35 सालों से भारत को दुनियाँ के सबसे बड़े सोने के सिक्के की तालश. वजन 12 किलो ग्राम है.
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सोना यानि कि गोल्ड नाम सुनते ही आखों के सामने एक चमक सी आ जाती है और दिल धड़क उठता है. क्यूंकि ये पीला सी धातु जिसे गोल्ड कहते हैं और जो बहुत ही कीमती होता है, उसका क्रेज़ आज से नहीं बल्कि त्रेताकाल से ही चला आ रहा है.रावण की सोने सोने की लंका हो या फिर अमृतसर का स्वर्ण मंदिर, ये पीली सी धातु की एक चमक ही लोगों को दूसरी दुनिया की सैर करवा देती है.
क्या करें सोने का क्रेज़ ही ऐसा होता है कि लोग इसके लिए पागल रहते हैं. लेकिन यदि आपसे पुछा जाए कि आपने अपने जीवन में कितना सोना देखा है या फिर कभी कितने सोने का कोई आभूषण या सिक्का बनवाया है तो आप क्या कहेंगे?? शायद आप ग्राम भर में ही सिमट कर रह जाएँ..
लेकिन हम यहाँ जिस सोने के सिक्के की बात कर रहे हैं उसका वजन ही 12 किलो का है जो भारत में था. जी हाँ, बिलकुल सही सुना आपने वो बारह किलो वजन का सोने का सिक्का ही है वो भी एक नहीं बल्कि दो -दो सोने के सिक्के, जिन्हें 35 सालों से ढूँढा जा रहा.
जानकारी के लिए बता दूं कि मुग़ल बादशाह जहाँगीर ने सन 1683 में इस प्रकार के दो सिक्कों का निर्माण करवाया था. उन्होंने एक सिक्का इरान के शाह के राजदूत को उपहार स्वरुप दिया गया था और दूसरा सिक्का किसी तरह हैदरबाद के निज़ाम की संपत्ति बन गया..इस सोने के सिक्के को आखिर बार हैदराबाद के निज़ाम के पोते मुकर्रम के पास देखा गया था जिन्होंने सन 1987 में स्वीटजरलैंड के एक होटल जिनेबा में इसकी नीलामी करने की कोशिश की थी.
माना जाता है कि उस वक़्त सोने के एक सिक्के की कीमत 160 लाख डालर थी..यह सिक्का बिकने ही वाला था मगर यूरोप में मौजूद भारतीय उच्च अधिकारियों को इसकी भनक लगी और फिर भारत के हस्तक्षेप के बाद ये नीलामी रुक गयी. जिसके बाद SBI को वहां भेजा भी गया मगर काफी कोशिशों के बावजूद वे इसका पता लगाने में नाकाम रहे..भारत के CBI इसे 1987 से ही ढूँढने में लगे हैं.
मगर आज तक इसका पता नहीं चल पाया है..अब खबर मिली है कि भारत सरकार ने एक बार फिर से इस सिक्के की खोज तेज़ कर दी है. निज़ाम के परिवार का दावा है कि आज़ादी से पहले ही इसे अँगरेज़ अपने साथ लेकर गए थे..ऐसा भी कहा जाता है कि इस सिक्के को सन 1970 में मुंबई से लन्दन भेज दिया गया था..लेकिन अब यह दोनों सिक्के कहाँ है इसकी खोज शुरू हो चुकी हैं.
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