पानीपत का दूसरा युद्ध 1556 Second Battle of Panipat in Hindi

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 पानीपत के दूसरा युद्ध 1556




पानीपतपत का दूसरा युद्ध 

स्थान - हरियाणा का पानिपत

गुट - मुग़ल ( बैरमखां) और हेमू (शेरशाह सूरी का सेनापति)

दिन - 5 नवम्बर 1556 


पानीपत की पहली लड़ाई का संक्षिप्त स्मरण 


पानीपत ( Panipat ) की पहली लड़ाई  काबुल के बादशाह बाबर (Babur) और दिल्ली के सुल्तान इब्राहिम लोदी ( Ibrahim Lodi) के बीच हरियाणा के पानीपत के मैदान में सन 1526 को लड़ी गयी और उस युद्ध ने भारत में मुगलों के पैर हमेशा के लिए जमा दिए. लेकिन शायद बाबर को पता नहीं था कि इस युद्ध के 30 साल बाद भी एक बार फिर से पानीपत का दूसरा युद्ध भी लड़ा जाना बाकी था जो पहले युद्ध की तुलना में कहीं ज्यादा घातक और संघर्षपूर्ण होने वाला था.


पानीपत की दूसरी लड़ाई से पहले का माहौल जानिये


मुग़ल वंश के पहले संस्थापक बाबर की हुकूमत हिन्दोस्तान पर 1526 के बाद काबिज़ हो गयी .उन्होंने कई सालो तक भारत पर राज किया .बाबर एक अच्छे योद्धा के साथ-साथ एक कवि, दार्शनिक और चित्रकार भी थे. इतिहासकार और दरबारी अबुफज़ल ने बाबरनाम में बाबर के बारे में बहुत कुछ लिखा है.


बाबर की मृत्यु के बाद 


कुछ सालों बाद जब हुमायूं एक बार भयंकर बीमार पड़ा तो बाबर ने एक फ़क़ीर के कहने पर हुमायूँ के बिस्तर के चारो ओर चक्कर लगाकर अल्लाह से हुमायूँ की बीमारी खुद के लिए मांगी ली. और फिर अगले दिन से हुमायूँ ठीक होते चले गए और बाबर बीमार होकर चल बसे .


दिल्ली के नए बादशाह शेरशाह सूरी 


बाबर के बाद हुमायूँ हिन्दोस्तान का बादशाह तो बना लेकिन अफीम और नशे की आदत की वजह से वो एक धुरंधर अफगान लड़ाका और योद्धा शेरशाह सूरी से युद्ध हार गया और जान बचाने के लिए हुमायूं को हिंदुस्तान से भागना पड़ा. हुमायूँ को हिंदुस्तान से खदेड़ देने के बाद शेरशाह सूरी दिल्ली का बादशाह बन गया. शेरशाह सूरी को तोप से बहुत लगाव था. मगर एक दिन वो उसी तोप की टेस्टिंग के विष्फोट में मारा गया.



आदिल शाह की हुकूमत 


शेरशाह सूरी के बाद उसके बेटे इस्लाम शाह ने सन 1545 दिल्ली की गद्दी संभाली. मगर कुछ वर्षों बाद इस्लाम शाह भी नहीं रहे और उसके बाद उसके छोटे बेटे फ़िरोज़ शाह की ताजपोशी करवा दी गयी. मगर उस वक़्त इस्लाम शाह का बेटा फ़िरोज़ शाह बहुत ही छोटा था . इसी अवसर का लाभ उठाकर उसके मामू आदिलशाह ने उसे मरवा दिया और खुद गद्दी हथिया ली. इस काम में आदिल शाह का साथ दिया था हेमू ने, जो आदिल शाह का सबसे ख़ास कमांडर था.

 

हेमू (हेमराज विक्रमादित्य) का एक नमक के व्यपारी से लेकर राजा बनने तक की कहानी.



रेवाड़ी ( हरयाणा ) का रहने वाला हेमू यानि कि हेमचन्द्र जो जाति से एक बनिया था और अपने शुरुवाती दिनों में नमक का व्यपार करता था, उसने देखते ही देखते इतनी तरक्की कर ली की आदिल शाह ने उसे कमांडर निक्युत कर दिया. हेमू एक अति सूझ-बूझ वाला व्यक्ति और योद्धा था, जिससे मुग़ल तक डरते थे. सभी जानते थे कि आदिल शाह बस नाम मात्र का बादशाह था ,क्यूंकि युद्ध सारी निति- योजनायें हमेशा हेमू की होती थी . 


हेमू की महत्वकांक्षा 


हेमू ने खुद अपने दम पर 22 युद्ध लडे थे और सभी युद्ध में उसने जीत हासिल की थी. हेमू जितना बड़ा योद्धा था उससे कहीं अधिक वो एक तेज़- तर्रार दिमाग वाली व्यक्ति था जो दिखावे के लिए आदिल शाह की जी -हुजूरी तो करता था मगर वो शुरू से ही अपने लक्ष्य में लगा हुआ था. 


एक वक़्त के बाद तो हेमू ने आदिल शाह की फ़ौज से बादशाह के लोगों को निकलवाकर अपने लोगों को रखवाना शुरू कर दिया. लोग हेमू को उधार का देवता मानते थे .यानि जिसे भी उधार चाहिए होता वो हेमू के पास पहुँच जाता . मगर हेमू फिर उस उधार लिए हुए आदमी से अपने तरीके से काम लेता था . माना जाता है की साप्ताहिक काम के नगद  भुगतान की शुरुवात भी हेमू ने की थी .इस तरह  हेमू ने गुप्त तरीके से अपनी खुद की सेना खड़ी कर ली थी.


उस वक़्त मुग़ल पंजाब में अपनी मजबूती बढ़ा रहे थे और इधर हेमू मुगलों को हिंदुस्तान से भगाने की फिराक में लगा था. और फिर अचानक एक दिन हेमू को वो अवसर भी मिल गया जब हुमायूँ के मरने की खबर आदिल शाह के दरबार तक पहुंची. उस वक़्त हेमू ने इसे अच्छा अवसर जाना और उसने फ़ौरन आगरा में चढ़ाई कर दी


.उस वक़्त आगरा का कमांडर सिकंदर खान था जो हेमू से बिना लडे ही भाग गया. हेमू की सेना में हर तरह के सिपाही थे जो जोश से भरे हुए थे . आगरा के बाद हेमू ने ग्वालियर को भी जीत लिया. संभलपुर का अलिकुली खां भी हेमू के डर से भाग गया. और इसके बाद हेमू सीधा पहुंचा दिल्ली, जहाँ मुगलों का हाकिम तार्दीबेग काबिज़ था.


हेमू जब मुगलों को हराकर बन बैठा दिल्ली का राजा.  


हेमू के पास युद्ध की ख़ास निति- योजना थी. उसने फ़ौरन योजना बनाकर युद्ध की बागडौर संभाली और सेना को युद्ध के लिए तैयार किया . मुगलों ने भी पूरी तैय्यारी के साथ हेमू पर चढ़ाई कर दी . उस युद्ध में एक वक़्त तो ऐसा भी आया जब मुगल जितने वाले थे. मगर फिर हेमू ने अपनी उसी पुरानी युद्द निति से काम लिया और उसने मुगलों के छक्के छुडा दिए .


देखते ही देखते 5 हज़ार मुगल सैनिकों को मार डाला गया. हेमू ने उस युद्ध में जिस तरह से विजयी हासिल की थी, उसने मुगलों के दिलों में डर और दहशत पैदा कर दी थी . इस तरह पहली बार कोई हिन्दू राजा, मुगलों को हराकर दिल्ली की गद्दी पर जा बैठा था और उसे राजा विक्रमादित्य की उपाधि मिली . 


बैरमखां के नेतृत्व में मुग़ल.


 

तार्दिबेग सीधा भागकर बैरम खान के पास पहुंचा .उस वक़्त अकबर की उम्र केवल 13 साल के आस पास थी . बैरमखान, तार्दीबेग की इस कायरता से इतना क्रोधित हुआ कि उसने उसी वक़्त तार्दीबेग के सीने में तलवार घोप दी और फिर अपनी सेना लेकर निकल पड़ा हेमू से युद्ध करने . हेमू भी पंजाब के लिए कूच कर चुका था.


पानीपत का दूसरा युद्ध सन 1556


एक बार फिर से दोनों दुश्मनों को किस्मत ने पानीपत के उसी मैदान में लाकर खड़ा कर दिया जहाँ बाबर ने 30 साल पहले इब्राहिम लोदी को हराया था .मगर इस बार हेमू पूरे जोश में था. हेमू एक बहुत ही अच्छा कमांडर था जो अपने ख़ास हवाई नामक हाथी पर सवार होकर युद्ध करता था. हेमू का भांजा रमैय्या और शादी खां कक्कड़ हेमू के साथ था. 


हेमू ने अभी तक कोई भी युद्ध नहीं हारा था .मगर पानीपत के इस दुसरे होने वाले युद्ध से ठीक एक दिन पहले, हेमू ने एक बुरा सपना देखा .उसने सपने में देखा उसका हाथी हवाई मर गया है और वो खुद दरिया में डूब गया है, जिसे मुग़ल उसके गले में लोहे की ज़ंजीर डालकर बाहर निकालते हैं .मगर हेमू इस सपने को गंभीरता से नहीं लेता और वो युद्ध आरम्भ कर देता है .एक बार फिर से मुग़ल सैनिक अपनी उसी पुरानी युद्ध निति को अपनाते हैं .

 

एक तीर ने बदली युद्ध की बाजी



5 नवम्बर 1556, उस दिन अचानक पानीपत में भीषण बरसात शुरू हो गयी .हेमू के हाथी हवाई पर आसमानी बिजली गिरी और वो युद्ध के मैदान में ही मारा गया .यानि हेमू का देखा आधा सपना सच हो चुका था . मगर इसके वावजूद भी हेमू रुका नहीं. 


हेमू ने अपनी युद्ध निति- योजना से मुगलों की सेना में हाहाकार मचा दिया. मुग़ल सेना थक हारकर पीछे हटी. अब उनके आगे गीली मिट्टी का मैदान था. बरसात के कारण घोड़े- हाथी पर सवार हेमू के सैनिक उसे पार नहीं कर सकते थे . मगर हेमू ने उस दलदल को भी पार कर लिया. अब हेमू की जीत कुछ मिनटों की दुरी पर थी . तभी कहीं से आकर एक तीर हेमू की आँख पर लगी और फिर उस एक तीर ने युद्ध की किस्मत ही बदल दी .


युद्ध का परिणाम 


हेमू के घायल होते ही हेमू की सेना में खलबली मच गयी. वो भागने लगे. मुगलों ने उन पर आक्रमण कर दिया और सभी को मार डाला .फिर उन सैनिकों के कटे सर से मीनार बनायी गयी, जैसा की मुग़ल अक्सर करते थे .वे जब भी कोई युद्ध जीतते , सैनिकों के सर काटकर उसकी मीनार बना देंते. इस बार हेमू की सिपहियों के कटे सर से 35 फीट ऊंचा मीनार बनाई गयी थी. जिसके बाद हेमू को लोहे की जंजीरों से बांधकर बैरम खान के पास पेश किया गया . 


बैरमखान ने अकबर से हेमू का सर धड से अलग कर देने के लिए उसे तलवार पकड़ा दी. मगर अकबर से हेमू का सर नहीं काटा गया क्यूंकि वो उस समय एक बच्चा था . फिर बैरम खान ने हेमू का सर काटा और उसे काबुल भिजवा दिया .जबकि हेमू के धड को दिल्ली के कीले के बाहर टांग दिया गया. इस तरह हिंदुस्तान में दूसरा पानीपत का युद्ध सन 1556 में लड़ा गया. मगर हेमू की बदकिस्मती के कारण वह जीते हुए युद्ध को हार गया.       


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पानीपत के तीसरे युद्ध को पढ़ें 


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