Pongal
पोंगल ( Pongal) पर्व क्यूँ और कैसे मनाते हैं , आइये जानते हैं कुछ कारणों को.
1.मकर संक्रांति के पर्व को तमिलनाडू में पोंगल के नाम से जाना जाता है, जिसे धान के फसलों के कटने के बाद मनाते हैं .
2.हर घर धन और धान्य से भरा हो इसलिए इस दिन सूर्य और गाय -बैलों की पूजा की जाती है जो धरती पर इंसानों की तरक्की के कारण है.
3.ज्योतिष विज्ञान के अनुसार इस दिन सूर्य, धेनु राशि से मकर
राशि में प्रवेश करता है. सूर्य के दक्षिणी गोलार्ध से निकलकर उत्तरी गोलार्ध में
आना उत्तरायण कहलाता है. इस दिन को अत्यंत ही शुभ मंगलकारी माना जाता है.
4.भारत के दक्षिण में बसे तमिलनाडू शहर में इस पर्व से एक दिन पहले ही लोग अपने -अपने घरों की साफ़- सफाई शुरू कर देते हैं . कुछ पुरानी और बेकार चीज़ों की होलिका जलती है. फिर लोग अपने घरो की रंगाई -पुताई करवाकर घर में नयी-नयी चीज़ें लाते हैं.
5.इस दिन उत्सव में जो ढोल- ताशे बजते हैं उसे बोगी कट्टु कहा जाता है. बोगी कट्टु उत्सव देवताओं के राजा इंद्र को समर्पित होता है जिसे ऋतुओं का भी राजा कहा गया है. इसलिए उस दिन पेड़ पौधों की भी पूजा की जाती है.
6.खेतों से निकाले गए चावल से एक चूर्ण तैयार किया जाता है .उस चूर्ण से घर आँगन में जो रंगोली बनाई जाती है उसे कोलम कहते हैं. यह लगभग सभी घर में बनाई जाती है.
7.बोगीकट्टु के बाद बड़ा पोंगल
बनाया जाता है. उस दिन कोलम की आकृतियाँ भी कुछ बड़ी होती हैं जो सूर्य देव को समर्पित
होती है.
8.एक बड़े से बर्तन में दूध
चढ़ाकर उसमे खेत से लाये नए धान के चावल से खीर बनाई जाती है और बर्तन के ऊपरी
हिस्से के मुँह को हल्दी के पौधे से बाँध दिया जाता है.
9.एक पट्टे पर सूर्य की आकृति निकालकर उसकी पूजा की जाती है.
10.इसके अगले दिन मट्टू
पोंगल मनाया जाता है. जिसमे पशुओं के
प्रति आभार जताया जाता है.
11.किसान अपने बैलों के
गले में फूलों का हार और उनकी सिंगों पर कीमती धातु का छल्ला एवं मोती माला डालते
हैं.
12 .खेतों में गोबर गणेश
बनाकर उसकी पूजा की जाती है.
13.सजाये गए बैलों के गले
व् सिंग में पैसो की एक पोटली बाँधी जाती है फिर बैल को छोड़ दिया जाता है.
14.कोई भी उस बैल को पकड़कर
उससे पैसों की पोटली ले सकता है. मगर कुछ बैल बहुत ही अड़ियल होते हैं जो जल्दी हाथ
नहीं आते.
15.शाम को ग्राम देवी की पूजा अर्चना की जाती है और फिर बैल गाड़ियों की दौड़ प्रतियोगिता रखी जाती है.
महत्व
ऐसे पर्व जो पुराने समय से चले आ रहे हैं, भारत की उस पुरातन संसकृति को जोड़े रखने में बहुत ही सहायक है.
सदियों से चली आ रही ऐसी पूजा- पद्दति जिनमे सूर्य ,फसलों और गाय बैलों की पूजा होती हो, यह हमारी आस्था को ज़रूर दर्शाती है.
मगर इस आस्था में एक आभार, प्रेम और कृतज्ञता भी है जो हम इस प्रकृति से जुड़े सूर्य, फसलों और पशुओं के लिए रखते हैं और यह अच्छी बात है.
Thanks
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