चीनी यात्री फाहियान( Fahyan) भारत क्यूँ आया था ? यूनिवर्सिटी स्तरीय शोध एवं लेख

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चीनी यात्री फाह्यान की भारत यात्रा  पर लेख वो भी हिंदी में तब काफी अहम बन जाता जाता  है जब लोग इसे नेट पर खोजते है कि चीनी यात्री फाहियान कौन था? फाहियान भारत कब आया था? फाहियान किसके शासन काल में भारत आया और चीनी यात्री फाहियान पर hindi pfd book कहाँ मिलेगी?  तो समझिये आप बिल्कुल ही उचित जगह पर हैं. आपको यहाँ से पूरी जानकारी हिंदी में प्राप्त हो जायेगी. 


चीनी यात्री फाहियान( Fahyan)  भारत क्यूँ आया था ? यूनिवर्सिटी स्तरीय शोध एवं लेख


चीनी यात्री फाहियान (Fahien)

 यात्रा काल सन् ३६६ से ४१४ ईस्वी तक 

चीनी यात्री फाहियान भारत क्यूँ आया था?

Chini yatri Fahyan ke baare hindi mein jaankari. Fahiyan bharat  kab aaya tha?


चीनी यात्री फाहियान (Cheeni Fahyan) एक चीनी यात्री था। वह चीन के एक प्रान्त शान्सी की राजधानी चांग-गान का निवासी था। वह मध्य चीन से चलकर गोबी मरुस्थल को पार करके खोतान, पामीर और हिन्दूकुश को लांघकर भारत पहुंचा। पेशावर से वह उत्तरी पंजाब आया । निःसन्देह उसकी यह पैदल यात्रा कठिन रही होगी। परन्तु वह भारत से अनेक बौद्ध धर्मग्रन्थों को चीन ले जाने के उद्देश्य से यहाँ आया था, अतः इन कठिनाइयों को उसने सहर्ष सहन किया। ह सन् ३६६ में भारत पहुंचा और सन् ४११ तक यहाँ रहा। उसने छह वर्ष यात्रा में बिताये और छः वर्ष तक पांडुलिपियों का अध्ययन्त और संग्रह किया। वह मथुरा, संकाश्य, श्रावस्ती, कन्नौज, कुशीनगर, कपिलवस्तु, वंशाली, काशी, पाटलिपुत्र आदि नगरों में गया । अन्त में वह मेदिनीपुर जिले में स्थित ताम्रलिप्त बन्दरगाह पर पहुंचा। यहाँ दो वर्ष रहकर उसने अनेक ग्रन्थों की प्रतितिति की और बौद्ध प्रतिमाओं के चित्र बनाये। उसके बाद वह सिहल जाने वाले एक जा पर सवार हो गया। फाहियान ने अपनी यात्रा का वृत्तान्त लिखा, जिससे उस काल के इतिहास पर महत्त्वपूर्ण प्रकाश पड़ता है।


चन्द्रगुप्त द्वितीय के काल मे वह आया था. उस काल में भारत में गुप्त सम्राट चन्द्र गुप्त द्वितीय का शासन था। फाहियान ने भारतवासियों के जीवन और रहन-सहन क विशद वर्णन किया है, जिससे उस काल की राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक तथा आर्थिक दशा का पता चलता है। फिर भी, बड़े आश्चर्य की बात है कि फाहियान ने अपने यात्रा. वृत्तान्त में कहीं भी सम्राट् चन्द्रगुप्त द्वितीय का नामोल्लेख नहीं किया। डॉ० रमाशंकर त्रिपाठी ने इसका कारण यह बताया है कि "फाहियान बौद्ध पांडुलिपियों प्राचीन अवशेषों के संग्रह में इतना संलग्न था कि अन्य पार्थिव वस्तुओं से वह सर्वदा उदासीन बना रहा। यहाँ तक कि उसने जिस सम्राट के सुव्यवस्थित शासन में अपनी यात्रा के वर्ष बिताये, उसका नामोल्लेख तक नहीं किया ।"" परन्तु नामोल्लेख न करने का यह कारण पर्याप्त नहीं जान पड़ता, क्योंकि फाहियान ने अन्य अनेक पार्थिव बातों का उल्लेख किया है । तथा अन्य काहियान द्वारा वर्णित प्रमुख नगर - फाहियान भारत में सबसे पहले तक्षशिला और उसके बाद पेशावर पहुँचा। पेशावर में उसने कनिष्क का बनवाया ४०० फुट ऊंचा और तेरह मंजिला स्तूप देखा था। उसका कहना है कि "विशालता तथा भव्यता को दृष्टि से कोई अन्य मन्दिर या पगोडा इसकी बराबरी नहीं कर सकता । अनुश्रुति है कि यह संसार के पूजास्थानों में सबसे श्रेष्ठ है।"


पेशावर से फाहियान मध्य देश की ओर बढ़ा। यहाँ उसने मथुरा, कन्नौज, श्रावस्ती, कपिलवस्तु और वैशाली नगरों को देखा । कपिलवस्तु उस समय उजाड़ पड़ा था। वहाँ केवल थोड़े भिक्षु और नागरिक रहते थे। मगध में उसने पाटलिपुत्र देखा। वहाँ तीन वर्ष रह कर उसने संस्कृत भाषा सीखी । पाटलिपुत्र में स्वर्गवासी सम्राट् अशोक का राजमहल देखकर फाहियान विस्मित रह गया था। उसने लिखा है कि यह महल मनुष्य निर्मित नहीं हो सकता; भूत-प्रेतों का बनाया हुआ है। नगर में चिकित्सालय थे, जहाँ रोगियों को औषधि और भोजन मुफ्त मिलता था। उसने नालन्दा, सारनाथ, गया, कुशीनगर, श्रावस्ती, वाराणसी, मथुरा आदि नगरों को भी देखा। मथुरा में २० बौद्ध विहार थे और उनमें ३००० बौद्ध भिक्षु निवास करते थे।


1.फाहियान द्वारा वर्णित भारत की सामाजिक दशा- 


फाहियान के वर्णन से उस काल में मध्य देश की सामाजिक दशा का सुन्दर चित्र प्राप्त होता है। उसने लिखा है। कि लोग ईमानदार थे। उनका चरित्र ऊँचा था। वे पाप करने से डरते थे। चोर और डाकू नहीं जैसे थे। अपनी लम्बी यात्रा में फाहियान को किसी ने नहीं सताया। लोगों में अतिथि सत्कार की और सेवा की भावना थी। 


उस समय जनता सुखी थी। राज्य की ओर से लोगों पर यह बन्धन नहीं था कि वे अपना पंजीकरण (रजिस्ट्रेशन) करायें और मजिस्ट्रेटों के पास हाजिरी दें (लगता है। फाहियान के देश चोन में ऐसा बन्धन था और उसे यह बड़ी बात जान पड़ी थी यहाँ एसा बन्धन नहीं है ) । लोगों पर यह बन्धन भी नहीं था कि वे अपने खेत को छोड़कर नहीं जा सकते। वे इच्छानुसार अपना व्यवसाय बदल सकते थे। दण्ड कठोर नहीं थे। मृत्युदण्ड नहीं था। बार-बार विद्रोह करने वाले व्यक्ति का दाहिना हाथ काट दिया जाता था। सभी राजकर्मचारियों को वेतन मिलता था। इससे अनुमान होता है कि वे प्रजा न करते होंगे।


फाहियान ने लिखा है कि सारे देश में चांडालों के सिवाय कोई भी व्यक्ति जीवों की हत्या नहीं करता, न मांस खाता, न शराब पीता और न प्याज या लहसुन ही खाताः है। लोग सूअर और मुर्गी नहीं पालते न जीवित पशु बेचते हैं। न कहीं मूनाबार (बडखाने) और न मद्य की दूकानें हैं। केवल चांडाल मछली मारते, शिकार करते और मांस बेचते हैं। इस पर टिप्पणी करते हुए डॉ० सत्यकेतु विद्यालंकार ने लिखा है कि "फाहियान जिन लोगों के साथ रहा था, उनका जीवन सचमुच ऐसा ही था। पर मांस, मद्य आदि का सेवन सर्वसाधारण जनता में था या नहीं, इस विषय में बारीकी से परिचय प्राप्त करने का अवसर फाहियान को नहीं मिला।"


चांडालों को नीच और अस्पृश्य माना जाता था। वे नगर से बाहर रहते थे। जब वे नगर में आते, तब उन्हें भूमि पर लकड़ी पटक-पटक कर आवाज करते हुए चलना होता था, जिससे अन्य लोगों को उनका पता चल जाये और वे उनसे बच कर चल सकें । दान करना पुण्य का काम समझा जाता था। राजा और घनी लोग दान करते थे। कुएँ और धर्मशालाएँ बनवाना अच्छा माना जाता था। फाहियान द्वारा वर्णित भारत की धार्मिक दशा- फाहियान बौद्ध था । इसलिए बौद्ध धर्म की संस्थाओं पर उसका ध्यान जाना स्वाभाविक था। उसने लिखा है कि अफगानिस्तान और बन्नू में बौद्ध धर्म का खूब प्रचार था। वहाँ ३ हजार बौद्ध भिक्षु रहते थे। पंजाब में भी बौद्ध विहार जगह-जगह बने हुए थे। मथुरा मे भी बौद्धों का जोर था। वहाँ उनके २० बिहार थे, जिनमें ३००० भिक्षु रहते थे। सरकारी पदाधिकारी तथा सामान्य प्रजाजन बौद्ध ये ।


मध्य देश में पौराणिक सनातन धर्म का बोलबाला था। जैन धर्म का भी काफ़ी प्रचार था। बौद्ध, सनातनी हिन्दू और जैन, इन तीनों धर्मों के अनुयायी आपस में प्रेम से रहते थे । साम्प्रदायिक फल श्री बौद्ध भिक्षुओं का जनता में विशेष बादर था। उनकी उपस्थिति में अन्य लोग कूसियों पर या ऊंचे आसनों पर नहीं बैठते थे.जगह-जगह वौद्ध स्तुप और विहार बने थे। राजा और धनी गृहस् बैठते थे। भिक्षुओं के लिए विहार बनवाते थे और उनका खर्च चलाने के लिए भूमि आदि दान में देते थे। दान ताम्रपत्रों द्वारा दिये जाते थे और सभी राजा इन दानो मान्यता देते थे । विहारों में भिक्षुओं के निवास तथा भोजन का समुचित . वर्षा ऋतु की समाप्ति पर विहार के भिक्षुओं का सम्मेलन हुआ करता था जिसमें धार्मिक प्रवचन होते थे ।


फाहियान ने लिखा है कि "श्रमणों का कृत्य शुभ कर्मों से धन कमाना पाठ करना और ध्यान लगाना है। अतिथि भिक्षु आते हैं, तो विहारों में रहने वाले भी प्रेम से उनका स्वागत करते हैं। उनके भिक्षा पात्र और वस्त्र आगे बढ़ कर स्वयं ले जाते हैं। उन्हें पैर धोने को पानी और सिर में लगाने को तेल देते हैं। उन्हें उनको योग्यता के अनुरूप निवास स्थान देते हैं और उनसे नियमानुसार उचित बर्ताव करते है।"

और वो लिखता है  "मध्य देश में २६ सम्प्रदायों का प्रचार है। सब लोग परलोक में विश्वास करते हैं। उनके साधुओं के संघ हैं। वे भिक्षा लेते हैं, पर भिक्षा पात्र नहीं रखते। लोग तरह-तरह के धार्मिक अनुष्ठान करते हैं। मांगों पर धर्मशालाएँ बनी है। वहाँ आगन्तुकों को आवास, बिस्तर, और भोजन मिलता है ।"


"कपिलवस्तु में न राजा है, न प्रजा । केवल खंडहर और उजाड़ है। कुछ धमण रहुते हैं और दस घर गृहस्थों के हैं।" पूर्वी भारत के अनेक प्राचीन बौद्ध तीर्थस्थान ऐसी ही उजाड़ बर जीर्णशीर्ण दशा में थे। बोध गया, कुशीनगर और श्रावस्ती की दमा दयनीय थी।


राजा और जनता दोनों ही मन्दिर बनवाते थे। मगध के नगरों में प्रतिवर्ष द्वितीय मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी को बौद्ध मुतियों को रथों पर सजा कर धूमधाम से उनका जलूस निकाला जाता था। मूर्तियां प्रायः २० रथों पर निकाली जाती थी। ये रथ एक ही नमूने के, परन्तु अलग-अलग रंग के होते थे और उनमें से प्रत्येक की सजावट भी अलग प्रकार की होती थी। सरकार की ओर से धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं होता था और सब धर्मो के साथ एक सा बर्ताव किया जाता था ।


फाहियान बौद्ध था, अतः उसका ध्यान मुख्यतया इसी धर्म पर केन्द्रित रहा। यद्यपि चन्द्रगुप्त द्वितीय के शासन काल में वैष्णव धर्म की प्रधानता थी, फिर भी फाहियान के वर्णनों में उसे यथेष्ट स्थान नहीं मिला है। 


2.फाहियान द्वारा वर्णित भारत को आर्थिक दशा - 


फाहियान का ध्यान मख्य रूप से धार्मिक विषयों पर केन्द्रित था, फिर भी उसके वर्णन में आर्थिक पक्ष का भी कुछ उल्लेख है। उसने लिखा है कि मध्य देश की प्रजा सुखी और समृद्ध है। जो किसा जोतते थे, वे लगान देते थे। राज्य की आय का प्रधान स्रोत मगध की आर्थिक स्थिति विशेष रूप से अच्छी थी। वहीं बड़े-बड़े नगर थे । जो धनी थे और दान देने में एक दूसरे से होड़ करते थे । राजा के अंगरक्षकों तथा अन्य सरकारी कर्मचारियों को नकद वेतन मिलता या बाजार में वस्तुओं के लेन-देन के लिए मुद्रा के रूप में कौड़ियों का प्रयोग होता था. लोगों को कोई भी व्यवसाय करने की छूट थी। किसान भी भूमि के साथ बँधा नहीं था। इच्छा होने पर वह खेती छोड़ कर अन्य कोई धन्धा शुरू कर सकता था। कर बहुत हल्के थे। दण्ड प्रायः जुमति के रूप में दिया जाता था। सरकार आय का बड़ा भाग लोकहित के कार्यों पर खर्च होता था।


 3.फाहियान द्वारा वर्णित भारत की राजनीतिक दशा— 


सबसे उल्लेखनीय बात हो यह है कि फाहियान ने इस बात का ही कोई जिक्र नहीं किया कि उस समय इस देश में शासक राजा कौन था और वह कैसा था। इस विषय में वह मौन है। परन्तु इतना उसने अवश्य लिखा है कि देश में सर्वत्र सुख और शान्ति थी। चोर डाकू कम थे। इससे प्रकट है कि देश में एक सुदृढ़ और सुव्यवस्थित शासन था। उसने यह भी लिखा है कि सरकार के पदाधिकारी अपने कर्तव्यों का पालन करते थे ।


 लोगों के कामकाज में सरकारी हस्तक्षेप बहुत कम था। लोगों को कोई भी व्यवसाय चुनने की छूट थी। दण्ड हल्के थे। फिर भी अपराध कम होते थे। लोग निर्भय हो कर रात के समय भी यात्रा कर सकते थे .राज्य की आय का प्रमुख साधन भूमि-कर था। राज्य के कर्मचारियों को नकद वेतन मिलता था। व्यवहार (लेन-देन) की लिखा-पढ़ी और पंचायत कुछ नहीं थी। राजा न प्राण दण्ड देता था, न शारीरिक दण्ड । अपराधी की अवस्था और अपराध की गुरुता को दृष्टि में रखकर अर्थदंड (जुर्माना) दिया जाता था। बार-बार दस्यु कर्म (चोरी या ती करने पर दायां हाथ काट दिया जाता था। फाहियान एक बौद्ध भिक्षु था और बौद्ध धर्म के अनुशीलन के लिए ही भारत आया उसका सारा ध्यान धार्मिक प्रश्नों पर ही केन्द्रित रहा। इसलिए हमें उसके विवरण में उस काल की राजनीतिक दशा का यथेष्ट विवरण प्राप्त नहीं होता।



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