शेरशाह सूरी का जीवन चरित्र युद्ध और मृत्यु ( Sher Shah Soori Biography in Hindi)

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शेरशाह सूरी का जीवन चरित्र युद्ध और मृत्यु (Sher Shah Soori Biography in Hindi)


1540 के दौर में शेरशाह सूरी (Sher Shah Soori) भारतीय इतिहास में पहले ऐसे बादशाह हुए जिन्होंने G.T Road का निर्माण करवाया. उनकी कुछ नीतियाँ इतनी बेहतरीन थी कि बाद में अंग्रेजों ने भी उनका अनुसरण किया.


शेरशाह की सबसे बड़ी खासियत थी कि उन्होंने अन्य राजाओं या बादशाहों की तरह अपने बाप- दादाओं की संपत्ति और रियासत में से कुछ भी नहीं लिया बल्कि खुद अपनी मेहनत और बहादुरी के दम पर उस मुकाम को हासिल किया जिसे डर से कभी मुग़ल बादशाह हुमायूँ भी चौसा का युद्ध हारकर दिल्ली से भाग गए थे. 


कुछ इतिहासकार बताते है कि यदि शेरशाह को और वक़्त मिला होता तो वो अकबर से बड़ा बादशाह होता. आइये जानते हैं उन अफगानी बादशाह शेरशाह के जीवन चरित्र के बारे में जिन्हें बिहार का शेर भी कहा जाता है.



शेरशाह का बचपन



अफगान का इब्राहिमसुर घोडा का व्यपारी था,जिसके पुत्र हुए हसनसुर. हसनसुर की 4 पत्नियाँ थी जिनसे 8 बच्चे हुए. शेरशाह का बचपन का नाम फरीद था. 


फरीद अपने पिता की पहली बीवी के संतान थे इस नाते फरीद ही उनके अगले वारिस थे. वर्ष 1520 में हसन के मरने के बाद फरीद को रियासत मिलनी थी मगर फिर फरीद के भाई- भतीजो ने कलह- कलेश शुरू कर दिया, जिसके बाद फरीद घर-परिवार छोड़कर बाहार खां लोहानी के पास चला गया जिसके हाथ में पूरा दक्षिण बिहार था.


फरीद ने बाहार खां लोहानी के साथ काम करते हुए अपनी बहादुरी और काम करने के तरीके से उनका दिल जीत लिया. एक बार फरीद ने अकेले ही एक शेर को मार डाला था जिसके बाद बाहार खां लोहानी ने उनका नाम शेरशाह रख दिया. 


बाहार खां के बेटे का नाम जलाल खान था जो अब शेरशाह की देख –रेख में था. लोहानी ने शेरशाह को बहुत सारे अधिकार दे रखे थे. उस वक़्त इब्राहिम लोदी सभी अफगानों का बादशाह था जिसकी दिल्ली पर हुकूमत थी. 


मगर बाबर ने जब भारत आकर वर्ष 1526 में पानीपत के प्रथम युद्ध में लोदी को हराया तो सभी छोटे-बड़े अफगान रियासतों ने खुद को स्वतंत्र घोषित कर लिया. बाहार खान ने भी अवसर देखकर वही किया और खुद को नए टायटल से घोषित करवाया – सुलतान मोहम्मद. 



शेरशाह सूरी की हुकूमत 



वर्ष 1528 में  सुलतान की मृत्यु के बाद शेरशाह ने पूरी बाग़डोर संभाल ली जिसके बाद वो कभी पीछे मुड़कर नहीं देखे. 1529 आते-आते अब पूरे दक्षिण बिहार पर शेरशाह का कब्जा था. 


इस बीच बाबर ने चार बड़े युद्ध जीते थे- 1526 का पानीपत, 1527 में खानवा का युद्ध, 1528 में चंदेरी का युद्ध और वर्ष 1529 का घाघरा का युद्ध. अंतिम वाले युद्ध में शेरशाह ने अफगानों की मदद भी की मगर अफगानी हार गए. 


लेकिन फिर किस्मत ने शेरशाह को उस वक़्त मौका दिया जब वर्ष 1530 में बाबर की मृत्यु हो गयी और हुमायूं अगला मुग़ल बादशाह बना. लेकिन हुमायूँ कभी भी एक अच्छा योद्धा और कमांडर नहीं बना पाया. 


वहीँ दूसरी ओर बाहार खां के नाते रिश्तेदारों ने शेरशाह के खिलाफ षड़यंत्र रचने शुरू कर दिए लेकिन फिर शेरशाह ने भी उन लोगों का गुप्त रूप से सफाया कर दिया जो उनके खिलाफ थे. 


इसके बाद वर्ष 1534 में सूरजगढ़ का युद्ध हुआ. उस युद्ध में बंगाल की ओर से मोहम्मद शाह और अफगानों की ओर से शेरशाह लड़ रहे थे जिसमे जीत शेरशाह की हुई. 


इस हार के बाद शाह को 13 लाख रूपये सालाना शेरशाह को देने पड़े. इस बीच हुमायूँ पक्षिम के राजस्थान, मेवाड़, गुजरात में व्यस्त रहा वहीँ दूसरी ओर शेरशाह ने बिहार, बंगाल, असम तक अपनी ताकत बढ़ा ली थी. 


हुमायूँ का ध्यान जब तक शेरशाह की ओर जाता शेरशाह अपने आप में एक बहुत बड़ी ताकत बन चुका था जिसने वर्ष 1539 में चौसा के युद्ध में हुमायूं को हराकर उसे दिल्ली से मार भगाया. 


हुमायूं  को कश्मीर, पाकिस्तान, अफगानिस्तान और फिर काबुल में पनाह लेनी पड़ी. इस बीच 1540 तक सूरी साम्राज्य का उदय हो चुका था. जिसने दिल्ली, संभल, ग्यालियर को अपने अधीन कर रखा था.


मुगलों को भारत से बाहर रखने के लिए शेरशाह ने बड़े बड़े पोर्ट बनवाया दिए. खैबर दर्रा पर की अच्छी बंदोबस्ती कर दी जहाँ से बाहरी आक्रमणकारी भारत में घुसते थे. 


झेलम नदी के पास भी छावनी बना दी गयी. इसके अलावे रोहतासगढ़ कीला बनवाया दिया जिसमे करीब 50 हज़ार अफगान सैनिक थे. बंगाल को छोटे छोटे भागों में बांटकर उसे जिलों में विभाजित कर दिया गया जिसे तब सरकार कहा जाता था और जो उसका ख़ास होता उसे शिकदार कहा जाता. 


मारवाड़ में राजा मालदेव का शासन था. उससे पहले खानवा के युद्ध में संग्रामसिंह राणासांगा के पराजित होने के बाद राजपुतों की शक्ति कमज़ोर पड़ गयी थी जिसे बाद में शेरशाह ने अपने कब्जे में ले लिया था. 


मगर 22 मई 1545 में कालिंजर कीले को जीतने के दौरान एक तोप का गोला शेरशाह के मुँह पर फट गया जिससे उनकी वहीँ मौत हो गयी .     

  


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