मृत्यु क्या है? मृत्यु से इंसान को कब डर नहीं लगता?

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जिन्हें मृत्यु  (Death) से डर लगता है . इस डर को टाला जा सकता है.



आप इसे एक उदाहरण से समझिये. एक छोटे से अबोध बच्चे के पास अचानक से एक सर्प चला आता है और वो बच्चा उस सर्प को उठा लेता है. दूसरा एक सपेरा है, जो आसानी से किसी भी सर्प को पकड़ लेता है. लेकिन वही, अगर वो सर्प हमारे पास आ जाए तो हम डर से भाग जायेंगे. और वो डर होगा मृत्यु का. 


लेकिन वो अबोध बच्चा मृत्यु से इसलिए नहीं डरता क्यूंकि वो उस सत्य से अनभिज्ञ है. मगर वहीँ सपेरा, सर्प की पूरी जानकारी रखता है इसलिए वो नहीं डरता. इसका अर्थ यही हुआ, मृत्यु से वो नहीं डरेगा जिसे इसके बारे में कुछ पता ही नहीं. या फिर वो जिसे इसके बारे में पूरी जानकारी है. 


लेकिन डरेगा तो हम और आप जैसे लोग जिन्हें आधा अधूरा ज्ञान है. मृत्यु को अगर सरल-सीधे शब्दों में समझाया जाए तो इसका मतलब है – एक पुरानी जगह से नयी जगह जाना. मगर उस नयी जगह आकर पुरानी जगह के बारे में कुछ भी याद नहीं रहना.


चाणक्य ने कहा है यदि मनुष्य हमेशा तीन बातों को याद रखेगा तो उसे मृत्यु से डर भी नहीं लगेगा और मोक्ष की प्राप्ति भी हो जायेगी.


पहली बात – जिस समय हम श्मशान जाते हैं और वहां चिताएं जलते देखते हैं तो हमारे मन में एक ही बात आती है कि यह संसार मिथ्या है और एक दिन हम सभी को इसी चिता में जल जाना है. इस दृश्य से व्यक्ति में क्षणिक वैराग्य तो अवश्य आ जाता है. मगर श्मशान से निकलते ही हम फिर से सब कुछ भूल जाते हैं.


दूसरी बात – जब हम अस्पताल में अपनी आखों के सामने लोगों को मरते देखते हैं. उनमे तो कुछ ऐसे भी होते हैं जिनके पास अथाह पैसे होते हुए भी वो नहीं बचते. यहाँ एक बार हम पुन: जीवन मरण के बंधन से दूर निकलना चाहते हैं. मगर अस्पताल से दूर जाते ही हम उस सत्य से भी दूर चले जाते हैं जो कुछ क्षण पहले हमारे मन में आया था.


तीसरी बात – जब हमे सत्संग में जीवन मरण की सच्चाई के बारे में बताया जाता है. उस समय भी हमारे भीतर से चंचलता चली जाती है. हम स्थिर हो जाते हैं और हमे मृत्यु से डर नहीं लगता. लेकिन जैसे ही हम सत्संग से बाहर आते हैं हम फिर से अपनी उसी दुनियाँ से जुड़ जाते हैं इसलिए मृत्यु का डर हमे फिर से घेर लेता है.


यदि इन तीनो बातों को हमेशा याद रखा जाए तो मृत्यु का डर मन में कभी नहीं सताएगा . हाँ, यह सत्य है कि एक समय के बाद इस शरीर को छोड़ना पड़ता है .लेकिन हम माया मोह से जकड़े रहते हैं इसलिए जिस शरीर में रहते हैं उसे कभी छोड़ना ही नहीं चाहते.



 

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