बाबर ( Babur ) का सम्पूर्ण इतिहास Mirza zahir uddin Muhammad Babur हिंदी में

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बाबर ( Babur )  का सम्पूर्ण इतिहास   Mirza zahir uddin Muhammad Babur हिंदी में


बाबर Babur.

Mirza zahir uddin Muhammad Babur


लेखक अर्सिकन एवं प्रोफ़ेसर रशब्रुक विलियम्स (L.F Rushbrook Williams British Historian) ने बाबर ( Babur ) के फरगना से लेकर भारत विजय का विस्तार पूर्वक वर्णन किया है. मिर्ज़ा जहीरुद्दीन मुहम्मद बाबर (Mirza zahir uddin Muhammad) इतिहासकारों के लिए हमेशा से ही एक रोचक विषय रहा है. अंग्रेजी भाषा में उनके जीवन चरित्र ( Biography ) पर कई पुस्तकें हैं. लेखकों ने पानीपत और खनुवा (Panipat & Khanva) की लड़ाई की व्यूह रचना का चित्रण करके बाबर की सामरिक  सूझबूझ और उसकी श्रेष्ठ सैनिक व्यस्था को प्रदर्शित करते हुए पछिम इतिहासकारों (western Historian) के इस विचार का समर्थन किया है कि रणक्षेत्र में भारतीय कौशल (indian war talent) सदैव ही निम्न कोटि का रहा है.  


इसमें कोई संदेह नहीं बाबर एक वीर योद्धा था और उद्देश्य पूर्ण विकट से विकट संकट में भी वह हताश नहीं होता था. वह अपनी अपनी आकांक्षाओं को दबाने  के स्थान पर उसे ऊपर उठाये रखता था. परन्तु इससे भी इंकार नहीं किया जा सकता कि ऐसे भी अवसर आये जब उसको अपमान जनक समझौते करने पड़े या उसको हार की संभवना से ही विचलित होना पड़ा. शैबानी खां ( Shaibani Khan) के तो नाम से ही उसके होश उड़ जाते थे. 


अपने इस उजबेग शत्रु से जान बचाने के लिए उसको अपनी बहन को भी समर्पित करना पड़ा. फिर वो काबुल में था तब इतनी सूचना पाते ही की शैबानी खान उस ओर आ रहा है , उसने पूर्व दिशा में भागने का विचार दृढ कर लिया. उसके बाद पानीपत और खनवा ( Panipat & Khanva) के रण-क्षेत्रों में भी ऐसे अवसर आये जब कि इस  शेर-ए-बब्बर का पित्ता पिघलने लगा. उसके बहादुर सिपाही राजपूतों के दमखम से कांपते थे. 


उनका साहस कायम रखने के लिए बाबर ( Babur) को नाटकीय चालें खेलनी पड़ीं. प्रोफ़ेसर रशब्रुक विलियम्स ने बाबर को साम्राज्य निर्माता की संज्ञा दी है. यह भी अतिश्योक्ति है, क्यूंकि जब उसके समकालीन शाह इस्माईल सफवी का स्मरण किया जाता है बाबर कि निमन्ता स्पष्ट हो जाती है. इस्माईल सफवी ने सफवी- साम्राज्य स्थापित किया था वह अधिक स्थायी और गौरवपूर्ण सिद्ध हुआ. 


इसका निर्णायक प्रमाण यह भी है कि बाबर ( Babur) उसी की सहायता के बल पर तीसरी बार समरकंद ( Samarkand) पर अधिकार कर सका. इतिहासकारों ने उसके पहले दो बार समरकंद आधिनिकरण को भी एक विलक्ष्ण कृति बताया है. यह विलक्षणता केवल इस अर्थ में थी कि बाबर अभी एक बालक ही था. इस अवस्था में उसका इतना मह्त्वकांक्षी होना आश्चर्यजनक अवश्य था. परन्तु जिस प्रकार उसने समरकंद पर अधिकार किया उसमे उसके सामरिक कौशल का कोई भी चिन्ह नहीं मिलता और न उसने काबुल ही किसी विलक्ष्ण सैनिक चाल से अधिकृत किया. 


केवल अनुकुल परिस्थियों ने उसका साथ दिया. आधुनिक युग के इतिहासकारों ( modern historians) ने बाबर को प्रशस्तिगान  तो किया है, किन्तु दो मैलिक प्रश्नों का उत्तर नहीं दिया है. पहला यह कि यदि बाबर में सैनिक गुण थे तो प्रारंभिक जीवन में अपनी ही मातृभूमि में उसको बार बार क्यूँ भटकना पड़ा ? और दूसरा यह कि तैमुर ( Taimur) और चंगेज खान ( Changez Khan) का वंशज होते हुए भी वो अपने ही देश में विदेशी क्यूँ हो गया? 


इसमें संदेह नहीं कि बाबर में असाधारण गुण थे, परन्तु इनका क्रमश: विकास हुआ और अनुभव द्वारा यह परिपक्कव हुए. इसलिए यह  धारणा कि बाबर शुरू से ही कौशल संपन्न था,एक भारी भ्रम है और इस भ्रम का प्रमुख कारण है भारत में उसकी अखंडित विजयों का चित्रण. इतिहासकारों ने  इसमें भी अभियुक्तिपूर्ण शब्दावली का प्रयोग किया है और वास्तिविकता पर एक हद तक पर्दा डाल दिया है. 


बाबर को पानीपत एवं खनवा की विजयी इतनी आसानी से नहीं प्राप्त हुई जैसा कि बताया जाता है. इन संग्रामों में विपक्षी दलों की वही दशा थी जो कि बाबर कि सर –ए-पुल के मैदान में रही थी. समान, साधनों और समान रणनीति के टकराव  में उसे नीचा भी दीखना पड़ा.काबुल  आने के बाद जबकि उसका ईरान से संपर्क स्थापित हुआ तब ही वह अपनी सैनिक व्यवस्था में नए साधनों को शामिल कर सका. 


अत: भारत के योद्धाओं को केवल तुर्की या अफगान वीरों का ही सामना नहीं करना पड़ा बल्कि आग्नेयास्त्रों का भी मुकाबला करना पड़ा...प्रोफ़ेसर रशब्रुक विलियम्स ने पानीपत या खनवा के रणक्षेत्रों में बाबर की व्यूह रचना का जो चित्र दिया है, वह मूलत: इब्राहीम लोदी या राणा सांगा ( Ibrahim Lodhi or Rana Sanga) की व्यूह –रचना से भिन्न नहीं दिखाई पड़ता. यदि दोनों में मार्मिक अंतर है तो इतना ही है कि बाबर ने तोपखाने का तुलुग़मा का प्रयोग किया, जिसका अभी भारत में  प्रचलन नहीं था. बाबर का जीवन युद्ध करते करते व्यतीत हुआ था. 


सामान्य रूप से इतिहासकारों ने इसी पहलू पर अधिक बल दिया है. परन्तु उसके जीवन के और भी कई दिलचस्प पहलू हैं जिनपर प्रकाश डालना आवश्यक  है. बाबर एक निर्भीक योद्धा था ही इसके साथ ही वह कवि और साहित्य –निर्माता भी था. इसके अलावे वो जीव – विज्ञान और वनस्पति विज्ञान का भी शास्त्री था. 


वह कला का पारखी था. उसके धार्मिक विचार लचीले और उदार थे. यधपि उसने गाज़ी की उपाधि तो धारण की पर उसके अधिकतर शत्रु उसके सहधर्मी ही थे. लेकिन राजनितिक लाभ प्राप्ति के लिए वह अपनी धार्मिक निष्ठा को भी तिलांजलि देने में समर्थ था. इन मायनों में देखा जाए तो वो एक विचित्र व्यक्ति था.   


बाबर का पानीपत युद्ध


 


 

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