वामन पुराण (Vaman Puran ) की कहानी एवं कथाओं की सूची ( Vaman Puran hindi stories list)

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वामन पुराण ( Vaman Puran hindi ) की कहानी व्याख्या एवं कथा की सूची



  Vaman puran ki hindi story & stories index


वामन पुराण की हिंदी कथाओं सूची


वामन पुराण मुख्य रुप से भगवान त्रिविक्रम विष्णु के दिव्य महत्ता की व्याख्या है. इसमें कुरुक्षेत्र , कुरुजांगल, पृथूदक आदि तीर्थों का विस्तार से विवेचन किया गया है. इस पुराण के अनुसार बलि का यज्ञ कुरुक्षेत्र में ही हुआ था. इसके आदिवक्ता महर्षि पुलस्त्य हैं और आदि प्रश्नकर्ता श्रोता देवर्षि नारद हैं. 

नारद जी व्यास को, व्यास ने अपने शिष्य लोमहर्षण सूत को और सूत जी ने नैमिषारण्या में शौनक आदि मुनियों को इस पुराण की कथा सुनाई थी . इसमें भगवान वामन, नर-नारायण तथा भगवती दुर्गा के उत्तम चरित्र  के साथ प्रह्लाद तथा श्रीदामा आदि भक्तों के बड़े बड़े रम्य आख्यान और हिंदी में कथाएं हैं. मुख्यत: वैष्णवपुराण होते हुए भी इसमें शैव तथा शक्ति धर्मों की श्रेष्ठता एवं ऐक्य भावना की प्रतिष्ठा की गयी है. 

इस हिंदी कथा पुराण के उपक्रम में देवर्षि नारद के द्वारा प्रश्न और उसके उत्तर के रूप में पुलस्त्य जी का वामन अवतार की कथा , शिवजी का लीला- चरित्र , जीमूतवाहन- आख्यान , ब्रह्मा का मस्तक-छेदन तथा कपाल मोचन -आख्यान का वर्णन है. इसके बाद दक्ष यज्ञ- विध्वंस, हरिका कालरुप, कामदेव दहन, अन्धक-वध  बलि का आख्यान. लक्ष्मी-चरित्र, प्रेतोपाख्यान आदि का विस्तारनिरुपण किया गया गया है. इसके अतिरिक्त इसमें प्रह्लाद का नर -नारायण से युद्ध, देवों असुरों के भिन्न  -भिन्न वाहनों वर्णन, वामन के विविध स्वरूपों तथा - स्थानों का वर्णन विभिन्न व्रत,स्त्रोत और अंत में विष्णु भक्ति के उपदेशों के साथ इस पुराण का उपसंहार हुआ है.


एक प्रसंग.


 धौमें भ्रमण; बदरिकाश्रममें नारायणकी स्तुति; मुक्ति एवं कपाली नाम पड़ना


 पुलस्त्यजी बोले- नारदजी ! तत्पश्चात् शिवजीको अपने करतलमें भयंकर कपालके सट जानेसे बड़ी १ चिन्ता हुई। उनकी इन्द्रियाँ व्याकुल हो गयीं। उन्हें बड़ा संताप हुआ। उसके बाद कालिखके समान नीले रंगकी, रक्तवर्णके केशवाली भयंकर ब्रह्महत्या शंकरके निकट आयी। उस विकराल रूपवाली स्त्रीको आयी देखकर शंकरजीने पूछा- ओ भयावनी स्त्री ! यह बतलाओ कि तुम कौन हो एवं किसलिये यहाँ आयी हो? इसपर उस अत्यन्त दारुण ब्रह्महत्याने उनसे कहा- मैं ब्रह्महत्या हूँ; हे त्रिलोचन! आप मुझे ४ स्वीकार करें-इसलिये यहाँ आयी हूँ ॥ १-४ ॥


 ऐसा कहकर ब्रह्महत्या संतापसे जलते शरीरवाले + त्रिशूलपाणि शिवके शरीरमें समा गयी। ब्रह्महत्यासे अभिभूत होकर श्रीशंकर बदरिकाश्रममें आये; किंतु वहाँ नर एवं नारायण ऋषियोंके उन्हें दर्शन नहीं हुए। धर्मके उन दोनों पुत्रोंको वहाँ न देखकर वे चिन्ता और शोकसे युक्त हो यमुनाजीमें स्नान करने गये; परंतु उसका जल भी सूख गया। यमुनाजीको निर्जल देखकर भगवान् शंकर सरस्वतीमें स्नान करने गये; किंतु वह भी लुप्त हो गयी ॥ ५-८ ॥


फिर पुष्करारण्य, मागधारण्य और सैन्धवारण्यमें जाकर उन्होंने बहुत समयतक स्नान किया। उसी प्रकार वे नैमिषारण्य तथा सिद्धपुरमें भी गये और स्नान किये; फिर भी उस भयंकर ब्रह्महत्याने उन्हें नहीं छोड़ा। जीमूतकेतु शंकरने अनेक नदियों, तीर्थों, आश्रमों एवं पवित्र देवायतनोंकी यात्रा की; पर योगी होनेपर भी वे पापसे मुक्ति न प्राप्त कर सके। तत्पश्चात् वे खिन्न होकर कुरुक्षेत्र गये। वहाँ जाकर उन्होंने गरुडध्वज चक्रपाणि (विष्णु) को देखा और उन शङ्ख-चक्र- गदाधारी पुण्डरीकाक्ष ( श्रीनारायण) का दर्शनकर वे हाथ जोड़कर स्तुति करने लगे - ॥ ९-१३ ॥



हिंदी कथा वामन पुराण की अध्याय अनुसार कथा सूची देखें:-


1. श्रीनारद जी का  पुलस्त्य ऋषि से वामनाश्रयी प्रश्न, शिवजी का लीला चरित्र और जीमूत वाहन होना

2.शरदागम होने पर शंकर जी का मंदरपर्वत पर जाना और दक्ष का यज्ञ

3.शंकर जी का ब्रह्मह्त्या से छूटने के लिए तीर्थों में भ्रमण.  बदरिकाश्रम में नारायण  की स्तुति, वाराणसी में ब्रह्मह्त्या से मुक्ति एवं कपाली का नाम

4.विजया की मौसी सती से दक्ष यज्ञ की वार्ता, सती प्राण -त्याग, शिव क्रोध एवं उनके गणों द्वारा दक्ष - यज्ञ का विध्वंस 

5.दक्ष- यज्ञ विध्वंस,देवताओं का प्रताडन, शंकर के कालरुप और राश्यादी रूपों में स्वरुप कथन.

6.नर नारायण की उत्पत्ति, तपश्चर्या, बदरिका आश्रम की बसंत की शोभा, काम-दाह और काम की अंगतारंगता का वर्णन.

7.उर्वशी की उत्पत्ति कथा, प्रह्लाद प्रसंग नर-नारायण से संवाद एवं युद्धोंपक्रम 

8.प्रह्लाद और नारायण का तुमुल युद्ध भक्ति से विजय से विजय

9.अंधकासुर की विजीगीषा, देवों और असुरों के वाहनों एवं युद्ध का वर्णन.

10.अन्धक के साथ देवताओं का युद्ध और अन्धक की विजय

11.सुकेश की कथा,मगधारण्या में ऋषियों  से प्रश्न करना,ऋषियों का धर्मोपदेश , देवादिके धर्म  भुवनकोष एवं इक्कीस नरकों का वर्णन.

12.सुकेशिका नरक देने वाले कर्मों के सम्बन्ध में प्रश्न, ऋषियों का उत्तर और नरकों का वर्णन.

13.सुकेश के प्रश्न के उत्तर में ऋषियों का जम्बू द्वीप की स्थिति और उनमे स्थित पर्वत तथा नदियों का वर्णन .

14.दशांग -धर्म , आश्रम -धर्म और सदाचार -स्वरुप का वर्णन.

15. दैत्यों का धर्म एवं सदाचार पालन, सुकेशी के नगर का उत्थान-पतन, वरुणा-असीकी महिमा, लोलार्क -प्रसंग

16.देवताओं का शयन- तिथियों और उनके अशून्यशयन आदि व्रतों एवं शिव- पूजन का वर्णन

देवताओं से तरुओं की उत्पत्ति, अखंडव्रत-विधान, विष्णु पूजा , विष्णुपञ्जरस्त्रोत और महिष का प्रसंग

17.महिषासुर का अतिचार,देवों की तेजोराशि से भगवती कात्यानी का प्रादुर्भाव , विन्ध्यप्रसंग , दुर्गा की अविस्थिति 

18.चंड- मुंड द्वारा महिषासुर से भगवती कात्यानी के सौंदर्य का वर्णन, महिषासुर सन्देश और युद्धोपक्रम

19.भगवती कात्यायनी का दैत्यों के साथ युद्ध, महिषासुर -वध एवं देविका शिवजी के पादमूल में लीन हो जाना

20.देवी के पुनराविभार्ग्व - सम्बन्धी प्रश्नोत्तर, कुरुक्षेत्रस्थ  पृथूकतीर्थ का प्रसंग , संवरण- तपती विवाह

21.कुरु की कथा, कुरुक्षेत्र का निर्माण -प्रसंग और पृथूक तीर्थ का महत्व 

22  वामन-चरित्र का उपक्रम, बलिका दैत्यराज्याधिपति होना और उनकी अतुल राज्य -लक्ष्मी का वर्णन 

23.वामन -चरित के उपक्रम में देवताओं का कश्यप जी के साथ ब्रह्मलोक जाना

24.वामन -चरित के सन्दर्भ में ब्रह्मा का उपदेश तथा तदनुसार  देवों का श्वेत द्वीप में तपस्या करना.

25.कश्यप द्वारा भगवान वामन की स्तुति .

26.भगवान नारायण से देवों और कश्यप की प्रार्थना अदिति की तपस्या और प्रभु से प्रार्थना

27.अदिति की प्रार्थना पर भगवान का प्रकट होना तथा भगवान का अदिति को वर देना

28. बलि का पितामह प्रह्लाद से प्रश्न , प्रह्लाद का अदिति के गर्भ  से वामनागमन एवं विष्णु-महिमा का कथन तथा स्तवन.

29. बालिका प्रह्लाद को संतुष्ट करना, अदिति के गर्भ सेवामन का प्राकट्य , ब्रह्मा द्वारा स्तुति, वामन का बलि के  यज्ञ में जाना

30 वामन द्वारा तीन पग भूमि कि याचना तथा विराट स्वरुप से तीनों लोकों को तीन पग में ना लेना और बालिका का पाताल में जाना

31.सरस्वती नदी का वर्णन, उसका कुरुक्षेत्र में प्रवाहित होना.

32 .सरस्वती नदी का कुरुक्षेत्र में प्रवाहित होना और कुरुक्षेत्र में निवास करने तथा तीर्थ में स्नान करने का महत्व

33.कुरुक्षेत्र के सात प्रसिद्द वनों, नौ नदियों एवं सम्पूर्ण तीर्थों का महत्व 

34.कुरुक्षेत्र के तीर्थों के महत्व एवं क्रम का वर्णन

35.कुरुक्षेत्र के तीर्थों महत्व एवं क्रम का अनुक्रांत वर्णन

36.मंगलक -प्रसंग , मंगलक का शिवस्तवन और उनकी अनुकूलता प्राप्ति

37.कुरुक्षेत्र के तीर्थों का अनुक्रांत वर्णन 

38.वसिष्ठापवाह नामक तीर्थ का उत्पत्ति प्रसंग

39.कुरुक्षेत्र के तीर्थों -शतसह्स्त्रिक, शतिक, रेणुका , ऋणमोचन, ओजस संनिहती, प्राची सरस्वती,पंचवट,कुरुतीर्थ, अनरकतीर्थ, काम्यकवन आदि का वर्णन.

40.काम्यकवन तीर्थ प्रसंग, सरस्वती नदी की महिमा और तत्सम्बद्ध तीर्थों का वर्णन

41.स्थाणु तीर्थ, स्थाणुवट और सांनिहत्य सरोवर के सम्बन्ध में प्रश्न और ब्रह्मलोक के हवाले से लोहहर्षं का उत्तर.

42.ऋषियों सहित ब्रह्मा जी का शंकर जी की शरण में जाना और स्तवन, सस्थाणवीश्वरप्रसंग और हस्तिररुप शंकर की स्तुति एवं लिंग में संनिधान

43.सांनिहितर -स्थाणुतीर्थ, स्थाणुव और स्थाणुलिंग के महत्व का वर्णन.

44. स्थाणु लिंग के समीप असंख्य लिंगों की स्थापना और उनके दर्शन-अर्चना का माहत्य

45.सथाणु तीर्थ के सन्दर्भ में राजा वेन का चरित्र, पृथु-जन्म और उनका अभिषेक, वेन के उद्धार के लिए पृथु का प्रयत्न और वेन की शिव -स्तुति

46.वेन -कृत शिव -स्तुति एवं स्थाणु तीर्थ का महत्व. वेन आदि की सुगति वर्णन 

47.चार मुखों की उत्पत्ति-कथा , ब्रह्म-कृत शिव की स्तुति और स्थाणु तीर्थ का महत्व

48.कुरुक्षेत्र  के पृथूक तीर्थ के सन्दर्भ में अक्षय-तृतीया महत्व की कथा

49.मेना की तीन कन्याओं का जन्म,कुटिला और रागिणी को श्राप, उपामी की तपस्या , शिव द्वारा उपामी की परीक्षा एवं मंदराचल पर गमन

50 शिवजी का महर्षियों को स्मृतकर उन्हें हिमवान के यहाँ भेजना, महर्षियों का हिमवान से शिव के लिए उमा की याचना, हिमालय स्वीकृति और सप्तऋषियों द्वारा शिव को स्वीकृति -सुचना

51.हिमालय-पुत्री उमा का भगवान शिव  के साथ विवाह और बालखिल्यों की उत्पत्ति.

52.भगवान शिव के लिए मंदर पर विश्वकर्मा द्वारा गृहनिर्माण , शिवका यज्ञकर्म करना, पार्वती की तपस्या से ब्रह्मा का वर देना,कौशिकी की स्थापना, शिव के प्रांगण में अग्नि प्रवेश,देवों की प्रार्थना आदि और गजानन की उत्पत्ति 

53.देवी द्वारा नमुचि का वध , शुम्भ-निशुम्भ का वृतांत, धूम्रलोचन का वध, देवी का  चंड-मुंड से युद्ध और असुर सैन्य सहित चंड-मुंड का विनाश

54.चंडिका से मातृकाओं की उत्पत्ति, असुरों से उनका युद्ध,रक्तबीज- निशुम्भ -शुम्भ वध, देवताओं के द्वारा देवी की स्तुति, देवी द्वारा वरदान और भविष्य में प्रादुर्भाव का कथन.

55.कार्तिकेय का जन्म, उनके छ: मुख और चतुर्मूर्ति होने हेतु , उनका सेनापति होना तथा उनका गण मयूर , शक्ति और दंड शक्ति का पाना 

56.सेनापति पद पर नियुक्त कार्तिकेय के लिए ऋषियों द्वारा स्वस्त्ययन ,तारक-विजय के लिए प्रस्थान,पाताल  केतु का वृत्तांत, तारक महिषासुर-वध तथा सुचक्राक्ष को वर 

57.  ऋतध्वज का पातालकेतु पर आक्रमण कर प्रहार करना, अन्धक का गौरी को प्राप्त करने के लिए प्रयत्न करना.

पुन: तेज प्राप्ति के लिए शिव की तपश्चर्या ,केदार्तीर्थ की उपलब्धि , शिव का सरस्वती में निमग्न होना, मुरासुर का प्रसंग और सनत्कुमार का प्रसंग 

58. पुन्नाम नरकों का वर्णन, पुत्र - शिष्य की विशेषता एवं बारह प्रकार के पुत्रों का वर्णन. सनत्कुमार - ब्रह्मा का प्रसंग, चतुर्मूर्ति का वर्णन और मुरु-वध.

59शिव के अभिषेक और तप्त-कृच्छू -व्रत का उपदेश,हरि-हर के संयोग  से विष्णु के ह्रदय में शिव की संस्थिति,शुक्र को संजीविनी विद्या की शिक्षा, मंकण की कथा औ सप्त सारस्वततीर्थ का महत्व

60.अंधकासुर का प्रसंग , दण्डकाख्यान का कथन, दंडक का अराजा से  चित्रांगदा का वृत्तांत -कथन 

61. चित्रांगदा -सन्दर्भ , विश्वकर्मा का बन्दर होना, वेदवती आदि का उपाख्यान ,जाबालिका बंधन-मोचन

62.गालव -प्रसंग, चित्रांगदा-वेदवती -वृत्तांत, कन्याओं की खोज,घृताची- वृतांत,जाबालिकी जटाओ से मुक्ति, विश्वकर्मा की शापमुक्ति, इंद्रद्धुम्न का सप्तगोदावर में आना,शिव -स्तुति,सप्त गोदावर में सम्मलेन, कन्याओं का विवाह.

62.दंडक अराजा के प्रसंग में शुक्र द्वारा दंडक को शाप, प्रह्लाद का अन्धक को उपदेश और अन्धक-शिव सन्दर्भ 

63. नंदी द्वारा आहूत गणों का वर्णन, उनसे हरि और हरका एकत्व प्रतिपादन ,गणों को सदाशिव का दर्शन और गणों द्वारा मंदर का भर जाना.

64. भगवान शंकर का अन्धक से युद्ध के लिए प्रस्थान,रूद्रगणों का दानव वर्ग से युद्ध और तुहुंड आदि दैत्यों  का विनाश

65शुक्र द्वारा संजीविनी का प्रयोग,नंदी-दानव युद्ध ,शिव का शुक्र को उदरस्थ रखना,शुक्रकृत शिव स्तुतिऔर विश्व दर्शन , प्रथम-देवों से युद्ध में दैत्यों की हार, शिव  वेश में अन्धक का पार्वती हेतुविफल प्रयास, पुन: दैत्य-देव और इंद्र-जम्भ-युद्ध ,मातलिका जन्म और सारथ्य , दैत्यों का नाश, जम्भ- कुजुम्भ का वध

66 अन्धक का  शिव- शूल से भेदन , भैरव आदि की उत्पत्ति,अंधककृत  शिव स्तुति, अन्धक का भ्रिंगित्व, देवताओं को भेजना, अर्धकुसुम से पार्वती की उत्पत्ति और अंधक द्वारा उनकी स्तुति.

67.इंद्र का मलय असुरों से युद्ध , उनका पाकशासन और गोत्रभिद्द होने का हेतु, मरुतों की उत्पत्ति की कथा 

68.स्वायम्भुव , स्वरोचित, उत्तम तामस , रैवत, चाक्षुष - मन्वन्तरों  मरुदगणों की  उत्पत्ति का वर्णन.

69.बलि ,मय -प्रभृति दैत्यों का देवताओं के साथ युद्ध, कालनेमि के साथ विष्णु भगवान का युद्ध और कालनेमिवध

 70.बलि - बाणका देवताओं  से युद्ध , बलि की विजय, प्रह्लाद का स्वर्ग में आना,बलि कोप्रह्लाद का उपदेश

71.त्रैलोक्य -लक्ष्मी का बलि के यहाँ आना , श्वेत लक्ष्मी आदि की उत्पत्ति. निधियों का वर्णन, जयश्री का बलि में मिलना और बलि की समृद्धि का वर्णन

72.प्रायश्चित -हेतु  इंद्र की तपस्या, माता के आश्रम में आना, अदिति की तपस्या और वासुकी की स्तुति,वासुदेव का अदिति के पुत्र बनने का आश्वाशन और स्वतेज अदिति के गर्भ में प्रवेश

73.प्रह्लाद से अदिति के गर्भ में विष्णु के प्रविष्ट होने की बात जानकार बालि का विष्णु को दुर्वचन, प्रह्लाद द्वारा बलि को शाप और अनुनय करने पर उपदेश

74.प्रह्लाद की तीर्थ यात्रा, धुन्धु और वामन-प्रसंग, धुन्धु का  यज्ञ अनुष्ठान, वामन का प्रादुर्भाव और उनके लिए दान देने के लिएधुन्धु का निश्चय, वामन का त्रिविक्रम होना और धुन्धु का वध.

75.पुरुरवा  को रूप की प्राप्ति और उसी सन्दर्भ में प्रेतऔर वणिक की भेंट तथा परस्पर वृत्तांत का कहना और श्रवण द्वादशी का महत्व, गया में श्राद्ध करने से प्रेत-योनी से मुक्ति और पुरारवा को सुरूप की प्राप्ति.

76.नक्षत्र-पुरुष के वर्णन- प्रसंग में नक्षत्र -पुरुष की पूजा का विधान और नक्षत्र-पुरुष के व्रतका महत्व

77.प्रह्लाद कीआनुक्रमिक तीर्थयात्रा का वर्णन और  ज्लोभ्द का आख्यान

78.चक्रदान के कथा- प्रसंग में उपमन्यु  तथा श्रीदामा का वृत्तांत, शिवद्वारा विष्णु को चक्र देना, हर का वीरूपाक्ष हो जाना और श्रीदाम-वध 

79.प्रह्लाद की अनुक्रमागत तीर्थ -यात्रा में अनेक तीर्थों का महत्व.

80.प्रह्लाद के तीर्थ यात्रा-प्रसंग में त्रिकूट गिरी स्थित सरोवर में ग्राह द्वारा गजेन्द्र का पकड़ा जाना. गजेन्द्र द्वारा विष्णु की स्तुति , गज-ग्राह का उद्धार एवं गजेन्द्र मोक्षणस्त्रोत की फलश्रुति 

81.सारस्वतस्त्रोत के सन्दर्भ में  विष्णुपञ्जरस्त्रोत ,सारस्वत्स्त्व -कथन -प्रसंग में राक्षस -वृतांत,राक्षसग्रस्त  मुनि की अग्नि -प्रार्थना, सारस्वतस्त्रोत और मुनि द्वारा राक्षस को उपदेश

82.स्त्रोत केक्रम में पुलस्त्य जी द्वारा उपदिष्ट महेश्वर कथित पापप्रशमनस्त्रोत 

83.आगस्त्य द्वारा कथित पापप्रश्मनस्त्रोत 

84.बलिका का कुरुक्षेत्र में आना, वहां के मुनियों का पलायन, वामन का आविर्भाव , उसनी स्तुति बलि के यज्ञ में जाने की उत्कंठा और भरद्वाज से स्वस्थान का कथन

85 वामनभगवान का विविध स्थानों में निवास का वर्णन और कुरुजाँगल के लिए प्रस्थान करना

86भगवान वामन के आगमन से पृथ्वी की क्षुब्धता, बलि और शुक्र के संवाद -प्रसंग में कोशकारक की कथा

87.वामन की बलि यज्ञ में जाकर उससे तीन पगभूमि की याचना,वामन का विराटरुप ग्रहण करना एवं त्रिविक्रम्त्व, वामन का बलिबंधन -विषयक प्रश्न, बलि को वर, बलि का पाताल और वामन का स्वर्ग -गमन

88.ब्रह्मलोक मेंवामन भगवान की पूजा , ब्रह्मकृत वामन की स्तुति और वामन रूप में विष्णु का स्वर्ग में निवास 

89.बलि का  पाताल में वास,सुदर्शन चक्र का वहां प्रवेश, बलिद्वारा सुदर्शन चक्र कीस्तुति , प्रह्लाद द्वारा विष्णु भक्ति की प्रशंसा

90.बलि प्रह्लाद से प्रश्न, विष्णु की पूजन विधि , मासनुसार विविध दान-विधान, विष्णु मंदिर निर्माण और विष्णु भक्त वृद्धवाक्य की महिमा का वर्णन .

पुराण-वाचन ,श्रवण - श्रवण और पठन की फलश्रुति अथवा लाभ.      

 

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