देवी लक्ष्मी कैसे प्रकट हुईं ? अष्ट लक्ष्मी क्या है जानिये हिंदी में . Devi Laxmi kaisi prakat huin? aksht Laxmi kya hai janiye hindi mei

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 देवी लक्ष्मी कौन हैं ? क्या है इनके अवतरण की कथा ? जानिये.  जानिये देवी अष्ट लक्ष्मी के बारे में 



पुराणों में देवी लक्ष्मी को भगवान् नारायण की पत्नी , धन –धान्य , संतान , विजयी, सुख शान्ति और समृद्धि प्रदान करने वाली देवी की संज्ञा दी गयी है . मगर इनकी उत्पत्ति के सम्बन्ध में कुछ पुराणों में भिन्नता भी है . जहाँ कुछ पुराण जैसे कि श्रीमददेवीभागवत के अनुसार लक्ष्मी जी आदि शक्ति की स्वरुप है जिनसे काली और सरस्वती की उत्पत्ति हुई और उन्ही से त्रिदेवों की भी रचना हुई . फिर उन्होंने जगत कल्याण के लिए भगवन नारायण से विवाह किया और वे क्षीर सागर में उनकी सेवा में लग गयीं . 


वहीँ कुछ पुराण यह भी दर्शाते हैं कि देवी  लक्ष्मी की उत्पत्ति उस समय हुई जब देव और असुर मिलकर समुद्र मंथन कर रहे थें .उस समय समुद्र से निकलने वाली कुछ चीज़ें असुर को दी जा रही थी तो कुछ चीज़ें देवताओं को . एक दिव्य कन्या जब उसी दौरान समुद्र से निकली तो उसे नारायण को सौप दिया गया जिनसे भगवन नारायण ने विवाह किया. यह वही देवी लक्ष्मी है .समुद्र से निकलने के कारण लक्ष्मी को समुद्र देव की पुत्री भी माना जाता है . 


किन्तु पुराणों में ही ऐसे कई जहाँ वर्णित हैं कि देवी लक्ष्मी के एक नहीं अपितु आठ स्वरुप  हैं जिन्हें अष्ट लक्ष्मी कहा जाता है  जों  अपने भक्तों को अलग-अलग प्रकार से फल देने वाली हैं.  और पूरे संसार में उनके उन सभी आठो स्वरूपों की पूजा होती है , खासकर दिवाली के अवसर पर कुछ अधिक ही . तो आइये जानते हैं माता लक्ष्मी के उन आठो स्वरूपों को .      

 

आदि लक्ष्मी :- 


पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इन्होने ही सृष्टी समते त्रिदेवों और काली सरस्वती को प्रकट किया था . इन्हें जगत माता लक्ष्मी भी कहा जाता है जो भगवान नारायण से विवाह करके जगत के कल्याण में लग गयीं . आदि लक्ष्मी की विशेषता है कि वो सभी नश्वर प्राणियों को प्राण यानि कि जीवन देती हैं और फिर अंत में वो अपने भक्तों  को मोक्ष देकर उनका उद्धार भी करती हैं .


धन लक्ष्मी  :-


नाम से ही ज्ञात होता है कि ये धन की देवी हैं .ऐसी मान्यता है कि इन्होने भगवान विष्णु को  धन के संरक्षक कुबेर के ऋण से उऋण करवाने के लिए ही यह स्वरुप धारण किया था . तब से माता लक्ष्मी अपने इस स्वरुप में अपने भक्तों की भी  धन इच्छा की पूर्ति कराती हैं . इनके एक हाथ में धन से भरा कलश और दुसरे हाथ में कमल पुष्प है .


धान्य लक्ष्मी:-


इनका सबंध अन्न और अनाज से है . इनका यह स्वरुप अपने भक्तों के घरों को अन्न के भण्डार से भर देती हैं . इन्हें देवी  अन्नपूर्णा भी कहा जाता है . यह देवी तभी किसी के घर पर विराजती है जहाँ अन्न का सम्मान होता है . इसलिए पुराने समय में भोजन ज़मीन पर बैठकर किया जाता था और थाल पर अन्न ना छूटे या गिरे इसका भी ध्यान रखा जाता था . हिन्दू धर्म में बने अधिकतर धर्म  संस्कारों  के पीछे दैवीय कारण ही है.



गज लक्ष्मी :-


इन देवी को आपने कलेंडर और तस्वीरों में अवश्य ही देखा होगा जो कमल पुष्प पर विराजमान हैं और जिनपर दो गज यानि कि हाथी इनका जलाभिषेक करते हैं . इन्हें उर्वरता की देवी माना जाता है कृषि से सम्बंधित हैं . कहीं -कहीं इन्हें राजलक्ष्मी भी कहा जाता है क्यूंकि ये उस राज्य में खुशहाली लाती हैं जहाँ इनकी पूजा होती है.


संतान लक्ष्मी:-


पौराणिक मान्यतों के अनुसार ये स्कन्द माता का ही स्वरुप हैं जो एक बालक को अपनी गोद में बैठाये हुए हैं . जो भी भक्त संतान लक्ष्मी की पूजा अर्चना करता है देवी लक्ष्मी उन्हें अवश्य ही संतान सुख का फल प्रदान करती हैं . इनकी चार भुजाओं में कलश , कमल , तलवार और ढाल है .



वीर लक्ष्मी:-


नाम से ही ज्ञात होता है कि ये उन भक्तों को युद्ध और हर क्षत्रिय कार्य में विजयी दिलाती हैं जो भक्त इनकी पूजा अर्चना करते हैं . इनकी भी आठ भुजाओं में अनेकों प्रकार के अस्त्र – शस्त्र हैं. ऐसी मान्यता है कि ये अकाल मृत्यु का भी हरण कर लेती हैं और भक्तों को नया जीवन भी देती हैं .



विजयी लक्ष्मी:-


इनका दूसरा एक और नाम हैं – जय लक्ष्मी . यह देवी अपने भक्तों को हर भौतिक संकटों से मुक्ति दिलाकर उनके कार्य मे उन्हें विजयी दिलाती हैं .


विद्या लक्ष्मी:- 


इनकी पूजा अधिकतर वो भक्त  करते हैं जो किसी विद्या और कला के क्षेत्र से जुड़े रहते हैं. उन भक्तों को देवी उस विद्या में पारंगत होने का वरदान देकर उनके जीवन को खुशियों से भर देती हैं .

   

आइये जानें कुछ पूजा विधि :- 



धनतेरस के दिन सोना, चांदी, रत्न, आभूषण
आदि सामग्रियों को खरीदना शुभ माना जाता है। इसके
अलावा आप इस दिन चांदी के बर्तन भी खरीद सकते हैं।
अगर आप चाहें तो कोई इलेक्ट्रॉनिक आइटम भी खरीद
सकते हैं। ये सब खरीदते हैं तो आप पर मां लक्ष्मी की कृपा
हमेशा बनी रहती है।
कुछ अन्य उपाय 



धन तेरस पर धन प्राप्ति के अनेक उपाय बताए जाते हैं
लेकिन सभी उपायों से बढ़कर है धन और आरोग्य के देवता
धन्वंतरि का पावन स्तोत्र।
धन्वंतरि स्तो‍त्र



ॐ शंखं चक्रं जलौकां दधदमृतघटं चारुदोर्भिश्चतुर्मिः।
सूक्ष्मस्वच्छातिहृद्यांशुक परिविलसन्मौलिमंभोजनेत्रम॥
कालाम्भोदोज्ज्वलांगं कटितटविलसच्चारूपीतांबराढ्यम।
वन्दे धन्वंतरिं तं निखिलगदवनप्रौढदावाग्निलीलम॥
ॐ नमो भगवते महासुदर्शनाय वासुदेवाय धन्वंतराये:
अमृतकलश हस्ताय सर्व भयविनाशाय सर्व रोगनिवारणाय
त्रिलोकपथाय त्रिलोकनाथाय श्री महाविष्णुस्वरूप
श्री धन्वंतरि स्वरूप श्री श्री श्री औषधचक्र नारायणाय
नमः॥

इस स्तो‍त्र को कम से कम 11 बार पढ़ें।
👉 पूर्ण भाव से भगवान धन्वंतरि जी का पूजन करें।
👉 घर में नयी झाडू और सूपड़ा खरीद कर लाये और

                 विधि से पूजन करें।


👉 सायंकाल दीपक प्रज्वलित कर अपने मकान , दुकान
आदि को सुन्दर सजाये।
👉 माँ लक्ष्मी को गुलाब के पुष्पों की माला पहनाये और
उन्हें सफेद मिठाई का भोग लगाये।
👉 अपनी सामर्थ्य अनुसार तांबे, पीतल, चांदी के गृह-
उपयोगी नवीन बर्तन व आभूषण क्रय करते हैं।
👉 हल जुती मिट्टी को दूध में भिगोकर उसमें सेमर की
शाखा डालकर तीन बार अपने शरीर पर फेरें।
👉 धनतेरस के दिन सूखे धनिया के बीज खरीद कर घर में
रखने से परिवार की धन संपदा में वृ्द्धि होती है।
👉 कुबेर देवता का पूजन करें। शुभ मुहूर्त में अपने
व्यावसायिक प्रतिष्ठान में नई गड़ी बिछाएं।
👉 सायंकाल पश्चात १३ दीपक जलाकर तिजोरी में
भगवान कुबेर धन के देवता का पूजन करें।
👉 मृत्यु के देवता यमराज के निमित्त दीपदान करें।
👉 तेरस के सायंकाल किसी पात्र में तिल के तेल से युक्त
दीपक प्रज्वलित करें। पश्चात गंध, पुष्प, अक्षत से पूजन
कर दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके यम से निम्न प्रार्थना
करें-
‘मृत्युना दंडपाशाभ्याम्‌ कालेन श्यामया सह।

त्रयोदश्यां दीपदानात्‌ सूर्यजः प्रयतां मम। 

   

 

 

    

 

 

 

 

 

  

 

 

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