बौद्ध तांत्रिकों (Bauddh Tantriks) की इष्ट देवी है तारा. इनके कई रूप स्वरुप है जिनकी व्याख्या बोधिसत्वों ने की है. Goddess Tara were worshiped by Buaddh Tantrik in 8th & 12th centuries in Hindi.
बोधिसत्व की कल्पना महायान संप्रदाय की विशेषता है. बुद्ध ने अनेक जन्म ग्रहण कर बोधिसत्व का जीवन बिताया और और पारमिताओं को प्राप्त किया. बुद्ध के इन पूर्व जन्मों का वृत्तांत जातक कथाओं में वर्णित है. हीनयान संप्रदाय में बोधिसत्व को कोई स्थान प्राप्त नहीं है. उसने भिक्षुक जीवन को ही महत्व दिया है. महायान के अनुसार अनेक व्यक्स्ती बोधिसत्व बनकर परोपकार में प्रवृत्त रहें. ऐसा विधान है और ऐसे व्यक्ति अत्यंत श्रद्धा की दृष्टि से देखे जाते हैं और उनकी प्रायः वही स्थिति होती है, जो पौराणिक हिन्दू धर्म में देवताओं की है.
वे चैत्यों में इनकी मूर्तियाँ भी स्थापित करने लगे और और बुद्ध के समान इनकी पूजा करने लगे. बोधिसत्वों में अव्लोकितिश्वर, मंजुश्री, व्रजपाणी, सामंत भद्र, आकाशगर्भ, महास्थानप्राप्त भैष्यराज और मैत्रेय प्रमुख हैं. उपासना में देवताओं की अपक्षा देवियों को हिन्दू धर्म में अधिक उच्च स्थान दिया गया है. इसी आस्था पर बौद्ध धर्म में भी देवियों को उच्च मान्यता मिली है. इनमे देवी तारा का स्थान बहुत महत्वपूर्ण माना गया है.
आठवी और बारहवी शताब्दी तक देवी बौद्ध धर्म में अत्यंत ही लोकप्रिय रही. तभी से तारा के सम्मान में जगह जगह मंदिर बनाये गए और घर घर प्रमिमायें पूजी जाने लगी. भारत के तांत्रिक बौद्धों ने देवी तारा का अतिशय सुन्दर और उदार माना है और यह उनका शांत रूप है. इस रूप में तारा हिन्दुओं की देवी लक्ष्मी जैसी प्रतीत होती है. जब तारा रौद्र रूप धारण करती है तब वे दुर्गा के सदृश लगती हैं. तारा के शांत एवं रौद्र रूपों के आधार पर बाद में तांत्रिक बौद्धों ने २१ रूपों कि कल्पना की और विभिन्न वर्ण और नाम लेकर विवेचन किया.
तारा के विभिन्न वर्णों में श्याम ,सित,पीत,नील एवं रक्त वर्ण भक्तों को बहुत प्रिय है. इन् विभिन्न ताराओं में श्याम तारा प्रमुख है. बौद्ध तांत्रिकों ने श्याम तारा को शांत रूप में प्रकट किया है. प्रतिमाओं में श्याम तारा को अभिनव यौवन से युक्त तथा नाना प्रकार के अलंकारों से विभूषित किया दिखाया गया है. उनकी उपासना स्त्रियाँ सौंदर्य की रक्षा के लिए करती है . तांत्रिक बौद्धों ने उन्हें धन दायिनी देवी के रूप में माना है . वर्ण के आधार पर का दूसरा रूप है , सिततारा. बौद्ध धर्म में सिततारा पातिव्रत्य की देवी मानी गयी है. प्रतिमाओं में ये अपने अर्धांग बोधिसत्व अब्लोकितेश्वर के साथ उपस्थित की गयी है विचित्र रंगों के वस्त्र एवं अलंकार पहने हुए यह देवी स्वरुप में अति आकर्षक है.
बौद्ध तंत्र में सिततारा के अनेक रूप हैं. इनमे महाचीन तारा बहुत विख्यात है.. बौद्धों ने इस देवी को रौद्र रूप प्रदान किया है और उग्र तारा की संज्ञा दी है. इस देवी के अनेक प्रतिमाएं नेपाल में हैं. वर्ण के अनुक्रम में तारा का तीसरा वर्ण पीत है जिसमे वज्रातारा प्रमुख है. तांत्रिकों की ये देवी बहुत ही प्रिय है. क्यूंकि उके अनुसार इसकी इसकी भी रूप में उपासना की जाने पर यह अवश्य सिद्धि प्रदान करती है. कहा जाता है. ॐ तारा तुत्तारे तुरे स्वाहा मंत्र का सात बार उच्चारण करे तो वह व्यक्ति निर्भय होकर किसी भी दुर्गम स्थान पर जा सकता है. पीततारा का एक और रूप है प्रसन्नतारा. आकृति से सौम्य होने के कारण इन्हें अमृतमुखी और अमृतलोचना भी कहा जाता है . इनके चहरे पर हलकी सी मुस्कान है. देवी का चतुर्थ वर्ण नील है. इनका सौंदर्य अनुपम है पर जब ये रौद्र रूप धारण करती है तब इन्हें एकजटा तारा या विद्धुज्वाला –कराली कहा जाता है.
देवी के पांच वर्णों में अंतिम रक्त वर्ण है. बौद्ध –तंत्र में इस वर्ण में देवी
तारा केवल एक में मिलती है और यह कुरुकल्ला कही गयी है. बौद्धों का विश्वास है कि
इस देवी का मनुष्य के ह्रदय से घनिष्ठ सम्बन्ध है.यह देवी विरही प्रेमियों को उनके प्रियजनों से मिलाकर प्रसन्न करती है.
बौद्धों की धारणा है कि प्रत्येक
नवयुवक को इस देवी की आराधना करनी चाहिए.
वस्तुत: तारा बौद्ध –तांत्रिकों की शक्ति रूपिणी देवी है जिन्हें इन तांत्रिकों ने
निर्वाण कि प्राप्ति के लिए इष्ट माना है .
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