाहजहाँ ने उस हीरे को अपने तख्ते -ताउस में जडवा दिया था जिसे मयूर सिंहासन भी कहा जाता है .माना जाता है कि शाहजहाँ के तख्ते - ताउस की कीमत भी ताज़महल से दोगुनी थी. शायद इसलिए बाद में जब औरंजेब गद्दी पर बैठा तो मुग़लकोष पूरी तरह से खाली था . 


शाहजहाँ ने ताजमहल, तख्ते-ताउस और न जाने कितने ऐशो -आराम में पैसों को पानी की तरह बहाया था ,इसलिए औरंगजेब ने द्रोही बनकर पिता को ही बंदी बना लिया. औरंगजेब के बाद वो हीरा कई मुग़ल राजाओं के पास होता हुआ आखिरकार मुग़ल शासक  शाह रंगीला के पास पहुंचा. 


मगर फिर जब नादिरशाह ने दिल्ली आकर लूट -पाट मचाई . हजारों का क़त्ल किया तो उसे रुकवाने के लिए शाह रंगीले को अपनी पूरी दौलत नादिर शाह के हवाले करनी पड़ी .


और उन्ही बेशुमार दौलत के साथ नादिरशाह को मिला था कोहिनूर जैसा एक बेशकीमती हीरा . उस वक़्त तक कोहिनूर का कोई भी नाम नहीं था .उस हीरे को देखते ही नादिरशाह के मुंह से अचानक ही एक शब्द निकल पडा - "वाह , कोहिनूर"  (  फारसी में रौशनी का पहाड़ )




कोहिनूर हीरे की लगभग कीमत क्या थी ? 


 

जब उस हीरे को लेकर नादिरशाह अपने घर आया तो उसकी बीवी ने एक बार पुछा भी कि अच्छा बताइए इस हीरे की क्या कीमत होगी ? तब नादिरशाह ने उदाहरण के तौर पर बताया था कि अगर कोई पहलवान पांच पत्थर के टुकड़ों को लेकर चारों दिशाओं में फेकें और पांचवा पत्थर ऊपर की ओर उछाले ,उनके बीच में जो जगह बनेगी अगर उन खाली जगहों को सोने से भर दिया जाए तो ही जाकर इस हीरे की कीमत पूरी होगी . 


इसके कुछ अरसे बाद नादिरशाह मारा गया और वो हीरा  शाहशुजा के पास आ आया . मगर उस वक़्त शाहशुजा के जान के लाले पड़े थे, इसलिए महाराजा रंजित सिंह ने जब शाहशुजा की मदद की तो उसने वो हीरा महाराजा रंजित सिंह को दे दिया . 


मगर फिर वर्ष 1845 में अंग्रेजों ने राजा के वीरगति होने पर उनसे वो हीरा छीन लिया  और उसे रानी विक्टोरिया के पास भिजवा दिया गया . इस तरह कोहिनूर भारत से ब्रिटेन पहुँच गया . 



कोहिनूर की नकारात्मक शक्ति 



मगर कहा जाता है कि रानी विक्टोरिया ने कभी उस हीरे को हाथ भी नहीं लगाया. ना उसे कभी पहना . मगर उनकी बहु ने उसे ज़रूर पहना था . फिर उसे राजमुकुट में  जड़वा दिया गया .  



कोहिनूर (Kohinoor) हीरे के बारे में एक और दिलचस्प वाकया सामने आता है . जब उस हीरे को भारत से ब्रिटेन एक शिप के ज़रिये ले जाया जा रहा था तो उस वक़्त उस शिप पर नौ लोग सवार थे और उनमे से किसी को भी पता नहीं था कि वो एक बेशकीमती हीरे के साथ सफ़र कर रहे हैं.



मगर समुद्र के बीच रास्ते पहुँचते ही उनके साथ बहुत ही अजीबो-गरीब घटना होने लगी . रास्ते में उन्हें कई तूफ़ान मिले . तूफानों से छुटकारा पाया तो  सभी को कोलोरा हो गया .फिर जैसे तैसे वे ब्रिटेन पहुंचे . वर्षों बाद  कुछ शोधकर्ताओं ने यह निष्कर्ष निकाला कि गोलकुंडा से निकला यह हीरा डार्क पावर का स्वामी है . 


शोधकर्ताओं के मुताबिक़ कोहिनूर ( Kohinoor) में  एक ऐसा डार्क पावर है जो अब तक यह सिद्ध कर चुका है कि यह हीरा कभी पुरुषों के लिये बना ही नहीं था .इसलिए जिन - जिन पुरुषों ने इसे धारण किया उसकी सल्तनत और जान दोनों गयी


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