Panch Kanya अर्थात वो पांच स्त्रियाँ जो पुराणों और ग्रंथों में बहुत ही अधिक प्रसिद्ध हैं, उन्हें ही पञ्च कन्या के नाम से बुलाया गया है . इनके नाम इस प्रकार हैं :-
देवी सीता
देवी द्रोपदी
देवी गांधारी
देवी मंदोदरी
देवी अनुसूया
यदि बात करें स्त्रियों के चरित्र और स्वभाव की तो हिंदी पुराणों और ग्रंथों में इन पांच स्त्रिओं के नाम सबसे पहले आते हैं जो भारत की पौराणिक संस्कृति से जुड़े हैं . भारत में शायद ही ऐसी कोई हिन्दू महिला होगी जो इन पञ्च कन्याओं के गुणों के बारे में न जानती हों .इनमे सबसे पहला नाम देवी सीता का आता है .
देवी सीता
यूँ तो देवी सीता रामचरितमानस और बाल्मीकि रामायण में पहले से ही एक प्रसिद्द पात्र थी, मगर टी.वी पर रामायण का प्रसारण हुआ तो वो घर -घर प्रसिद्द हुईं . खासकर के महिलाओं ने उनके उस चरित्र और गुणों को समझा जो किसी भी आम महिला के लिए उसे निभाना संभव नहीं है .क्यूंकि वो धर्म की सूचक हैं . उन्हें त्याग और तपस्या की मूरत कहा गया है . पतिव्रत धर्म में स्त्रिओं में सबसे अग्रणीय स्थान रखने वाली देवी सीता को देवी लक्ष्मी का ही एक रूप माना जाता है. कहीं- कहीं पुराणों में सीता को वेदवती का दूसरा जन्म बताया गया है जो रावण जैसे दुष्ट असुर का संहार करने के लिए भूमि पुत्री के रूप में अवतरित होती है .
जनकसुता , जानकी , वैदेही, कल्याणी सीता के अनेकों नाम हैं .मगर एक नाम अयोनिजा उनकी उत्पत्ति से भी जुडा है .किसी भी जीव- प्राणी के द्वारा जन्म न लेने के कारण सीता को अयोनिजा भी कहा गया है .अयोनिज का अर्थ है वह प्राणी जी किसी के जनन अंगों से न जन्मा हो .भारतीय संस्कृति में सीता एक ऐसी चरित्र है जो हमें यह बतलाती है कि एक स्त्री को सुख हो या दुःख हमेशा अपने पति के साथ ही रहना चाहिए . ऐसा नहीं कि राजसुख के बाद यदि जीवन में दुःख आये तो वो पति को अकेला छोड़ दें .
सीता ने भी वही किया था .जब कैकयी ने राम के लिए अपने पति राजा दसरथ से भरत के लिए अयोध्या की राजगद्दी और राम के लिये वनवास माँगा तो फिर सीता भी राम के साथ वन में रहने चली गयी .अगर यही स्थिति आजकल की स्त्रिओं के साथ हो जाए तो वो सबसे पहले चैन की स्वास लेंगी चलो बला टली, पति १४ वर्षों के लिए घर से बाहर, अब अपनी मनमर्ज़ी का करो .क्यूंकि पति के रहते कुछ स्रियों की इच्छा पूरी नहीं होतीं .
वैसे सभी स्त्रियाँ ऐसी सोच की नहीं होतीं मगर ये सच हर स्त्री के लिए है कि
कोई भी स्त्री आज के समय में अपने राम के लिए स्वयं कष्ट भोगने की चाह नहीं रखेगी
, वो भी तब जब वो कोई बड़े राजघराने की युवती हो और जिसने बचपन से ही सभी प्रकार
के ऐशों- आराम का स्वाद चखा हो . इसलिए देवी सीता को स्त्रिओं में सबसे अग्रणीय रखा
गया है .यह नाम इतना पावन और पवित्र है
कि आज भी देवी सीता को भारतीय समाज में एक उत्कृष्ट
चरित्र की देवी मानकर उनकी पूजा की जाती है.
देवी द्रोपदी -
देवी द्रोपदी, पांचाल नरेश राजा द्रुपद की पुत्री थी .सीता की तरह ही देवी द्रोपदी को भी अयोनिजा कहा जाता है क्यूंकि इनकी उत्पत्ति भी यज्ञ वेदी से ही हुई थी . द्रोपदी का रूप – लावण्य बहुत ही अनुपम और आकर्षक था .इतना कि अगर उन्हें सुंदरियों की देवी भी कहा जाए तो भी कम होगा .भगवन शिव के वरदान के कारण ही उनके जीवन में पांच पति आयें जो पांडव थे . द्रोपदी, कृष्ण की भक्ति करती थीं . क्यूंकि वो कृष्ण की अपार शक्ति उनकी दिव्यता और विराटता से परिचित थीं .
द्रोपदी भी त्याग, धर्म और क्षमा की मूरत थीं. उनमे साहस भी था और क्षमा करने वाला विशाल ह्रदय भी . साहस का परिचय उन्होंने कौरव सभा में उस वक़्त दिया था जब द्रोपदी ने सभी को ललकारते हुए यह प्रश्न पुछा था कि जब महाराज युधिष्ठिर स्वयं को जुवे में हार चुके हैं तो फिर उनके पास क्या अधिकार बचता है उन्हें दाव पर लगाने का? या फिर कौरव किस आदर्श के साथ अपनी पुत्रवधू को दाव पर लगने दे रहे हैं ?
द्रोपदी की लाज उस वक़्त कृष्ण ने बचाई
थी . द्रोपदी क्षमा की भी मूरत थी .उसने जयद्रथ और कीचक को माफ़ कर दिया था . सीता
की तरह द्रोपदी भी अपने पति के साथ 13 वर्षों के लिए अज्ञातवास पर चली गयी थी जहाँ वो हमेशा
उन्ही की सेवा में लगी रहती . सीता की तरह
ही द्रोपदी भी एक राजकन्या थी .उन्होंने पांचाल और इंद्रप्रस्थ दोनों जगहों का सुख
भोगा था मगर जब बात धर्म और कर्तव्य की आई तो उसने भी वही किया . इसलिए द्रोपदी का
चरित्र भी एक उत्कृष्ट चरित्र है .
देवी गांधारी –
गांधारराज सुबल की पुत्री, धृतराष्ट्र की पत्नी और शकुनि की बहन गांधारी भी उन्ही स्त्रिओं की श्रेणी में आती हैं जो हमेशा पतिव्रत धर्म पर आस्था रखते हुए सभी कार्य धर्म के अनुरूप करती हैं .गांधारी ने शिव से सौ पुत्रों का वरदान प्राप्त किया था .मगर जिस दिन गांधारी का विवाह धृतराष्ट्र से हुआ और उसे पता चला कि उनके पति नेत्रहीन हैं तो फिर उसी दिन से गांधारी ने भी स्वयं को पति के समान आखों पट्टी बांधकर नेत्रहीन कर लिया .
इतना बड़ा निर्णय शायद ही कोई स्त्री लेती .मगर गांधारी ने लिया .उन्होंने अपने पुत्रों को भी उनके युवा होने तक नहीं देखा जिनके लिए उसने शिव से वरदान माँगा था . इसके साथ ही गांधारी हमेशा धर्म पर अधिक बल देती थीं . धृतराष्ट्र एक तो नेत्रहीन थे ऊपर से वो अपने पुत्रमोह में इतने खो चुके थे की उन्हें दुर्योधन में कोई भी बुराई नज़र नहीं आती थी.
मगर गांधारी अपनी आखों पर पट्टी
बांधकर भी सदा धर्म- अधर्म को देख लेती है . वो हमेशा इसके लिए अपने पति को समझाकर
पुत्र को टोकती भी रहती थी मगर दुर्योधन
का हट उसे उसके अंत तक पहुंचा देता है .
देवी अनुसूया
इस नाम से ज़्यादातर स्त्रियाँ वाकिफ होंगी क्यूंकि इन देवी के साथ एक बहुत ही पौराणिक कथा जुडी है .जब त्रिदेविओं को पता चला की देवी अनुसूया पतिव्रत धर्म में संसार में सबसे सर्वोच्चम स्थान रखती हैं तो फिर लक्ष्मी पार्वती और सरस्वती को उनसे एक इर्ष्या सी होनी लगी . वैसे भी स्त्रिओं में इर्ष्या का होना एक जन्मजात गुण है .वो चाहे मानव हो या कोई देवी इससे अछूती नहीं रह सकती .
इसलिए त्रिदेविओं ने देवी अनुसूया के पतिव्रत धर्म को खंडित करने के लिए एक योजना बनाई और तीनो ने अपने अपने पतियों पर जोर दिया कि वे किसी भी तरह जाकर देवी अनुसूया के पतिव्रत धर्म को नष्ट कर दें जिससे कि उनका नाम और मान नष्ट हो जाए . त्रिदेव यानि कि ब्रह्मा, विष्णु और महेश इसके लिए देवियों को समझाते भी हैं कि वो ऐसा न करें मगर वो नहीं मानतीं .
जिसके बाद त्रिदेव साधू के वेश में आकर देवी अनुसूया से इस शर्त पर भिक्षा प्राप्त करने की मांग रखते हैं जबतकि वो अपनी स्त्री लाज का न खोये. अर्थात देवी अनुसूया उन्हें पर- पुरुष समझकर भिक्षा न दें. परपुरुष के बाद एक ही पुरुष बचता था और वो था खुद का पुरुष यानि की स्वयं का पति .मगर इसके फ़ौरन बाद देवी अनुसूया त्रिदेवों को बच्चा बनाकर पालने में डाल देती हैं और उन्हें भोजन कराती है .
देवी अनुसूया जिस वक़्त त्रिदेवों को भोजन कराती हैं उस वक़्त वो उनके बच्चे के सामान होते हैं इसलिए वो उनके लिए पुरुष नहीं रह जाते. इस तरह देवी अनुसूया का नाम भी स्त्रिओं में अग्रणीय है . इन्होने ही देवी सीता को पतिव्रत धर्म का ज्ञान करवाया था .
देवी मंदोदरी -
ये असुरों के शिप्ली मयदानव की पुत्री और लंकापति रावण की पत्नी थी जो हमेशा असुरों से घिरी रहती थी. मगर एक असुर पति के साथ रहते हुई भी वो सदा धर्म का पालन करती थी और हमेशा अपने पति को सलाह देती थी कि वो कोई अधर्म ना करें . मगर रावण कभी भी मंदोदरी की नहीं सुनता था. मंदोदरी भी धर्म का अनुसरण करने वाली एक महान स्त्री थीं इसलिए इनका भी नाम पञ्च कन्याओं में आता है .
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