हिंदी कहानी साईं का चमत्कार. हिंदी चमत्कारी कथा. साईं की चमत्कारी कहानी हिंदी में
Hindi Story Saai ka chamtkar, Hindi Chamtkari Katha . Saai ki Chamtkari Kahani Hindi mei
एक बार शिर्डी में अच्छी बारिश न होने के कारण
आस -पास के गावों के कुछ कुंवे और जलाशय सुख गए. मगर शिर्डी के एक कुंवे में अब भी
पूरा जल भरा हुआ था. यह कुंवा एक सावित्री देवी नाम की विधवा स्त्री का था और वो
साईं की बहुत बड़ी भक्त थी. वर्षो पहले सावित्री के पति ने यह कुंवा खुदवाया था जो
अब लोगों के काम आ रहा था.
वहीँ दूसरी ओर ग्राम प्रधान का कुंवा सुख चुका
था और उन्हें इस बात से इतनी जलन होने लगी थी कि उन्होंने सावित्री के कुंवे से जल
की चोरी करवाकर अपने कुंवे में डलवाना शुरू कर दिया. ग्राम प्रधान के कुछ लोग रात
के वक़्त दो -चार बैल गाडी लेकर आते, जिनमे कुछ ड्रम होते. जिसके ग्राम प्रधान के
10- 12 आदमी कुंवे में बड़ी -बड़ी बाल्टियां डालते और पानी को ड्रम में डालकर चुपके
से वहां से निकल जाते. इस तरह अब ग्राम प्रधान का कुंवा धीरे- धीरे भरने लगा था और
सावित्रीं देवी का खाली. लोग चिंतित थे. मगर साईं को पता था, क्या चल रहा है.
इधर एक दिन साईं अपने भक्तों को कोई कथा सुना
रहे होते हैं कि इसी बीच अचानक साईं का ध्यान एक पेड़ पर लड़ते हुए तीन कव्वों पर
जाता हैं. साईं बेचैन होकर इधर- उधर देखने लगते हैं, मानों उन्हें किसी का इंतज़ार हो.
साईं कभी तीनो कव्वों को लड़ते देखते तो कभी दूसरी ओर देखते. साईं के भक्त कुछ समझ
नहीं पाते. इसी बीच अचानक एक कव्वा, उस घोषले से एक अंडे को गिरा देता है. मगर तभी
साईं के चमत्कार से वो अंडा एक फूलवाली की टोकरी पर गिरता है, जो वहां से गुजरती
है . फूलवाली साईं के दर्शन करती है. साईं वो अंडा फूलों की टोकरी से उठाकर अपने
बैठने वाली जगह पर रख देते है. जब सभी लोग वहां से चले जाते हैं तो साईं उस अंडे
से बात करते हैं - “जानता हूँ अब वो घोषला तेरा
नहीं रहा, और तुम बेघर हो चुकी हो.
इधर हम दिखाते हैं गंगाराम नाम का एक युवक जो बचपन में शिर्डी छोड़कर बाहर कमाने चला गया था, अब वो अपनी एक मॉडर्न पत्नी हेमा के साथ शिर्डी लौट आया है. गंगाराम की पत्नी कुछ आधुनिक थी इसलिए गंगाराम के घर हेमा को देखने के लिए महिलाओं की भीड़ उमड़ पड़ती है.
लेकिन गंगाराम के शिर्डी लौटने के पीछे एक ख़ास
मकसद था. वो यहाँ अपने गाँव में मौजूद घर, ज़मीन और कुंवे को बेचने आया था. मगर वो
कुछ दिनों तक अपनी माँ को यह बात बता नहीं पाता कि वो किस इरादे से गाँव लौटा हैं.
अंतत: गंगाराम वही करने की सोच लेता है जो उसकी पत्नी हेमा कहती है.
इधर गंगाराम की माँ सावित्री, अपने बेटे के लौट
आने की ख़ुशी में पूरे गाँव में लड्डू बांटती है. मगर साईं को पता था कि उसके साथ
क्या होने वाला है. इसलिए सावित्री के जाने के बाद साईं उसी अंडे को सावित्री
मानकर उससे बातें करते.
इधर सावित्री के बेटे गंगराम ने धीरे-धीरे घर ,
ज़मीन और कुंवे को बेचने के लिए ग्राहक ढूंढ लिए. और फिर कुछ दिन बाद वो चुपचाप सब
कुछ बेचकर अपनी माँ को बिना बताये शहर के लिए निकल गया. सावित्री को इस बारे में जब
खबर लगी तो वो रोने- बिलखने लगी .फिर जल्द ही नए संपत्ति मालिक ने सावित्री के सामानों
को घर से बाहर कर घर पर ताला जड़ दिया. उस दिन सावित्री घर के आँगन में बैठकर बहुत रोई
और फिर सुबह अचानक से वो लापता हो गयी.
इधर सावित्री के कुंवे का जल अब सुख चुका था और ग्राम
प्रधान का भर गया था. ग्राम प्रधान इसे कोई चमत्कार बताकर खुद को पुण्यात्मा घोषित
किये जा रहे थे . उनके द्वारा लोगों में लड्डू बांटे जा रहे थे .
इधर सभी सावित्री को ढूढ़ते हैं मगर वो नहीं मिलती. उधर ग्राम प्रधान के कुंवे से लोग जल तो ले आते हैं मगर वो इतना खारा होता है कि उसे कोई पी तक नहीं पाता. साईं बोलते हैं यह जल नहीं सावित्री के आसूं हैं. उसके साथ बहुत बुरा हुआ है. साईं, किसी तरह सावित्री को ढूंढकर अपने साथ द्वारिका माई ले आते हैं.
अब बारी थी सावित्री के लिए पैसे जोड़कर घर बनाने की. मगर बारिश न होने के कारण लोगों के पास इतने पैसे नहीं थे. तभी साईं कहते हैं सावित्री के उसी सूखे कुंवे में जाओ. कुछ लोग उस कुंवे में उतरते हैं, वहां उन्हें एक सोने से भरा कलश मिलता है जिससे न सिर्फ सावित्री बल्कि गाँव में नए कुंवे और जलाशय भी खोदे जाते हैं. साईं अब उस अंडे को वापस एक नए पेड़ के नए घोषले पर रख देते हैं.
कुछ दिनों बाद
सावित्री का बेटा गंगाराम मुँह लटकाकर वापस गाँव आता है और अपनी माँ के चरणों में
गिरकर रोता हुआ बताता है कि उसकी पत्नी सारे
पैसे लेकर भाग गयी. अब उसके पास कुछ भी नहीं बचा. माँ अपने बच्चे को गले लगाकर
बोलती है मैं हूँ ना ...और हमारे हैं साईं.
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