ताजमल की कहानी. story of tajmahal
ताजमहल (Tajmahal ) कब कैसे और क्यूँ बनाया गया ?
कौन था ताजमहल का ( engineer ) इंजिनियर ?
क्या थी ताजमहल की कीमत ( price ) ?
जानिए ताजमहल की अनसुनी कहानी
मुग़ल राजाओं में शाहजहाँ (Shahjahan) का नाम सबसे अलग हटकर इसलिए लिया जाता है क्यूंकि वो किसी युद्ध के लिए नहीं बल्कि प्रेम को एक प्रतीक रूप देने के लिए जाने जाते हैं, जिन्हें दुनियाँ ताजमहल (Tajmahal) के रूप में जानती है. यानि कि symbol of love.
कई लोगों के दिमाग में यह सवाल आता होगा कि Tajmahal का engineer कौन था? ताजमहल की वास्तविक कीमत क्या है? और कैसे बना ताजमहल?
जिस ताजमहल को बनवाने में उस ज़माने में लगभग 4 करोड़ लगे उस ताजमल के पीछे
की कहानी भी बहुत ही दिलचस्प है. कुछ भ्रम भी है और बहुत सारी अनसुनी बातें भी. लेकिन
ताजमहल की कहानी को जानने से पहले हमे शाहजहाँ और उनकी पत्नी मुमताज महल (MmtajMahal) के बारे भी
जानना होगा.
शाहजहाँ के बारे में.
शाहजहाँ, जहाँगीर के बेटे थे जो जवानी के दिनों से ही एक अनुशासन प्रिय राजकुमार थे. उन दिनों शाहजहाँ ने भी अपने पिता जहाँगीर और दादा अकबर की तरह बस अपनी मूंछे ही रखी थी.
24 साल की उम्र में शाहजहाँ ने पहली बार शराब को चखा था.1620 में राजा बनने के बाद शाहजहाँ ने अपनी दाढ़ी बढ़ा ली. और शराब से हमेशा तौबा कर उसे हमेशा के लिए चम्बल नदी में बहा दिया.
शाहजहाँ को अपनी बेगम मुमताज
महल से बेपनाह मोहब्बत थी लेकिन उन्होंने कुछ और भी शादियाँ कर रखी थी और उन्हें
नाच –गान, चित्रकारी ,शायरी से अच्छा ख़ासा लगाव था.
शाहजहाँ अपने काफिले के साथ नृत्य करने वाली महिलाओं की एक टोली भी रखते थे जिन्हें “कंचन” कहा जाता था. शाहजहाँ भले ही शराब नहीं पीते थे लेकिन और चीज़ों में उनकी अय्याशी के किस्से मशहूर थे.
लेकिन फिर प्रेम के मामले में वो अपनी बीवी के लिए एक वफादार प्रेमी थे. जिस तरह की मोहब्बत शाहजहाँ को अपनी बीवी से थी, वैसा प्रेम उन्होंने कभी किसी दूसरी औरत पर न्योछावर नहीं किया था.
शाहजहाँ के पास उनका एक मयूर सिंहासन था, जिसे मुग़ल सम्राट तख्ते ताउस कहते थे .तख्ते ताउस की कीमत ताजमहल से दोगुनी आंकी गयी थी. उस तख्त में कोहिनूर हीरा भी जड़ा हुआ था जिसे बाद में नादिर शाह लूटकर अपने साथ ले गया.
शाहजहाँ की बीवी मुमताज महल (Mumtajmahal)
मुमताज महल के बारे में शाहजहाँनामा
लिखने वाले मुग़ल दरबारी इनायत खान और उस वक़्त के दरवारी इतिहासकर बताते हैं कि मुमताज महल एक बला
की ख़ूबसूरत वाली औरत थी जिसे धोखा देना किसी भी प्रेमी के लिए संभव नहीं था.
मुमताज महल जितनी ख़ूबसूरत
थी उससे कहीं अधिक तेज़ उसका दिमाग भी था. इसलिए राजकीय कार्यों में हमेशा उसकी अहम भागीदारी
होती थी.
मुमताज महल ने 13 बच्चों को
जन्म दिया था. लेकिन फिर 14वे बच्चे को जन्म देते समय उन्हें 30 घंटों की प्रसव
पीड़ा रही जिससे 17 जून 1661 को बुरहान पुर में उनकी मृत्यु हो गयी.
मुमताज को बुरहानपुर के
तापी नदी के किनारे एक बाग़ में दफनाया था.
कुछ महीनों बाद उनकी कब्र
को उनके 15 साल के बेटे शाह सुजा द्वारा आगरा लाया गया और 8 जनवरी 1632 को मुमताज को यमुना नदी के किनारे दोबारा दफनाया गया.
मरने से पहले मुमताज ने शाहजहाँ
को अपने उस सपने के बारे में बताया था जो एक ताजमहल जैसा था. जिसके बाद शाहजहाँ मुमताज
के सपनों को पूरा करने में लग गए.
इस तरह बना ताजमहल
ताजमहल बनाने का काम शाहजहाँ ने अब्दुल करीम और मुकम्मद खान को सौपा जो ताजमहल के निर्माता थे.
मुहम्मद खान जहाँगीर के समय
से ही निर्माण विभाग का काम देखते थे जो किसी ज़माने में इरान से आये थे.
1560 के दशक में जिस तरह हुमायू
का मकबरा बना था उसी तर्ज़ पर वर्ष 1632 के जनवरी महीने में ताजमल का काम शुरू हुआ.
एक अँगरेज़ ट्रेवलर और
इतिहासकार पिटर मंडी ताजमहल बनने की पूरी कहानी वयां करते हैं कि कैसे 1000
मजदूरों को जमा करके उस जगह को पहले साफ़ करवाया गया जहाँ ताजमहल बनना था.
मुग़ल कालीन इतिहासकार और दरबारी इनायत खान के मुताबिक पहले
1000 फीट भवन के गहरी नीव खोदी गयी. इतना गहरा इसलिए ताकि यह बहुत लम्बे समय तक
टिका रहे और इसे कोई प्राकृत आबदा नष्ट न कर सके.
1000 फीट की गहरी नीव के
बाद 970 फीट लम्बा और 364 फीट चौड़ा चबूतरा बनवाया गया.
ताजमहल के संगमरमर पत्थर.
ताजमहल बनाने के लिए आगरा से 200 मिल दूर, मकराना से संगमरमर पत्थर मंगवाए गए. और हर पत्थर ख़ास था.
ज़्यादातर संगमरमर का आकर इतना बड़ा और भारी होता था कि उसे ढोने के लिए 35 मवेशियों को जोड़कर एक ख़ास गाडी बनवाई गयी थी.
ताजमहल के लिए ही बांस
बल्लियों और ईंटों की एक मचान बनायीं गयी थी. यह इतना बड़ा और ऊंचा था कि पूरे
सामानों को फिर से खोलने में 5 साल का समय लगता.
ताजमहल में जुड़े हुए रत्न
ताजमहल में कुरान की आयतों के लिखने के बाद उसमे 40 प्रकार के बेशकीमती रत्न जोड़े गए जो अलग अलग देशों से लाये गए थे.
हरे रंग के पत्थरों को चीन
से लाया गया था.
नीले रंग के लापिज लजूली को
अग्फानिस्तान से मंगवाया गया था
फिरोजा जैसे पत्थर को
तिब्बत से प्राप्त किया गया.
मूंगा को अरब और लाल सागर से
लिया गया.
पीले अम्बर को ऊपरी वर्मा, माणिक को श्रीलंका और लहसुनिया को मिस्त्र की नील घाटी से मंगवाया लाया गया था.
ताजमहल की कीमत और खर्च
उस वक़्त के इतिहासकार अब्दुल हामिद लाहोरी ने ताजमहल पर आये खर्च को 50 लाख आँका था मगर बाद में बहुत कुछ साफ़
हुआ और इसके वास्तविक खर्च के बारे में पता चला जो उस वक़्त 4 करोड़ की थी.
ताजमहल की देख-रेख का खर्च
उस वक़्त आगरा के 50 गाओं से मिलने वाली मालगुजारियों से चलता था.
पुत्र औरंगजेब द्वारा 1669 में कैद
किये जाने के बाद 21 जून 1666 को ताजमहल का दीदार करते हुए ही शाहजहाँ की मृत्यु
हुई और उन्हें उनकी पत्नी के समीप ही दफ़न कर दिया गया.
अंग्रेजों के समय ताजमहल
वर्ष 1803 में जब आगरा पर
अंग्रेजों का कब्जा हुआ तो उन्होंने मस्जिदों को किराये पर उठाकर चारो और हनीमून
कोटेज बनवा दिए.
ताजमहल के चबूतरों को सैनिक
बैंड के लिए इस्तेमाल किये जाने लगा. और बागेचे में पिकनिक पार्टी आयोजित की जाने
लगी .
अंग्रेजों द्वारा वर्ष 1830
में कई कीमती भवन और इमारतों को तोड़कर उससे कमाई की जाने की घोषणा हुई मगर ताजमल
किसी तरह सुरक्षित रहा.
भारत और पाकिस्तान के बंटवारे के बाद जब भारत और पाकिस्तान में शत्रुता शुरू हुई तो वर्ष 1965 में ताजमहल को पाकिस्तानी हवाई हमले से सुरक्षित करने के लिए उस पर एक काले रंग का लबादा डाल दिया गया ताकी यह रात को ना दिख सके
निष्कर्ष
उस वक़्त 4 करोड़ में ताजमहल को बनवाना जो औरंगजेब की नज़रों में फिजूल खर्ची थी मगर उस ज़माने के कुछ लोग शाहजहाँ के इस काम के कायल भी थे.
हालाँकि इसे बनवाने में आगरा राजकोष का पूरा खजाना खाली हो गया और औरंगेज़ब को इसी बात से अपने पिता से इतनी चिढ थी कि पिता के मरने के बाद भी उसने शाही तरीके से शाहजहाँ का जनाज़ा नहीं निकाला था.
आज ताजमहल भारत की धरोहर है और एक बड़ा पर्यटन स्थल होने के कारण लोग विदेशों से भी इसे देखने आते हैं. चांदनी रात में ताजमहल का दीदार करने का मज़ा कुछ अलग ही है. यह यमुना नदी के किनारे बसा है. भारत में बसने वाले लोग एक बार इस ताजमहल को देखने की इच्छा अवश्य ही रखते हैं.
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