प्लासी युद्ध ( Battle of Plassey)
कर्नल रॉबर्ट क्लाइव (Colonel Robert Clive)
नवाब - सिराजुद्दौला (
युद्ध स्थान - प्लासी का मैदान ( Battle field of Plassey)
समय - वर्ष 22 जून 1757
प्लासी युद्ध क्या है? प्लासी युद्ध कब और कहाँ हुआ ? प्लासी युद्ध के कारण
और परिणामों को जानिये.
प्लासी का युद्ध (battle of Plassey) भारत के इतिहास में एक बहुत बड़ी घटना है. यह युद्ध विश्वासघात, प्रतिशोध और उस बदलाव को याद दिलाता है जो वर्ष 1756 में कलकत्ता से 160 किलोमीटर दूर भागीरथी नदी के समीप प्लासी के गाँव में हुआ था.
इसे युद्ध नहीं कहा जा सकता क्यूंकि अगर ये युद्ध होता तो निश्चित तौर पर जीत सिराजुद्धोला (Siraj Ud-Daulah) की होती. लेकिन ईस्ट इंडिया कंपनी (East India Company) का कर्नल रॉबर्ट क्लाइव (Colonel Robert Clive) मात्र अपनी 3,000 की अंग्रेजी फ़ौज लेकर सिराजुद्धोला के 50,000 सेना पर हावी हो गया.
मगर यह संभव कैसे हुआ? और किस तरह प्लासी युद्ध की पृष्ठभूमि तैयार हुई? आइये हम उसे पहले जानते हैं.
प्लासी युद्ध से पहले भारत की
राजनितिक स्थिति
हिन्दुस्तान में 18वीं सदी
का दौर, वो दौर था जब वर्ष 1750 में मुगल, हिंग के पहाड़ से अब हिंग की डिबिया में
समा चुके थे. उनका असर अब खत्म हो चला था. असर था तो उन क्षेत्रीय राजाओं का जिन्होंने
अपनी शक्ति और सामर्थ्य के दम पर अपने अपने गढ़ बना लिए थे.
18वीं सदी में क्षेत्रीय राजाओं के गढ़
1.पश्चिम और उत्तर -पश्चिम
में मराठा साम्राज्य बुलंदियों पर था. जहाँ पेशवा जी महाराजा का राज था.
2.दक्षिण में मैसूर रियासत थी
जहाँ हैदरअलि और टीपू सुलतान का उदय हो रहा था.
3.उत्तर पश्चिम में पंजाब का
भू- भाग था जहाँ सिक्ख मिस्ल थे.
4.अफगानिस्तान में तुर्रानी वंश
का शासक अहमदशाह अब्दाली आक्रमण की तैयारियों में लगा था.
5.नजीबखान, जो रोहिल्ला पठान
था उसने नजीबाबाद में अपने पैर जमा रखे थे.
6.बंगाल में अवध के नवाब
सिराजुद्दौला की रियासत थी. मगर उससे पहले वहां का नवाब फर्रुखसियर था.
भारत की आर्थिक स्थिति
भारत में East India Company) के आने से पहले ही यहाँ डच , फ़्रांसिसी और पुर्तगाली, क्षेत्रीय राजाओं की
अनुमति से व्यपार करते आ रहे थे. लेकिन क्षेत्रीय राजाओं ने कभी इस पर ज्यादा
ध्यान नहीं दिया कि व्यपारियों की निति क्या है? अगर ध्यान दिए होते तो अंग्रेजों
की निति से सतर्क रहते.
1750 के उसी अंत होते दौर
में अंग्रेजों की ईस्ट इंडिया कंपनी भी व्यपार के मकसद से लन्दन से भारत पहुंची और
उन्होंने मुग़ल बादशाह जहाँगीर से अनुमति लेकर व्यपार शुरू कर दिया. जिस तरह भारत
में पहले से ही डच , फ्रंससियों और पुर्तगालियों की कंपनियां थीं उसी आधार पर ईस्ट
इंडिया कंपनी ने भी कलकत्ता के हुगली नदी के किनारे अपना फोर्ट विलियम बनाया.
फोर्ट विलियम एक छोटे से किले की तरह था जहाँ अँगरेज़ रहते भी थे और उस
जगह को वे माल रखने और ले जाने के लिए इस्तेमाल में भी लाते थे.
अँगरेज़ , डच , फ्रांससी और पुर्तगालियों
के ठिकाने.
डच |
वर्ष 1615 – बंगाल (हुगली, चुचुरा,पिपली, |
पुर्तगाली |
मुंबई , गोवा, दमन, दीव |
फ्रांससी |
चन्द्र नगर , पांडीचेरी |
अँगरेज़ |
हुगली में फोर्ट विलियम, चेनई , सूरत, |
कर में सबको छुट दिए जाने से अँगरेज़ नाराज़. ( कारण)
अंग्रेजों के प्रतिद्वंदी फ़्रांसिसी थे और दोनों के लिए ही महत्वपूर्ण बंगाल पर वर्चस्व था. वर्ष 1717 में मुग़ल शासक फर्रुखसियर ने मुन्शिद कुली खां को बंगाल का सूबेदार बनाया. उसके बाद बंगाल का अगला नवाब बना अलीवर्दी खां.
उस वक़्त उड़ीसा, बिहार और अवध बंगाल में थे. मगर अब नए नवाब अलीवर्दी खां से अंग्रेजों की कर (tax) को लेकर अनबन शुरू हो गयी .क्यूंकि पिछले नवाब फर्रुखसियर ने अंग्रेजों को जो आतंरिक व्यपार के लिए कर (tax) में छूट और सुहलियत दे रखी थी, अँगरेज़ उसका गलत फायदा उठाते आ रहे थे.
बंगाल के नवाब अंग्रेजों को जो भी दस्तखत आतंरिक व्यपार के लिए जारी करके देते, उसका अँगरेज़ बाहर माला भेजने और लाने में गलत इस्तेमाल करते थे, जिससे भारत के मूल व्यपारियों को घाटा हो रहा था.
इसके बाद अलीवर्दी खां ने एक
अहम् फैसला लेते हुए सभी व्यपारियों के लिए आतंरिक कर (tax) में छूट दे दी जिससे अँगरेज़ खफा हो गए.
"कर नहीं तो व्यपार नहीं" की निति से अंग्रेजों में गुस्सा ( कारण)
विलियम फोर्ट में अंग्रेजों का क़त्ल. ( बदले की भावना)
वर्ष 1756 में अलीवर्दी खां के बाद उनका नाती सिराजुद्धोला बंगाल का नवाब बना. अंग्रेजों और बंगाल के पुराने नवाबों के साथ कर (tax) को लेकर पहले से ही अनबन चल ही रही थी, इसी बीच सिराजुद्धोला ने अंग्रेजों के खिलाफ एक बड़ा फैसला लिया- “कर नहीं तो व्यपार नहीं.”
अंग्रेजों ने जब साफ़ तौर पर इसके लिए इनकार किया तो सिराजुद्धोला ने सेना लेकर ईस्ट इंडिया कंपनी के फोर्ट विलियम पर धावा बोल दिया और एक छोटे से कमरे में 146 अंग्रेजों को बंदी बनाकर ठूस दिया.
कहा जाता है कि उसमे सिर्फ 23 अँगरेज़ ही जिंदा बचे थे.
अंग्रेजों ने सिराजुद्धोला के इस जघन्य अपराध को ब्लेक हॉल इंसिडेंट नाम दिया था.
फोर्ट विलियम पर हमला होते
ही बाकी के बचे -खुंचे अंग्रेजों ने हुगली के द्वीप फूलटा में जाकर शरण ली और वहीँ
से अपने उच्च अधिकारी को मद्रास खबर पहुंचा दी.
कर्नल रॉबर्ट क्लाइव का कलकत्ता की ओर कूच ( कारण)
ईस्ट इण्डिया कंपनी का कर्नल रॉबर्ट क्लाइव मद्रास में तैनात था. मद्रास के अलावे उसके पास सभी राज्यों से खबर पहुँचती थी .जब कर्नल रॉबर्ट क्लाइव को बंगाल की खबर मिली तो वो फ़ौरन 2500 अंग्रेजी सेना और 6 बड़े जहाज़ लेकर निकल पड़ा और करीब 2 महीने बाद उसका जहाज़ कलकत्ता तट पर पहुंचा.
जिसके बाद सिराजुद्धोला को संधि पत्र पर हस्ताक्षर कर फिर से फोर्ट
विलियम अंग्रेजों के हवाले करना पड़ा.
कर्नल रॉबर्ट क्लाइव का षड़यंत्र ( कारण )
कर्नल रॉबर्ट क्लाइव एक चालाक व्यक्ति था .जिस तरह से सिराजुद्धोला ने विलियम फोर्ट के अन्दर डालकर अंग्रेजों को मारा था वो कहीं दुसरे राजाओं के लिए एक उदारण न बन जाए इसलिए लार्ड क्लाइव जल्द से जल्द सिराजुद्धोला को सबक सिखाना चाहता था और इसके लिए उसने पता लगाया कि वो किन व्यक्तियों को सिराजुद्धोला के खिलाफ खड़ा कर सकता है.
सेना कमांडर मीरजाफ़र की गद्दारी ( कारण)
कर्नल रॉबर्ट क्लाइव की आखों ने जल्द ही उन लोगों को खोज निकाला जो नवाब के खिलाफ थे और उनमे सबसे पहला था, नवाब का सेना कमांडर मीर जाफ़र. उसके बाद व्यपारी अमीचंद, जगत सेठ और रायदुर्भ .
कर्नल रॉबर्ट क्लाइव ने फ़ौरन मीर जाफ़र को बंगाल का नया नवाब बनाये जाने का लालच देकर उसे अपनी ओर कर लिया . जब लार्ड ने सारी तैयारी कर ली तो फिर उसने सिराजुद्धोला के सामने आये दिन ऐसे ऐसे मांग रखने शुरू कर दिए जो नवाब की आन -बान और शान के खिलाफ थे और जिनका सीधा मतलब था, सिराजुद्धोला की सत्ता को चुनौती देना.
सिराजुद्धोला को चुनौती ( संघर्ष )
इसी बीच जिस चन्द्रनगर में फ्रांसीसियों की कंपनी थी, वहां अंग्रेजों ने धावा बोलकर कब्ज़ा जमा लिया. कर्नल रॉबर्ट क्लाइव की ओर से सिराजुद्धोला को सीधे चुनौती मिलने लगी थी .लेकिन फिर इसके जवाब में सिराजुद्धोला ने भी फ़ौरन सैन्य कार्यवाही का फैसला लिया.
मगर सिराजुद्धोला की सेना क्लाइव
के खिलाफ कूच कर पाती इससे पहले उनमे फूट पड़ गयी और फ़ूट डलवाने वाला था सिराजुद्धोला
का कमांडर मीरजाफ़र. मीर जाफ़र ने नवाब के सामने सैनिकों के लिए भारी वेतन की मांग
रख दी. सिराजुद्धोला ने जैसे तैसे तत्काल सेना को वेतन दे दिया जिसके बाद सिराजुद्धोला
अपने 50000 सैनिकों के साथ युद्ध के लिए निकल पड़ा.
प्लासी के मैदान में सिराजुद्धोला
के साथ धोखा और हार
वर्ष 22 जून 1757 में कलकत्ता से 160 किलोमीटर दूर भागीरथी नदी के किनारे प्लासी के एक गाँव में दोनों ओर की सेनाएं युद्ध के लिए जमा हो गयी. अब यहाँ भारत के भविष्य का फैसला होना था.
क्लाइव और सिराजुद्धोला दोनों ओर की सेनाओं ने मोर्चा संभाल लिया .मगर अपने कमांडर मीरजाफ़र और रायदुर्लभ को अंग्रेजों के खिलाफ न लड़ता देख सिराजुद्धोला समझ गया कि उसके साथ मीरजाफ़र ने गद्दारी कर दी है.
इस बीच सिराजुद्धोला का एक नायक मीरमदन अंग्रेजों से लोहा लेता रहा. मगर इसी बीच तेज़ बारिश की वजह से सिराजुद्धोला के गोला बारूद पानी से भींग गए वहीँ अंग्रेजों ने खुद के सामानों को तिरपाल से ढके रखा.
कर्नल रॉबर्ट क्लाइव के 3000 हज़ार सैनिक, सिराजुद्धोला के 50000 सैनिकों पर इसलिए भारी पड़ रहे थे क्यूंकि मीरजाफ़र ने अपने स्वार्थ में आकर खुद को बाँध लिया था. जब सिराजुद्धोला ने अपनी इज्ज़त बचाने के लिए मीरजाफ़र के सामने अपनी पगड़ी रख दी तो मीरजाफ़र ने फिर से दिखावे का ढोंग किया और सिराजुद्धोला को अगले दिन युद्ध करने का सुझाव दिया.
सिराजुद्धोला ने गद्दार मीरजाफ़र की बात मानकर अपनी सेना को जैसे ही पीछे लिया कर्नल रॉबर्ट क्लाइव ने उन पर आक्रमण कर दिया और फिर एक कत्लेआम मच गया. प्लासी युद्ध जितने के बाद क्लाइव ने मीरजाफ़र को बंगाल का नया नवाब बना दिया और अँगरेज़ लम्बे समय तक उनसे अपने स्वार्थ की पूर्ति करते रहे.
निष्कर्ष एवं परिणाम .
प्लासी युद्ध जीतने के बाद अंग्रेजों की जोर-जबरजस्ती और बढ़ गयी और वे भारतीयों के साथ और अत्याचार करने लगे. बाद में अंग्रेजों ने इसी “फूट डालो राज करो” की निति का भरपूर प्रयोग किया और उन्होंने भारत में लाखों मीरजाफ़र जैसे गद्दार खड़े कर दिए.
ये तो अंग्रेजों की अपनी निति थी. लेकिन सिराजुद्धोला क्यूँ इतना ढीला रहा? वो चाहता तो फूलटा द्वीप पर जा छीपे अंग्रेजों का सफाया कर सकता था. मगर सिराजुद्धोला ने ऐसा न करके अपने नाच-गान और नृत्य में खोया रहा.
सिराजुदोला ने अगर अपनी सेना का ख्याल रखते
हुए उन्हें अपने हाथ में रखा होता तो शायद उसे हार का सामना नहीं करना पड़ता. बरसात
में उसकी युद्ध की तैय्यारी भी कुछ आधी -अधूरी थी. इसके अतरिक क्षेत्रीय राजाओं का
एक दुसरे से कोई मतलब न रखने और अंग्रेजों के प्रति ज्यदा वफ़ादारी दिखाना भी ऐसे
युद्धों में हमेशा अंग्रेजों की जीत का एक बड़ा कारण बनता रहा जिस कारण अँगरेज़ इतने सालों
तक भारत में राज करते रहें.
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