1764 बक्सर युद्ध (Battle of Buxar ) के कारण और परिणामों को जानिये.

@Indian mythology
0

18वीं सदी, यह भारत के लिए दुर्भाग्य और अंग्रेजों की खुकिस्मती का दौर था जो उनके कदम भारत में पड़े और वर्ष 1757 में प्लासी युद्ध जीतकर अंग्रेजों ने भारत की भूमि पर अपनी आधी जीत दर्ज करा दी. फिर इसके बाद वर्ष 1764 के बक्सर युद्ध जीतने के बाद अँगरेज़ पूरी तरह से भारत के भाग्य विधाता बन गए . आइये बक्सर युद्ध के कारणों पर नज़र डालते हैं.

 

बक्सर युद्ध  (Battle of Buxar)  कारण और परिणाम 



बक्सर युद्ध Buxar yuddh

मीर काशिम , शुजा-उ-द्धोला, शाह आलम द्वितीय

ईस्ट इंडिया गवर्नर वेंसिटार्ट

वर्ष – 22-23 अक्टूबर 1764  

स्थान -  बक्सर का मैदान ( आधुनिक बिहार )

 

 


प्लासी युद्ध में अंग्रेजों के हाथो सिराजुद्धोला मारा गया और रोबर्ट क्लाइब ने मीर जाफ़र को बंगाल का नया नवाब बनाया. इस बात से मुर्शिदाबाद के एक शायर हाज़िर तबियत इतने नाराज़ हुए कि उन्होंने मीर जाफ़र को रोबर्ट क्लाइब का गधा तक कह डाला. 


अँगरेज़ अपनी निति पर काम करते जा रहे थे बांटों और राज करो और जो न बंटे उसे युद्ध में मार डालो.


वर्ष 1759 में अंग्रेजों और डचों के बीच वेदरा का युद्ध हुआ जिसमे डचों की हार हुई. इसके बाद भारत में पूरी तरह से डचों का पतन हो गया. इस लड़ाई में भी रोबर्ट क्लाइब के ख़ास भूमिका थी.


वर्ष 1760 में जब रोबर्ट क्लाइब की इंग्लैंड रवानगी हुई तो फिर उनकी जगह ज़े. जेड हालवेल भारत आये मगर वे बहुत ही कम समय के लिए भारत में रुके और फिर उनके जाने के बाद वेंसिटार्ट भारत आये.


मीर जाफ़र का सम्बन्ध रोबर्ट क्लाइब से अच्छा था इसलिए उसने वेंसिटार्ट को ज्यादा महत्व और तवज्जो नहीं दिया, जिससे वेंसिटार्ट मीर जाफ़र से नाराज़ हो गया और फिर वर्ष 1760 में मीरजाफ़र को हटाकर उसके दामाद मीर काशिम को बंगाल का नया नवाब बनाया गया. मगर कुछ शर्तों के साथ.


मीर काशिम ने इस नवाबी के बदले ईस्ट इण्डिया कंपनी को वर्धमान ,मिदनापुर और चटगाँव के इलाके दिए और खुद की सेना न बढाने की अंग्रेजी फरमान को भी मान लिया.


मीर जाफ़र को 15000 के मासिक भत्ते पर उसे कलकत्ता भेज दिया गया.


मीर काशिम समझ गया था, अगर उसने सिर्फ अंग्रेजों की जी हुजूरी में वक़्त बिताया तो उसके साथ भी बुरा हो सकता है, इसलिए उसने एक ज़र्मन अधिकरी समरू की देख -रेख में अपनी सेना बढानी शुरू कर दी.


मुर्शिदाबाद में अंग्रेजों की ज्यादा दखल थी, इसलिए मीर काशिम ने अपनी राजधानी जो पहले मुर्शिदाबाद थी ,उसे वहां से हस्तांतरित कर मुंगेर ले गया और चोरी- छिपे वहीँ बम गोले बारूद बनाने शुरू कर दिए.


मीर काशिम ने राजकोष भरने के लिए पुराने करो में बढ़ोतरी कर कुछ नए कर भी लागू कर दिए. 


बक्सर युद्ध की प्रमुख पृष्ठभूमि 

 

जून 1763 में मीर काशिम ने कुछ ऐसे लोगों की हत्या करवा दी जो उनके दुश्मन और अंग्रेजों के ज्यादा वफादार थे . अँगरेज़ इस घटना से बहुत नाराज़ हुए.



वेंसिटार्ट ने 1763 में मीर काशिम को हटाकर एक बार फिर से मीर जाफ़र को बंगाल का नवाब  बनाया.



मीर काशिम अपनी सेना लेकर अवध के नवाब शुजा –उ द्धोला और मुगल शासक शाह आलम  द्वितीय के यहाँ जाकर शरण ली और 1764 में अपनी संयुक्त सेना बनाकर बक्सर के मैदान में पड़ाव डाल दिया.



उस वक़्त हेक्टर मुनरो अंग्रेजों के नए गवर्नर थे .वर्ष 1764 में अक्टूबर महीने में ( 22-23 को ) हेक्टर मुनरो ने अपने नेतृव में अंग्रेजी सेना लेकर मीर काशिम , शुजा-उ-द्धोला, मुगल शासक शाह आलम पर धावा बोल दिया. इस युद्ध में फिर से अंग्रेजों की जीत हुई. 



परिणाम और समीक्षा 


इस युद्ध के परिणाम स्वरुप पश्चिम बंगाल ,बिहार ,झारखण्ड और बंगाल की दीवानी और पूरा राजस्व ईस्ट इण्डिया कंपनी के हाथ चली गयी. मीर जाफ़र जैसे गद्दारों के कारण ही अँगरेज़ भारत में पनप पाए और जो लोग लड़ना चाहते थे भी दुसरे नवाबों और राजाओं की सहायता न मिलने के कारण अंग्रेजों से हारते रहे .इस युद्ध का महत्व भारतीय इतिहास में इसलिए भी बहुत अधिक है क्यूंकि इसके बाद ही अँगरेज़ भारत में और मज़बूत हो गए. उन्होंने खुद को साबित कर दिया कि वही भारत के भाग्य विधाता हैं.  

 

 

 

 

एक टिप्पणी भेजें

0टिप्पणियाँ

Hi ! you are most welcome for any coment

एक टिप्पणी भेजें (0)