दारा शिकोह का जीवन परिचय
दारा शिकोह की हत्या एवं जीवन परिचय
शाहजहाँ का बेटा दारा शिकोह
औरंग़ज़ेब और दारा शिकोह
(Son of Shaahjahan Daara Shikoh a Mughal prince).
दारा शिकोह
जन्म - 20 मार्च 1615
स्थान - अजमेर
बेगम - नादिरा बानू बेगम
संतान - मुमताज शिकोह , सिपिर शिकोह, जहाँजेब बानू बेगम
हत्या - 10 सितम्बर 1659
शाहजहाँ के बड़े बेटे दारा शिकोह को मुग़ल दबारी प्यार से दारा बाबा भी बुलाते थे. मुगल वंश में पहली बार किसी ऐसे व्यक्ति ने जन्म लिया था जिसे दर्शन शास्त्र और आध्यात्म में इतनी रूचि थी कि वो अपने शाही खर्च से मिलने वाली 2 करोड़ की रकम को भी किताबों पर खर्च कर देता था.
मगर फिर वर्ष
1659 में ऐसा क्या हुआ कि उस मुंगल राजकुमार दारा शिकोह का सरेआम एक फ़क़ीर की तरह जुलूस
निकलवाकर उसकी बेईज़ती की गयी और फिर उसके सर को कलम कर दिया गया? जानिये दारा शिकोह
की कहानी (biography)में.
हर वो औलाद जो सबसे पहले पैदा होता है उस पर बाप-माप का प्यार कुछ अधिक ही रहता है. मुग़ल वंश के राजकुमार और शाहजहाँ के बेटे दारा शिकोह के साथ भी यही बात थी, वो शाहजहाँ का सबसे बड़ा बेटा था और औरंगजेब शाहजहाँ का छोटा बेटा .
दारा शिकोह शाहजहाँ का इतना चहेता था कि शाहजहाँ ने उसे दुसरे रियासतों में जाकर राज करने से बेहतर उसे 2 करोड़ की मुजराई देकर खुद के पास रखना मुनासिब समझा था.
दरबार में उसे सभी बाबा कहकर बुलाते थे. वो शुरू से ही एक जिज्ञासु किस्म का इन्सान था जिसे दर्शन और धर्म में ख़ास रूचि थी. शायद इसलिए दारा शिकोह अपने अपने पिता से मिले पैसों को धर्म , दर्शन से जुड़े ग्रथों और मुग़ल शैली की कला कला कृतियों को बनवाने में खर्च कर देता था.
उसकी रूचि कई तरह के धर्म और संस्कृतियों में थी इसलिए वो अकसर अपनी जिज्ञासा को शांत करने के लिए कई आचार्यों और मुस्लिम धर्म ज्ञाताओं से घिरा रहता था. वर्ष 1656 में दारा ने कई हिन्दू ग्रंथों और उपनिषदों का अनुवाद भी करवाया जिन्हें वेदान्त भी कहते हैं.
धर्म के बीच भाई चारा ढूँढने के प्रयास में उसने कई किताबों को पढ़ डाला. और फिर सैकड़ों किताबों को पढ़कर दारा को एक ही बात समझ आयी कि हर धर्म का एक ही मूल उद्धेश्य है- व्यक्ति को उस शक्ति की ओर लेकर जाना जो एक ही ईश्वरीय सत्ता पर आधारित है.
दारा को लगता था यदि वो हिन्दू वैदिक दर्शन के अध्ययन से इस्लाम के छिपे हुए रहस्यों को समझ लेता है तो उसे मुग़ल तख़्त पाने और अपनी प्रजा पर राज करने में बहुत आसानी होगी. दारा युद्ध और खून- खराबे को सही नहीं मानता था जबकि मुगलिया सल्तनत में तख़्त को हासिल करने के लिए इससे होकर गुजरना पड़ता था.
दारा की सोच और वो कार्य, जो वो कर रहा था, उस वक़्त मुगलों के
अलावे और कोई भी करने की हिमाकत नहीं कर सकता था. इसलिए कुछ हिन्दू दारा को अवतार
समझते तो कुछ मुस्लिम उसे उनके धर्म का शैतान भी समझते थे .लेकिन जो भी हो, दारा
मुगलिया सल्तनत का वारिस था इसलिए किसी में इतनी हिम्मत नहीं थी कि वो दारा से कोई
सवाल कर पूछ लेता कि वो ये क्या कर रहा है?.
पुरा नाम - अब्दुल मुज्जफर मुहीउद्दीन मोहम्मद औरंगजेब आलमगिरी
जन्म - 14 अक्टूबर, 1618
जन्म - दाहोत , गुजरात
संतान - बहादुर शाह ,आजम शाह , मोहम्मद काम बक्श, मोहम्मद सुलतान, सुलतान मोहम्मद अकबर
दारा जब किताबों के पन्ने पलट
रहा था, उस वक़्त औरंगजेब अपनी तलवार चमका रहा था. उसने मध्य भारत में बहुत काम किया
था .इसके अलावे दक्कन में उसका लम्बा कार्यकाल रहा .उसने गुजरात मुल्तान ,उत्तरी
अफगान के हमलों में हिस्सा लिया और कंधार पर भी चढ़ाई की.18 वर्ष की उम्र में 1936 में उसे दक्कन का सूबेदार बनाया गया. 1645 में गुजरात का और फिर उसके बाद वो गवर्नर बना अफगानिस्तान का. इतने वर्षों में औरंज़ेब ने
खुद को एक योद्धा के रूप में ढाल लिया था.
तख्ता पलट
वर्ष 1657 में शाहजहाँ के बीमार पड़ने के बाद मुग़ल तख़्त खाली पड़ गया जिसके बाद औरंगज़ेब ने कुटीनिति चाल चली और अपने भाई के खिलाफ लोगों के दिलो- दिमाग में यह ज़हर घोलना शुरू कर दिया कि दारा खुद के धर्म को छोड़कर दुसरे धर्मों को बढ़ावा देने में लगा है.
जिसके बाद दारा ने भी औरंगज़ेब को मुँहतोड़ जवाब देने के लिए युद्ध की तैय्यारी कर ली और फिर वर्ष 1659 के जून महीने में दोनों आगरा के समुरगढ़ में युद्ध के लिए आमने सामने हो गए.
लेकिन यह युद्ध मात्र 3 घंटा ही चल पाया. दारा के हौदे पर जब वार हुआ तो वो घबराकर हाथी से नीचे उतर गया. उस वक़्त तक दारा के 10-12 हज़ार सैनिक मारे जा चुके थे. बाकी बचे सैनिकों ने दारा का साथ छोड़ दिया.
दारा युद्ध से भागा और एक अफगान दोस्त मलिक जीवन की शरण में चला गया. मगर मलिक जीवन ने दारा को धोखा देते हुए उसे औरंज़ेब के हवाले कर दिया. इसके बाद दारा का दिल्ली में फटेहाल तरीके से गंदे कपड़ों में जुलूस निकाला गया. उसकी घोर बेईज्ज़ती की गयी.
वर्ष 1659 में मुग़ल दरबारियों के सलाह-मशविरा के बाद दारा
को मौत के घाट उतार दिए जाने का फरमान सुनाया गया. और फिर उसे मारकर दारा के कटे
सर को भाई औरंज़ेब के पास हाज़िर किया गया.
दारा शिकोह के पतन का कारण.
दारा मुग़ल वंश में अलग सोच रखने वाला एक गुणी व्यक्ति था जो धर्म और दर्शन के ज़रिये बादशाह बनकर हुकूमत करना चाहता था, मगर मुगलिया सल्तनत में बादशाह वही बनता था जिसकी तलवार में लगी खून कभी सूखती नहीं थी.
औरंज़ेब भले ही कट्टर था मगर उसे कूटनीति के सारे दावपेच आते थे. वहीँ दारा राजनीति से कोसो दूर था. इसके अलावे औरंज़ेब जब भी युद्ध जीतता वो अपने लोगों में जीत की चीज़ें बाँट देता, उन्हें अपने साथ मिलाकर रखता और उनका हमेशा ध्यान रखता.
मगर दारा के साथ ऐसी बात नहीं थी .शाहजहाँ के समय में ही दारा बहुत से ऐसे
मुगल दरबारियों से दूर होते चले गए जो उनके समर्थक थे. एक और बात कि दारा को वो लोग कभी पसंद
नहीं आये जो उनसे सवाल पूछते थे. इसलिए उनके मित्र दारा को सही सलाह देने से डरते
रहे. ऐसे बहुत से कारणों के चलते दारा शिकोह को अपनी जान गवानी पड़ी .
निष्कर्ष
अगर दारा शिकोह, औरंज़ेब की जगह बादशाह बनता तो आज भारत में हिन्दू -मुस्लिम की एकता की मिसाल पूरी दुनिया देती. इसके अलावे पूरी दुनिया को हिन्दू और मुस्लिम धर्म में मौजूद बहुत सारी गूढ़ चीज़ों को जानने का मौका मिलता.
दोनों संस्कृतियों का एक साथ विकास होता. संभवत: भारत अंग्रेजों की गुलामी से भी बचा रहता .लेकिन फिर, यह भी संभव होता कि मुगलों के पास योद्धा नहीं होने के कारण मुग़ल साम्राज्य का पतन भी हो जाता.
जिस मुग़ल साम्रज्य की नींव को
बाबर ने इब्राहिम लोदी को हराकर रखी थी, वो दारा के योद्धा न रहने के कारण खत्म भी
हो सकती थी.
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