29 जनवरी 1528 चंदेरी का किला और चंदेरी का युद्ध (Battle of Chanderi & Khanva in Hindi)
भारत के इतिहास में 1528 का चंदेरी युद्ध (Battle of chanderi) बहुत ही चर्चित है. किन्तु उससे अधिक प्रसिद्द है चंदेरी का किला. Fort of chanderi का इतिहास जानिये.
चंदेरी (Chanderi) एक ऐसा किला था जो पहाड़ों से घिरा ऊपर ऊंचाई पर स्थित था. इस किले को पाने की होड़ में बाबर ने मालवा के राजा मेदनी राय खंगार से जो युद्ध किया उसे ही चंदेरी का युद्ध (Battle of Chanderi) कहा जाता है. आइये जानते हैं कि इस किले को पाने और उस युद्ध के मध्य क्या-क्या हुआ था.
खानवा युद्ध से जुडा था चंदेरी का युद्ध
वर्ष 1526 में इब्राहिम लोदी से पानीपत का युद्ध जितने के बाद 16 मार्च 1527 को बाबर की टक्कर मेवाड़ के राजा राणा सांगा से हुई. राणा सांगा, राजपुतों में एक वीर योद्धा माने जाते थे, जिन्होंने बाबर से संधि करने के बजाये युद्ध करने की ठानी और फिर आरम्भ हुआ खानवा का युद्ध. Battle of Khanva एक बहुत ही चर्चित युद्ध है.
इस युद्ध में राणा सांगा की ओर से कई क्षत्रिय राजाओं के अलावे मालवा का राजा मेदनी राय खंगार भी शामिल था. राणा सांगा को पता था कि बाबर एक बहुत बड़ा लड़ाका और योद्धा है जिससे कोई भी आम राजा या योद्धा जीत नहीं सकता, इसलिए राणा ने खानवा का युद्ध जीतने के लिए अपनी पूरी ताकत लगा दी.
मगर दुर्भाग्य से राणा संगा युद्ध में घायल हो गए और फिर युद्ध
मैदान से निकल गए. बाबर ने खानवा का युद्ध जीत लिया था मगर तब भी राजपुतों की शक्ति पूरी तरह से खंडित नहीं हुई थी. उसी शक्ति को तोड़ने के लिए बाबर ने अपना ध्यान
चंदेरी किले की ओर लगाया जहाँ पर मेदनी राय खंगार का राज था.
वीरता के साथ- साथ बाबर के पास एक कूटनीति और चतुराई से भरा दिमाग भी था. उसे पता था कि अगर उसने राजपुतों से बिना लडे ही चंदेरी का किला हासिल कर लिया तो राजपुतो का दमन भी हो जाएगा और उसके हाथ एक ऐसा किला लग जाएगा जहाँ से वो बहुत कुछ नियंत्रित कर सकता है.
यही सोचकर बाबर ने चंदेरी के राजा मेदनी राय खंगार को प्रस्ताव दिया की वो चंदेरी का किला उन्हें देकर बदले में दुसरे दो –तीन किले ले ले. मगर मेदनी राय जानता था कि चारों ओर पहाड़ों से घिरा उसका चंदेरी का किला इतनी ऊंचाई पर है कि बाबर अपनी सेना तोप , हाथी घोड़ों को लेकर वहां कभी पहुँच ही नहीं सकता. लिहाज़ा मेदनी राय ने बाबर की संधि की शर्त को साफ़ शब्दों में अस्वीकार कर दिया.
बाबर की चंदेरी किले को पाने की ज़िद
मगर बाबर योद्धा तो था ही इसके साथ वो एक जिद्दी और अड़ियल किस्म का व्यक्ति भी था. वो जिस चीज़ के लिए अड़ जाता उसे करके ही मानता.
मेदनी राय खंगार के इंकार
करने के बाद चंदेरी किले को हासिल करने के लिए बाबर ने अपने सैनिकों को हुक्म दिया
कि वो पहाड़ों को काटकर रास्ता बनाये. जिसके फ़ौरन बाद ही बाबर के सैनिकों ने काम
शुरू कर दिया और फिर कुछ ही हफ़्तों में उन्होंने पहाड़ों को काट- काटकर इतना रास्ता
बना लिया जहाँ से बाबर की फ़ौज निकलकर जा सकती थी.
जब अगली सुबह मेदनी राय ने बाबर को अपनी फ़ौज के साथ अपने महल के पास देखा तो उसके होश फाख्ता हो गए. मगर इसके बावजूद उसने हार नहीं मानी और युद्ध के लिए तैयार हो गया.
29 जनवरी 1528 के दिन यह युद्ध आरंभ हुआ. एक ओर जहाँ राजपुतों ने युद्ध में लड़ना जारी रखा वहीँ दूसरी ओर हार की सम्भावना को देखते हुए राजपूत स्त्रियों ने एक बड़े आग के कुण्ड का निर्माण किया फिर सुहागिन रूप में स्वयं का उस अग्नि में जोहार किया.
माना जाता है कि यह क्षत्रनियों का सबसे बड़ा जोहार था. आज भी उस टूटे कीले से वो कटा हुआ रास्ता दिखता है जिसे कटा पहाड़ या कटी पहाड़ी के नाम से जाना जाता है.
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