अमेरिकन मनोवैज्ञानिक चिकित्सक सल्तन के अनुसार – बीमारी में औषधि की ज़रुरत नही. भोजन को बदलिए, बीमारी ठीक हो जायेगी. उनके मुताबिक भोजन को बदल- बदल कर खाने से स्वास्थ्य लाभ मिलता है. भोजन के दो तत्त्व मूल हैं – अम्ल और क्षार.
लेकिन अम्ल तत्त्व से मृत्यु और बुढापा जल्दी आते हैं. उससे शक्ति क्षय होती है और बिमारियों को नियंत्रण प्राप्त होता है. तले हुए पदार्थों और चटपटी चीज़ों से अम्ल बढ़ता है. चीनी भले ही खाने में मीठी होती मगर उससे अम्ल बढ़ता है.
खटाई यह भी ज़हर के सामान है क्यूंकि इससे पाचन तंत्र प्रभावित होता है. भोजन खाते वक़्त पायलिन नामक लार बनता है जो भोजन को पचाता है. लकिन जैसे ही हम भोजन के साथ खटाई को खाते हैं वो अम्लता उस पायलिन को खत्म कर देती है.
लेकिन आंवले के साथ ऐसा नहीं है. आँवला खट्टा होने के बाद भी उसका परिणाम मधुर होता है. आज से पचास वर्ष पहले लोग जल्दी बूढ़े हो जाते थे. इसके पीछे वजह यही है कि लोग अधिक मात्रा में प्रोटीन लेते थे .
पुराने लोग अन्न, मिठाई ,घी , दूध आदि अधिक खाते
थे. अधिक दूध पीने वाला जवान नहीं रह सकता. खूब रोटी खाने वाला भी जल्दी बूढा हो
जाता है. क्यूंकि बुढापे से बचाने वाले तत्त्व हैं – क्षार. इनसे पौष्टिकता मिलती
है लेकिन क्षार नहीं.इससे अम्लता बढती है.
चाय क्यूँ खतरनाक है ?
प्रत्येक बीमारी में लोग चाय पीने लगते हैं. अम्लता ,पित्त का उफान, पेट में अल्सर, इन सभी परिस्थितयों में चाय का सेवन खतरनाक है. अब भोजन के विषय में अनेक खोजें हुए हैं. नए -नए तथ्य हमारे सामने आये हैं. उन पर हमे गहराई से ध्यान देना चाहिए.
यदि कोई व्यक्ति गैस से पीड़ित हैं तो दाल उस इंसान के लिए हानिकारक है. हालांकि दाल में पौष्टिक तत्त्व है. मगर वो गैस से पीड़ित व्यक्ति के लिए ज़हर है.
आज हर मानसिक और शारीरिक
बीमारियों का मूल कारण अनियमित और
असंतुलित भोजन है. हमे पता नहीं चलता लेकिन भीतर जहर बढ़ता रहता है. मस्तिष्क, एक इन्सान का सबसे महत्वपूर्ण
अंग होता है. क्यूंकि यही हमारे सारे हमसे काम करवाता है. मस्तिस्क को निर्मल और शक्तिशाली
रखने के लिए भोजन पर ध्यान देने की बहुत ज्यादा ज़रुरत पड़ती है.
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