What is the purpose of people's visit in Vrindavan? in hindi
वृन्दावन ( Vrindavan)
यह भगवान कृष्ण की लीला स्थली है. कृष्ण भक्तों के लिए ये स्थान एक पवित्र धाम की तरह है. यहाँ हजारों मंदिरें हैं. इसे मंदिरों की नगरी (city of temples) कहा जाता है. इन मंदिरों की कला और शिल्पी यहाँ आने वाले भक्तों का मन मोह लेती है. यहाँ का प्रमुख और सबसे मान्य मंदिर श्री बिहारीलाल जी का है. बिहार का अर्थ होता है पर्यटन.
इन बिहारीलाल जी को राजा मानसिंह ने विक्रम-संवत 1647 में बनवाया था. यह लाल पत्थर का बना है. इसकी जोड़ाई देखकर आधुनिक इंजिनियर भी चकित होकर रह जाते हैं . आप इसे भारत की प्राचीनतम स्थापत्य कला का एक सुन्दर सा उदहारण मान सकते हैं. किन्तु यहाँ की प्राचीन मूर्ती औरंगजेब की असहिष्णु धार्मिक निति के कारण जयपुर भेज दी गयी. तब से वह वहीँ विराजमान है..
वृन्दावन में के वर्तमान दर्शनीय मंदिरों में इसका विशिष्ट स्थान है. मान-सम्मान और कला की दृष्टि से भी इसका गौरव अधिक है. कला की दृष्टि से दूसरा दर्शनीय मंदिर शाह बिहारीलाल जी का है. यहाँ का सम्पूर्ण मंदिर ही संगमर्मर का बना है. इसकी कारीगिरी श्लाघनीय है. संगमर्मर के टेढ़े बलदार खम्भे यात्रियों को बरबस आकर्षित करती है. अनुमानत: दस लाख की लागत से उस समय इस मंदिर का निर्माण हुआ था.
यह पवित्र धाम वृन्दावन पर्यटन (Vrindavan tour) भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के मथुरा जिले के वृन्दावन शहर में ही आता है जिसकी दुरी लगभग पंद्रह किलो मीटर है. इस स्थान में कृष्ण ने अपनी बाल लीलाएं दिखाई थीं. यहाँ की मिट्टियों में कृष्ण और राधे की महक है जिसकी धूलि को लोग अपने चरणों में स्थान देते हैं. कृष्ण ने अपनी प्रेमिका राधा को जो मान- सम्मान और प्रेम दिया वो एक वरदान की भांति था इसलिए पहले यहाँ राधे का नाम लिया जाता है बाद में कृष्ण का. इसलिए भी यहाँ कृष्ण और राधा रानी के मंदिरों की अधिकता है.
कृष्ण और राधे एवं बांके विहारीलाल जी के अलावे यहाँ श्री गरुड़ गोविंद, राधा वल्लभ लाल जी के मंदिर, राधारमण, श्री राधा दामोदर, राधे श्याम सुन्दर मंदिर एवं गोपीनाथ, गोकुलेश, कृष्ण बलराम के अलावे पागलबाबा का मंदिर और रंगनाथ जी का भी मंदिर है. यहाँ का निधि वन अत्यंत ही प्रसिद्द है..भारत के मशहूर कई स्थानों में से एक ये स्थान देखने योग्य है . यह यमुना नदी के तीनो ओर से घिरा हुआ है. कृष्ण और राधे का पावन स्थान होने के कारण यहाँ उस वक़्त हजारों किस्म के वृक्ष और सुगन्धित पुष्पों के घने वन हुआ करते थे जिनमे तुलसी के भी नाना प्रकार के झाड हुआ करते थे. किसी काल में ऋतुओं के राजा वसंत ऋतु का यह सबसे मनोरम स्थान रहा होगा. यहाँ का सबसे रहस्यमयी स्थान निधि वन है. मान्यता है कि आज भी राधा और कृष्ण रास करने इस वन में आते हैं.
कई पुराणों में हमे भगवान कृष्ण की इस लीलास्थली का वर्णन मिलता है जिनमे हरिवंश पुराण, श्रीभागवत, विष्णुपुराण आदि प्रमुख हैं. पुराणों की कथा अनुसार जब कंस का अत्याचार बढ़ा तो नन्द जी अपने सभी कुटुंब और मित्रों के साथ वृन्दावन में निवास करने चले आये थे. देखा जाए तो विष्णु पुराण जैसे प्रमाणिक ग्रथों में भी इसी बात का प्रमाण मिलता है. इस पवित्र स्थल को ब्रज का दिल अर्थात ह्रदय कहा गया है. इसे धरती का सबसे पावन और अति उत्तम स्थान माना गया है.
बहुत ही पुराने समय से इस पवित्र स्थान की मान्यता कायम रही है. किन्तु इस स्थान को पवित्र धाम बनाने में कृष्ण के अनेक भक्तों में प्रभु चैतन्य, स्वामी हरिदास, महाप्रभु वल्लभाचार्य, गोस्वामी जी जैसे महा-भक्तों की अहम भूमिका रही है. महाप्रभु चैतन्य को इस स्थान का खोजक माना जा सकता है. क्यूंकि ये स्थान पहले लुप्त हो चुका था. माना जाता है की कुछ पंद्रहवी शताब्दी के आस -पास महाप्रभु चैतन्य ने अपने अंतर्ज्ञान से इस स्थान को पहचान लिया था जहाँ कभी कृष्ण और राधे की चरण पड़े थे. किन्तु उससे पहले ये स्थली सघन वन में कहीं लुप्त हो गयी थी.
लेकिन एक मान्यता के अनुसार उससे पूर्व कृष्ण के पोते वज्रभान ने कहीं मंदिर तो कहीं कुंड बनवाए थे ताकि भगवान की लीला स्थली कायम रह सके. किन्तु कहा जाता है कि लगभग साढ़े चार हज़ार वर्षों के बाद ये स्थान पुन: लुप्त हो गया था. उन्ही लुप्त हुए स्थानों के खोजकर्ता थे महाप्रभु चैतन्य.
बात करें आधुनिक इतिहास की तो अकबर के खजांची मानसिंह ने इस मंदिर का निर्माण करवाया था. यह मंदिर सात मंजिला इमारत थी. मुग़ल शासन के दौर में मान सिंह भले ही हिन्दू थे मगर उनका रूतबा इतना बड़ा था कि कोई उनके कार्यों में बाधा नहीं पहुंचा सकता था. अकबर ने भी कभी इसके लिए रोक टोक नहीं कि क्यूंकि अकबर सभी धर्मों का सम्मान करता था. इसलिए मुगलों में अकबर का नाम सबसे ऊपर आता है. लेकिन फिर बाद में मुस्लिम कट्टर बादशाह औरंज़ेब ने इस मंदिर के ऊपर के दो मालों को तुडवा दिया था. ऐसा माना जाता था कि इस मंदिर के ऊपर जलने वाला दीया पूरे नगर में दिखाई पड़ता. किन्तु आज भी यहाँ भक्तों की संख्या कम नहीं हुई लाखों लोग देश से और देश के बाहर से भी Vrindavan tour के लिए यहाँ आते हैं.
Hi ! you are most welcome for any coment