हिंदी उपन्यास कथा यक्षिणी Hindi Novel Yakshini Hindi story
लेखक की ओर से :-
प्यारे दोस्तों सादर नमस्कार !
लिखने का शौक तो मुझे बचपन से
ही रहा है. इसी शौक ने मुझे मुंबई का रास्ता भी दिखाया और मैंने कई धारावाहिकों के
अलावे कुछ मूवी के संवाद भी लिखे . मेरे कुछ ब्लोग्स भी हैं. मै कुछ न कुछ लिखता ही
रहता हूँ, अच्छा बुरा बाद में सोचता हूँ. वैसे एक लेखक का सबसे पहला धर्म यही है, वो बस लिखता रहे.
मेरे लिखने के शौक और मेरी कहानियों की बात करे तो मैं उस वक़्त से कहानियां लिख रहा हूँ जब मैं स्कूल में पढता था. मुझे किसी भी खेल में ज़रा भी रुचि न थी लेकिन अपने मित्रों के साथ खेल के मैदान में अवश्य जाता था.
लेकिन वहां फिर वही काम करता जो मेरे मन का भाता, मतलब कहानियों को गढ़ना और उन्हें लिखना आरम्भ कर देना. मैं हमेशा अपने साथ कागज़ और कलम रखता था. लेकिन आप ऐसा मत सोचये कि मैं बचपन में बहुत अच्छा लिखता था. या मेरी कहानियां बहुत अच्छी होती थी.
सच कहूं तो मेरी लिखी कहानियां मेरे दोस्तों के भवें तान देती थी फिर एक ठहाका. लेकिन यही मेरी ईनाम होता था. अच्छा हो या बुरा दोस्तों ने कम से कम सुना तो सही. अच्छा , मै अपनी बातें जल्दी जल्दी ख़त्म करके मुख्य मुद्दे पर आता हूँ वरना हमारे पाठक भाग जायेंगे.
यक्षिणी कथा:
दोस्तों ! यक्षिणी एक काल्पनिक कहानी है जिसकी पृष्ठभूमि उत्तराखंड है. यक्षिणी को स्वर्ण रक्षिका कहा गया है जो सोने से जुडी है. हमारी कहानी की यक्षिणी भी एक इसी तरह की विशाल सोने के भंडार की रक्षिका है जिसे बांसुरी बजाने का शोक है मगर वो किसी को दिखाई नहीं देती.
यक्षिणी अक्सर रात को आकर गाँव के नौजवान युवकों को
अपने साथ अपनी दुनियाँ में ले जाती है मगर इसके बदले वो उस नौजवान परिवार वालों को एक
बड़ी सी सोने की मुहर भी दे जाती है जिसमे पर एक लम्बी चोटी वाली युवती की नाक तक घूंघट
ओढ़ी एक तस्वीर होती और उस सोने की मुहर पर लिखा होता है – “यक्षिणी ले जायेगी बदले में कुछ दे जायेगी”
दिसम्बर महीने की एक मध्य रात्री में, वर्फीली शीत लहरें उत्तराखंड की पहाड़ियों से टकराकर चम्बेला गाँव में घुसकर अपना असर दिखा रही थी. लोग अपने अपने घरों में ऐसे दुबके थे कि यदि इस भयानक ठंढ में कोई देवी –देवता उन्हें मनचाहा वरदान भी देने आ पहुँचते तो घरों से कोई भी नहीं निकलता. वर्फ ने भूमि पर बिछावन लगाना शुरू कर दिया था.
पास ही पहाड़ी के ऊपर बनी यक्षिणी मंदिर में कुछ हल्की-फुल्की सी वर्फ जमा हो चुकी थी. मंदिर में यक्षिणी देवी की एक मूर्ति थी जिस पर नाक तक घूंघट थी मगर उसके सर की चोटी उसके पैरों को छू रही थी. उसके पैर के नीचे चुन्नी. सिन्दूर और रंग बिरंगी चूड़ियां और पान की एक डलिया थी.
चम्बेला गाँव के पुरखा-पूर्वज इस यक्षिणी को कब से पूजते आ रहे थे, उन्ही भी नहीं पता था. लेकिन मान्यता थी कि सदियों पहले यक्षिणी जो बांसुरी बजाकर रात को भ्रमण के लिए निकलती और जिसे इतर की सुगंध बहुत पसंद थी , वो चम्बेला आकर अपने साथ गाँव के कई युवकों को साथ ले गयी जो फिर कभी दोबारा लौटकर नहीं आये..
मगर यक्षिणी जिन्हें भी अपने साथ ले गयी उस परिवार को एक सोने की बड़ी सी मुहर भी दे गयी जिस पर उसका अपना नारा लिखा था – “यक्षिणी ले जायेगी बदले में कुछ दे जायेगी. आज भी चम्बेला गाँव के कुछ घरों में यक्षिणी की दी हुई वो मुहर रखी थी. मगर किसी ने उन्हें डर से दोबारा संदूक से नहीं निकला. बस डरकर यक्षिणी का मंदिर बना दिया और यक्षिणी देवी की पूजा करने लगे. लेकिन एस बात का खासा ख्याल रखा जाने लगा कि किसी भी तरह से यक्षिणी को नाराज़ न किया जाए क्यूंकि यदि वो फिर से जागी तो फिर से वही खेल शुरू हो जायगा जो सदियों पहले होता था.
मगर उस रात चम्बेला गाँव के लोग इस बात से अनजान थे कि कोई बाहर का व्यक्ति उनके गाँव में घुसकर यक्षिणी मंदिर की खोजबीन करने आया था. ये मुंबई के दो न्यूज़ रिपोर्टर थे रूही और रवि जो चोरी छिपे यक्षिणी मंदिर में जाकर यक्षिणी की तस्वीरें लेते हैं. इनकी बातों से पता चलता है कि ये पहले रिपोर्टर्स हैं जो यहाँ तक पहुंचे हैं. इससे पहले कुछ ने कोशिश की थी मगर वे कहाँ गायब हुए पता नहीं चला..
दोनों रिपोर्टर्स अपने काम में लगे होते हैं कि अचानक इसी बीच गाँव वालों को खबर लग जाती है कि कोई उनके यक्षिणी मंदिर में घुस आया है . इसी के बाद दोनों न्यूज़ वालों को मौत उनकी ओरे बढ़ता दिखाई पड़ता है जब गाँव वाले मशाल और पेट्रोल लेकर उनकी ओर दौड़कर आ रहे होते हैं.
रूही और रवि अपनी- अपनी जान बचाने के लिए वहां
से भागते हैं. गाँव वाले मशाल और पेट्रोल लिए उनका बहुत दूर तक पीछा करते हैं .
मगर वे दोनों जंगल के रास्ते मुख्य सड़क पर आकर अपनी कार लेकर भागने में कामयाब हो जाते
हैं. मगर इसी भागम- भाग में जूही के पर्स से एक इतर की शीशी गिर जाती है जिसके बारे
में गाँव वालो को नहीं पता चलता.
अगली सुबह गाँव वालों में बेचैनी
देखी जा सकती थी. हर घर का सदस्य परेशान चिंतित और डरा हुआ था कि कहीं उन शहर
वालों ने उनकी देवी के साथ कुछ अभद्रता तो नहीं की जिस कारण उनकी देवी नाराज़ हो गयी हो और फिर यक्षिणी फिर से
सक्रीय हो उठे. इसके लिए गाँव का मुखिया पूजा पाठ और हवन यज्ञ करने की नसीहत देता है
जिसे सभी मान लेते हैं.
दूसरी ओर मुखिया का छोटा पोता नट्टू जब स्कूल से घर की ओर आ रहा होता है तो उसे सड़क पर गिरी वही इतर की शीशी मिल जाती है जिसे वो खोलना चाहता है. तभी उसे हवाओं का तेज़ झोंका लगता है. मानो उसे उस शीशी को खोलने से मना कर रहा हो. नट्टू जितनी बार प्रयास करता है उतनी बार कुछ न कुछ प्राकृतिक संकेत मिलते है . इस बार धूल के गुबार ने नट्टू को रोकना चाहा और नट्टू ने धूल आंधी से बचते हुए उस इतर की शीशी को अपने बैग में रख लिया.
इधर गाँव घर में यक्षिणी को
खुश करने के लिए हवन पूजा –पाठ की तैय्यारी चलती थी. नट्टू फिर से घर आकर उस इतर की
शीशी को खोलना चाहता है, मगर माँ के डर से वो उस शीशी को कुछ देर के लिए अपने पिताजी की
पगड़ी में छिपाकर रख देता है. मुखिया का बेटा यशोधर वही पगड़ी पहनकर यक्षिणी मंदिर की
पूजा में शामिल होने परिवार के साथ निकलता है.
यक्षिणी मंदिर परिसर में सभी
अपने अपने काम में लगे होते हैं कि तभी अचानक सभी को इतर की सुंगंध आने लगती है.
और फिर जब पता चलता है कि यशोधर की पगड़ी से इतर टपक रही तो सभी वहां से भाग जाते हैं.
क्यूंकि सबको पता था कि अब तक इतर की महक उस यक्षिणी तक पहुँच चुकी होगी और अब उस यक्षिणी
को चम्बेला गाँव में आने से कोई नहीं रोक सकता था.
क्रमश: ---------------------
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