रानी दुर्गावती
Rani Durgavati
रानी दुर्गावती सम्पूर्ण कथा इतिहास
वर्ष 1526 में उजबेगिस्तान के मंगोलवंशी बाबर ने जब भारत में आकर लोदी वंश के सबसे बड़े बादशाह इब्राहिम लोदी को हराकर दिल्ली पर काबिज़ हुआ तो उसी वर्ष 8 अक्टोबर को दुर्गा अष्टमी के दिन चंदेलों के राज घराने में महोवा के राजा किरत के घर एक सुन्दर सी पुत्री ने जन्म लिया जिसका नाम दुर्गावती रखा गया.
महोवा के बगल में ही स्थित था गौंड राजाओं का गढ़, गढ़मंडला जहाँ का राजा था संग्राम शाह जिसके छोटे पुत्र का नाम था दलपत शाह. संग्राम शाह ने अब तक 52 दुर्गों पर अधिकार कर लिया था और अब भी उनका विजय अभियान जारी था.
लेकिन
गौंड राजा संग्राम शाह ने क्षत्रियवंशी चंदेलों की ओर पलटकर भी नहीं देखा था और न
ही कभी चंदेलों ने ही उन्हें ललकारा था. लेकिन दोनों के बीच उतने मधुर सम्बन्ध
नहीं थे.
दुर्गावती बचपन से ही एक बहादुर युवती थी जिसका ज़्यादातर समय पास के ही कालिंजर के किले में बीतता था. उसी दौरान गढ़मंडला राज्य के छोटे युवराज दलपत शाह ने कई बार दुर्गावती को देखा था जो उनके साहसिक कार्यों को देखकर दंग रह जाते थे.
बाबर और अकबर नामा लिखने वाले अबुफज्ल ने दुर्गावती
के निशाने और घुड़सवारी की बहुत तारीफ की है. दुर्गावती और दलपत शाह के बीच दोनों
में बचपन से ही दोस्ती थी मगर उनके परिवार में कोई मेल- मिलाप इसलिए नहीं था
क्यूंकि रानी दुर्गावती क्षत्रिय वंश से थी और दलपत शाह गौंड समुदाय से.
दलपत और दुर्गावती अब युवा
हो चुके थे. उनके परिवार वालों ने उनके लिए रिश्ते तलाशने शुरू कर दिए थे. मगर दलत
शाह दुर्गावती से प्रेम करता था और उससे विवाह करना चाहता था जबकि क्षत्रियों को
यह स्वीकार नहीं था. जिसके बाद जब चंदेलों के दुश्मन काला चुरी (आदिवासी) राजाओं
ने चंदेलों पर आक्रमण किया तो दलपत शाह ने चंदेलों का साथ दिया जिसके बाद रानी दुर्गावती
का विवाह दलपत शाह के साथ कर दिया गया.
इधर बाबर की मृत्यु के बाद
हुमायूँ राजा बने लेकिन शेरशाह सूरी ने उन्हें मार भगाया और शेरशाह ने सूरी वंश की
नींव रखी. लेकिन उस वक़्त तक कई क्षत्रिय राजा मज़बूत हो चुके थे. लेकिन फिर भी शेरशाह
सूरी कालिंजर के कीले के पीछे पड़ा था. मगर दुर्भाग्य से उसी कीले में शेरशाह की
मौत हो गयी.
इधर रानी दुर्गावती ने एक पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम वीर नारायण रखा गया मगर 5 साल के बाद दलपत शाह की मृत्यु हो गयी. जिसके बाद रानी दुर्गावती ने पुत्र को गद्दी में बैठाकर खुद ही शासन को संभाल लिया.
लेकिन पति की मृत्यु के बारे में उन्होंने किसी को भी जानकारी नहीं होने दी. वो
पुरुषों के वेश में युद्ध करने जाती और स्त्री वेश में अपने बच्चे वीरनारायण को
संभालती. लेकिन इस राज के बारे में सिर्फ उनके मंत्री आधार सिंह को पता था.
उधर शेरशाह के बाद मालवा पर
बाजबहादुर का अधिकार हो गया. बाज़बहादुर गढ़मंडला का घोर शत्रु था. उसे भी जानकारी
नहीं थी कि दलपत शाह की मौत हो चुकी है. उसने जब गढ़मंडला पर चढ़ाई की तो रानी दुर्गावती
ने पुरुष वेश में उसे ऐसा मुँहतोड़ युद्ध का जवाब दिया फिर कभी बाजबहादुर ने गढ़मंडला
की ओर रुख करके भी नहीं देखा.
बाद में अकबर के काल में महम-अंगा के पुत्र अधम खान ने बाज़बहादुर के मालवा पर कब्ज़ा किया और फिर गढ़मंडला पर भी आक्रमण किया . मगर दुर्गावती ने अकबर के कमांडर अधम खान को भी हरा दिया.
जिसके बाद अकबर ने आशाफ़ खान को भेजा. आशाफ़ खान और रानी दुर्गावती के बीच एक पहाड़ी पर युद्ध आरम्भ हुआ. लेकिन एक गलती के कारण रानी दुर्गावती को यह युद्ध हारना पड़ा. लेकिन इसके बावजूद उन्होंने जीते जी अपनी देह को किसी मुग़ल के हाथ नहीं लगने दिया और उन्होंने स्वयं अपनी खंज़र से अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली.
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