पानीपत का प्रथम युद्ध 1526
पानीपत का प्रथम युद्ध (1526) बाबर और इब्राहिम लोदी
First battle of Panipat Babur & Ibrahim Lodi
बाबर ने सिर्फ 12 हज़ार सैनिकों की मदद से कैसे इब्राहिम लोदी की 30,0000 की सेना को हरा दिया? जानिये पानीपत (Panipat) के प्रथम युद्ध के अनसुने किस्से.
दिन:- 21 अप्रैल 1526 (हरियाणा)
स्थान:- पानीपत
दो गुट : - बाबर और इब्राहिम लोदी
भारत में शायद ही कोई ऐसा होगा जिसने पानीपत के प्रथम युद्ध के बारे में न सुना हो. जी हाँ, काबुल के बादशाह ज़हीरुद्दीन मोहम्मद बाबर और दिल्ली के सुल्तान इब्राहिम लोदी के बीच आज से 490 साल पहले 21 अप्रैल 1526 को हरियाणा के पानीपत के मैदान जो भयानक युद्ध हुआ उसे ही भारत के इतिहास में पानीपत का प्रथम युद्ध (First battle of Panipat) कहा जाता है .
उस दिन भारत के इतिहास में जो हुआ उसने सिर्फ 6 घंटे में उस लड़ाई का फैसला कर दिया कि अब कौन होगा हिंदुस्तान का अगला बादशाह?
युद्ध की पृष्ठभूमि :-
पानीपत का प्रथम युद्ध, और युद्धों से बिल्कुल अलग था, क्यूंकि बाबर की ओर से इस युद्ध का लड़ने का एक मात्र मसकद ही था, हिंदुस्तान की सरज़मीं पर मुग़ल पताका फहराना. लेकिन ये युद्ध जितना अधिक दिलचस्प था उससे कहीं अधिक बाबर की कहानी दिलचस्प थी.
बाबर का जीवन- संघर्ष :-
उजबेगिस्तान के रहने वाले उस 13 साल के लड़के जहीरुद्दीन बाबर को पता भी नहीं था कि उसे उसके पिता की मौत के बाद एक दिन राजगद्दी संभालनी पड़ेगी. तक़दीर ने उसे फरगाना और समरकंद का बादशाह बना दिया था. मगर इसके बाद भी, बाबर के अपने सगे भाई- भतीजे, गद्दी की लालच में बाबर के दुश्मन बन गए और बाबर कई बार समरकंद और फरगना से बाहर निकाला गया.
बाबर कुछ वर्षों तक एक गाँव में छिपकर रहा, जहाँ उसे एक बूढी दादी उनके बहादुर पूर्वजों की कहानियाँ सुनाया करती थीं. उन कहानियों ने बाबर के नसों में जोश भर दिया और धीरे -धीरे वो एक हिम्मती और फौलादी लड़ाका बन गया.
कुछ सालों बाद बाबर ने फिर से काबुल पर अपना विजयी पताका लहरा दिया. मगर पैसों की तंगदस्ती के कारण वो अपना साम्राज्य चला पाने में नाकाम हो रहा था. बाबर ने भारत के बारे में काफी कुछ पहले ही सुन रखा था. मगर उसे पता था कि उसके पास न तो इतने सैनिक हैं और ना पैसे कि वो कभी भारत पर आक्रमण करने की सोच भी सके. मगर कहीं- कहीं इतिहास में ऐसा जिक्र आता है कि बाबर भारत में छोटे – मोटे आक्रमण करता और लूट- मार करके वापस काबुल लौट जाता था .
दिल्ली में इब्राहिम लोदी
उस वक़्त दिल्ली की गद्दी पर लोदी साम्रज्य के तीसरे वंशज इब्राहीम लोदी काबिज़ थे. मगर उनके भाई सिकंदर लोदी खुद सत्ता हथियाना चाहते थे, इसलिए सिकंदर लोदी ने राजपूत राजाओं के साथ सांठ-गाँठ कर ली थी .राजपूतों की मदद से सिकंदर लोदी दिल्ली का तख़्त हासिल करना चाहता था . हिंदुस्तान का माहौल उस वक़्त बहुत ही गरम हो चला था . राजनितिक दाव-पेच शुरू हो चुके थे .
बाबर का भारत की ओर कूच
बाबर अपने साम्राज्य को चलाने के लिए छोटे- छोटे युद्ध करता रहता था. इसी क्रम में वो भारत भी आता था .उसने पानीपत के प्रथम युद्ध से पहले, पंजाब के लाहौर में अपना एक ठिकाना भी बना लिया था. उधर लोदी साम्राज्य में हो रही राजनितिक हलचल की लहर जब काबुल में बाबर तक पहुंची तो उसने फिर इसे एक सही अवसर समझा और अपनी सेना लेकर फ़ौरन निकल पड़ा हिंदुस्तान की ओर .
बाबर की सैन्य शक्ति
उस वक़्त बाबर के पास मात्र 12 हज़ार की सेना था. उनमे जोश था क्यूंकि बाबर अब तक 12 युद्ध जीत चुका था. बाबर की सेना काबुल से जिस चीज़ को अपने साथ ढोकर ला रही थी वो गोले दागने वाले तोप थे जो संख्या में 20-25 होंगे. इससे पहले भारत में किसी राजाओं ने तोप नहीं देखे थे.
बाबर की ख़ास युद्ध शैली
बाबर की युद्ध निति बहुत ही ख़ास और अलग थी . वो जिस शैली से युद्ध लड़ता था उसे तुलुगना और अरबा कहा जाता था, जिसका मतलब होता था, अपने सैनिकों के दोनों दस्ते हरावल और करवाल के बीच में एक और सेना खड़ी करना. घोड़ों पर सवार तीर अंदाज़ कोने में रखे जाते थे जो दुश्मनों को पीछे से जाकर घेर लेते और उन पर तीर से हमला कर देते थे. बाबर ने इस शैली से कई युद्ध जीते थे.
बाबर, अपनी 12 हज़ार की सेना लेकर पूरब में स्थित हारून नदी को पार करके पूरे 28 दिनों के बाद नवम्बर 1525 में सिन्धु नदी को पार कर लिया और फिर अपनी सेना के साथ आगे बढ़ता रहा, जिसने रोपड़ में सतलज नदी को पार करके अम्बाला पहुंचा.
इस बीच कई बार बाबर के ख़ास लोगों ने बाबर को हिदायत भी दी कि हमारी 12 हज़ार की सेना इब्राहिम लोदी की इतनी बडी सेना के आगे नहीं टिक पाएगी .सभी गाजर मुली की तरह काट दिए जायेंगे, लिहाज़ा युद्ध को टालना ही सही रहेगा. मगर बाबर एक जिद्दी योद्धा था, वो अब लौटना नहीं चाहता था.
क्यूंकि बाबर ने इस युद्ध का ब्लू प्रिंट पहले ही अपने दिमाग में बना लिया था, तभी तो उसने सबसे पहले हजारों बैल गाड़ियां खरीदी और यमुदा नदी के किनारे एक लम्बी कतार बनाकर उन्हें खड़ा कर दिया .फिर यमुना नदी के उस मैदानी भाग में जो करीब पंद्रह-बीस फीट गहरे गड्ढे थे, उन जगहों को पेड़ और नुकीली झाड़ियों से भरा दिया और फिर अपनी सेना को 4 भागों में बांटकर उन्हें खड़ा कर दिया. बाबर की सबसे आगे की सेना करावल थी .उसके पीछे हरावल, फिर दायें और बाएं दो, और फिर सबसे कोने में तीरअंदाज़ वाले घुडसवार रखे गए थे .
इब्राहिम लोदी की सैन्य शक्ति और युद्ध निति
इब्राहीम लोदी के पास लगभग 35 हज़ार की सेना थी और 15 हज़ार हाथी थे. मगर उन्हें युद्ध का अच्छा अनुभव नहीं था . वे बस भीड़ मात्र थी, जो हाथियों पर बैठकर कहीं भी घुस जाते थे. इब्राहिम लोदी को अपने हाथियों पर बहुत भरोसा था . उसे लग रहा था कि बाबर के पास जितनी सेना होगी उसके आस पास तो उसके हाथी ही होंगे जो उनकी सेना को रौंद डालेंगे. मगर इब्राहिम लोदी की सोच गलत साबित हो गयी.
युद्ध का घातक परिणाम
खतरे से अनजान इब्राहिम लोदी की सेना जैसे ही आगे बढ़ी, सबसे पहले उनके कुछ घोड़े और हाथी उन्हीं गड्ढों में जा गिरे जहाँ नुकीली झाड़ियाँ थी. इसके बाद बाबर की सेना ने जैसे ही तोप दागे, बाकी बचे हिन्दुस्तानी हाथी -घोड़ों ने भागना शुरू कर दिया. क्यूंकि इससे पहले उन्हें किसी भी युद्ध में आग के गोले और चमक का अनुभव नहीं किया था . धमाकों की वजह से भागते हुए हाथी, अपने ही ओर के सैनिकों को रौदने लगे.
इब्राहीम लोदी की सेना भगदड़ में जैसे ही पीछे मुड़ी, पीछे दोनों ओर से छिपे बाबर के घुडसवार तीरंदाज़
सैनिकों ने उन्हें अपनी तीरों से छल्लनी करना शुरू कर दिया और फिर अंतत: इब्राहीम
लोदी का सर कलम कर दिया गया. इस तरह एक अनुभवहीन बादशाह इब्राहिम लोदी, पानीपत के प्रथम युद्ध में मारा गया और बाबर, जिसके पास बहुत कम सैनिक थे, वो यह युद्ध जीत गया. और फिर उसी दिन से हिंदुस्तान की तारीख बदल गयी. बाबर के हिंदुस्तान पर पड़ते क़दमों ने मुग़ल सल्तनत की नींव रख दी .
अब पढ़िए पानीपत के दुसरे युद्ध की कहानी .
अब पढ़िए पानीपत के तीसरे युद्ध के बारे में
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