मीनाक्षी देवी - सुन्देश्वर मंदिर कथा और इतिहास Minakshi devi & Sundeshvara story & history

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मीनाक्षी देवी  ( Mnakshi devi)



मीनाक्षी देवी - सुन्देश्वर मंदिर पूर्ण जाकारी एवं कथा  ( Minakshi devi &  Sundeshvara story in hindi)


मीनाक्षी अम्मा अथवा मीनाक्षी अम्मान और मीनाक्षी सुन्देश्वर सब एक ही नाम हैं.  तमिलनाडू के मदुरै शहर में बसा ये भव्य मंदिर, माता पार्वती और शिव को समर्पित है.  माना जाता है कि इस शहर का निर्माण एक कुंडली मारे हुए  विशाल हलस्य नामक सर्प के आकार- प्रकार से बना है.  कुंडली मारे इस सर्प का विशाल शरीर इस शहर का प्रतीक है और इसकी पूँछ उस स्थान को दर्शाता है जहाँ ये भव्य मंदिर बना है.   



मीनाक्षी का अर्थ एवं रहस्य और उससे जुडी पौराणिक कथा 

मीनाक्षी देवी - सुन्देश्वर मंदिर पूर्ण जाकारी एवं कथा  ( Minakshi devi &  Sundeshvara story in hindi) 


मीनाक्षी का अर्थ होता है वो आखें जो मछली जैसी हों. देवी मीनाक्षी से जुडी कथा का जिक्र थिरुविल्लीयाट्टर नामक पुराण में आता है. बहुत पहले तमिलनाडू के मदुरै में एक राजा हुए जिनका नाम मलयध्वज था. ये पंड्या वंश से था. लेकिन मलयधज का कोई भी उत्तराधिकारी नहीं था.


मीनाक्षी देवी - सुन्देश्वर मंदिर पूर्ण जाकारी एवं कथा  ( Minakshi devi &  Sundeshvara story in hindi)


 एक ऋषि के परमर्श पर राजा ने संतान प्राप्ति के लिए एक यज्ञ किया और उस यज्ञ से उन्हें एक कन्या की प्राप्त हुई जिसके सीने में तीन वक्ष और आखें मछली जैसी थी. उस कन्या की आखें मछली के सामान होने के कारण ही उसे मीनाक्षी कहा जाने लगा. मलयध्वज बाल्यकाल से ही अपनी पुत्री को युद्ध में पारंगत करने लगे. जिसका परिणाम ये हुआ कि मीनाक्षी एक बहुत बड़ी योद्धा बन गयी. उसने युद्ध में कई राजाओं को हरा दिया. लेकिन मीनाक्षी किसी भी राजा को युद्ध में इसलिए हारती थी ताकि वो भविष्यवाणी के अनुसार वो ये जान सके कि किस वीर और महान पुरुष के समक्ष जाते ही उसका तीसरा वक्ष लुप्त होता है. 


एक बार मीनाक्षी का मन शिव से युद्ध करने का हुआ और वो कैलाश पहुँच गयी. मगर शिव को सामने देखती ही वो शरमा गयी जिस कारण उसका एक वक्ष लुप्त हो गया जिसके बाद मीनाक्षी ने शिव से विवाह करने की प्रार्थना कि और फिर राजा मलयध्वज ने अपनी पुत्री मीनाक्षी का विवाह शिव से करवा दिया. वही शिव सुन्देश्वर के नाम से जाने गए जो देवी मीनाक्षी के साथ मदुरै में विराजमान हैं.         



मीनाक्षी देवी मंदिर के बारे में विस्तृत जानकारी


मीनाक्षी देवी - सुन्देश्वर मंदिर पूर्ण जाकारी एवं कथा  ( Minakshi devi &  Sundeshvara story in hindi)



मदुरा दक्षिण- भारत ( तमिल-प्रदेश) के नगरों में एक है. यह मद्रास- रामेश्वर रेल-पथ पर स्थित है. यह मंदिरअपनी निर्माण-कला और भव्यता के के लिए सर्वत्र प्रसिद्द है. गोपुर में प्रवेश करने से पहले एक मंडप मिलता है, जिसमे फल-फूल की दुकानें रही हैं.उसे नगर- मंडप कहते हैं. उसके आगे अष्ट-शक्ति मंडप है.इसमें स्तंभों  के स्थान पर लक्ष्मी की आठ मूर्तियाँ छत का आधार बन रही हैं. 


मंदिर से दाहीने सुब्रमण्यम और गणेश की मूर्तियाँ हैं. इसके आगे मीनाक्षी-नायकम मंडप है. इस मंडप के पीछे अन्धेरा मंडप मिलता है . इसके आगे मीनाक्षी -नायकम मंडप है. इस मंडप के पीछे अन्धेरा मंडप मिलता है. अन्धेरा मंडप के आगे स्वर्ण- पुष्कारिणी सरोवर है. सरोवर के चारो ओर मंडप है.इन मंडपों में तीन और भित्तियों पर भगवान शंकर की 64 लीलाओं के चित्र बने हैं. मंदिर के सम्मुख ही मंडप के सतम्भों में पाँचों पांडवों की मूर्तियाँ और सात स्तंभों में सिंह की मूर्तियाँ  हैं. 



मीनाक्षी देवी - सुन्देश्वर मंदिर पूर्ण जाकारी एवं कथा  ( Minakshi devi &  Sundeshvara story in hindi)



सरोवर की पश्चिमी भाग का का मंडप किलिकुंड मंडप कहा जाता है. यहाँ एक अद्भूत सिंह- मूर्ती है.सिंह के मुह मुख में एक गोला बनाया गया है.सिंह के जबड़ों में अंगुली डालकर घुमाने से यह गोला घूमता है. पत्थर में इस प्रकार का शिल्प नैपुण्य देखकर चकित रह जाना पड़ता है. पांडव-मूर्ती मंडप को पुरुष-मृग-मंडप कहते हैं,क्यूंकि उसमे एक मूर्ती ऐसी बनी है,जिसका आधा भाग पुरुष का और आधा भाग मृग का है. इस मंडप के सामने मीनाक्षी देवी के निज मंदिर द्वार हैं . 


द्वार के दक्षिण में छोटा सा सुब्रमण्यम-मंदिर है, जिसमे सुब्रमण्यम तथा उनकी दोनों पत्नियों की मूर्तियाँ है. कई ड्योढीयों* को पार करने पर श्री मीनाक्षी देवी की भव्य मूर्ती है. बहुमूल्य वस्त्रों और आभूषणों से से देवी का श्याम विग्रह सुशोभित रहता है. निज मंदिर के परिक्रमा मार्ग से  ज्ञान शक्ति तथा बल-शक्ति की मूर्तियाँ हैं. मीनाक्षी मंदिर कि परिक्रमा करने के बाद सुन्देश्वर मनीर मिलता है. दोनों मंदिरों के बीच गनेज जी का मंदिर है. सुन्देश्वर-मंदिर के प्रवेश द्वार पर द्वारपाल की मूर्तियाँ हैं. सुन्देश्वर मंदिर के सम्मुख पहुँचाने पर नटराज के दर्शन होए हैं उन्हें चांदी से मधा गया है. तांडव निरता करते हुए भगवान् शिव की यह मूर्ती चिदम्बरम के नटराज की मूर्ती से बड़ी है.मुख छोड़कर सबकुछ चाँदी से  ढका है. चिदम्बरम के नटराज का वाम पद ऊपर उठा है, पर यहाँ दाहिना पैर.



मीनाक्षी देवी - सुन्देश्वर मंदिर पूर्ण जाकारी एवं कथा  ( Minakshi devi &  Sundeshvara story in hindi)



सुन्देश्वर मंदिर के सामने भी स्वर्ण मंडित स्तम्भ हैं और मंदिर का शिखर भी स्वर्ण मंडित है. कई ड्योढी के भीतर अर्धे पर सुन्देश्वर सुशोभित है. उनके भाल पर स्वर्ण का त्रिपुंड है,जो अत्यधिक आकर्षक है. मंदिर के बाहर जगमोहन के आठ स्तम्भ हैं, जिन पर भगवान शंकर की विविध लीलाओं की अत्यंत सजीव मूर्तियाँ हैं.इसका शिल्प-नैपुण्य अद्भूत है. यहीं पर चार स्तंभों वाला एक मंडप है,  जिसमे पाथर की श्रृंखला बनाई गयी है. 


इस श्रृंखला की  कड़ियाँ लोहे की श्रृंखला के समान घूम सकती है. यहाँ वीरभद्र एवं अघोरभद्र की विशाल उग्र मूर्तियाँ हैं. इस मंडप में भगवान शंकर के ऊर्ध्व -नृत्य की अद्भूत कलापूर्ण विशाल मूर्ती है.तांडव नृत्य करते हुए शंकर का एक चरण ऊपर कान में समीप तक पहुँच गया है. पास ही काली की एक बड़ी सी मूर्ती है. इसी मण्डप में एक और कारकौल अम्मा नामक शिव भक्त की मूर्ती है.नवग्रह-मंडप मेंनवग्रहों की मूर्तियाँ हैं. मंदिर के दक्षिण -पश्चिम भाग उत्सव मंडप में श्री मीनाक्षी , सुन्देश्वर , गंगा और पार्वती की स्वर्ण- मूर्तियाँ हैं. परिक्रमा में पश्चिम की तरफ एक चन्दनमय महालिंग है.


मंदिर के सम्मुख एक मंडप में नंदी की मूर्ती है. यहाँ से सहस्त्र-स्तम्भ मंडप का मार्ग है यह नटराज का सभा मंडप है.इस मंडप में मनुष्य आकार के भी ऊंची शिव - भक्तों  और देवी - देवताओं  की मूर्तियाँ हैं. इनमे वीणा धारिणी सरस्वती देवी की मूर्ती.बहुत कलापूर्ण और सौम्य है. इस मंडप में श्री नटराज का श्याम विग्रह प्रतिष्ठित है. भक्त कदानप्प की भी मूर्ती है.मंदिर के पूर्व गोपुर के सामने मंडप है . इसे वसंत मंडप कहते हैं. इसके प्रवेश द्वार पर घुड़सवारों तथा सेवकों की मूर्तियाँ हैं.भीतर शिव-पार्वती के पाणी ग्रहण की पूरे आकार की मूर्ती है.पास ही भगवान विष्णु की मूर्ती है. नटराज की भी मनोहर मूर्ती है इस प्रकार सम्पूर्ण मंदिर की स्थापत्य कला अत्यंत ही सूक्ष्म और आकर्षक है. 


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