औरंगजेब (Auranzeb) का जीवन चरित्र.
Biography of Aurangzeb in hindi
औरंज़ेब इतिहास में नायक या खलनायक?
औरंगजेब की धार्मिक निति
औरंगजेब के बच्चों के नाम.
भूमिका –
मुग़ल साम्राज्य का सबसे ताकतवर बादशाह औरंगजेब (Aauranzeb) इतिहास के पन्नों में दर्ज एक
ऐसा नाम है जो अपनी कट्टरता के लिए भी जाना जाता है और मुग़लवंश को आगे बढाने वाले
एकलौते शासक के रूप में भी. जानिये औरंगजेब का जीवन चरित्र और इतिहास. वे नायक थे
या खलनायक?
नाम - अब्दुल मुज्जफर मुहीउद्दीन मोहम्मद
औरंगजेब आलमगिरी
जन्म - 14 अक्टूबर, 1618
जन्म - दाहोत , गुजरात
संतान - बहादुर शाह ,आजम शाह , मोहम्मद काम बक्श, मोहम्मद सुलतान, सुलतान मोहम्मद अकबर.
कार्य- सुबेदारी , बादशाही, भाई दारा शिकोह की हत्या ,पिता शाहजहाँ को कारागार.
औरंगज़ेब एक योद्धा के रूप में.
मुग़ल वंश के 17वीं शताब्दी का छठा बादशाह, औरंगजेब ही था जो शाहजहाँ के बाद वर्ष 1658 में मुग़ल तख़्त पर बैठा. मगर वो
तख़्त उसे भाइयों और रिश्तेदारों का खून बहाने के बाद ही मिल पाया था.
वैसे भी तख़्त पाने के लिए मुगलों में भाइयों के बीच संघर्ष
आम बात थी. मगर तख़्त हासिल करने के बाद भी उसमे जमे रहना एक चुनौती की तरह था.
अधिक दिनों तक तलवारों की खून सूखे रहने का मतलब होता था, तख़्त का भी सुख जाना.
और सूखे हुए तख़्त पर बैठे बादशाह को ठोकर मारकर
गिराने के लिए उनके ही भाई – भतीजे हमेशा तैयार रहते थे. जिन बादशाहों ने इसका
अनुसरण नहीं किया वे बहुत ही जल्द फना हो गए.
औरंगजेब यह बात अच्छी तरह से जानता था, इसलिए उसने सोच लिया था कि वो हिंदुस्तान में मुग़ल तख़्त का
इस्तेमाल कभी फूलों की शय्या की तरह नहीं करेगा. अपने साम्राज्य को बढाने के लिए
उसने दादा अकबर की नीतियों का सहारा लिया.
औरंगजेब ने 48 वर्षों
तक हिंदुस्तान में शासन किया. और ख़ास बात यह है कि पूरी मुग़ल सल्तनत के ३५० वर्षों
के शासन काल में एक औरंगजेब ही ऐसा बादशाह हुआ जिसने मुग़ल काल में हिंदुस्तान की
सरहदों को एक नयी ऊँचाई दी.
औरंगजेब दुसरे मुग़ल राजाओं की तरह बिल्कुल भी नहीं
था. तभी तो वो अपना कोई भी दिन
ऐशो-आराम, नाच गान, शेरो–शायरी और
चित्रकारी में नहीं बल्कि युद्ध भूमि के तपते रेगिस्तान में बिताता था.
तख़्त की लड़ाई .
शाहजहाँ दारा शिकोह को बहुत मानते थे. चुकि दारा बड़े
भी थे इसलिए वो मुग़ल तख़्त के हकदार भी थे. मगर औरंगजेब दारा को इस लायक नहीं मानता था. और औरंगजेब की दृष्टी में यह सत्य भी था.
क्यूंकि दारा औरंगजेब की तरह एक योद्धा नहीं बल्कि एक
उदारवादी व्यक्ति था जो हमेश धर्म-ग्रंथों, उपनिषदों एवं
धर्म गुरुओं से घिरा रहता था. वो दारा ही थे जिन्होंने सबसे पहले हिन्दुओं के
उपनिषदों का अनुवाद दूसरी भाषाओँ में करवाया.
मुग़ल तख़्त पाने के अभिलाषी औरंगजेब ने 19 मई 1668 में आगरा से कुछ मील दुर समूहगढ़ में दारा के
साथ युद्ध किया. उस वक़्त औरंगजेब के पास उसकी 40,000 की सेना थी और दारा के पास 50000.
मगर इसके वावजूद औरंगजेब ने भाई को युद्ध में हराकर उसे मार
डाला. इसके बाद उसने अपने पिता शाहजहाँ को आगरा कीले में कैद करवाकर खुद दिल्ली
चला गया.
औरंगजेब की रणनिति
औरंगजेब अपने लड़ाकूपन और योद्धा वाले व्यक्तित्व के दम पर मुग़ल साम्राज्य की सरहद
को अफगान से लेकर पक्षिम भारत तक फैलाने में सफल हुआ था.
जिस मुग़ल वंश की नींव को बाबर ने 1526 में इब्राहिम लोदी को हराकर हिन्दुस्तान में रखा, उसे औरंगजेब ने विस्तार दिया. उसका शासन काल 48 वर्षों का रहा .
लेकिन इन वर्षों में उन्होंने दक्षिण में बीजापुर और
गोलकुंडा जैसी ताकतवर मुस्लिम रियासतों के अलावे मराठों को जंग में शिकस्त देकर, दक्षिण भारत तक मुगल सरहद को फैला दिया था. एक तरह से देखा जाए तो अफगानिस्तान से लेकर दक्षिण भारत तक और गुजरात से
लेकर असम तक उसका साम्राज्य फैला था.
औरंगजेब की धार्मिक नीतियाँ
औरंगजेब इस्लामिक शरिया कानून के मुताबिक अपनी सल्तनत को चलाता था. इसलिए हिन्दूजन औरंगजेब को उनके जीवन काल में किये गए कार्यों के चलते उन्हें एक
खलनायक के रूप में देखते हैं.
कभी औरंगजेब पर हिन्दुओं को जबरन मुस्लिम बनाने का दोष लगा तो कभी बहुत सारे मंदिरों
को लूटकर उन्हें ध्वस्त कर देने का. उनमे मथुरा का केशवराय मंदिर प्रमुख है. इस
मंदिर को बुंदेला राजा ने बनवाया था जिसे बाद में औरंगजेब ने वर्ष 1669 में तुडवा दिया था.
इसके अलावे उन्होंने सिखों के ९वे गुरु, गुरु तेगबहादुर को धर्म परिवर्तन के लिए मजबूर किया था और उनके
न झुकने पर उनकी हत्या कर दी थी.
हिन्दुओं पर जजिया कर.
औरंग़ज़ेब ने अकबर द्वारा खारिज किये गए जजिया कर को वर्ष
1679 में दोबारा लागू कर दिया.
माना जाता है कि जजिया कर के लिए वो हिन्दू जो बहुत अधिक
गरीब होते थे, उन पर कर लागू नहीं था. लेकिन जो हिन्दू मध्यम
वर्ग के थे उन पर सालाना 3 रुपया कर था.
उनसे थोड़े अमीर हिन्दुओं पर सालाना कर 6 रुपया
होता था. सबसे अधिक अमीर हिन्दुओं पर सालाना कर 12 रुपया
होता था. राजपूतो को इस दायरे से बाहर रखा जाता था.
इसके अतिरिक्त जो व्यपार के लिए कर (Tax) था वो हिन्दुओं पर 5% था. मगर वही व्यपारिक कर मुस्लिम व्यपारियों के लिए आधा
2.5% होता था.
इसलिए कई हिन्दू व्यपारी मुस्लिम नौकरों को नौकरी पर रख लेते थे और उनके नाम से व्यपार करके आधा कर चुकाते थे. लेकिन ज़मीन के लगान हिन्दुओं और मुसलमानों से बराबर लिए जाते थे.
प्रशासनिक कार्य
औरंगजेब ने प्रशासनिक कार्य के मामलों में अपने दादा का अनुसरण किया था .उन्होंने
बहुत सारे राजपुतों को ऊंचे पद दे रखे थे. कई हिन्दू जनरल और योद्धा उसके वफादार
थे.
औरंगजेब युद्ध में आत्म समर्पण करने वालों को भले ही नहीं मारता था लेकिन यदि कोई
मुस्लिम किसी हिन्दू राजा के साथ होता और वो हिन्दू राजा युद्ध हारता तो हिन्दुओं को छोड़कर मुस्लिम सैनिकों की हत्या करवा दी जाती थी.
औरंगजेब शरिया कानून के मुताबिक चलता था. इसलिए वो कलाकारी जैसी फुजूल की चीज़ों से
दूर रहकर सिर्फ युद्ध करता रहता था. इसलिए उसने अपनी पूरी ज़िन्दगी मराठों, अफगानों जाटों से जंग करते हुए गुजारी.
मुगलों की राज भाषा फारसी थी लेकिन औरंगजेब को देवनागरी से लगाव था तो उसे वो भाषा आती थी. औरंगजेब की बहन जहाँआरा कभी औरंगजेब तरफ नहीं थी फिर भी बादशाह बनते ही औरंगजेब ने जहाँआरा को बादशाह बेगम का पद भी दिया था. 90 वर्ष की उम्र में वर्ष 1707 में औरंग की मृत्यु हुई.
निष्कर्ष :
मुग़ल वंश का जंगजू योद्धा औरंगजेब, भारतीय इतिहास का एक अहम
अध्याय है. वो वीर, साहसी और निडर भी है. तख़्त पाने की लालसा
और इस दौरान उसके द्वारा किये गए कुचक्र उसके उस दौर के राजनीती दावपेज के हिस्से
हैं.
मगर हिन्दुओं और सिखों के साथ उसका दुर्व्यवहार, भारत के पौराणिक सनातन धर्म से जुड़े मंदिरों को गिरवाकर केवल शरिया कानून को मानना और सिर्फ मुस्लिम तुष्टिकरण की निति अपनाने से औरंगजेब के दोषों की सूची कुछ लम्बी ज़रूर हो जाती है.
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